दैनिक जागरण, 21 फरवरी 2020
जीवन के लिए जल, जंगल और जमीन जरूरी हैं। इसे हिमाचल प्रदेश ने खूब समझा है। सरकार के साथ-साथ यहां के लोगों ने भी इसे आत्मसात किया है। कई लोग धरा के प्रहरी पेड़ों के संरक्षण में जुटे हैं। इन्हीं लोगों में से एक हैं बिलासपुर जिले के घुमारवीं उपमंडल की पट्टा पंचायत के पूर्व सैनिक लाल सिंह। सेना में सेवाएं देने के बाद जब घर आए तो धरा के प्रहरी पेड़ों के लिए जुट गए। जुनून ऐसा था कि उन्होंने अपनी जमीन पर तो पौधे रोपे ही साथ लगती सरकारी बंजर जमीन पर चट्टानों को काटकर करीब ढाई किलोमीटर क्षेत्र में चंदन का जंगल खड़ा कर दिया। राज्य सरकार ने भी प्रदेश में हरित आवरण बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। अभी हरित आवरण करीब 28 फीसद है जबकि कभी राज्य में यह ज्यादा होता था। यह सुखद है कि राज्य में कुछ वषों से निरंतर हरित आवरण में वृद्धि हो रही है। हरित पट्टी का घनत्व बढ़ाने की दिशा में भी प्रयास होने लगे हैं।
क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) फंड से भी हरियाली बढ़ेगी। 1660 करोड रुपये के कैंपा फंड के तहत पहले चरण की कार्ययोजना पर 157 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यह भी सुखद है कि राज्य में कई संस्थाएं, स्कूली बच्चे भी पर्यावरण संरक्षण के तहत हर साल लाखों पौधे रोपते हैं। राज्य में लोगों ने विशेष अवसरों को यादगार बनाने के लिए उस दिन पौधे रोपने शुरू किए हैं। कई लोग पौधों को परिवार के सदस्य की तरह देखरेख कर रहे हैं। यह सही है कि विकास के लिए कई स्थानों पर पेड़ों को काटना पड़ता है, लेकिन एक पड़े के बदले पौधे लगाने का फैसला भी पर्यावरण संरक्षण में अहम कड़ी साबित हो रहा है। यह बात हर व्यक्ति को समझना होगी कि जंगल सिर्फ स्वच्छ वायु ही नहीं देते, बल्कि हमारी हर तरह की जरूरतों को पूरा करने में सहायक हैं। भूस्खलन रोकने के साथ-साथ वर्षा के लिए भी जंगल अहम हैं। जंगल हरे भरे रहें तो जंगली जानवर भी बस्तियों में दस्तक नहीं देंगे। कई तरह की बहुमूल्य जड़ी बूटियां भी जंगलों के कारण ही सुरक्षित रह पाएंगी।
बहरहाल पेड़-पौधों और जंगलों को बचाने, संरक्षित करने और उसे बढ़ाने के काम में सरकार के साथ-साथ पर्यावरणविद भी पहले से ही लगे हुए हैं। नागरिक समाज भी बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा लेने के लिए तैयार है। ऐसे में अगर सभी लोग एक साथ मिल कर काम करें तो आने वाले समय में निश्चित रूप से हमें पर्याप्त मात्र में वन, हरियाली के साथ-साथ स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण मिलेगा जहां हम खुल कर सांस ले सकेंगे। इसमें सरकार, राजनीतिक दलों, नागरिकों, मीडिया और वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञों की महती और विशेष भूमिका है। हमें समझना पड़ेगा कि इस मामले में उदासीनता आत्मघाती हो सकती है और दोषारोपन बेमानी। ऐसे मामले में केंद्र सरकार को जंगल के स्थायी विकास के लिए जिला प्रशासन, वन विभाग, राज्य सरकार और केंद्रीय समितियों एवं इससे संबद्ध मंत्रलयों को समयबद्ध कार्रवाई की जिम्मेदारी देनी चाहिए।
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