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दैनिक जागरण, 24 सितम्बर, 2017
देश-दुनिया में हरित क्रान्ति की अलख जगाने वाले उत्तराखंड के पंतनगर स्थित गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वच्छता रैंकिंग में स्थान हासिल किया है। इस संस्थान और इसके चारों ओर हरियाली और स्वच्छता का मेल सचमुच अद्भुत है। जागरण संवाददाता सुरेंद्र वर्मा की रिपोर्ट…
तस्वीर स्वच्छता की
11 हजार एकड़ में फैला विशाल परिसर स्वच्छता के सभी मापदंडों पर शत प्रतिशत खरा उतरता है। स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, कचरा प्रबन्धन, सौर ऊर्जा, वाटर हार्वेस्टिंग मैनेजमेंट एवं नव ऊर्जा के बेहतर उपयोग के कारण इसे देश का स्वच्छतम संस्थान होने का गौरव हासिल हुआ है। विवि परिसर की सबसे बड़ी खूबी इसकी सुन्दर और घनी हरियाली है। हरियाली इतनी है कि यहाँ का तापमान आस-पास के इलाकों, मसलन रूद्रपुर, किच्छा एवं गदरपुर की अपेक्षा 2-5 डिग्री तक कम रहता है।
एक कदम स्वच्छता की ओर
विवि अपने परिसर सहित आस-पास के क्षेत्रवासियों को भी स्वच्छता के प्रति जागरूक करता है। बाजार, कार्यालयों एवं छात्रावासों में जगह-जगह डस्टबिन रखे हैं। स्वच्छता बरकरार रखने के लिये जगह-जगह दीवारों पर स्लोगन लिखे हैं।
इस तरह हो रहा जल शोधन
दिवाकर बताते हैं कि परिसर में स्वच्छ जलापूर्ति के लिये 600 फिट गहरे 17 नलकूप एवं 17 ब्रूस्टर पम्प प्रतिदिन 11 घंटे स्वच्छ जलापूर्ति करते हैं। प्रत्येक भवन में वाटर टैंक स्थापित है और शुद्धता के लिये प्रत्येक नलकूप पर ऑटोमैटिक जल शोधन संयंत्र लगाया गया है।
79 माली लगे हैं काम पर
उद्यान विभाग, फ्लोरीकल्चर सेंटर के संयुक्त निदेशक डॉ. संतोष कुमार ने बताया कि परिसर की हरियाली को बढ़ाने में 79 माली जी-जान से जुटे रहते हैं। ये प्रत्येक वर्ष लगभग डेढ़ लाख पौधे तैयार करते हैं। परिसर के मुख्य मार्गों में दोनों ओर गुलमोहर, अमलताश, पिंक केशिया, जगरंडा एवं पत्तियों की साधारण अशोक, सागौन एवं पुत्रजीव आदि प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं।
ऐसे होता है कचरा प्रबन्धन
उपनिदेशक स्वच्छता विभाग इंजी. डीके दिवाकर के अनुसार गीले और सूखे कचरे को डोर-टू-डोर संकलित किया जाता है। फिर इसे चार किमी दूर ट्रंचिंग ग्राउंड में पहुँचाया जाता है। जहाँ जैविक एवं अजैविक कूड़े की छंटाई कर कम्पोस्ट खाद बनाई जाती है, जबकि अजैविक कूड़ा रीसाइक्लिंग के लिये भेज दिया जाता है।
संकल्प से ही सिद्धि
कुलपति डॉ. जे. कुमार कहते हैं कि विवि में साफ-सफाई सदैव से थी, लेकिन स्वच्छता की मुहिम ने तब जोर पकड़ा जब राज्यपाल महोदय ने सभी विवि परिसरों को हरा-भरा एवं स्वच्छ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया। तब से हर वर्ष विवि में लगभग एक लाख नए पौधों का रोपण किया जाता है, ताकि यहाँ के पर्यावरण को आस-पास के उद्योगों से हो रहे प्रदूषण से बचाया जा सके।
अच्छी वाली आदत
समयबद्ध जलापूर्ति, छात्रावासों में हवादार एवं स्वच्छ कैफेटेरिया, साफ-सुथरी रसोई, पानी निकास की समुचित व्यवस्था, धुआँ के निकास के लिये चिमनी एवं एक्जॉस्ट फैन, वर्दी, ग्लब्स एवं कैप पहनकर कार्य करते रसोई कर्मी, छात्रावासों में जल शोधन यंत्रों सहित उन्नत वाटरकूलर, ये सभी बातें इनकी आदत का हिस्सा बन चुकी हैं। भवन अभिरक्षक डॉ. राजीव रंजन कुमार के अनुसार इन सभी व्यवस्थाओं के सुचारू क्रियान्वयन के लिये एक अभियन्ता सहित अभिरक्षकों की पूरी टीम तैनात रहती है।
विवि में 21 छात्रावास हैं। जिसमें 4250 छात्र-छात्राएँ रहे हैं। परिसर में 731 आधुनिक शौचालय एवं इतने ही स्नानागार उपलब्ध हैं।