ऐसा लगता है कि अभी हमने राजस्थान में पारंपरिक वर्षाजल संग्रहण व्यवस्था का ऊपरी खजाना ही तलाशा है, क्योंकि यहां ऐसी अनेक व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जिनकी अभी भी खोज करनी बाकी है। और इन्हीं में एक है ‘पार’ व्यवस्था, जिसे ‘थार इंटीग्रेटेड डेवलेपमेंट सोसायटी’ (टीआईएसडीएस) के महासचिव जेथू सिंह भट्टी ने जैसलमेर जिले के मनपिया गांव में पुनर्जीवित किया। इसके लिए उन्हें सीएसई से वित्तीय सहयोग प्राप्त हुआ है।
“यह बड़ी विचित्र बात है कि विशेषज्ञ सिर्फ कुंडियों और तालाबों की बात करते हैं” भट्टी का आगे कहना था कि, “यूं तो इन ढांचों का काफी मोल है, परन्तु ऐसी भी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जो कि बड़े घनिष्ठ रूप से क्षेत्र विशेष के जल विज्ञान, स्थलाकृति-विज्ञान और अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई हैं। अत: इनमें वर्षाजल संग्रहण की काफी जबरदस्त क्षमता है।“
जैसलमेर के पहाड़ी श्रृंखलाओं में ‘पार’ का काफी चलन था। पेयजल और चारे के एक स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जाता था। यह व्यवस्था इस क्षेत्र के ढालू भू-भागों के अनुकूल है और इस व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण घटक हैं, जैसे: आगोर, यह इन पहाड़ियों के ऊपरी भू-भाग के ढाल या ऊपरी जल निकास क्षेत्र में फैला जल ग्रहण क्षेत्र होता है। और आगोर से नीचे की ओर बहने वाले पानी को मिट्टी के तटबंधों और कुईयों में रोक लिया जाता है। इन्हें आगोर के समानान्तर निर्मित किया जाता है, जिससे लोगों और पशुओं के लिए पेयजल की व्यवस्था बन सके।
भट्टी ने पंचायत के द्वारा राजस्व विभाग से प्राप्त बंजर जमीन में यह व्यवस्था पुनर्जीवित की है। भट्टी इस आगोर को चारागाह में तब्दील कर रहे हैं और इसके एक हिस्से में लुप्त हो रहे पौधों का रोपण कर रहे हैं। आज मनपिया गांव ‘पार’ की पारंपरिक तकनीकी के एक आदर्श केस अध्ययन के रूप में उभरा है, जिसमें नवीनता भी लाई गई है और इससे इस क्षेत्र की सदियों पुरानी चारागाह अर्थव्यवस्था खड़ी हुई है। आज अनेक पड़ोसी गांव भट्टी की सलाह पर खुद ही पार व्यवस्था निर्मित करने में निपुण हो रहे हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : जेथू सिंह भट्टी (महासचिव) थार इंटीग्रेटेड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी सिलवता पारा, शिवरोड, जैसलमेर- 34001, राजस्थान फोन:02992-250594,फैक्स:02992-253639 ईमेल:jethusinghjsm@yahoo.com.in
“यह बड़ी विचित्र बात है कि विशेषज्ञ सिर्फ कुंडियों और तालाबों की बात करते हैं” भट्टी का आगे कहना था कि, “यूं तो इन ढांचों का काफी मोल है, परन्तु ऐसी भी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जो कि बड़े घनिष्ठ रूप से क्षेत्र विशेष के जल विज्ञान, स्थलाकृति-विज्ञान और अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई हैं। अत: इनमें वर्षाजल संग्रहण की काफी जबरदस्त क्षमता है।“
जैसलमेर के पहाड़ी श्रृंखलाओं में ‘पार’ का काफी चलन था। पेयजल और चारे के एक स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जाता था। यह व्यवस्था इस क्षेत्र के ढालू भू-भागों के अनुकूल है और इस व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण घटक हैं, जैसे: आगोर, यह इन पहाड़ियों के ऊपरी भू-भाग के ढाल या ऊपरी जल निकास क्षेत्र में फैला जल ग्रहण क्षेत्र होता है। और आगोर से नीचे की ओर बहने वाले पानी को मिट्टी के तटबंधों और कुईयों में रोक लिया जाता है। इन्हें आगोर के समानान्तर निर्मित किया जाता है, जिससे लोगों और पशुओं के लिए पेयजल की व्यवस्था बन सके।
भट्टी ने पंचायत के द्वारा राजस्व विभाग से प्राप्त बंजर जमीन में यह व्यवस्था पुनर्जीवित की है। भट्टी इस आगोर को चारागाह में तब्दील कर रहे हैं और इसके एक हिस्से में लुप्त हो रहे पौधों का रोपण कर रहे हैं। आज मनपिया गांव ‘पार’ की पारंपरिक तकनीकी के एक आदर्श केस अध्ययन के रूप में उभरा है, जिसमें नवीनता भी लाई गई है और इससे इस क्षेत्र की सदियों पुरानी चारागाह अर्थव्यवस्था खड़ी हुई है। आज अनेक पड़ोसी गांव भट्टी की सलाह पर खुद ही पार व्यवस्था निर्मित करने में निपुण हो रहे हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : जेथू सिंह भट्टी (महासचिव) थार इंटीग्रेटेड सोशल डेवलपमेंट सोसायटी सिलवता पारा, शिवरोड, जैसलमेर- 34001, राजस्थान फोन:02992-250594,फैक्स:02992-253639 ईमेल:jethusinghjsm@yahoo.com.in