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दैनिक भास्कर (ईपेपर), 25 सितंबर 2012
घर की छत पर लगाया बायोगैस प्लांट, बनाई जाती है रसोई गैस और खाद, रीसाइकल कर बचा रहे 500 लीटर पानी

यह घर है चार इमली क्षेत्र में रहने वाले नरेंद्र जिंदल का। जिंदल ने रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा जीवन पर्यावरण और ऊर्जा संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया है। वे वॉशिंग मशीन, किचन और बाथरूम के पानी का दोबारा इस्तेमाल कर रोजाना करीब 500 लीटर पानी भी बचा रहे हैं। उन्होंने कूलर को इस तरह मोडिफाई किया कि एक ही कूलर से चार कमरों को ठंडा कर एयर कंडिशंड के खर्च और बिजली की बचत हो रही है।
चार साल पहले नाबार्ड में जीएम के पद से सेवानिवृत्त हुए जिंदल बताते हैं कि रिटायरमेंट से कुछ साल पहले से ही सोचना शुरू कर दिया था कि मैं किस तरह पर्यावरण संरक्षण कर अपनी और समाज की मदद कर सकता हूं। 2008 में इस पर काम शुरू किया। कई किताबें पढ़ीं, इंटरनेट और अपने दोस्तों की मदद ली। इसके बाद मैंने कई प्रोजेक्ट तैयार किए। मुझे खुशी है कि इस सारी कवायद के जरिए अब मैं सालाना 3 टन कार्बन डाइऑक्साइड पर्यावरण में उत्सर्जित होने से बचा रहा हूं।
वाटर रीसाइक्लिंग टैंक

बायोगैस प्लांट
सब्जियों के छिलके या किचन से निकले बायोवेस्ट को बायोगैस प्लांट में डालते हैं। इससे बनी गैस से एक वक्त का खाना तैयार हो जाता है। इसी गैस का इस्तेमाल बेसमेंट में लैंप को रोशन करने में भी करते हैं।