वर्षां के पानी को संजोकर छोटी छोटी नालियों, धराओं को एक साथ लेकर ऊंचे पर्वत,पहाड़, पठार, टीलों, मैदानों से निकल कर सैकड़ों किलोमीटर बहने वाली नदियाँ आज सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है , इनके बहाव क्षेत्र में आने वाले नालों के अवशेष तक मिट चुके है, उनका "इतिहास भी गायब" हो चूका है , ऐसे अनेक उदाहरण वर्तमान में देखने को मिल जाते हैं,ऐसे में नदी स्वयं प्यासी रहकर तालाबों, बांधों की प्यास कैसे बूझा सकती है।
जब से मानव नदियों के महत्व,उपयोगिता, उपभोग के साथ इनके त्याग बलिदान को भुलाने या छेड़ छाड़ करने लगा है , वैसे वैसे नदियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ने लगा है , यह तक कि सहायक नदियाँ भी धीरे -धीरे गायब होती जा रही है , नदी अथवा नदियों के साथ जो अपराध हुए वो एक दिन, महीने या एक वर्ष का खेल नहीं बल्कि पूरे दो से तीन दशक में इनके साथ चलीं साजिश का परिणाम है।
नदियों के उद्गम से अंत तक आधुनिक टेक्नोलॉजी का बिना डिजाइनिंग के इस्तेमाल , पानी की आपूर्ति, ठहराव, भूगर्भीय जल स्त्रोतों पर पड़ने वाले प्रभाव व बहाव क्षेत्र में पूर्व में बने जल संग्रह केन्द्रों के महत्व को बगेर ध्यान में रखने के साथ जल योद्धाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुभवों का दरकिनार करने का ही नतीजा है कि जोहडों, एनिकटों, नाड़ियों, चेकडैमों, बांधों में पानी आना बंद हो गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान है जहां सों से दो सो साल पूर्व बनें दो तिहाई बांध सूख चुके है। साथ ही दर्जनों नदियाँ , सैकड़ों नालों का अस्तित्व भी खत्म भी हो चुका है या खत्म होने के कगार पर है
एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद् राम भरोस मीणा ने नदी व बांधों के सूखे के मुख्य कारणो को अपने अनुभवों के तहत यह मससूस किया है कि अलवर, जयपुर, दौसा, सीकर के साथ-साथ राजस्थान के अधिकत्म बांधों का सूखा रहने का मुख्य कारण नदियों के बहाव क्षेत्रों में पनप रहे अवरोध है जिसमें अवैध खनन, फार्म हाउसों का निर्माण, सड़क निर्माण के समय छोटे छोटे नालों के बहाव में अवरोध, अतिक्रमण आदि शामिल है।
आज राजस्थान में इन अवरोधों के कारण नब्बे प्रतिशत मीठे पानी के संग्रह स्थल सूख चुके है, जल स्तर पाताल लोक पहुंच गया है, पीने योग्य शुद्ध पानी की कमी पैदा हो गई है जो भविष्य के लिए वाकई में बहुत बड़ा ख़तरा है। ऐसे में हमारी सरकार, समाज को समय रहते नदियों को बचाने के लिए आगे आना होगा और स्थानीय नदियों, नालों के बहाव क्षेत्रों में पनप रहें अवरोधों, अतिक्रमणों को हटाने के साथ-साथ नदी क्षेत्रों को चिंहित कर अधुनिक टेक्नोलॉजी , स्थानीय सामाजिक विज्ञानिकों और जल योद्धाओं का नदी पुनर्जीवित करने में सहयोग लिया जाये। जिससे नदियों के कंठ जल से तृप्त होने के साथ बांधों को पानी दे सकें।