गांवों में समृद्धि की राह दिखाता सूचना प्रौद्योगिकी ऋण

Submitted by birendrakrgupta on Tue, 09/23/2014 - 07:51
Source
कुरुक्षेत्र, जून 2011
सूचना एवं प्रौद्योगिकी का बाजार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। टेलीफोन, कम्प्यूटर अब हर व्यक्ति की आधारभूत जरूरत-सा हो गया है। ऐसे में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की ओर से अपनी स्ववित्त पुर्नभरण योजना में शामिल किए गए ‘सूचना प्रौद्योगिकी ऋण’ ने युवाओं के लिए रोजगार के नए द्वार खोले हैं। इस योजना से जहां सूचना एवं प्रौद्योगिकी लोगों तक सुलभ तरीके से पहुंच पाएगी वहीं हजारों युवाओं को रोजगार मिल सकेगा। इस क्षेत्र में प्रशिक्षित युवा रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकने के बजाय खुद का कारोबार शुरू कर सकते हैं।आज संचार सुविधाएं हर व्यक्ति की जरूरत बन गई हैं। कम्प्यूटर एवं संचार-यंत्र हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गए। इंटरनेट का जन्म सूचना संचार-यंत्रों एवं कम्प्यूटरों में सूचना के आदान-प्रदान से हुआ है, लेकिन जब इसके साथ इंटरनेट जुड़ा तो इंटरनेट टेक्नोलॉजी ने हरेक विषय से संबधित सूचना आबंटित करने के नऐ रास्ते खोल दिए हैं। आज से करीब 15 वर्ष पहले जब इंटरनेट ने भारत में कदम रखा तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इसका इतने व्यापक स्तर पर प्रयोग हो पाएगा। लेकिन इसकी उपयोगिता इसके विस्तार के लिए विवश कर रही है। यही वजह है कि सरकारी स्तर पर भी सब कुछ कम्प्यूटराइज्ड और नेट आधारित किया जा रहा है। साथ ही युवाओं को सूचना प्रौद्योगिकी ऋण योजना से जोड़ा जा रहा है। चूंकि रोजगार का रास्ता वहीं प्रशस्त होता है, जिस क्षेत्र में भविष्य में भी विस्तारीकरण दिख रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी इस दिशा में सबसे सशक्त जरिया दिख रहा है। वर्तमान में हर व्यक्ति अपने निवास पर बैठे विदेश में बैठे व्यक्ति से न सिर्फ बात कर सकता है बल्कि उससे बात करते हुए उसे देख भी सकता है। अपनी इच्छित जानकारी घर बैठे अपने कम्प्यूटर से प्राप्त करता रहता है।

सूचना प्रौद्योगिकी ने व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि की है और रोजगार के नए द्वार भी खोले हैं। इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर निरंतर बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ने इसमें रोजगार के बढ़ते अवसरों को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र को अपनी स्ववित्त पुर्नभरण योजना में शामिल कर लिया है। इस योजना के तहत सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित उत्पादन गतिविधि की इकाई, जॉबवर्क इकाई, सेवा इकाई अथवा प्रशिक्षण इकाई के लिए ऋण स्वीकृत किया जाता है। अगर हम इतिहास पर गौर करें तो भारत में इंटरनेट की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। पहली बार केंद्र सरकार की ओर से एजुकेशन रिसर्च नेटवर्क (एर्नेट) ने इंटरनेट शुरू किया। आम लोगों के लिए इसकी शुरुआत 15 अगस्त, 1995 को हुई। उस समय यह एकदम अजूबा-सा था, लेकिन अब स्थिति यह है कि हर माह दुनियाभर के लोग करीब 27 अरब घंटे इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। अकेले भारत में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 80 करोड़ पार कर गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि वर्ष 2013 तक दुनियाभर में 2.2 अरब इंटरनेट उपभोक्ता हो जाएंगे।

विश्व इंटरनेट बाजार में भारतीय ई-यूजर्स व डेवलपर्स खासा जगह बना चुके हैं। मालूम हो कि विश्व के 42.4 फीसदी यूजर्स अकेले एशिया में हैं। आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ‘सूचना नेटवर्क को सूचना सुपर हाइवे’ कहा जाने लगा है। अब इसे औद्योगिक एवं सामाजिक क्रांति के रूप में भी देखा जा रहा है। इसका असर दिल्ली, मुंबई से होते हुए अब गांव स्तर पर पहुंच चुका है। खबर, सोशल नेटवर्किंग, चिकित्सा, मनोरंजन, ई-मेल और शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही अब इसके जरिए हम बिजली, पानी का बिल जमा कर रहे हैं और अपने कृषि संबंधी उत्पादों की जानकारी भी ले रहे हैं।

जाहिर है कि जिस क्षेत्र में उपभोक्ता अधिक होंगे उसका बाजार भी बढ़ेगा और उसमें रोजगार की संभावना भी अपार होगी। इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर सूचना प्रौद्योगिकी ऋण योजना शुरू की गई है। इसके जरिए हजारों प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार मिल सका है। साथ ही शहर ही नहीं ग्रामीण इलाके में भी सूचना एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े प्रशिक्षण केंद्र खुल सके हैं। इस योजना के तहत ऋण लेकर प्रशिक्षण पाकर युवा लोग प्रशिक्षण केंद्र खोलकर खुद आत्मनिर्भर तो बने ही हैं, साथ ही केंद्र के आसपास के गांवों के बच्चों को प्रशिक्षित कर सूचना एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पारंगत कर रहे हैं।

योजना में शामिल गतिविधियां


इस योजना का उद्देश्य बेरोजगारों, शिक्षित युवकों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना है, जिसमें ग्रामीण युवाओं को विशेष तवज्जो दिया जाता है। इसके तहत सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित किसी भी तरह की इकाई स्थापित करने के लिए वित्तीय साधन उपलब्ध कराया जाता है। इसके पीछे मूल मकसद है कि जो युवक शिक्षित एवं प्रशिक्षित हैं, वे धनाभाव में इधर-उधर न भटके बल्कि ऋण सुविधा प्राप्त कर अपना कारोबार शुरू कर सकें। इस तरह इस योजना में निम्नलिखित गतिविधियां शामिल की गई हैं-

1. टेलीफोन सेंटर- पीसीओ, एसटीडी, आईएसडी सेवाएं, फैक्स एवं इंटरनेट सेवाएं।
2. कम्प्यूटर शिक्षा एवं प्रशिक्षण केंद्र।
3. सॉफ्टवेयर सेवाएं, इम्बेडेड सॉफ्टवेयर।
4. पीसी, सर्वर इत्यादि जैसे ऑटो उपकरण उत्पादन यूनिट।
5. रूटर्स, फायर वाल, स्विचेज आदि जैसे नेटवर्किंग उपकरण।
6. आईटी एवं इलैक्ट्रॉनिक्स घटक, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग, कॉलसेंटर आदि।
7. टेलीफोन सेंटर- आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने वाले केंद्र स्थापित करना अथवा आईटी कनेक्टिविटी प्रदान करने वाले केंद्र स्थापित करना।
8. आईटी से जुड़ी सभी तरह की रोजगार सृजित करने वाली ग्रामीण प्रौद्योगिकियां।

किसलिए ले सकते हैं ऋण


इस योजना के तहत प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक अपने क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित किसी भी प्रकार की इकाई के लिए ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। यह ऋण नई इकाई स्थापना के लिए तो लिया ही जा सकता है साथ ही पुरानी इकाई के विकास के लिए भी प्राप्त किया जा सकता है।

कौन ले सकता है ऋण


सरकार की ओर से ऋण लेने के लिए निश्चित प्रावधान किए गए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी ऋण योजना में ऋण प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तें तय की गई हैं-

1. सूचना प्रौद्योगिकी इकाई के लिए ऋण एक या अधिक व्यक्तियों, समिति अथवा ट्रस्ट को प्राथमिक बैंक के उपनियमों के तहत संयुक्त रूप से दिया जा सकता है।
2. ऋणी व्यक्ति संबंधित भूमि विकास बैंक के कार्यक्षेत्र का निवासी होना चाहिए। प्रस्तावित इकाई का स्थापना स्थल भी बैंक के कार्यक्षेत्र में होना चाहिए।
3. ऋणी का प्रस्तावित इलाके के लिए आवश्यक योग्यताधारक एवं अनुभवी होना जरूरी है। केवल विशेष परिस्थितियों में वांछित योग्यता प्राप्त व अनुभवी व्यक्ति को इकाई में नियोजित करने के आधार पर भी ऋण दिया जा सकेगा।
4. प्रस्तावित इकाई सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित किसी प्रशिक्षण केंद्र की है तो उसका एफीलिएशन किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी/बोर्ड/संस्था से होना चाहिए ताकि प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों को वांछित परीक्षा में बैठने एवं उत्तीर्ण होने पर मिलने वाली डिग्री या प्रमाणपत्र मान्यता प्राप्त हो सके।
5. यदि प्रस्तावित इकाई उत्पादन इकाई के रूप में हो तो उसको कच्चा माल निरंतर रूप से मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस प्रकार उत्पादन के विक्रय के लिए बाजार भी सुनिश्चित हो।
6. यदि प्रस्तावित इकाई जॉबकार्ड इकाई है अथवा सेवा इकाई है तो उसको जॉब सेवा मिलना सुनिश्चित करें।
7. प्रस्तावित इकाई के लिए सभी मूलभूत सुविधाएं जैसे- बिजली, पानी, आवागमन व संचार के साधन आदि उपलब्ध होने चाहिए।
8. ऋण प्राप्त करने वाला व्यक्ति एवं इकाई के लिए यह आवश्यक है कि वह निर्धारित सिक्युरिटी एवं जरूरी निजीय अंशदान उपलब्ध करा सके।

परियोजना व्यय


किसी भी परियोजना के लिए आय-व्यय का निर्धारण जरूरी होता है। इसके अभाव में बड़े से बड़ा प्रोजेक्ट भी फ्लॉप साबित हो सकता है। इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी ऋण योजना में परियोजना व्यय के विभिन्न मद निर्धारित किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. भवन निर्माण व्यय - बहुत जरूरी होने पर। आमतौर पर ऐसे प्रोजेक्ट में भवन निर्माण व्यय नहीं होना चाहिए। यदि विपरीत परिस्थितियों में हो तो भी वह न्यूनतम होना चाहिए।
2. फर्नीचर क्रय-व्यय।
3. प्रस्तावित यूनिट के लिए जरूरी सभी उपकरण क्रय-व्यय।
4. राजकीय विभागों में जमा कराई जाने वाली सिक्युरिटी राशि।
5. अन्य व्यय जो भी प्रस्तावित यूनिट की स्थापना व संचालन के लिए जरूरी हो।
6. प्रारंभिक व्यय राशि।
7. आवश्यकतानुसार कार्यशील पूंजी।

ऋण के लिए मूलभूत सुविधाएं


इकाई की स्थापना के लिए मौके पर मूलभूत सुविधाओं का होना जरूरी है। इसके तहत कम्प्यूटर प्रशिक्षण, संचालन, रखरखाव के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की उपलब्धता यानी फैकल्टी का विवरण देना जरूरी है। इसी तरह परियोजना पर संचार, बिजली आदि के बारे में भी जानकारी देनी पड़ती है ताकि इन सुविधाओं के अभाव में प्रोजेक्ट की प्रगति प्रभावित न हो क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी प्रोजेक्ट पूरी तरह से संचार एवं बिजली पर आधारित होते हैं। ऐसे में इन सुविधाओं के अभाव में प्रोजेक्ट में नुकसान हो सकता है।

परियोजना रिपोर्ट


सूचना प्रौद्योगिकी ऋण योजना के तहत प्रोजेक्ट रिपोर्ट में संस्थान की क्षेत्र के अनुसार उपयोगिता, प्रवर्तकों की संचालन क्षमता, आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था, प्रारंभिक एवं परियोजना पूर्व खर्च, मदवार व्यय, प्रोफिटेबिलिटी स्टेटमेंट, कैश-फ्लो स्टेटमेंट, कार्यशील पूंजी की गणना एवं आर्थिक गणना आदि का होना जरूरी है। इकाई द्वारा प्रस्तावित सेवाओं के अनुसार आय एवं व्यय की पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए। यदि इकाई पहले से चल रही है तो पूर्व के वर्षों की स्थिति के बारे में भी जानकारी दिया जाना बेहतर माना जाता था क्योंकि इन्हीं रिपोर्टों के आधार पर चयन कमेटी लाभार्थियों का चयन करती है।

कितना मिल सकता है ऋण


इस योजना में उन्हीं परियोजनाओं को शामिल किया जाता है जिनकी कुल लागत 30 लाख से अधिक न हो। इसके अलावा ऋण लेने वाले को 15 से 20 फीसदी अंशदान जमा करना होता है।

कितने साल के लिए मिलता है ऋण


इस योजना के तहत लिए जाने वाले ऋण की अदायगी अवधि न्यूनतम तीन एवं अधिकतम 10 वर्ष होती है। इसमें अधिकतम 18 माह की ग्रेस अवधि भी शामिल है। ऋण का भुगतान परियोजना के अनुसार मासिक/त्रैमासिक/अर्द्धवार्षिक किया जा सकता है। ग्रेस अवधि का आकलन भी परियोजना की आवश्यकता के आधार पर अधिकमत 18 माह तक किया जाता है। ग्रेस अवधि मे केवल ब्याज देय होगा।

ऋण की सिक्युरिटी


आवेदक प्रतिभूति के रूप में खुद के स्वामित्व की भारमुक्त भूमि, आवासीय भूमि, वाणिज्यिक भूमि अथवा भवन को शामिल कर सकता है। इसके अलावा चल संपत्ति में एनएससी, किसान विकास-पत्र अथवा प्राथमिक भूमि विकास बैंक में सावधि जमा को भी शामिल कर सकता है। इसमें भूमि का मूल्यांकन औसत विक्रय दर के आधार पर, भवन का मूल्यांकन कनिष्ठ व सहायक अभियंता अथवा सरकार से अनुमोदित अभियंता के आधार पर एवं चल संपत्ति का मूल्यांकन फेस वैल्यू पर अधिकतम 80 फीसदी तक किया जाता है। सिक्युरिटी के रूप में संबंधित संपत्ति को बैंक के पक्ष में बंधक करवाया जाता है।

कैसे स्वीकृत होता है ऋण


ऋण आवेदन-पत्र और परियोजना रिपोर्ट पेश करने पर बैंक अधिकारी उसकी जांच करता है। शीर्ष बैंक द्वारा पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के तहत शाखा अधिकारी द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। इसके बाद शाखा सचिव प्राथमिक बैंक के प्रधान कार्यालय को पत्रावलियां भेजी जाती हैं। प्रतिभूति के संबंध में विधि सलाहकार की सलाह लेने के बाद उन पत्रावलियों को एप्रेजल कमेटी के पास भेजा जाता है जहां से एप्रेजल कमेटी इकाई का एप्रेजल कर स्वीकृति संबंधी अग्रिम कार्यवाही करती है।

ऋण स्वीकृत होने के बाद संबंधित बैंक द्वारा स्वीकृति-पत्र जारी किया जाता है जिसमें ऋण राशि मदवार, किश्तों का विवरण, ब्याजदर, ऋण चुकाने की अवधि, अवधिपार राशि पर दंड स्वरूप ब्याजदर, धन का दुरुपयोग होने पर एकमुश्त वसूली, बीमा की अनिवार्यता आदि का उल्लेख रहता है। यदि पत्रावलियों में किसी तरह की गड़बड़ी होती है तो प्राथमिक बैंक द्वारा आवेदकों को अवगत कराया जाता है।

इस योजना के तहत स्वीकृत ऋण राशि पर 0.25 फीसदी की दर से प्रशासनिक शुल्क देय होता है। इसी तरह स्वीकृत ऋण राशि पर प्राथमिक बैंक द्वारा दो लाख तक की ऋण राशि पर पांच फीसदी एवं दो लाख से अधिक की ऋणराशि पर तीन फीसदी की हिस्सा राशि दी जाती है। निर्धारित अवधि में ऋण अदायगी न होने पर तीन फीसदी दर से दंडनीय ब्याज दर देनी पड़ती है। बैंक को यह अधिकार है कि ऋण राशि का दुरुपयोग पाए जाने पर वह अगली किश्त रोक दे। साथ ही पूर्व में वितरित राशि की एकमुश्त वसूली भी कर सकता है।

ऋण राशि का भुगतान


ऋण स्वीकृत होने के बाद बैंक की ओर से फर्नीचर, कम्प्यूटर एवं अन्य साजो-सामान के लिए सीधे सप्लायर को रेखांकित चैक जारी किया जाता है जबकि भवन निर्माण की स्थिति में तीन किश्त में भुगतान किया जाता है। इसमें नींव निर्माण पर पहली किश्त, छत निर्माण में दूसरी और फिनिशिंग स्तर पर तीसरी किश्त का भुगतान किया जाता है।

प्रोजेक्ट बीमा


बैंक ऋण राशि से स्थापित परियोजनाओं का कंप्रीहेंसिव बीमा करवाया जाता है। लाभार्थी खुद बीमा से संबंधित राशि जमाकर इसके बारे में बैंक को सूचित कर सकता है। यदि लाभार्थी बीमा की राशि जमा नहीं करता है तो बैंक खुद प्रीमियम की राशि जमा कर लाभार्थी के खाते में ऋण के नाम डेबिट कर सकता है। बीमा पॉलिसी में बैंक का नाम वित्तदाता की हैसियत से दर्ज कराया जाता है।

ऋण आवेदन के साथ दी जाने वाली पत्रावलियां


1. प्रत्याभूति के रूप में पेश की गई भूमि व मकान का मूल दस्तावेज।
2. कृषि भूमि देने पर उससे संबंधित अंतिम जमाबंदी, खसरा, गिरदावरी और लेखपाल द्वारा प्रमाणित भूमि का नक्शा।
3. आवासीय भूमि होने पर सब-रजिस्ट्रार का प्रमाण।
4. प्रोजेक्ट रिपोर्ट दो प्रति में। कम्प्यूटर व अन्य मशीनरी खरीद के लिए डीलर का कोटेशन।
5. भवन एवं अन्य निर्माण कार्य से संबंधित कोटेशन।
6. समिति अथवा ट्रस्ट होने पर उससे संबंधित पंजीयन-पत्र की सत्यापित प्रति। ऋण के लिए प्रस्तावित प्रस्ताव।
7. संस्था अथवा संचालक का अनुभव प्रमाणपत्र।
8. बैंक एवं अन्य वित्तीय शाखाओं से किसी तरह का बकाया न होने का प्रमाणपत्र।
9. दो जमानतदारों का सहमति-पत्र।
10. केंद्र, राज्य सरकार व स्थानीय निकाय से संबंधित अन्य प्रमाणपत्र, जिसे बैंक मांगे।

विस्तृत जानकारी कहां से ले


इस योजना से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए नाबार्ड अथवा सहकारी भूमि विकास बैंक के कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है।

प्रोजेक्ट लगाने के बाद बरती जाने वाली सावधानियां


1. प्रोजेक्ट के तहत ली गई ऋण राशि का किसी भी कीमत पर दुरुपयोग न होने दें।
2. जिस मद के लिए जितनी राशि निर्धारित करें, उसमें उसी राशि को खर्च करें।
3. बैंक से ली गई राशि को किसी दूसरे काम में कदापि न खर्च करें।
4. ऋण अदायगी की किश्त में किसी तरह की कोताही न बरतें। अन्यथा एक बार किश्त के प्रभावित होने पर पूरा बजट गड़बड़ा सकता है और लाभार्थी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
5. प्रोजेक्ट से पहले विस्तृत प्रशिक्षण प्राप्त करें। जब तक ऋण अदा न हो जाए, पैसे के लेनदेन में विशेष सावधानी बरतें।

इस तरह देखा जाए तो अन्य ऋण योजनाओं की अपेक्षा यह योजना शिक्षित बेरोजगारों के लिए काफी बेहतर मानी जा रही है। राजस्थान सहकारी भूमि विकास बैंक की ओर से इसका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। इस नई योजना से हजारों युवाओं को लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है क्योंकि यह पूरी तरह से युवाओं, छात्रों, नौजवानों के लिए तैयार की गई है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल: vijayjpr@yahoo.com