वर्धन काल
साल की वह अवधि जिसके दौरान किसी स्थान विशेष में, ताप एवं वर्षा के अनुकूल संयोजन से वनस्पति के विकास को संभव बनाया जा सके। इस अवधि के संदर्भ में ही फसलें उगाई जाती हैं। अवधि साधारण रूप से विषुवत रेखा से दूरी के अनुसार घटती जाती है, उदाहरणार्थ विषुवत रेखीय वन में वर्धन-काल लगातार पूरे वर्ष रहता है, जबकि टुंड्रा प्रदेश में यह अवधि केवल दो या तीन मास की ही होती है।