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विज्ञान प्रसार
धरती पर जीवन के असंख्य रूप हैं। जीवन यहां इतने विस्मयकारी विन्यास में प्रदर्शित होता है कि यदि इसे यथोचित रूप से वर्गीकृत न किया जाए तो इसे समझना तो दूर की बात है, इसका अध्ययन करना भी असंभव होगा। वनस्पतियों और प्राणियों को वर्गीकृत करने की क्रमबद्ध प्रणाली स्वीडन के जीवविज्ञानी कैरोलस लिनियस के विचारों पर आधारित थी पर कुछ सुधारों के साथ आज भी इसी को अपनाया जा रहा है। उन्होंने वनस्पतियों और प्राणियों के वर्गीकरण से संबंधित अपने विचार ‘सिस्टेमा नेचुरी’ में प्रकाशित किए। सन् 1735 में, सिस्टेमा नेचुरी के प्रथम संस्करण में उन्होंने हर चीज को प्राणि, वनस्पति एवं खनिज जगत में बांटा, कुछ समय बाद उन्होंने नामकरण की ‘द्विनामी पद्धति’ प्रस्तुत की जिसके अन्तर्गत प्रत्येक प्रजाति की पहचान दो शब्दों के नाम से की गई - पहला नाम वंश का और दूसरा प्रजाति का विशिष्ट नाम। उदाहरण के लिए टायरेनोसॉरस रैक्स, जहां टायरेनोसॉरस वंश का नाम है जबकि रैक्स विशिष्ट या जातिगत नाम। यह प्रणाली 1758 तक सम्पूर्ण विश्व में अपना ली गई और लगभग बगैर किसी फेरबदल के आज भी मान्य है।
जीवन में अत्यधिक विविधताएं शाखीय विकास के कारण हुईं और भिन्न पारिस्थितिकीय माहौल में ढलने के लिए जीवों में विविधताएं पैदा हुई। पहली नजर में एक जीवन को दूसरे से संबंधित करने की कोई युक्ति नजर नहीं आती। यहीं पर आकर वर्गीकरण विज्ञान या टैक्सोनॉमी की आवश्यकता पड़ती है, जिसके द्वारा एक जीव को अन्य जीवों के लिहाज से सही स्थान पर रखा जा सके। किसी भी जीव के बारे में उपलब्ध सभी जानकारियों को जानने के लिए उसकी सही पहचान करना बहुत आवश्यक है। इसके लिए पहला कदम यह है कि इसे एक अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त नाम प्रदान किया जाए और अन्य ज्ञात जीवों के अनुसार इसे सही स्थान पर रखा जाए।
एक अज्ञात जीव की खोज के बाद शोधकर्ता जीव के उन संरचनात्मक लक्षणों को देखते हैं जो अन्य ज्ञात प्रजातियों के समान कार्य सम्पादित करते हों। अगले कदम में यह सुनिश्चित करना होता है कि समानताएं क्रमविकास के दौरान स्वतंत्र रूप से विकसित हुई हैं अथवा दोनों प्रजाति किसी समान पूर्वज की ही वंशज हैं। यदि दोनों किसी समान पूर्वज से विकसित हुए हैं तो ये संभवतया निकट संबंधी होंगे और इन्हें समान या समीपवर्ती जैविक वर्ग में रखा जाएगा।
वर्गीकरण के अनुक्रम तंत्र में सबसे ऊपर आने वाला संवर्ग ‘जगत’ कहलाता है। इस स्तर पर जीवों को कोशिकीय संरचना एवं पोषण की विधि के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है। जीव एक कोशिकीय है अथवा बहुकोशिकीय और यह खाद्य पदार्थ अवशोषित करता है, खाता है अथवा उत्पादित करता है। ये विवेचना योग्य तथ्य होते हैं। शुरूआत में यह माना गया था कि केवल दो ही जगत का अस्तित्व है; प्राणि जगत एवं वनस्पति जगत। परन्तु सूक्ष्मदर्शी एवं बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों ने इस आधार को विस्तृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज जीवविज्ञान जीवधारियों को सामान्यतया पांच जगत (किंगडम) में परिभाषित करता है।
एक ही वर्ग के जीवों की तुलना में एक ही गण अथवा ऑर्डर के जीव आपस में अधिक समानताएं रखते हैं। एक ही गण के जीवों को देखने से कई विकासवादी संबंधों को प्राप्त किया जा सकता हैं वर्ग मैमेलिया में लगभग 26 गुण आते हैं। उदाहरण के लिए, मैमेलिया के अन्तर्गत मांसाहारियों को गण कार्निवोरा में रखा गया है जबकि कीटों के भक्षण पर निर्भर रहने वालों को इन्सैक्टिवोरा गण में स्थान दिया गया है। अधिक समानताओं के आधार पर एक ही गण के जीवों को पुनः फैमिली या कुल में विभाजित किया गया है।
एक ही कुल में सम्मिलित जीव आपस में काफी घनिष्ठता रखते हैं। उदाहरण के लिए, बिल्ली के कुल (फैलिडी) में चीता, तेंदुआ, बिल्ली, शेर आदि सम्मिलित हैं और इन सभी में मूंछें और वापस सिमट जाने वाले नुकीले पंजे होते हैं।
एक ही वंश या जीनस में रखे गए जीवों में और अधिक समानताएं होती हैं। उदाहरण के लिए गण कार्निवोरा के अन्तर्गत वंश कैनिस में कैनिस फैमिलिएरिस (कुत्ता), कैनिस मीजोमीलास (रजतपृष्ठ सियार), कैनिस ल्यूपस (धूसर भेडि़या), कैनिस र्यूफस (लाल भेडि़या) और कैनिस लैटराइन्स (भेडि़या) सम्मिलित हैं। वंश प्रजातियों का ऐसा समूह है जिसमें सम्मिलित जीव प्रजातियों के किसी अन्य समूह से अधिक घनिष्ठ संबंध रखते हैं। अंतिम श्रेणी में एक प्रजाति (स्पीशीज) आती है।
जीवन में अत्यधिक विविधताएं शाखीय विकास के कारण हुईं और भिन्न पारिस्थितिकीय माहौल में ढलने के लिए जीवों में विविधताएं पैदा हुई। पहली नजर में एक जीवन को दूसरे से संबंधित करने की कोई युक्ति नजर नहीं आती। यहीं पर आकर वर्गीकरण विज्ञान या टैक्सोनॉमी की आवश्यकता पड़ती है, जिसके द्वारा एक जीव को अन्य जीवों के लिहाज से सही स्थान पर रखा जा सके। किसी भी जीव के बारे में उपलब्ध सभी जानकारियों को जानने के लिए उसकी सही पहचान करना बहुत आवश्यक है। इसके लिए पहला कदम यह है कि इसे एक अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त नाम प्रदान किया जाए और अन्य ज्ञात जीवों के अनुसार इसे सही स्थान पर रखा जाए।
एक अज्ञात जीव की खोज के बाद शोधकर्ता जीव के उन संरचनात्मक लक्षणों को देखते हैं जो अन्य ज्ञात प्रजातियों के समान कार्य सम्पादित करते हों। अगले कदम में यह सुनिश्चित करना होता है कि समानताएं क्रमविकास के दौरान स्वतंत्र रूप से विकसित हुई हैं अथवा दोनों प्रजाति किसी समान पूर्वज की ही वंशज हैं। यदि दोनों किसी समान पूर्वज से विकसित हुए हैं तो ये संभवतया निकट संबंधी होंगे और इन्हें समान या समीपवर्ती जैविक वर्ग में रखा जाएगा।
वर्गीकरण के अनुक्रम तंत्र में सबसे ऊपर आने वाला संवर्ग ‘जगत’ कहलाता है। इस स्तर पर जीवों को कोशिकीय संरचना एवं पोषण की विधि के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है। जीव एक कोशिकीय है अथवा बहुकोशिकीय और यह खाद्य पदार्थ अवशोषित करता है, खाता है अथवा उत्पादित करता है। ये विवेचना योग्य तथ्य होते हैं। शुरूआत में यह माना गया था कि केवल दो ही जगत का अस्तित्व है; प्राणि जगत एवं वनस्पति जगत। परन्तु सूक्ष्मदर्शी एवं बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों ने इस आधार को विस्तृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज जीवविज्ञान जीवधारियों को सामान्यतया पांच जगत (किंगडम) में परिभाषित करता है।
किंगडम एनीमेलिया: बहुकोशीय गतिशील जीव, जो अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर सकते परन्तु दूसरों पर निर्भर रहते हैं।
किंगडम प्लान्टी: ऐसे जीव जो अपना भोजन खुद तैयार कर सकते हैं। उदाहरण समस्त हरे पौधे।
किंगडम प्रोटिस्टा: जीव जो एकमात्र संश्लिष्ट कोशिका से बने हों। उदाहरण, प्रोटोज़ोआ एवं एककोशीय शैवाल।
किंगडम फंगाई: ऐसे जीव जो अपना भोजन जीवित एवं निर्जीव तत्वों से अवशोषित करते हैं। उदाहरण, यीस्ट।
किंगडम मोनेरा: जीव जो एक सरल कोशिका से बने हों। उदाहरण, जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल।
एक ही वर्ग के जीवों की तुलना में एक ही गण अथवा ऑर्डर के जीव आपस में अधिक समानताएं रखते हैं। एक ही गण के जीवों को देखने से कई विकासवादी संबंधों को प्राप्त किया जा सकता हैं वर्ग मैमेलिया में लगभग 26 गुण आते हैं। उदाहरण के लिए, मैमेलिया के अन्तर्गत मांसाहारियों को गण कार्निवोरा में रखा गया है जबकि कीटों के भक्षण पर निर्भर रहने वालों को इन्सैक्टिवोरा गण में स्थान दिया गया है। अधिक समानताओं के आधार पर एक ही गण के जीवों को पुनः फैमिली या कुल में विभाजित किया गया है।
एक ही कुल में सम्मिलित जीव आपस में काफी घनिष्ठता रखते हैं। उदाहरण के लिए, बिल्ली के कुल (फैलिडी) में चीता, तेंदुआ, बिल्ली, शेर आदि सम्मिलित हैं और इन सभी में मूंछें और वापस सिमट जाने वाले नुकीले पंजे होते हैं।
एक ही वंश या जीनस में रखे गए जीवों में और अधिक समानताएं होती हैं। उदाहरण के लिए गण कार्निवोरा के अन्तर्गत वंश कैनिस में कैनिस फैमिलिएरिस (कुत्ता), कैनिस मीजोमीलास (रजतपृष्ठ सियार), कैनिस ल्यूपस (धूसर भेडि़या), कैनिस र्यूफस (लाल भेडि़या) और कैनिस लैटराइन्स (भेडि़या) सम्मिलित हैं। वंश प्रजातियों का ऐसा समूह है जिसमें सम्मिलित जीव प्रजातियों के किसी अन्य समूह से अधिक घनिष्ठ संबंध रखते हैं। अंतिम श्रेणी में एक प्रजाति (स्पीशीज) आती है।