ईब के किनारे

Submitted by admin on Sat, 10/05/2013 - 15:04
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काव्य संचय- (कविता नदी)
ईब के किनारे
वह थी।
उसका अप्रतिहत लावण्य था।

ईब का पानी न उसे जानता था
और न उस लालची आकाश को जो
उस पर झुका था।

ईब के किनारे लोग थे
अनजान लेकिन व्यस्त।

रेत पर चट्टानों के नीचे
रेंगते कीड़ी-मकोड़ों का मनोरम संसार था

मैंने पहली बार नाम सुना ईब का
मैंने नहीं देखा ईब को
फिर भी पाया
ईब के किनारे वह ईब थी
बिना ईब के जाने।

‘एक पतंग अनंत में’ में संकलित, 1983