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राष्ट्रीय सहारा, 01 फरवरी 2018
याचिका में कहा गया है कि पशुलोक बैराज से मोतीचुर हरिद्वार तक गंगा सूखी रहती है जिस कारण गंगा के पारिस्थितिकीय तंत्र व जलीय जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है और आस-पास रहने वाले लोगों के लिये भी बहुत कठिनाई पैदा हो रही है। बता दें कि एनजीटी इसके पहले सभी राज्यों को निर्देश दे चुका है कि जाड़ों में यानी जिन दिनों पानी कम होता है उन दिनों नदियों में कम-से-कम 15 से 20 फीसद पानी रहना चाहिये।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा में न्यूनतम पर्यावरणीय जल प्रवाह के मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ ही उत्तराखण्ड जल विद्युत निगम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा, जल संसाधन मंत्रालय आदि को नोटिस भेजा है और उनसे आठ मार्च तक जवाब देने को कहा है।दरअसल एनजीटी में इस मामले को लेकर वाद दायर हुआ है कि गंगा में पर्यावरणीय जरूरत के हिसाब से जल प्रवाह नहीं हो रहा है। पर्यावरणीय जल प्रवाह का मतलब है कि प्रवाहित होने वाले जल की वह मात्रा, समय और गुणवत्ता जो नदी के पारिस्थितिकीय तंत्र, उसके आस-पास रहने वाले लोगों के लिये अत्यंत जरूरी है। इस मामले में एनजीटी के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यूडी सालवी ने पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के बाद जवाब तलब किया है। तोंगड़ ने अपील की थी कि जल संसाधन मंत्रालय व नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को यह निर्देश दिये जायें कि आईआईटी कंसोर्टियम के सुझावों के मुताबिक गंगा नदी में बरसात के दिनों में कम-से-कम एक तिहाई पानी रहे जबकि सूखे मौसम में 40 फीसद से अधिक पानी प्रवाहित हो।
उनका कहना था कि गंगा के पारिस्थितिकीय तंत्र, उसके आस-पास धार्मिक गतिविधियों और लोगों के जीवन के लिये यह अत्यंत जरूरी है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी इसी कारण गंगा को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ताओं ऋत्विक दत्ता व राहुल चौधरी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि गंगा के पानी का बड़ा हिस्सा पशुलोक बैराज के पास एक नहर के जरिये 144 मेगावाट की जल विद्युत योजना के लिये डाइवर्ट कर दिया जा रहा है। इस कारण से उसके बाद गंगा में पानी बहुत कम हो गया है। इसी कारण साल के अधिकांश वक्त में ऋषीकेश में वीरपुर के पास पशुलोक बैराज के बाद गंगा में पानी ही नहीं दिखता। याचिका में कहा गया है कि पशुलोक बैराज से मोतीचुर हरिद्वार तक गंगा सूखी रहती है जिस कारण गंगा के पारिस्थितिकीय तंत्र व जलीय जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है और आस-पास रहने वाले लोगों के लिये भी बहुत कठिनाई पैदा हो रही है। बता दें कि एनजीटी इसके पहले सभी राज्यों को निर्देश दे चुका है कि जाड़ों में यानी जिन दिनों पानी कम होता है उन दिनों नदियों में कम-से-कम 15 से 20 फीसद पानी रहना चाहिये।
1. पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ की ओर से दायर याचिका पर आठ मार्च तक जवाब तलब
2. पशुलोक बैराज के पास नहर के जरिये पानी जल विद्युत योजना के लिये डाइवर्ट करने का मामला