ग्रीन हाउस गैस ( Green House Gas)

Submitted by Hindi on Fri, 12/25/2009 - 10:15
जलवायु में परितर्वन के लिए ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाटर वेपर, ओजोन आदि करती हैं। कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन पिछले 10-15 सालों में 40 गुना बढ़ गया है। दूसरे शब्दों में औद्यौगिकीकरण के बाद से इसमें 100 गुना का इजाफा हुआ है। दरअसल, आम इस्तेमाल के उपकरणों एसी, फ्रिज, कंप्यूटर, स्कूटर, कार आदि से इन गैसों का उत्सर्जन होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन का सबसे बड़ा जरिया पेट्रोलियम ईंधन और परंपरागत चूल्हे हैं।

पशुपालन से मीथेन का उत्सर्जन होता है। कोयला बिजली घर भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं। हालांकि क्लोरोफ्लोरो का इस्तेमाल देश में बंद हो चुका है। लेकिन इसके स्थान पर इस्तेमाल हो रही गैस हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन सबसे खतरनाक ग्रीन हाउस गैस है जो कार्बन डाई आक्साइड की तुलना में एक हजार गुना ज्यादा नुकसानदेह है।

कार्बन डाई आक्साइड गैस तापमान बढ़ाती है। उदाहरण के तौर पर वीनस यानी शुक्र ग्रह पर 97.5 फीसदी कार्बन डाई आक्साइड है जिस कारण उसकी सतह का तापमान 467 डिग्री सेल्सियस है। राहत की बात यह है कि धरती पर उत्सर्जित होने वाली 40 फीसदी कार्बन को पेड़-पौधे सोख लेते हैं। वातावरण में ग्रीन हाऊस गैसें थर्मल इंफ्रारेड रेंज के विकिरण का अवशोषण और उत्सजर्न करती है। सोलर सिस्टम में शुक्र, मंगल और टाइटन में ऐसी गैसें पाई जाती हैं जिसकी वजह से ग्रीन हाऊस इफेक्ट होता है।