लेखक
घर में नारी आँगन सोवै, रन में चढ़के छत्री रोवै,
रात में सतुवा करै बिआरी, घाघ मरै तेहि का महतारी।।
शब्दार्थ- बिआरी- रात का खाना।
भावार्थ- जिस घर में स्त्री या बहू रात में कमरे में न सो कर आँगन में सोती हो, जो क्षत्रिय युद्ध-भूमि साहस से लड़ने के स्थान पर रुदन करने लगे तथा जो रात में सतुवा खाये, इन तीनों की माँ को मरे के बराबर समझना चाहिए क्योंकि बहू की देखभाल की जिम्मेदारी माँ की होती है, क्षत्रिय अपनी माँ के दूध की लाज रखता है और यदि माँ है, तो रात में पुत्र कभी सतुवा खाकर नहीं सोयेगा।