जैव विविधता के लाभ

Submitted by Hindi on Wed, 09/21/2011 - 09:21
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विज्ञान प्रसार
जीवन के जाल से हम सब बंधे हुए हैं। इस बात से ही लाभ संबंधी जानकारी की आवश्यकता का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। आखिरकार एक अंश कभी भी पूर्णता के महत्व का सवाल नहीं पूछता है। परन्तु होमो सैपियन्स या प्रबुद्ध इन्सान होने के नाते हम वस्तुगत रूप से जैव विविधता के लाभों का अध्ययन कर सकते हैं।

जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका


पारिस्थितिकी तंत्र एक समुदाय और इसका भौतिक पर्यावरण होता है जिसे यह एक समय विशेष में ग्रहण करता है। सभी जीव अपने एवं अपने पारिस्थितिकी तंत्र के मध्य परस्पर संबंधों से मदद प्राप्त करते हैं। एक पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्येक प्रजाति कम से कम एक कार्य के लिए अच्छी होती है। इन समस्त कार्यों में से प्रत्येक प्रजातीय सामंजस्य, प्रजातीय विविधता और प्रजातीय स्वास्थ्य को निर्धारित करने वाले तंत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है। जैव विविधता में कमी पारिस्थितिकी तंत्र को कम टिकाऊ कर देती है। यह अत्यन्त उग्र घटनाओं से अधिक असुरक्षित हो जाता है तथा इसके प्राकृतिक चक्र कमजोर पड़ जाते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र बहुत सी ऐसी सूक्ष्म सेवाएं भी हमें प्रदान करता है जिन्हें अनुमोदित करना तो दूर, हम उन्हें पहचान भी नहीं पाते हैं। उदाहरण के लिए, जीवाण एवं मिट्टी के जीव कूड़े-कचरे को अपघटित कर उर्वर भूमि का निर्माण करते हैं। पौधों में परागण क्रिया के वाहक, जैसे चमगादड़ और मधुमक्खी, यह सुनिश्चित करते हैं कि साल दर साल हमारी फसलें अंकुरित हो सकने वाले बीज पैदा करती रहें। अन्य प्राणि, जैसे लेडीबग और मेंढक फसलों के कीटाणुओं को सीमित रखने में सहायक होते हैं। इन कार्यों के प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं जैसे मिट्टी की उर्वरता, कूड़े-कचरे का अपघटन आदि और साथ ही हवा एवं पानी की शुद्धता, जलवायवीय नियमन एवं बाढ़/सूखा आदि को भी यह कार्य प्रभावित करते हैं।

जैव विविधता की महत्ता को दर्शाता पोस्टरजैव विविधता की महत्ता को दर्शाता पोस्टरजीवों की अनेकानेक किस्मों की दैनिक गतिविधियां पारिस्थितिकी तंत्रों को क्रियाशील रखने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त ये पारिस्थितिकी तंत्र जीवन को मदद देते हैं। एक पारिस्थितिकी तंत्र में जितनी अधिक विविधताएं होंगी, उतना ही अधिक ये पर्यावरण संबंधी दबाव को सहने में सक्षम होगा। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र अधिक टिकाऊ और किसी बदलाव के प्रति अधिक अनुकूलता रखते हैं, जैसे कि बाढ़ या सूखे जैसी अत्यन्त उग्र घटनाएं, जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल सकती हैं। इस प्रकार के तंत्र न सिर्फ अधिक लचीले होते हैं बल्कि ये अधिक उत्पादक भी होते हैं। एक भी प्रजाति की कमी तंत्र की खुद को बरकरार रखने की क्षमता या नुकसान से उबरने की क्षमता को घटा सकती है। दूसरे शब्दों में, एक पारिस्थितिकी तंत्र में जितनी अधिक प्रजातियां होंगी, उतना ही अधिक यह तंत्र टिकाऊ होगा। इन प्रभावों को दर्शाने की क्रियाविधि बहुत जटिल है। हालांकि कुछ लोग अब जैव विविधता के ‘वास्तविक’ पारिस्थितिकीय प्रभावों पर चर्चा करने लगे हैं।

जैव विविधता की आर्थिक भूमिका


जैविक स्रोतों की पारिस्थितिकीय और आर्थिक, दोनों प्रकार की महत्ता है। जैविक रूप से विविधतापूर्ण प्राकृतिक पर्यावरण इन्सान के जीने की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है और अर्थव्यवस्था के लिए आधार तैयार करता है। हर चीज जो हम खरीदते या बेचते हैं, प्राकृतिक जगत में ही पैदा होती है। जैव विविधता एक अमूल्य स्रोत है जो भोजन, निर्माण, औषधियों और यहां तक कि सौंदर्य प्रसाधनों के भी काम आती है। हमारे जीने के लिए आवश्यक कच्चा माल प्रकृति से ही प्राप्त होता है और यही वैश्विक अर्थव्यवस्था का आधार है।

कुछ पदार्थ जो जैव विविधता से जुड़े हुए हैं और अर्थव्यवस्था से सीधे संबंधित हैं, वे हैं: वैज्ञानिक शोध के साधन, भोजन के लिए कच्चा माल, औषधि, उद्योग के लिए कच्चा माल, मनोरंजन और ईको-टूरिज़्म या पारिस्थितिकी मित्र पर्यटन।

औषधियां


आज हमारे काम आने वाली कई औषधियों के लिए हमें जैव विविधता को धन्यवाद देना चाहिए। इनमें सरदर्द के इलाज के काम आने वाली एस्पिरिन से लेकर कैंसर के इलाज की टैक्सोल औषधि तक शामिल हैं। प्रकृति से हमने हृदयउत्तेजक दवाएं, एन्टीबायोटिक्स, मलेरिया विरोधी यौगिक और ढेरों अन्य औषधियां प्राप्त की हैं।

तुलती-एक औषधिय पौधातुलती-एक औषधिय पौधानुस्खों में लिखी जाने वाली दवाओं में से एक-चैथाई या तो सीधे वनस्पतियों से प्राप्त की जाती हैं या ये वानस्पतिक तत्वों के ही रासायनिक रूप से संशोधित संस्करण हैं। इनमें से आधे से अधिक प्राकृतिक यौगिकों पर आधारित हैं। लगभग 121 दवाइयां उच्च वनस्पतियों से प्राप्त होती हैं। फिर भी वर्षावनों की वनस्पतियों में से एक प्रतिशत से भी कम को औषधीय गुणों के लिए परखा गया है। यह अनुमान लगाया गया है कि विश्व की 25,000 पहचानी गई वानस्पतिक प्रजातियों में से मात्रा 5,000 को ही उनके औषधीय गुणों के लिए परखा गया है।

कृषि


कृषि फसल विविधता पर निर्भर है। दुनिया भर को आज भोजन की आपूर्ति 30 फसलों द्वारा किया जा रहा है जो इन्सानी खाने की 90 प्रतिशत कैलोरी में हिस्सेदारी रखते हैं। कम से कम 1650 उष्णकटिबंधी वनीय वनस्पतियों को पहचाना गया है जिन्हें सब्जी फसलों की तरह उगाया जा सकता है और इससे आज उगाई जा रही कुछ ही फसलों पर हमारी निर्भरता घटाई जा सकती है।

सब्जी की दुकान का एक दृश्यसब्जी की दुकान का एक दृश्य

पशुधन


इसी तरह, हमारे द्वारा पाले जाने वाले पशुधन में से 90 प्रतिशत पशु कुल 14 पशु प्रजातियों के हैं और चूंकि हम बहुत कम वनस्पति एवं प्राणि प्रजातियों पर अपने भोजन की आपूर्ति के लिए निर्भर करते हैं। इसलिए हम जलवायु में होने वाले बदलावों और फसलीय रोगों के होने की स्थिति में अत्यन्त खतरे में आ सकते हैं।

कोई आश्चर्य नहीं कि जैव विविधता के क्षरण से ही इन्सानी जीवन पद्धति से संबंधित जागृति पैदा हुई हैं। हमारे दैनिक जीवन में प्रयुक्त प्रत्येक वस्तु की जड़ें प्रकृति की गोद में पाई जा सकती हैं। इस क्षेत्रा में जैव विविधता की महत्ता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

जैव विविधता की वैज्ञानिक भूमिका


जैव विविधता में विकास की भूत, वर्तमान एवं भविष्य की प्रवृत्तियों की कुंजी निहित है। यह हमें जीवन की कार्यशैली को समझने एवं टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्येक प्रजाति के महत्व को जानने में सहायता प्रदान करती है। प्रत्येक जीवित प्रजाति के विशिष्ट आनुवंशिक द्रव्य में चिकित्सकीय एवं आनुवंशिक शोध कार्यों के लिए अपरिष्कृत द्रव्य की भूमिका निभाने की क्षमता होती है जिससे बीमारियों से लड़ने वाली दवाओं की खोज करने में सहायता मिलती है। किसी प्रजाति की मृत्यु के बाद इसका आनुवंशिक द्रव्य नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही एक चिकित्सकीय उपचार को खोजने की संभावना के द्वार बंद हो जाते हैं।

सांस्कृतिक मान्यताएं


सभी देशी व्यक्तियों, पुरातन धर्मों, कलाकारों, कवियों, संगीतकारों एवं किस्से-कहानी सुनाने वालों की पीढि़यों के रचनात्मक कार्यों में प्रकृति ही मूल में रखी गई है। मानवीय सांस्कृतिक अभिज्ञान, आध्यात्मिक क्रियाकलापों एवं सृजनात्मक अभिव्यक्तियों ने अपनी मूलभूत ताकत प्रकृति से ही प्राप्त की है। सांस्कृतिक विविधता अटूट रूप से जैव विविधता से संबंधित है।

यह लगभग निर्विवाद रूप से स्थापित है कि हम पृथ्वी की एकमात्र प्रजाति के रूप में नहीं जी सकते और शायद जीना भी नहीं चाहेंगे।

बीजों और अनाजों से निर्मित रंगोलीबीजों और अनाजों से निर्मित रंगोली