ग्रे वॉटर रिसाइकलिंग से पूरी होगी जरूरत

Submitted by Hindi on Sat, 02/19/2011 - 12:05
Source
नवभारत टाइम्स, 29 दिसंबर 2010

दिल्ली में पानी की खपत बढ़ती जा रही है। साथ ही, सप्लाई और डिमांड के बीच का अंतर भी बढ़ रहा है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए जल बोर्ड लोगों को पानी की बर्बादी कम करने के लिए जागरूक भी कर रहा है, लेकिन जानकारों का मानना है कि जब तक ग्रे वॉटर का पूरा इस्तेमाल नहीं किया जाता, तब तक पानी की कमी दूर नहीं हो पाएगी। दिल्ली में हर दिन 200 मिलियन गैलन पानी की रिसाइकलिंग की जा सकती है और इससे 25 लाख लोगों की जरूरत पूरी की जा सकती है। दिल्ली में हर रोज 3,600 मिलियन लीटर पानी की जरूरत है। यह देश के किसी भी शहर में सबसे ज्यादा डिमांड है।

जल बोर्ड के मुताबिक, दिल्ली के 27 पर्सेंट घरों में दिन में तीन घंटे से कम वक्त तक सप्लाई का पानी मिलता है। 55 पर्सेंट घरों में तीन-छह घंटे तक पानी उपलब्ध रहता है। स्लम एरिया के करीब 6,90,000 घरों में से 16 पर्सेंट में हर दिन एक शख्स के लिए 25 लीटर से कम पानी मिल पाता है। जितना पानी हम यूज करते हैं, उसका 80 पर्सेंट सीवेज में चला जाता है, जिसे ग्रे वॉटर कहते हैं। इस पानी को रिसाइकल करके ऑटोमोबाइल व फ्लोर वॉशिंग, टॉयलेट, गार्डनिंग जैसे कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। अभी जो पानी इन सब कामों में यूज हो रहा है, वह दूसरे लाखों लोगों की प्यास बुझा सकता है। 2005 में एक संगठन ने वसंत कुंज इलाके में रिसाइकल कर ग्रे वॉटर के इस्तेमाल का मॉडल सरकार के सामने पेश किया था। लेकिन इसके बाद कोई पहल नहीं की गई। मौर्या शेरेटन सहित कुछ नामी होटलों में ग्रे वॉटर का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन सरकारी तौर पर इस दिशा में कोई कोशिश नहीं की गई है।

सिटिजंस फ्रंट फॉर वॉटर डेमोक्रेसी के कनवीनर एस. ए. नकवी कहते हैं कि ग्रे वॉटर का इस्तेमाल किए बिना दिल्ली की जरूरत पूरी नहीं की जा सकती। टोटल इस्तेमाल होने वाले पानी का 80 पर्सेंट ग्रे वॉटर होता है और उसके इस्तेमाल की अब तक कोई योजना नहीं बनाई गई है। अगर घरेलू स्तर पर इसे रिसाइकल कर इस्तेमाल किया जाने लगे तो पानी की किल्लत दूर हो सकती है। उन्होंने कहा कि रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पर जिस स्तर पर काम हुआ है और सरकार की तरफ से लोगों को इसके लिए फाइनैंशल मदद की जा रही है वैसे ही ग्रे वॉटर पर काम होना चाहिए।

दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा 69 दिन बरसात रहती है और उसे स्टोर कर यूज होने पर भी सारी जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं, जबकि ग्रे वॉटर तो हर रोज हर घर से निकलता है। ऑस्ट्रेलिया में पूरा ग्रे वॉटर यूज होता है। सरकार और पब्लिक अगर ग्रे वॉटर को लेकर जागरूक हो जाए तो काफी हद तक समाधान हो सकता है। गौरतलब है कि कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के लिए जो वॉटर प्लांट बनाया गया है, उसकी खास बात यह है कि यहां पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होती। यह जीरो डिस्चार्ज प्लांट है। यह देश की पहली ऐसी मिनी टाउनशिप है, जिसमें डुअल पाइपिंग सिस्टम यूज किया गया है और वेस्ट वॉटर पूरा रिसाइकल होगा। जब गेम्स विलेज के फ्लैट्स बिक जाएंगे और यह आबाद होगा, तब एक पाइप पीने के पानी को लेकर जाएगा और दूसरा सीवेज का पानी यानी ग्रे वॉटर, जो नॉन ड्रिंकिंग यूज के लिए होगा। सीवेज का ट्रीटेड पानी टॉयलेट में, एसी सिस्टम में और हॉर्टिकल्चर में यूज होगा।
 

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