गोमुख की स्थिति पर हर तीन माह में रिपोर्ट तलब

Submitted by editorial on Mon, 07/09/2018 - 13:41
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राष्ट्रीय सहारा, 06 जुलाई, 2018

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को वाडिया इंस्टीट्यूट व इसरो की मदद से हर तीन माह में गोमुख की स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश जारी कर दिये हैं। न्यायालय ने पहली रिपोर्ट 31 अगस्त तक माँगी है। कोर्ट में गोमुख में बनी कथित झील को वैज्ञानिक तरीके से हटाने एवं जमा हुए मलबे को जल्दी हटाने के निर्देश दिये हैं।

बृहस्पतिवार को यह निर्देश दिल्ली निवासी अजय गौतम की एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने दिए हैं। इसके साथ ही याचिका को निस्तारित कर दिया है। याचिकाकर्ता गौतम का आरोप है कि गोमुख में करीब डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में 30 मीटर ऊँचा व ढाई सौ मीटर चौड़ाई में चट्टान व हजारों टन मलबा जमा है। इससे डेढ़ किलोमीटर के दायरे में झील बन गई है। इससे कभी भी केदारनाथ की तरह आपदा आ सकती है जबकि सरकार ने अपने जवाब में इस तरह के किसी भी झील के होने से इंकार किया है।

याचिकाकर्ता का यह भी आरोप है कि सरकार ने केवल झील पर ही अपने को फोकस किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार ने सर्वे जाड़ों के दिनों में किया। तब झील पूरी तरह से बर्फ से ढकी थी। जबकि इसका निरीक्षण मई या जून माह में किया जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकारी इनपुट एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में वहाँ हजारों टन मलबा जमा होने की जानकारी दी है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ग्लेशियर प्रत्येक वर्ष पिघल रहा है। इससे झील बन गई है। सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन माह मे रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये हैं।

अतिक्रमण पर सुनवाई 16 को

उच्च न्यायालय ने देहरादून के अतिक्रमणकारियों की पुनर्विचार याचिका की अगली सुनवाई 16 जुलाई मुकर्रर की है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय को विवादास्पद मामलों में अतिक्रमणकारियों को भी सुनवाई का मौका दिये जाने का निर्देश दिया है उल्लेखनीय है एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने पूर्व में देहरादून में अतिक्रमण हटाने के सख्त आदेश दिये थे। इसके साथ ही अपर मुख्य सचिव लेनिवि ओमप्रकाश के नेतृत्व में प्रशासन ने अतिक्रमण हटाना भी शुरू कर दिया था। इस बीच एक अतिक्रमणकारी सुनीता देवी व अन्य ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सड़क से अतिक्रमण हटाने व अन्य विवादित मामलों में अतिक्रमणकारियों को सुनवाई का मौका देने का आदेश दिया था जबकि याचिकाकर्ता को वापस हाईकोर्ट जाने को कहा गया था। गुरुवार को वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजू शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की संयुक्त खण्डपीठ में देहरादून के करीब एक दर्जन क्लीनिक संचालकों की पुनर्विचार याचिका की सुनवाई की लेकिन उन्हें कोई राहत देने से इंकार कर दिया।