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नया ज्ञानोदय, अंक 136, जून 2014
नीचे प्रलय काष
प्रवाह था
कुछ लोग
ऊपर देख रहे थे
इन्द्रधनुष....
कितना बह गया
इस बारिश में
मगर कहां बहे
जस के तस रहे
औरतों के आंसू
भूखों की लाचारियां
आम अवाम की पेरशानियां.....
उघाड़ देता
एकबारगी
कभी बाढ़
लपेट लेतीं
मगर है गांव
जलमग्न
कोई देख नहीं पाएगा
भीतर-भीतर
वह कितना नग्न.......
फिर पीट पीट कर
जिनके सिर पर ओट नहीं
डटे हुए हैं
कड़ी पीठ पर.......
चर्चित कवि । मोः 09930453711.
प्रवाह था
कुछ लोग
ऊपर देख रहे थे
इन्द्रधनुष....
सवाल
कितना कुछ धुलाकितना बह गया
इस बारिश में
मगर कहां बहे
जस के तस रहे
औरतों के आंसू
भूखों की लाचारियां
आम अवाम की पेरशानियां.....
निपट
कभी सूखाउघाड़ देता
एकबारगी
कभी बाढ़
लपेट लेतीं
मगर है गांव
जलमग्न
कोई देख नहीं पाएगा
भीतर-भीतर
वह कितना नग्न.......
पीठ पर पानी
पानी बरस रहा हैफिर पीट पीट कर
जिनके सिर पर ओट नहीं
डटे हुए हैं
कड़ी पीठ पर.......
चर्चित कवि । मोः 09930453711.