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कादम्बिनी, मई 2016
पानी सिर्फ पानी नहीं है। वह एक औषधि भी है। इसीलिये उसे अमृत कहा जाता है। प्राकृतिक जल-चिकित्सा पानी के इसी गुण पर आधारित है। इसमें पानी का इस्तेमाल कैसे किया जाये इस पर जोर दिया जाता है ताकि वह औषधीय रूप में रोगों से हमारी रक्षा करे। पानी का ठीक से उपयोग इसी विचार का हिस्सा है।
हवा के बाद पानी का हमारे जीवन में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान है। बिना हवा और पानी के हम जीवित नहीं रह सकते हैं। हमारे शरीर में भी पानी की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत है। हमारा शरीर और यह ब्रम्हांड पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बना है अर्थात हमारे जीवन में जल का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम अनेकानेक रूपों में जल का प्रयोग करते हैं, चाहे वह बाहरी रूप से हो या आन्तरिक रूप से। दैनिक स्नान से लेकर पानी पीने तक हम हमेशा जल के सम्पर्क में रहते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा है कि यही जल हमारे लिये ‘संजीवनी’ का काम कर सकता है? हमारे रोगों के निवारण में हमारी मदद कर सकता है और इतना ही नहीं कई रोगों से हमारा बचाव भी कर सकता है।
वास्तव में जल हमारे लिये अमृत है। रेगिस्तान में प्यासे व्यक्ति को यदि पानी की बूँदें मिल जाएँ तो वह उसके लिये अमृत ही हैं। हमारे पुराने ग्रंथों में स्थान-स्थान पर जल की महिमा का वर्णन किया गया है तथा उसे संजीवनी, अमृत तथा औषधि की संज्ञा दी गई है।
धार्मिक ग्रंथों में भी विभिन्न पर्वों के अवसर पर नदी-तालाबों में स्नान का वर्णन किया गया है जो जल से हमारे लगाव का प्रतीक है। हमारे बहुत से पूजा-पाठ बिना जल के पूर्ण नहीं होते हैं। इस प्रकार देखा जाये तो जल हमेशा से हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग रहा है।
जल के इन्हीं चिकित्सात्मक गुणों को जल चिकित्सा में विस्तारित किया गया है जो प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण उपचार विधा है। जल चिकित्सा का सीधा-सा अर्थ है जल के माध्यम से चिकित्सा करना।
चिकित्सा की दृष्टि से देखा जाये तो जल अपने अन्दर अनेक गुण समाहित किये हुए है। शरीर को ठंडक प्रदान करना, शरीर को उत्तेजना पहुँचाना, शरीर के अंगों को सक्रिय बनाना, शरीर में जमा विजातीय पदार्थों को अवशोषित कर बाहर निकालने में मदद करना, पीड़ा को दूर करना, कफ निकालने में मदद करना, तनाव को दूर करना, जलन को दूर करना आदि ऐसे बहुत से गुण हैं जो जल में समाहित हैं। जल चिकित्सा में पानी के इन्हीं गुणों का प्रयोग शरीर को स्वस्थ रखने, रोगों से बचाव तथा उनके निवारण में किया जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत जल चिकित्सा एक लोकप्रिय उपचार पद्धति के रूप में प्रचलित है। गर्म-ठंडा सेंक, कटिस्नान, वाष्प स्नान, रीढ़ स्नान, रीढ़ फुहार स्नान, पाद स्नान, बाहु स्नान, पूर्ण टब स्नान आदि इसके कुछ महत्त्वपूर्ण उपचार हैं जो रोगों के निवारण में सहायता पहुँचाते हैं।
वस्तुतः जल चिकित्सा में पानी के तापक्रम तथा उपचार की अवधि को नियंत्रित करके उससे चिकित्सकीय लाभ उठाया जाता है, फिर चाहे वह पेट में दर्द हो या कब्ज की शिकायत, महिलाओं सम्बन्धी रोग हों या सर्दी-जुकाम। ऐसे अनेक रोगों के सफलतापूर्वक निवारण में जल चिकित्सा अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है।
चिकित्सकों का मानना है कि रोग मनोशारीरिक होते हैं, अर्थात रोगों का प्रादुर्भाव मन और शरीर दोनों में होता है। इसलिये उनकी चिकित्सा केवल शारीरिक स्तर पर नहीं, अपितु मानसिक स्तर पर भी होनी चाहिए।
जल चिकित्सा के अन्तर्गत किये जाने वाले उपचार शरीर और मन दोनों की चिकित्सा में समान रूप से उपयोगी हैं। इतना ही नहीं ये अत्यन्त सरल और किफायती भी हैं। अच्छी तरह से समझकर इनका उपयोग व्यक्ति द्वारा स्वास्थ्य लाभ हेतु किया जा सकता है। मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, संधिवात, तनाव, दमा तथा अनिद्रा-जैसे जीवनशैली के रोगों के समुचित प्रबंधन में जल चिकित्सा से अच्छे और प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं।
जल से चिकित्सा वास्तव में एक घरेलू चिकित्सा है। हम हमेशा से ही अपने घरों में जल का प्रयोग करते रहे हैं। पेट पर गर्म-ठंडे पाानी की सिंकाई ऐसा ही एक सामान्य प्रयोग है। इसकी विधि भी बहुत सरल है।
एक बर्तन में गर्म तथा एक बर्तन में ठंडा पानी लेते हैं। पानी उतना ही गर्म हो जितना रोगी सहन कर सके। अब एक छोटे तौलिये को गर्म पानी में निचोड़कर उसे पेट पर तीन मिनट के लिये फैला देते हैं। तीन मिनट बाद उसे वहाँ से हटाकर एक मिनट के लिये ठंडा तौलिया रख देते हैं। एक समय में तीन बार इस प्रक्रिया को दोहराते हैं।
गर्म पट्टी से वहाँ की रक्त वाहिनियाँ फैलती हैं जिससे वहाँ का रक्त संचार बढ़ जाता है और विजातीय द्रव्य घुलकर अपना स्थान छोड़ने लगता है। इसी तरह जब वहाँ पर ठंडी पट्टी रखते हैं, तो रक्त वाहिनियों में संकुचन होता है तथा विजातीय द्रव्य को शरीर से बाहर निकलने में मदद मिलती है।
यहाँ गर्म पानी में निचोड़े हुए तौलिए की जगह गर्म पानी की थैली का प्रयोग भी किया जा सकता है। यह गर्म-ठंडे पानी की सिंकाई कब्ज तथा प्रदाह आदि में लाभकारी है। यदि सिर दर्द या सर्दी-जुकाम की समस्या है, तो रात को सोते समय गुनगुने पानी के टब में दोनों पैर डालकर 10 मिनट के लिये रखा जा सकता है।
गर्म-ठंडे पानी की सिंकाई की तरह गर्म-ठंडा कटि-स्नान भी जल चिकित्सा का एक महत्त्वपूर्ण उपचार है। यह अंगों को सबल तथा स्वस्थ बनाता है। गर्म पानी से कटि प्रदेश की रक्त कोशिकाओं में फैलाव होता है, परिणामस्वरूप रक्त पोषक तत्व लेकर आता है।
ठंडे पानी से वहाँ की रक्त कोशिकाओं में संकुचन होता है और रक्त तीव्रता से वहाँ के दोष लेकर वापस जाता है। इस प्रकार वे दोषउत्सर्जी अंगों में पहुँच कर शरीर से बाहर निष्कासित कर दिये जाते हैं। जीर्ण कब्ज, मधुमेह, अपच, साइटिका, भूख में कमी, कमर दर्द, मूत्राशय तथा प्रोस्टेट सम्बन्धी रोगों में यह उपचार लाभकारी है।
मोटापा चर्म रोग, जोड़ों का दर्द, सर्दी-जुकाम तथा दमा आदि में वाष्प स्नान की सलाह दी जाती है जो स्वेद ग्रंथियों की सक्रियता को बढ़ाकर त्वचा से विजातीय द्रव्य शीघ्रता से निकालने में मदद करता है। इसी तरह पेट के रोगों में कटि-स्नान, जोड़ों के दर्द में पूर्ण टब स्नान, मानसिक रोगों तथा तनाव आदि में रीढ़ स्नान आदि जल चिकित्सा के महत्त्वपूर्ण उपचार हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि जल चिकित्सा के साथ-साथ सन्तुलित आहार-विहार का भी अनुशीलन किया जाना चाहिए। इससे न केवल रोगों का निवारण शीघ्र होता है, बल्कि आगे आने वाले रोगों की सम्भावना भी क्षीण हो जाती है।
शरीर से विजातीय पदार्थों को बाहर निकालने में पानी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पानी के उपचार शरीर के अंगों की सक्रियता को बढ़ाते हैं तथा विजातीय द्रव्यों के निष्कासन में शरीर की मदद करते हैं। बहुत से लोग कब्ज से परेशान रहते हैं, क्योंकि उनकी पानी पीने की आदत नहीं होती।
कब्ज की शिकायत है, तो खूब पानी पीएँ और पेट पर गर्म-ठंडे पानी की सिंकाई करें। वैसे भी दिन में कम-से-कम 10 गिलास पानी प्रत्येक व्यक्ति को पीने की सलाह दी जाती है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि कम पानी पीने से जहाँ निर्जलीकरण अर्थात शरीर में पानी की कमी हो सकती है वहीं बहुत अधिक पानी पीने से गुर्दों पर बहुत अधिक काम करने का दबाव पड़ता है जो कई बार नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसलिये हमें सदैव आवश्यकतानुसार जल का सेवन करते हुए स्वयं को सन्तुलन की अवस्था में रखना चाहिए।
बहुत से लोग अच्छी तरह से स्नान नहीं करते, क्योंकि ऐसा करना उन्हें पानी का अपव्यय लगता है। पर यहाँ यह जानना जरूरी है कि साफ पानी से अच्छी तरह से स्नान करने से हमारी त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं, त्वचा जीवन्त हो जाती है तथा शरीर में रक्त संचार भी बढ़ जाता है जो अन्ततोगत्वा शरीर को स्वस्थ रखने तथा रोगों से बचाव में हमारी सहायता करता है।
जल चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा है जो रोगों के निवारण एवं उनसे बचाव में हमारी सहायता करती है। पानी हमारे लिये दवा का काम कर सकता है, यदि हम समझ-बूझकर उसको प्रयोग में लाएँ। चिकित्सा में गर्म पानी को प्रयोग में लाते समय सावधानी बरतनी आवश्यक है। सामान्य जल उपचार जैसे ठंडे पानी की पट्टी, पेट की लपेट आदि करने से प्रायः तत्काल लाभ मिलता है, फिर भी पुराने रोग की चिकित्सा से पहले विशेषज्ञ से परामर्श किया जाना उचित होगा।
(लेखक केन्द्रीय एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली के सहायक निदेशक हैं)