जेजांग चीन का एक प्रान्त है जो कुछ वर्ष पहले तक प्रदूषण की गिरफ्त में था। फैक्टरियों से निकलने वाली गन्दगी ने इस प्रान्त की सूरत बिगाड़ दी थी। आसपास की नदियों की भी दुर्दशा थी। असल में ऐसा इसलिये हुआ था क्योंकि इस प्रान्त में उद्योगीकरण तेज रफ्तार से हुआ था।
फैक्टरियाँ लगीं तो उससे निकलने वाली गन्दगी नदियों में डाली जाने लगी। साथ ही इससे निकलने वाले धुएँ और अन्य कचरों में यहाँ के पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया था। इस प्रान्त में रहने वाले लोग पर्यावरण में आये इस बदलाव को महसूस कर पा रहे थे। इन्हीं लोगों में थे-जिन हाओ और जुनहुआ रुआन।
जिन हाओ जेजांग यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे और जुनहुआ रुहान उसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। दोनों ने मिलकर जेजांग में बदतर हुए हालात को सुधारने का प्रण लिया और ‘ग्रीन जेजांग’ नाम के एक एनजीओ की स्थापना की।
इस एनजीओ की स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी। एनजीओ के प्रयास और स्थानीय लोगों के सहयोग से जेजांग की आबोहवा में काफी बदलाव आया है। बेमिसाल काम की बदौलत ही ग्रीन जेजांग को 16000 एनजीओ की सूची में सबसे ऊपर जगह मिली है। जिन हाओ की मानें तो यह काम बहुत आसान नहीं था क्योंकि सरकार का नजरिया एनजीओ को लेकर बहुत अच्छा नहीं था लेकिन ईमानदार कोशिश से सफलता हाथ लगी।
जिन हाओ एनजीओ के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं और वाटरकीपर एलायंस से भी जुड़े हुए हैं। इंटरनेशनल रीवर फाउंडेशन की ओर से आयोजित 3 दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय रीवर सिम्पोजियम में वे भी शिरकत करने आये थे तो उन्होंने इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) के साथ विस्तार से बातचीत की। बातचीत में उन्होंने बताया कि कितना मुश्किल था प्रदूषण के चंगुल से प्रान्त को निकालना और सरकार को इस काम के लिये राजी करना।
एनजीओ बनाने का ख्याल कैसे आया?
मैं जेजांग प्रान्त का निवासी हूँ। जेजांग यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए ही मुझे महसूस हुआ कि मेरे प्रान्त में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। पर्यावरण को बचाए रखना बहुत जरूरी है अतएव हमनें सोचा कि अपने प्रान्त को बचाने के लिये कुछ करना चाहिए। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुनहुआ रुआन ने भी सक्रियता दिखाई और हमने ग्रीन जेजांग नामक एनजीओ बनाया।
इसके बाद आगे की कार्रवाई के तहत आपने क्या किया?
हमने प्रदूषण के मुद्दे को मीडिया की मदद से उछालने की कोशिश की। सरकार को भी इस गम्भीर समस्या से बार-बार अवगत करवाया। यही नहीं हमने स्कूलों में भी कई तरह के जागरुकता कार्यक्रम किये। बच्चों को प्रदूषण के मुद्दे से अवगत करवाया।
शुरुआती दौर में किस तरह की कठिनाइयाँ आईं?
शुरुआत के दिन तो बहुत मुश्किल रहे। सरकार को लगता था कि एनजीओ सिर्फ परेशान करने के लिये होता है। हमारे प्रान्त के आम लोगों को भी नहीं पता था कि एनजीओ क्या होता है और किस तरह के काम करता है। इसलिये काम करने में बड़ी दिक्कत हुई। वर्ष 2010 से सरकार के रवैए में बदलाव आया। इससे पहले वर्ष 2002 से 2007 तक जी जिनपिंग जेजांग की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख रहे और उन्होंने भी काफी काम किया। हाँ, वर्ष 2013 का घटनाक्रम टर्निंग प्वाइंट रहा। इस साल जेजांग प्रान्त के शहर रुआन के रहने वाले जिन जेंगनिम नामक एक कारोबारी ने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि रुआन के एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन ब्यूरो प्रमुख अगर उसके शहर से गुजरने वाली कचरे से भरी नदी में तैरेंगे तो उन्हें 32 हजार अमरीकी डॉलर बतौर इनाम दिया जाएगा। इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो कुछ दिन के भीतर ही ऐसी ही घोषणा दुबारा की गई। इससे मीडिया में प्रदूषण का मुद्दा छा गया और सरकार का ध्यान भी इस पर गया।
बीजिंग कांफ्रेंस की क्या भूमिका रही इसमें?
बीजिंग में हर वर्ष नेशनल कांग्रेस होता है। हमने इस कांग्रेस को अवसर के रूप में लिया और इसका फायदा भी मिला।
इस तरह का काम जब शुरू किया जाता है तो बहुत कम सपोर्ट मिलता है।
हाँ, लेकिन शुरुआती दौर के बाद चीजें बदलीं। मीडिया ने हमारा बहुत साथ दिया। स्थानीय लोगों ने सहयोग किया और सरकार ने भी मदद की। मैं कहना चाहूँगा कि वर्ष 2013 के बाद हमारी आवाज को तवज्जो मिलने लगी। वर्ष 2013 में ही 5 वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और वेस्ट सेग्रिगेशन प्रोजेक्ट का काम हाथ में लिया गया। जेजांग में बदली आबोहवा का ही असर था कि वर्ष 2016 का जी-20 सम्मेलन जेजांग के शहर हांगहो में आयोजित किया गया।
अभी जेजांग की नदियों की हालत कैसी है?
अभी नदियों की सूरत काफी बदल गई है। पहले जैसी गन्दगी नहीं है लेकिन इस दिशा में अभी और काम करना है।
आपने जेजांग में जिस तरह काम किया, क्या भारत के शहरों में ऐसा सम्भव है?
हमारे यहाँ इस अभियान ने सफलता की इबारत लिखी है तो निश्चित तौर पर उम्मीद की जा सकती है कि दूसरे देशों में यह मॉडल काम करेगा। हाँ इस पूरे मामले में एक बात जो हमने महसूस की वो यह थी कि आम लोगों में इसको लेकर जागरुकता होनी चाहिए। दूसरी बात जो हमने महसूस की वो यह थी कि केन्द्रीय और स्थानीय सरकारों में भी पर्यावरण को लेकर चौकन्नापन जरूरी है। अगर सरकारें सक्रिय नहीं होती हैं तो यह काम बेहद कठिन है। हमने वृहत पैमाने पर मीडिया में इस बात को प्रचारित किया कि हमारा शहर प्रदूषण की चपेट में है और इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। हमने लोगों को जागरूक किया और उन्हें मुहिम का हिस्सा बनाया।
पर्यावरण को लेकर ज्यादातर प्रोजेक्ट्स सफल नहीं हो पाते हैं, ऐसा क्यों?
असल में सरकारें आर्थव्यवस्था के बारे में ज्यादा सोचती है, पर्यावरण के बारे में नहीं। अगर सरकार अर्थव्यवस्था के साथ ही पर्यावरण के बारे में भी सोचना शुरू करेगी तो चीजें बदलने लगेंगी। मुझे लगता है कि अगर हमारे पास अर्थव्यवस्था और पर्यावरण में से किसी एक को चुनने का विकल्प हो तो हमें पर्यावरण को चुनना चाहिए। मैं यह मानता हूँ कि हमें पर्यावरण को अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना चाहिए। कहने का मतलब है कि पर्यावरण के जरिए हमें अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के मॉडल पर काम करना चाहिए।
आपकी आगे की योजना क्या है?
हमारी आगे की योजना क्षेत्र को साफ-सुथरा रखना है और इसके लिये हम बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाएँगे क्योंकि लोगों को जागरूक किये बिना कोई भी अभियान सफल नहीं हो सकता