शिकागो, 1/03,09। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अगली सदी तक ग्रीष्मकालीन मानसून में पांच से 15 दिन का विलंब हो सकता है तथा भारत सहित दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से में वर्षा का स्तर काफी कम हो सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है। अध्ययन के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि से मानसून पूर्व की आ॓र रूख कर सकता है, जिससे हिंद महासागर, म्यामांर और बांग्लादेश में तो खूब बारिश होगी लेकिन पाकिस्तान, भारत तथा नेपाल में वर्षा का स्तर कम ही रहेगा। इस वजह से वर्षा का मौसम भी लंबे समय बाद आने की आशंका होगी और पश्चिमी भारत, श्रीलंका तथा म्यामांर के कुछ समुद्रतटीय इलाकों में औसतन वर्षा में बढ़ोतरी होने से घातक बाढ़ आने का खतरा भी बढ़ सकता है।
अध्ययनकर्ता नोआ डिफेनबाग ने चेतावनी दी है कि इन सबके कारण क्षेत्र की कृषि, मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। पुर्ड्यू विश्वविघालय के जलवायु परिवर्तन शोध केंद्र के अंतरिम निदेशक डिफेनबाग ने कहा कि दुनिया की लगभग आधी जनसंख्या इन मानसून से प्रभावित होने वाले इलाकों में रहती है और यहां तक कि सामान्य मानसून में थोड़े से बदलाव से गहरा असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि देरी से मानसून आने से कृषि उत्पादन, जल उपलब्धता और जल विघुत उत्पादन में व्यापक असर पड़ सकता है। (एएफपी)
साभार – हरियाणा समयलाइव (सहारा परिवार का उपक्रम)
अध्ययनकर्ता नोआ डिफेनबाग ने चेतावनी दी है कि इन सबके कारण क्षेत्र की कृषि, मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। पुर्ड्यू विश्वविघालय के जलवायु परिवर्तन शोध केंद्र के अंतरिम निदेशक डिफेनबाग ने कहा कि दुनिया की लगभग आधी जनसंख्या इन मानसून से प्रभावित होने वाले इलाकों में रहती है और यहां तक कि सामान्य मानसून में थोड़े से बदलाव से गहरा असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि देरी से मानसून आने से कृषि उत्पादन, जल उपलब्धता और जल विघुत उत्पादन में व्यापक असर पड़ सकता है। (एएफपी)
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