भोपाल में विकास के लिए हरियाली पर चलती आरी, 10 साल में की 5 लाख पेडों की कटाई

Submitted by Shivendra on Fri, 12/06/2019 - 15:30
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डाउन टू अर्थ, दिसम्बर 2019

फोटो - Down To Earth

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल अपनी हरियाली के लिए मशहूर रहा है लेकिन उसकी यह पहचान लगातार क्षीण होती जा रही है। बंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएस) द्वारा 2016 में जारी रिपोर्ट ‘मॉडलिंग एंड विजुअलाइजेशन ऑफ अर्बन ट्रैजेक्टरी इन फोर सिटीज ऑफ इंडिया’ में शहर का ग्रीन कवर (हरियाली) 22 प्रतिशत बताया गया था। यह ग्रीन कवर अब 9 प्रतिशत ही बचा है। भोपाल में सड़क निर्माण, स्मार्ट सिटी परियोजना, शौर्य स्मारक, नर्मदा पाइपलाइन सहित एक दर्जन से अधिक परियोजनाओं से बीते तीन साल में 13 प्रतिशत हरियाली कम हुई है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि अगर इसी रफ्तार से पेड़ कटते रहे तो 2030 तक भोपाल में मात्र 4.10 प्रतिशत हरियाली  बचेगी।

इस वक्त भोपाल में विकास की कई परियोजनाएँ चल रही हैं और उनमें एक प्रमुख योजना है विधायकों के लिए बनने वाला आवास। भोपाल के पर्यावरणप्रेमी इस योजना के विरोध में मुखर हो गए हैं। तीन साल पहले आवास बनाने के लिए विधानसभा के पीछे वाले घने जंगल वाले इलाके से एक हजार पेड़ काटकर इसे सूना कर दिया गया था, उस समय विरोध के बाद योजना की रफ्तार धीमी हो गई थी। एक बार फिर इस प्रस्ताव पर काम शुरू हो गया है। इस परियोजना को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की मंजूरी प्राप्त है। 12 फरवरी, 2015 को मध्यप्रदेश सरकार की निर्माण संस्था कैपिटल प्रोजेक्ट अथॉरिटी (सीपीए) ने हलफनामा देकर एनजीटी में कहा था कि 22 एकड़ सिर्फ 2.5 एकड़ में निर्माण होना है। इसमें सिर्फ 537 पेड़ काटे जाएँगे। लेकिन स्टेट एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी को विधानसभा ने बताया कि 1,149 पेड़ काटे जा रहे हैं।

वरिष्ठ आर्किटेक्ट अजय कटारिया के मुताबिक, हरियाली के अलावा भी इस प्रोजेक्ट के कई नुकसान हैं। वह कहते हैं कि भोपाल सिटी डेवलपमेंट प्लान में जिक्र है कि आठ डिग्री से अधिक ढलान वाले इलाके में निर्माण नहीं हो सकता है और निर्माण स्थल का ढलाव आठ से अधिक है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की दलील है कि प्रोजेक्ट से पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। वह कहते हैं कि इस स्थान पर पेड़ कटने के साथ ही 4 हजार पेड़ लागए भी जा चुके हैं। सीपीए के तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक सुदीप सिंह ने सीपीए विधानसभा के भवन नियंत्रक के अधीक्षण यंत्री को लिखित रिपोर्ट दी है कि 1,149 पेड़ों को काटने के बदले 3,372 पेड़ दूसरी जगह लगा दिए गए हैं। लेकिन पर्यावरणविद सुदेश वाघमारे की रिपोर्ट कहती है कि 2015-16 में जिन तीन स्थानों (सीएस बंगले के पीछे, पुरानी जेल से विंध्य कोठी के बीच, अरेरा एक्सचेंज) पर पौधरोपण करने का दावा किया, वहाँ न तो चार साल पुराने पेड़ मौजूद हैं, न ही उन प्रजातियों के नए पेड़ मौजूद हैं, जिनके लगाने का दावा किया गया है।

आईआईएस की रिपोर्ट में अनुमान था कि वर्ष 2018 तक भोपाल में ग्रीन कवर 11 प्रतिशत ही रह जाएगा, लेकिन स्थिति इससे भी बुरी है। रिपोर्ट के अनुसार, बीते 2 दशकों में 44 फीसदी हरियाली कम हो गई है। रिपोर्ट के निष्कर्ष भले ही चौकाने वाले हों लेकिन अगर भोपाल में पेड़ कटने की वर्तमान रफ्तार देखें तो यह काफी डरावनी है। नगर निगम के अनुसार, 2012 से 2014 के बीच बीआरटीएस कॉरिडोर बनाने के लिए 10 हजार से अधिक पेड़ कटे। पिछले साल नर्मदा का जल लोगों के घरों तक पहुँचाने के लिए भी 1,000 पेड़ों की बलि देनी पड़ी। वर्ष 2017-18 में विधानसभा के ठीक बगल में स्थित मंत्रालय का नया ब्लॉक बनाने के लिए भी 500 से अधिक पेड़ों को गिराया गया। पिछले तीन साल में सड़क को चौड़ा करने में और कई निजी परियोजना में भी 20 से 30 हजार पेड़ों की कटाई हुई है।

10 साल में 5 लाख पेडों की कटाई

इस वर्ष जून में जारी हुई ग्रीन अर्थ सोसायटी फॉर एनवायरमेंटल एनर्जी एंड डेवलपमेंट संस्था की रिपोर्ट ‘डिफॉरस्टेशन ऑफ भोपाल सिटी 2009-2019’ बताती है कि पिछले 10 साल में शहर से 5 लाख पेड़ गायब हो गए। इसका अर्थ है कि हर घंटे 5.7 पेड़ काटे गए हैं। पाँच साल में भोपाल में 2.50 लाख ऐसे पेड़ काटे जा चुके हैं, जिनकी उम्र 40 वर्ष से अधिक थी। 95,850 पेड़ तो उन 9 स्थानों पर काटे गए हैं, जहाँ कोई सरकारी या व्यावसायिक निर्माण परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें शॉपिंग कॉम्पलेक्स व आवासीय परिसर बनाने के लिए गेमन इंडिया की परियोजना, निजीकरण के बाद हबीबगंज स्टेशन के पुनर्निर्माण की परियोजना, पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नर्मदा पाइपलाइन परियोजना, शहर के प्रमुख सड़कों का चौड़ीकरण, विधायक निवास व स्मार्ट सिटी परियोजना प्रमुख हैं।

पर्यावरणविद सुभाष सी पांडे ने बताया कि इस रिपोर्ट को प्रोफेसर राजचन्द्रन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में प्रकाशित शोध, गुगल इमेजनरी और अन्य सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से तैयार किया गया है। सोसायटी के रिसर्च ऑफिसर अभय शर्मा बताते हैं कि रिपोर्ट को तैयार करने के लिए शहर को 15 प्रमुख क्षेत्रों में बांटा गया और तीन सड़कों (बीआरटीएस होशंगाबाद रोड, कलियासोत डेम की ओर जाने वाली रोड एवं नार्थ टी.टी. नगर की स्मार्ट रोड) को सैंपल के रूप में लिया गया। इन सड़कों के पास मौजूद प्रमुख 11 इलाकों के 345 एकड़ क्षेत्र का विश्लेषण करने पर पता चला कि 10 वर्ष में यहाँ की हरियाली पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है। सिर्फ 11 क्षेत्र में ही 50 साल पुराने 1.55 लाख से अधिक पेड़ काटे गए। यह रिपोर्ट बताती है कि शाहरपुरा पहाड़ी, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय जैसे स्थानों की हरियाली अब भी बरकरार है। शोध के क्षेत्र के अलावा बाकी शहर में सड़क चौड़ीकरण, निजी इमारतों सहति कई उपयोग के लिए पिछले 10 साल में 3.5 लाख पेड़ कटने का अनुमान है। पेड़ों के विशेषज्ञ और पूर्व वन अधिकारी सुदेश वाघमारे बताते हैं कि 60 सेंटीमीटर गोलाई का पेड़ काटकर उसके बदले 5 हजार पेड़ भी लगा दिए जाएं तो नुकसान की भरपाई तत्काल नहीं की जा सकती।

हरियाली का भविष्य

भोपाल केन्द्र सरकार की स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल है। पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों का आकलन कर स्मार्ट सिटी कम्पनी ने पर्यावरण विभाग को वर्ष 2018 में सौंपी है। इसमें कहा गया है कि स्मार्ट सिटी बनने की वजह से पेड़ कटेंगे और वहाँ की इकोलॉजी पर असर होगा। इसकी वजह से जानवरों और पक्षियों का रहवास भी खत्म होगा। इतना ही नहीं, बड़ी गाड़ियों की आवाजही से वन विहार नेशनल पार्क में मौजूद जंगली जानवरों को दिक्कत आएगी। पर्यावरण पर प्रभाव की रिपोर्ट में स्मार्ट सिटी वाले इलाके में 102 प्रजाति के पक्षी, 9 तरह के स्तनपाई, 6 प्रजाति के सरीसृप, 12 प्रजाति की तितलियाँ, 11 प्रजाति की मछलियां, 12 प्रजाति के हर्ब्स, 7 तरह की झाड़ियां है। प्रस्तावित स्मार्ट सिटी इलाके में 68 प्रजाति के 6 हजार से अधिक पेड़ हैं जिन पर सबसे अधिक खतरा है। हालांकि स्मार्ट सिटी कम्पनी के प्रभारी सिटी इंजीनियर ओपी भारद्वाज के डाउन टू अर्थ को बताया, ‘342 एकड़ में तीन हजार पेड़ हैं जिनमें से आधे को बचाने की कोशिश हो रही है। प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले पेड़ों को बचाने के लिए सर्वे किया गया था। इसके अलावा पहले चरण में 300 पेड़ों को हटाकर दूसरी जगह लगाने की योजना भी है।’

भोपाल में मेट्रो रेल कम्पनी ने भी अपना काम शुरु कर दिया है। मेट्रो रेल कम्पनी द्वारा तैयार एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) रिपोर्ट के अनुसार, मेट्रो ट्रेन के पहले चरण में करोंद चौराहा से एम्स के रूट में 30 सेंटीमीटर से अधिक गोलाई के तने वाले 1,999 और भदभदा से रत्नागिरि तक रूट पर 993 पेड़ हैं। भोपाल में इन तमाम परियोजनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि यहाँ हरियाली का भविष्य अंधकारमय है।

लेखक - मनीष चन्द्र मिश्र

सोर्स - डाउन टू अर्थ, दिसम्बर, 2019