गांव का पानी गांव में

Submitted by admin on Sun, 06/13/2010 - 18:00

खेत का पानी खेत में


मानसून आने को है, फसल के अलावा हमें साल भर के लिए पानी इकट्ठा कर लेना चाहिए। क्योंकि हमारे यहां पानी का ज्यादातर हिस्सा मानसून के दौरान ही प्राप्त होता है।

हमारे गांवों में बहुत बड़े पैमाने पर खुली जमीन होती है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा खेती-किसानी के काम आता है। लोग अपने घरों से लगी हुई बाड़ियों में भी फल-फूल, सब्जियां और घरेलू जरुरत का अनाज उपजा लेते हैं। गांवों में खेती-किसानी से लेकर निस्तार की जरूरतों तक में खुले स्थान पर बनाए गए जलाशय काफी उपयोगी होते हैं। अभी लोगों में अपनी जरुरत का पानी खुद रोकने की सोच नहीं होने के कारण वे पहले से उपलब्ध तालाबों, बांधों, डबरी आदि पर ही निर्भर रहते हैं। इसके कारण उपलब्ध जलाशयों पर काफी दबाव पड़ रहा है। लोगों को बड़े पैमाने पर इस विषय में जागरूक होने की जरूरत है कि वे अपने स्तर पर भी किस तरह की जल संरचनाएं बना सकते हैं। अपनी जरूरत की संरचना बनाने में उन्हें किस तरह की मदद सरकार के विभिन्न विभागों से मिल सकती है, या वे स्वयं भी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप अपना साधन बना सकते हैं।

गांवों में शिक्षित लोग, जागरूक किसान तथा त्रि-स्तरीय पंचायत राज संस्थाओं के पदाधिकारी जन-जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि गांवों में किस-किस प्रकार की जल संरचना बनाई जा सकती हैं, उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

मिट्टी बंधान-
खेतों में बनाई गई निकासी नाली के ऊपरी खण्ड में मिट्टी की छोटी-छोटी संरचानओं का निर्माण किया जा सकता है। जिससे बरसात का पानी इन संरचनाओं में रुक-रुक कर बहने से भू-जल स्तर में वृद्धि होती है।

पत्थर बंधान-
गांवों में पानी के बहाव की दिशा की जानकारी वहां रहने वाले लोगों को अच्छी तरह से होती है। ऐसे बहाव के स्थान पर सही जगह का चयन पानी रोकने के लिए किया जा सकता है। खेतों में निकासी नालियों में एक क्रम में बोल्डर (पत्थर) को जमाकर भी ऐसी संरचनाएं बनाई जाती हैं। ये संरचनाएं बनाए जाने से बरसात का पानी रोकने में काफी मदद मिलती है। जो पानी बहकर सूख जाता है या बहते-बहते किसी बड़े नाले की रास्ते से कहीं और चला जाता है, उस पानी को इससे रोका जा सकता है। इस संरचना से व्यर्थ बह जाने वाला वर्षा जल रुक-रुक कर बहने के कारण उस क्षेत्र के भू-जल स्तर में वृद्धि होती है। साथ ही वर्षा जल के साथ मिट्टी के बहाव को रोका जाता है।

परकोलेशन टैंक-
गांव में खेती के लायक उपजाऊ जमीन के अलावा बड़े पैमाने पर अनुपजाऊ जमीन भी होती है, जिसे पड़त भूमि कहा जाता है। जल ग्रहण क्षेत्र की पड़त भूमि में परकोलेशन टैंक बनाए जाते हैं। इनके निर्माण से वर्षा जल रुकता है एवं वर्षाकाल में संचित जल जमीन के नीचे जाने से भू-जलस्तर में वृद्धि होती है तथा नीचे वाले खेतों में नमी संचित होने से फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।

जल संग्रहण संरचना-
जल ग्रहण क्षेत्र के निचले खण्ड में जल संग्रहण संरचना बनाई जाती हैं। इन संरचानओं में वर्षा का जल इकट्ठा होता है। इस जल से भू-जल में वृद्धि के साथ-साथ किसान भाई अपनी फसलों की सिंचाई भी कर सकते हैं।

चेक डेम-
बारिश का सर्वाधिक पानी नालों में बहकर बरबाद होता है। इन बहते हुए नालों को थोडी-थोड़ी दूर पर बांधकर पानी को रोका जा सकता है। इस तरह से बारिश का पानी रोकने के लिए चेक डैम बनाए जाते हैं। जिससे व्यर्थ बह जाने वाले वर्षा जल को रोककर उस स्थान के आसपास खेती करने वाले किसानों को और गांववालों को निस्तारी के लिए काफी समय तक पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। उस क्षेत्र के किसान भाई उद्वहन सिंचाई के लिए भी इस तरह से बांधे हुए पानी का उपयोग कर सकते हैं। इससे भू-जल स्तर में वृद्धि होती है।

लघुत्तम सिंचाई योजना-
गांवों में छोटे-छोटे तालाबों के निर्माण के लिए इस योजना का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। इसके तहत 40 हेक्टेयर तक सिंचाई क्षमता के लघु सिंचाई तालाब निर्मित किए जाते हैं। निर्मित सिंचाई तालाबों में वर्षा जल को रोक कर कृषक सुरक्षात्मक सिंचाई करते हैं, साथ ही भू-जल स्तर में भी वृद्धि होती है। साथ ही जल उपलब्ध होने से दो फसली रकबे में वृद्धि होती है।

भू-जल संवर्धन योजना-
जमीन में बोर करके हैण्डपंप या बिजली से चलने वाले मोटर पंप लगाकर पानी निकालने के बारे में जानकारी अब गांव-गांव में पहुंच चुकी है। और इसका उपयोग भी काफी बड़े पैमाने पर किया जाने लगा हैं। लेकिन जमीन के अंदर से निकले पानी की भरपाई कैसे हो, इस बारे में लोग ज्यादा चिंता नहीं करते। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस बोरवेल से हम साल भर पानी निकालते हैं, उसमें पानी की भरपाई किस तरह की जाए। इसके लिए नलकूप एवं कूप को फिर भरने की योजना का उपयोग किया जा सकता है।

नलकूप को भरना-
बोरिंग या नलकूप के चारों ओर गढ्डा खोद कर उसमें केसिंग पाईप डाली जाती है। इस केसिंग पाईप में थोड़ी-थोड़ी दूर पर छेद कर दिया जाता है। उसके ऊपर नारियल की रस्सी लपेटी जाती है। खोदे गए गढ्डे में पहले बड़ी गिट्टी फिर बजरी और रेत का फिल्टर तैयार कर झाड़ियों, पत्तियों, टहनियों आदि का इस्तेमाल करके बनाए गए फिल्टर बनाया जाता है। इसे नाली से जोड़ा जाता है। इस तरह यह पानी छनकर नलकूप के अंदर साफ पानी जाता है और भू-जलस्तर में वृद्धि होती है।

कूप को भरना-
कुंआ या कूप के पास गढ्डा बनाकर पहले बड़ी गिट्टी फिर बजरी एवं रेत एवं वानस्पतिक फिल्टर (झाड़ियों, पत्तियों, टहनियों आदि का इस्तेमाल करके) तैयार कर नाली से वर्षा जल फिल्टर के माध्यम से कूप में गिराए जाने से भू-जल स्तर में वृद्धि होती है। हमारी ग्रामीण जनता, गांवों में काम करने वाली संस्थाएं, किसान भाई-बहन आदि गांव में हैण्डपंप के पास थोड़ी दूर पर पानी सोखने की क्षमता रखने वाली गड्ढा (सोख्ता टैंक) बनाकर, उपयोग के पश्चात् नाली के माध्यम से व्यर्थ बहने वाले पानी को रोककर भू-जल संवर्धन का कार्य कर सकते हैं।

बंधिया निर्माण-
खरीफ फसल के दौरान खाली रहने वाले खेतों में ऊंची मेड़ बनाकर पानी रोका जाता है, जिसे बंधिया कहते हैं। बंधिया के नीचे धान आदि की फसल ली जाती है। जिसे बंधिया से इकट्ठा पानी से सिंचाई कर अपेक्षित फसल की उपज प्राप्त की जा सकती है। बंधिया का पानी सिंचाई उपयोग से जैसे-जैसे खाली होता जाता है, वैसे-वैसे बंधियां के तलछटी में अलसी, मसूर, चना, गेंहू की अर्द्ध सिंचित बोनी की जाकर रबी की भरपूर फसल ली जा सकती है।

खेत में डबरी निर्माण-
एक हेक्टेयर खेत में एक बार में 10 सेंटी मीटर सिंचाई उपलब्ध कराने के लिए 1000 घन मीटर पानी की आवश्यकता होती है। इसके लिए 25 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी एवं 2 मीटर गहरी डबरी बनाकर बरसात का जो पानी इकट्ठा किया जाता है वह सिंचाई के काम आ सकता है। साथ ही निजी डबरी का उपयोग दो से तीन माह के लिए मछली बीज के उत्पादन में किया जा सकता है। इस डबरी की मेड़ में भंटा, मिर्च, टमाटर, लौकी, कुम्हड़ा इत्यादि फसल भी ली जा सकती है।

नरेगा का बेहतर उपयोग करें-
राष्ट्रीय रोजगार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत गांव-गांव में जल संरक्षण तथा जल संवर्धन के काम कराने की व्यवस्था है। इसके अंतर्गत अनेक योजनाएं हैं, जिनका लाभ गांववाले लोग उठा सकते हैं। त्रि-स्तरीय पंचायत राज संस्थाओं के माध्यम से इन योजनाओं के अंतर्गत नवीन सिंचाई/निस्तारी तालाब निर्माण/पुराने तालाबों की मरम्मत व गहरीकरण, रिसन तालाब, स्टापडेम, चेक डेम निर्माण आदि कार्य कराए जा सकते हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन से साभार

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