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यह सच है कि गंगा की निर्मलता-अविरलता बरस-दो-बरस का काम नहीं है। यह सतत् साधना और संकल्प का दीर्घकालिक काम है, किन्तु यहाँ तो गंगा प्रदूषण मुक्ति अकेले की कामना करते 30 बरस बीत गए; गंगा कार्ययोजना से लेकर नमामि गंगे तक।
नमामि गंगे ने भी नित नए बयान, नई घोषणा, नए सन्देश और नई तारीखें तय करने में डेढ़ बरस गुजार दिया। इस डेढ़ बरस में जल मंत्रालय का नाम बदला गया। लोकसभा चुनाव से पूर्व गंगा किनारे घूम-घूमकर गंगा सन्देश देने में लगी साध्वी सुश्री उमा भारती जी का मंत्रालय का प्रभार दिया गया।
वर्ष 2020 तक गंगा संरक्षण के लिये 20 हजार करोड़ की मंजूरी से ‘नमामि गंगे’ का श्री गणेश किया गया। कार्यक्रम को अंजाम देने के लिये प्रधानमंत्री के अलावा दो श्री नितिन गडकरी और श्री प्रकाश जावड़ेकर को भी इसमें महती भूमिका दी गई। गंगा प्राधिकरण के सदस्य बदले गए। जल मंथन से लेकर गंगा मंथन तक हुआ। इन दो मंथन से निकला क्या? यह अलग प्रश्न है। शासन ने निकाला क्या? यह असल बात है।
निष्कर्ष के रूप निकली गंगा कोष, गंगा शोध, गंगा घाट की घोषणाएँ, कभी गंगा किनारे औषधीय पौधों के रोपण की बात, कभी नदी की ज़मीन बचाने की बात और कभी गंगा में बैराज और जल परिवहन की बात।
कभी नदी को प्रदूषित करने वाले उद्योगों को नोटिस देने की खबर आई और कभी ई निगरानी की; फिर मालूम हुआ कि नमामि गंगे के तहत यमुना पुनरोद्धार पर भी विचार किया जा रहा है।
इधर पता चला कि गंगा के वनीकरण के लिये वन शोध संस्थान, देहरादून द्वारा डीपीआर तैयार किया जा रहा है। इसे जल्द ही अमल में लाया जाएगा। दूसरी तरफ, बिहार से खबर आई बुड़ी गंडक-नून-बया-गंगा जोड़ परियोजना और कोसी-मेची जोड़ परियोजना का डीपीआर तैयार कर लेने की। नदी जोड़ परियोजनाओं से क्या नदियों को कोई लाभ होगा?
यह भी एक अलग प्रश्न है और आवश्यक भी। यहाँ विवरण यह है कि केन-बेतवा जोड़ परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर यह बताने की कोशिश की गई कि केन-बेतवा जोड़ सरकार की प्राथमिकता पर है।
जल मंत्रालय ने जल संकट से जूझ रहे गाँवों का चयन कर, जल संरक्षण की तकनीक और प्रबन्धन के जरिए उन्हें पानी के मामले में स्वावलम्बी बनाने की दृष्टि से गत् वर्ष जून में ‘जलक्रान्ति अभियान’ का भी श्रीगणेश किया।
अभियान के तहत जलमित्र कॉडर के सृजन, प्रशिक्षण और जल स्वास्थ्य कार्ड आदि की घोषणा की गई थी। जयपुर से हुआ यह श्रीगणेश, अभी तक 450 गाँवों के चिन्हीकरण तक पहुँच पाया है। सकारात्मक नतीजे आगे पता चलेंगे। एक घोषणा, पानी के उचित इस्तेमाल की बाबत् भी हुई।
घोषित किया गया कि वर्ष 2017 के सितम्बर तक 5.89 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का चिन्हीकरण कर लिया जाएगा। बाढ़ पूर्वानुमान के नए केन्द्रों तथा जलोपयोग क्षमता विकास, नियंत्रण और नियमन के लिये एक राष्ट्रीय ब्यूरो की स्थापना के प्रस्ताव भी सामने लाये गए हैं।
बीते डेढ़ बरस में अलग-अलग कारणों से गंगा प्रदूषण मुक्ति के लिये संघर्षरत गैरसरकारी संगठनों की सक्रियता कम हुई, तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने सचमुच ‘पर्यावरण एक्टिविस्ट’ की भूमिका निभाई। मूर्ति विसर्जन, मलबा, रेत, पालीथीन, नदी की भूमि से लेकर प्रदूषित करने वाले उद्योगों व नगर निगम के नालों तक को लेकर नित नए आदेश दिये।
बीते डेढ़ बरस में अलग-अलग कारणों से गंगा प्रदूषण मुक्ति के लिये संघर्षरत गैरसरकारी संगठनों की सक्रियता कम हुई, तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने सचमुच ‘पर्यावरण एक्टिविस्ट’ की भूमिका निभाई। मूर्ति विसर्जन, मलबा, रेत, पालीथीन, नदी की भूमि से लेकर प्रदूषित करने वाले उद्योगों व नगर निगम के नालों तक को लेकर नित नए आदेश दिये। सरकारों और सम्बन्धित विभागों के बीच तालमेल बिठाने के लिये खुद पहल कर बैठक तक बुलाई, किन्तु क्या हुआ?सरकारों और सम्बन्धित विभागों के बीच तालमेल बिठाने के लिये खुद पहल कर बैठक तक बुलाई, किन्तु क्या हुआ? क्या उन आदेशों की वाकई पालना हुई? वायुसेना की तीन सदस्यीय डॉल्फिन टीम ने देवप्रयाग से गंगासागर तक तैरकर गंगा प्रदूषण मुक्ति का सन्देश देने की कोशिश की।
गंगा के प्रति चेतना जगाने की दृष्टि से एक अर्धसैनिक बल द्वारा की गंगा यात्रा आपको याद होगी, किन्तु क्या हमारी संवेदना वाकई जगी?
मंत्रालय के हवाले से हाल ही में गंगा की सुरक्षा के लिये सेना के जवानों की तैनाती की खबर छपी। गंगा को प्रदूषित करने वाले गाँवों के प्रदूषण के निस्तारण हेतु उन्हें ‘गंगा ग्राम’ बनाने की घोषणा हापुड़ से स्वयं सुश्री उमा जी ने की।
बयान आया कि जिस प्रकार पंजाब में कालीबेंई नदी की प्रदूषण मुक्ति हेतु संत बलबीर सिंह सीचेवाल जी ने गाँवों के मलीन जल को नदी से दूर किया है, चिन्हित गंगा ग्रामों में ऐसा ही किया जाएगा।
गौर कीजिए कि गंगा से निकलने वाले मलीन जल को शोधन पश्चात खेती-बागवानी में प्रयोग को यह प्रयोग कालीबेईं तट के गाँवों में सफल पाया गया है। खबर के अनुसार पूठ को एक ऐसे ही ‘गंगा ग्राम’ के रूप में चिन्हित किया गया है। अब सुना है कि मकर सक्रान्ति-2016 पर उमा जी, गंगा रक्षा के कई और सूत्रों की घोषणा करने वाली हैं।
घोषणा, घोषणा और घोषणा! मेरे जैसे ज़मीनी नदी कार्यकर्ताओं और पानी लेखकों के मन का मूल प्रश्न यही है कि क्या इन तमाम घोषणाओं, बयानों योजनाओं, परियोजनाओं से गंगा की न सही, गंगा में मिलने वाली किसी एक छोटी सी मलीन नदी को पूरी तरह निर्मल किया जा सका? क्या गंगा की अविरलता विशेष की दिशा में हम कोई एक भी कदम ज़मीन पर उतार सकें?
हम इसे दुर्भाग्य कहें, दुर्योग या सोची-समझी बाजारू नीति कि नदियों की प्रदूषण मुक्ति के नाम पर पैसे का खर्च बढ़ता ही जा रहा है, किन्तु नदी की प्रदूषण मुक्ति की संवेदना और सरकारी प्रयास नतीजा लाते अभी भी दिखाई नहीं दे रहे। क्यों?
क्योंकि नदी को धन नहीं, धुन चाहिए; क्योंकि नदी को ढाँचे नहीं, ढाँचों से मुक्ति चाहिए; क्योंकि नदी को शासन नहीं, अनुशासन चाहिए। नदी को मलीन करने वालों को रोकने की बजाय, निर्मलीकरण के नाम पर कर्ज, खर्च, मशीनें, ढाँचें प्रदूषण मुक्ति का काम नहीं है।
यह प्रदूषण मुक्ति की आवाजों को पैसे में बदल लेने का काम है, जोकि शासन, प्रशासन और बाजार..तीनों ने अच्छी तरह सीख लिया है। भारतीय नदियाँ अब भ्रष्टाचार का नया अड्डा हैं, तो सदाचार कैसे लौटे और नदी कैसे निर्मल हो?
यह सरकार और समाज..दोनों के सोचने का प्रश्न है। आइए, सोचें कि कमी कहाँ रह गई? सोच में, कामनामें या साधना में? अब घोषणाओं से आगे बढ़ने का वक्त है। घोषणाओं से आगे बढ़े नमामि गंगे। हमें इन्तजार है।