जखोल साकरी बाँध: बिना जानकारी पुलिस के साये में जनसुनवाई

Submitted by editorial on Thu, 02/28/2019 - 14:43
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माटू जन संगठन, मेन मार्केट मोरी उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड, ग्राम छाम, पथरी भाग 4, हरिद्वार, उत्तराखण्ड
सुपिन नदीसुपिन नदी27 फरवरी, 2019। जखोल साकरी बाँध, सुपिन नदी, जिला उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड की 01 मार्च, 2019 को दूसरी पर्यावरणीय जनसुनवाई की घोषणा हुई है। इस बार जनसुनवाई का स्थल परियोजना स्थल क्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर है। यह मोरी ब्लॉक में रखी गई है ताकि वह जनविरोध से बच जाए। सरकार ने प्रभावितों को उनकी भाषा में आज तक भी जानकारी नहीं दी जो कि वे आसानी से कर सकते थे।

दरअसल 12 जून, 2018 को जनता द्वारा सही मुद्दों को लेकर और प्रशासन की सही समझ के कारण जखोल साकरी बाँध परियोजना की पर्यावरणीय जनसुनवाई रद्द हुई। ये मामला सिर्फ और सिर्फ लोगों को उनके क्षेत्र में विकास के नाम पर परिवर्तनों की सही व पूरी जानकारी मिलना और उनकी सहमति होने का है।

01 मार्च की जनसुनवाई पर्यावरण आकलन अधिसूचना 14 सितम्बर, 2006 के नियम विरुद्ध है। जो यह कहता है कि जनसुनवाई प्रभावित क्षेत्र में ही होनी चाहिए। प्रभावित क्षेत्र में धारा, जिस गाँव के नीचे सुरंग जाने वाली है वहाँ (जखोल गाँव, सुनकुंडी आदि) आज की तारीख में बर्फ है।

हमने सरकार से माँग की है कि:-

1. ईआईए अधिसूचना 14 सितम्बर, 2006 के मानकों का उल्लंखन देखते हुए।
2. जनसुनवाई स्थल 40 किलोमीटर दूर रखने के कारण।
3. मौसम अनुकूल ना होने के कारण।

01 मार्च की जनसुनवाई तुरन्त स्थगित की जाए। हमारी पहले से की जा रही मांगे:-

1. ईआईए, एमपी, एसआई हिन्दी में अनुवादित करके, लोगों को उनकी भाषा में स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा समझाए जाए।
2. इस पूरी प्रक्रिया के बाद जनसुनवाई का आयोजन प्रभावित गाँवों में हो, जहाँ अन्य गाँवों से लोगों को लाने की व्यवस्था की जाए।

बिना पर्यावरणीय जनसुनवाई के पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल सकती है। इसलिये सरकार किसी भी तरह से जनसुनवाई की कागजी प्रक्रिया पूरी करना चाहती है।

वन अधिकार कानून, 2006 की वन अनापत्ति भी प्रभावित गाँवो से धोखे से ली गई है। सामाजिक समाघात आकलन रिपोर्ट की जनसुनवाई 28 नवम्बर को प्रभावित क्षेत्र से दूर मोरी ब्लॉक में रखी गई । भारी संख्या में पुलिस बल लगाया गया जबकि ना तो गाँव की कोई समिति बनी, ना गाँव के लोगों को परियोजना के बारे में समझाने के लिये कोई बैठक हुई। जो की कानूनी रूप से होना चाहिए था।

लोगों की गैर जानकारी का फायदा उठाकर बाँध कम्पनी ने पर्यावरणीय जनसुनवाई के अलावा बाकी की वन स्वीकृति और जमीन के मसले को हल करने की कोशिश की है।

सामाजिक समाघात आकलन रिपोर्ट की जनसुनवाई भी सिर्फ एक भ्रम था। वरना कम्पनी की पुनर्वास नीति पहले से लगभग तय है। मात्र जमीन का रेट तय करने की बात होगी।

जब लोगों को बाँध की जानकारी ही नहीं दी, जब लोगों के वन अधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत अधिकार ही सुरक्षित नहीं किए गए, जब गोविन्द पशु विहार का मुद्दा ही अभी तय नहीं हुआ तो फिर कैसी जनसुनवाई? कम्पनी, प्रशासन व पुलिस के बल पर लोगों से यह झूठी स्वीकृति या झूठी अनापत्ति ली गई है।

प्रशासन ने इसको शायद अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया है। प्रशासन ने यहाँ के पर्यावरण और लोगों के अधिकारों को पूरी तरह उपेक्षित किया है। क्योंकि प्रशासन को लगता है कि लोग कहाँ तक लड़ेंगे? आखिर उनके और भी मसले प्रशासन के पास होते हैं। ग्राम प्रधान भी एक सीमा से आगे नहीं बोल सकते क्योंकि उन पर भी प्रशासन का दबाव होता है। इन सबके बीच क्षेत्रीय पर्यावरण और जनक दोनों ही नकारे जा रहे हैं।

जखोल गाँव के 19 लोगों पर झूठे मुकदमे लगाए गए, ताकि जखोल के लोगों को दबाया जा सके। जो लोग मौजूद नहीं थे उन तक पर भी ये झूठा मुकद्मा लगाया गया है। आज जखोल फिर कल और गाँव भी होंगे। जो जानकारी माँगेगा उसका यही हाल होगा। माटू जन संगठन लगातार यही बात सरकार से उठाता रहा है। जब यह तर्क दिया जाता है कि बाँध लोगों के लिये व प्रदेश के विकास के लिये है तो फिर लोगों और पर्यावरण के हित के नियम कानूनों का उल्लंघन खुद सरकार ही क्यों करती है? सरकार-शासन-प्रशासन लोगों के साथ है या बांध कम्पनी के साथ?

बाँध परियोजना की जानकारी लोगों की भाषा मे बिना दिए, प्रतिकूल मौसम में प्रभावित क्षेत्र से दूर पर्यावरणीय जनसुनवाई फिर एक धोखा होगी।

यह प्रेस विज्ञप्ति प्रहलाद पवार, रामवीर राणा, केसर सिंह, राजपाल सिंह, विमल भाई के द्वारा जारी की गई


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