DHAN फाउंडेशन: सामूहिक रूप से कर रहे कोविड-19 का मुकाबला

Submitted by Shivendra on Tue, 04/14/2020 - 10:25
Source
Amita Bhaduri, India Water Portal

महामारी के प्रति जागरुक करते हुए। फोटो - DHAN Foundation

जैसे ही कोविड-19 महामारी देश के नए कोनो में पहुँची, भारत में एनजीओ संकट में पैदा होने वाली अप्रत्याशित जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद को तैयार कर रहे थे। डीएचएएन (DHAN) फाउंडेशन नाम से विख्यात एक गैर सरकारी संगठन भारत के कई राज्यों में समुदायों के साथ काम कर रहा है। इस संगठन ने शुरुआत से ही रणनीति विकसित कर कार्य शुरू कर दिया है और वृहद स्तर पर कार्य कर भी रहा है। विशेष रूप से गरीब और वंचित लोगों के बीच काम करने वाला ये संगठन कोविड-19 के दौरान लोगों तक राहत पहुंचाने के लिए पहले से ही प्रतिक्रिया दे रहा है। 

डीएचएएन की परियोजना महाराष्ट्र के तीन जिलों-बीड, परभणी और उस्मानाबाद में नौ स्थानों में चल रही हैं। डीएचएएन कुल 14266 सदस्यों और 1028 स्वयं सहायता समूहों के साथ काम कर रहा है। लाॅकडाउन के कारण सभी प्रकार के कार्य बंद हो गए हैं। ऐसे में कोविड-19 के कारण लगभग दस हजार घरों की आजीविका प्रभावित हुई है। हालाकि, देशव्यापी लाॅकडाउन के कई अच्छे प्रभाव भी हो सकते हैं, लेकिन इससे गरीब वर्ग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। गन्ना कटाई सहित आदि कार्यों में लगे दैनिक वेतन भोगी किसान ऐसे दौर में किसानी से रोजगार पाने में असमर्थ थे, जिस कारण वे अपने गांव लौट गए हैं। निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों ने भी अस्थायी रूप से अपना रोजगार खो दिया है और जीवनयापन करने के लिए भोजन व अन्य जरूरी संसाधनों का बंदोबस्त भी नहीं कर पा रहे हैं। लाॅकडाउन के कारण लघु व्यापारियों की भी कोई आय नहीं हो पा रही है और पूंजी की उनकी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही है। दूध, सब्जियां, अंडे, मुर्गियां आदि का व्यापार करने वाले लोग भी कुछ नहीं कमा पा रहे हैं, या तो इतने कम दाम पर बेच रहे हैं, कि इससे उनका गुजर-बसर चलना तक मुश्किल हो गया है। पशुपालकों को भी पशु चारे की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सब्जियों जैसे खराब होने वाले उत्पाद बाजारों तक न पहुंचने के कारण सड़ रहे हैं। करोड़ों गरीबों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों, स्ट्रीट वेंडर और दिव्यांग लोगों ने भी अपनी आजीविका खो दी है, जिसने उन्हें आर्थिक अनिश्चितता की खाई में धकेल दिया है। लाॅकडाउन के इन प्रतिकूल प्रभावों से बाहर निकलना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। दैनिक आय पर जीवन यापन करने वालों के लिए ये आर्थिक संकट काफी बड़ा है। जिस कारण वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ हैं। यहां तक कि इस विपदा में लोन चुकाना भी उनके लिए भारी पड़ रहा है। 

डीएचएएन की प्रतिक्रिया

डीएचएएन का स्वयं सहायता समूह महासंघ अपने सदस्यों को फोन पर, विशेष रूप से व्हाट्सएप संदेश भेजकर अपडेट कर रहा है कि कोविड-19 कमजोर समुदायों के लोगों को कैसे प्रभावित कर रहा है। गांव की समितियों के नेताओं को कोविड-19 प्रसार के बारे में हर संभव अपडेट दी जा रही है। साथ ही राज्य सरकार और जिला कलेक्टर के निर्देश भी लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगियों को मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध कराए जा रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों के लिए ग्राम स्तर पर स्वच्छता अभियान की सख्त जरूरत है। डीएचएएन फाउंडेशन ने कलनजीम (बचत समूह) के सदस्यों को बीड में स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके सिलाई करने के लिए प्रशिक्षित किया है। ग्रामीणों के बीच 1000 से अधिक मास्क बनाए और वितरित किए गए हैं।

ओडिशा के कोरापुट जिले के आंतरिक क्षेत्रों में कोविड-19 ने कलानजीम सदस्यों (बचत समूह) के जीवन और आजीविका को प्रभावित किया है। इन आदिवासी गाँवों में प्रवासियों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में रोग फैलने की अधिक संभावना है क्योंकि घर में जगह की कमी के कारण आइसोलेशन या क्वारंटीन के मानदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है। इन गांवों में 70 प्रतिशत से अधिक आदिवासी लोग कोविड-19 से संबंधित कारणों, लक्षणों, परिणामों और सावधानियों के बारे में जानते ही नहीं हैं। उनका मानना ​​है कि कोविड-19 विदेशों में फैल रहा है और जनजातीय क्षेत्रों तक पहुँचने की संभावना नहीं है। कुछ का तो ये भी मानना है कि शराब का सेवन करने से कोविड-19 के संक्रमण को रोका जा सकता है।

3500 से अधिक कलानजीम परिवार अपनी कृषि उपज को हर सप्ताह लगने वाले साप्ताहिक बाजार या गांव के बिचैलिए को बेचने में असमर्थ हैं। इसलिए, फसल उगाने के लिए लगाए गए धन की लागत को भी निकाल पाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो गया है। लाॅकडाउन के दौरान जब भी आदिवासी लोग जरूरी सामान को लेने के लिए बाजार तक जाते हैं, तो पुलिस के हमले का डर सताता है। नियमित तौर पर स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत वाली महिलाएं नियमित तौर पर जांच के लिए जाने में असमर्थ हैं। ऐसे में प्राथमिक स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं तक पहुंचना भी लोगों के लिए मुश्किल हो गया है। 

DHAN डीएचएएन फाउंडेशन ने कलानजीम सदस्यों को स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके मास्क सिलाई करने के लिए प्रशिक्षित किया। फोटो - DHAN Foundation

डीएचएएन भारत सरकार और राज्य सरकारों के साथ साझेदारी से कमजोर व वंचित लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए कोरोना जागरुकता रथ की व्यवस्था की गई है, जो कोरापुट में 40 से अधिक गांवों में जाकर 30000 से अधिक आदिवासियों को जागरुक करने के लिए उन्हें पत्रक वितरित कर रहे हैं। आदिवासी समुदाय में जागरुकता के लिए स्थानीय समुदाय की भागीदारी के साथ ही एक वृत्तचित्र फिल्म भी तैयार की गई थी। मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिला परिषद के अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख, ओडिशा बाजरा मिशन के जिला समन्वयक और सहायक कृषि अधिकारी की भागीदारी को इस पहल में शामिल किया गया। ग्राम स्तर पर प्रदर्शनी के माध्यम से लोगों को मास्क पहनने, हाथ धोने के तरीके और सोशल डिस्टेंसिंग आदि के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। ओडिशा सरकार नियमित रूप से स्थिति की निगरानी के लिए एकीकृत बाल विकास योजना, स्वास्थ्य विभागों, शिक्षा विभाग और ग्राम पंचायतों के कर्मचारियों की भागीदारी के साथ स्थिति को नियंत्रित कर रही है। आइसोलेशन सेंटरों की देखभाल के लिए सभी ग्राम पंचायतों को पांच लाख रुपये की राशि प्रदान की गई है। डीएचएएन फाउंडेशन ने देवघाटी में आराधना कलानजीम को बढ़ावा दिया और ग्राम पंचायत के आइसोलेशन केंद्र में भोजन पकाने और वितरण का जिम्मा लिया।

समुदाय से सुझाव

  • आंतरिक जनजातीय क्षेत्रों में कोविड-19 के कारणों, लक्षणों, परिणामों और इसके एहतियात पर व्यवहार परिवर्तन संचार के माध्यम से अधिक जागरुकता कार्यक्रम आवश्यक है।
  • अन्य राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन करने की सुविधाओं को विकसित करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। 
  • आवश्यक वस्तुओं की हर घर तक डिलीवरी संक्रमण के अधिक प्रसार की संभावना को कम करता है। 
  • दिहाड़ी मजदूरों के लिए भोजन और बुनियादी सुविधाओं के लिए सहायता की आवश्यकता है। 
  • बेहतर स्वच्छता और स्वच्छता की स्थिति के साथ-साथ मास्क की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है, स्थानीय कलानजीम सदस्यों को मास्क बनाने और इसका उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • कुछ लोगों ने जनधन खातों में अपने मनरेगा बकाया या राशि प्राप्त की है, लेकिन वे बैंकों तक पहुंचने में असमर्थ हैं। इसके लिए उन्हे गांवों में मोबाइल एटीएम उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
  • आंतरिक गांवों में बीमारी फैलने की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक त्वरित कार्रवाई दल को मॉक ड्रिल के द्वारा प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। वे प्रारंभिक चरण में लक्षणों की पहचान कर सकते हैं और कोविड-19 के संदिग्ध मामलों को रोक सकते हैं। गैर-सरकारी संगठनों के कर्मचारियों को पैरा-हेल्थ वर्कर के रूप में दोगुना करने के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
     

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