बफेलो नियाग्रा रीवरकीपर एक सामुदायिक संगठन है। इस संगठन को इस साल थीस इंटरनेशनल वाटरप्राइज अवार्ड दिया गया है। इंटरनेशनल रीवर फाउंडेशन की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 19वें इंटरनेशनल रीवर सिम्पोजियम में संगठन के प्रतिनिधि जे. बर्नोस्की और सुजैन कोर्नाकी को यह पुरस्कार सौंपा गया। संगठन को यह अवार्ड नदियों और नदियों के बेसिन के संरक्षण, उनकी सुरक्षा के लिये दिया गया है। बतौर पुरस्कार 2 लाख ऑस्ट्रेलियन डॉलर दिया गया। पिछले वर्ष इस संगठन को नॉर्थ अमेरिकन रीवरप्राइज अवार्ड दिया गया था।
यहाँ यह भी बताते चलें कि इंटरनेशनल रीवर फाउंडेशन ने इस पुरस्कार की शुरुअात 1999 से की थी और अब तक 15 संगठनों को यह पुरस्कार मिल चुका है।
बफेलो नियाग्रा रीवरकीपर की एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर जिल जेडलिका ने कहा है कि यह पुरस्कार मिलने से पता चलता है कि जलाशयों, नदियों का संरक्षण कितना जरूरी है। उन्होंने आगे कहा, ‘स्थानीय लोगों और अन्य साझेदारों के साथ मिलकर बफेलो नियाग्रा रीवरकीपर ने दशकों प्रयास किया है और यह पुरस्कार इसी प्रयास का हासिल है। पुरस्कार हमारे संगठन के लिये गर्व की बात है। हमने जल संसाधन के संरक्षण के मॉडल के रूप में बफेलो नियाग्रा क्षेत्र को वैश्विक पटल पर लाया है।’
गौरतलब है कि यह संगठन वाटरकीपर अलायंस का सदस्य है और पिछले ढाई दशकों से वैश्विक स्तर पर नदियों के संरक्षण का काम कर रहा है। संगठन के कामकाज और उसकी उपलब्धि को लेकर संगठन की संचार व विकास प्रबन्धक सुजैन कोरनाकी से इण्डिया वाटर पोर्टल ने विस्तार से बातचीत की। सुजैन ने बताया कि किस तरह संगठन नदियों के संरक्षण के लिये लगातार काम कर रहा है। पेश है उनसे बातचीत के अंश -
इस संगठन की स्थापना कब हुई और मुख्य तौर पर इसका क्या काम है?
संगठन की स्थापना लगभग 26 वर्ष पहले हुई थी। इस संगठन का काम पानी को संरक्षित करना और समुदायों को जोड़कर रखना है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली गन्दगी, सीवर से निकलने वाले गन्दे पानी से नदियों व जलाशयों को बहुत नुकसान पहुँचा है। हमारा काम इन नदियों और जलाशयों के पानी को साफ रखने के लिये काम करना है। इसके अन्तर्गत हम स्थानीय लोगों को भी इस अभियान से जोड़ते हैं।
बफेलो और नियाग्रा नदियों की पहले क्या सूरत थी और आपके संगठन ने क्या काम किया?
औद्योगिक और सीवर की गन्दगी ने इन नदियों की सूरत बिगाड़ दी थी। यह कोई 1989 की बात होगी। उस वक्त फ्रेंड अॉफ बफेलो रीवर नामक एक संगठन बना था। हमने उस संगठन और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम किया। उस वक्त बहुत प्रदूषित हो गई थीं ये नदियाँ। इतनी प्रदूषित थीं और इतनी बदबू आती थी कि लोग उसके पास नहीं जा पाते थे। अभी इनकी सूरत काफी बदली है। नियाग्रा नदी भी इसी तरह की समस्या से जूझ रही है। हमलोग इस नदी के लिये भी काम कर रहे हैं।
नदियों को बचाने के लिये जो कारगर कदम उठाए, उस पर विस्तार से बताइए।
सबसे पहले तो हमने बफेलो नियाग्रा क्षेत्र में नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनॉमी यानी पानी पर आधारित अर्थव्यवस्था) की शुरुअात की। इसके तहत हम पानी आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं। वाटरफ्रंट को नवजीवन दिया जा रहा है। हम हरित बुनियादी ढाँचे को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। सार्वजनिक और निजी साझेदारी से बफेलो रीवर रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट हाथ में लिया गया है। हमलोग ग्रीनवे पर भी काम कर रहे हैं। इसके अन्तर्गत बफेलो और नियाग्रा नदी के निकट के खाली जगह को मनोविनोद के लिये विकसित और वहाँ भारी संख्या में वृक्षारोपण किया जाएगा। इसके साथ ही हम स्थानीय प्रशासन की मदद से नियाग्रा और बफेलो नदी के तटीय इलाकों को भी विकसित कर रहे हैं ताकि पूर्व में प्रकृति को नुकसान हुआ है उसकी भरपाई की जा सके और भविष्य में नदियाँ प्रदूषित न हो।
नदियों के संरक्षण के लिये आपने क्या रणनीति अपनाई?
इसके लिये हमने नदियों के किनारे रहने वाले लोगों को भरोसा में लिया। कई बार उनके पास गए और उन्हें समझाया कि नदियों का क्या महत्त्व है। इसके अलावा स्कूली छात्रों को भी इससे जोड़ा। कई तरह के कैम्प आयोजित कर उन्हें नदियों और जलाशयों के प्रति जागरूक किया गया।
इस तरह के कामों को प्रभावी तरीके से अंजाम देने के लिये क्या किया जाना चाहिए?
ऐसे कामों में सबसे जरूरी होता है उससे जुड़े समुदायों को उसमें शामिल करना। जब तक समुदाय इससे नहीं जुड़ेगा तब तक इससे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही हमें लोगों को सशक्त करने की जरूरत है ताकि वे असल मुद्दे से अवगत हो सकें। हम लोग ने मुद्दे के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये कई तरह के गाइड प्रकाशित किये और अन्य सिविल संगठनों को भी इससे जोड़ा। संगठन की तरफ से हर साल वार्षिक कांफ्रेंस किया जाता है जिसमें इन मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
इस तरह के प्रयास अक्सर विफल हो जाते हैं, आपके संगठन ने ऐसा क्या किया कि सफलता मिली?
हमने मुख्य रूप से दो बातों का ख्याल रखा और अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर काम किया। पहला काम यह किया कि उम्मीद नहीं छोड़ी। राहों में कई तरह की चुनौतियाँ आईं लेकिन हमने उम्मीद का दामन थाम रखा। हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहे। दूसरा काम यह किया कि हमने लक्ष्य तय किये और उसी लक्ष्य पर काम किया। जब हमने काम शुरू किया था तब हर तरफ निराशा थी। भारी मात्रा में औद्योगिक गन्दगी नदी में डाली जाती थी। हमने समर्पण भाव से काम किया जिससे सफलता मिली।
रोजगार के लिये उद्योग भी जरूरी हैं, औद्योगिक इकाइयों की गन्दगी अगर नदी में नहीं जाएँगी तो कहाँ जाएँगीं? क्या विकल्प है इसका?
आप सही कह रहे हैं लेकिन हमने काम करने का तरीका बदला इसलिये हमारे यहाँ फैक्ट्रियाँ बन्द कर देने की कोई नौबत नहीं आई। मेरे खयाल में हमें पानी आधारित अर्थव्यवस्था पर काम करने की आवश्यकता है ताकि पानी प्रदूषित न हो। हम इको-टूरिज्म विकसित कर सकते हैं जिससे नौकरी भी मिलेगी और नदियाँ भी स्वच्छ रहेंगी।
सीवर की गन्दगी नदियों में न फेंका जाये तो कहाँ फेंका जाये?
सीवर सिस्टम को लेकर दीर्घावधि योजना बनाने की जरूरत है। हमें हरित बुनियादी ढाँचे के बारे में सोचना होगा।
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