जलवायु परिवर्तन और अतिदोहन के कारण देशभर में जल संकट गहराता जा रहा है। हिमालय क्षेत्रों में जलस्रोत सूख रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के पर्वतीय इलाकों में 60 प्रतिशत जल स्रोत सूख गए हैं। ऐसे में हिमालयन रीजन को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। मैदानी इलाके भी जल संकट का बड़े पैमाने पर सामना करेंगे। ऐसे में हिमालयी क्षेत्रों में जल का मुख्य स्रोत माने जाने वाले स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए हर साल स्प्रिंगशेड के कार्य किए जाते हैं, लेकिन इस बार लाॅकडाउन के कारण सभी कार्य बंद है और जल संकट बढ़ने की संभावना गहराती जा रही है। जल संकट और स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट को लेकर हमने हिम्मोत्थान के प्रोगाम ऑफिसर डाॅ. सुनेश कुमार शर्मा ने बातचीत की है। पेश है बातचीत के कुछ अंश -
भारत में जल संकट गहराने का क्या कारण है ?
जल संकट गहराने में हम दो कारणों (डायनेमिक और स्टैटिक) को शामिल कर सकते हैं। डायनेमिक कारण ‘बारिश’ है। बारिश बेहद जरूरी है, लेकिन काफी समय से बरसात का सीजनल पैटर्न बदल रहा है। कभी बारिश होती ही नहीं है, तो कभी अतिवृष्टि होती है। जैसा कि बिलासपुर में कुछ समय पहले देखा गया था, जहां एक दिन में 250 एमएम वर्षा दर्ज की गई थी। ऐसा वर्ष 2013 में केदारनाथ में भी हुआ है। तो वहीं देश के विभिन्न स्थानों में हर साल होता है। सर्दियों में होने वाली बारिश के पैटर्न में भी बदलावा आया है। इससे वार्षिक औसत बारिश तो उतनी ही रहती है, लेकिन सीजनल में हर साल बदलाव आ रहा है।
स्टैटिक कारणों में लैंडयूज और एक्यूफर हैं। कंक्रीट के स्ट्रक्चरों के बनने से नेचुरल रिचार्ज जोन खत्म हो रहे हैं। कई स्थानों पर तो खत्म ही हो चुके हैं। जिससे जमीन के नीचे एक्यूफरों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। ऐसे में रन-ऑफ वाटर बढ़ गया है और भूजल रिचार्ज नहीं हो रहा है। दूसरा पानी की बढ़ती मांग ने भी समस्या को और बढ़ा दिया है।
कहा जा रहा है कि कोरोना महामारी के बीच जल संकट बढ़ रहा है। आप महामारी के बीच जल संकट को कैसे देखते हैं ?
ये लीन सीजन चल रहा है। जल संरक्षण की दृष्टि से मार्च से जून तक का महीना काफी महत्वपूर्ण होता है। लाॅकडान होने के कारण लोग घरों में हैं। जल संरक्षण के लिए वाॅटरशेड या स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट जैसे कार्य नहीं हो पा रहे हैं। तो वहीं कोरोना के संक्रमण को कम करने के लिए एक दिन में दस बार हाथ धोने के लिए कहा जा रहा है, वो भी बीस सेंकड तक। इसके अलावा स्वच्छता के अन्य उपायों को भी अपनाया जा रहा है। इसने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। पहले से ही पानी की मांग और सप्लाई के बीच काफी गैप है, मांग बढ़ने ये गैप और बढ़ सकता है। जलापूर्ति करने वाले विभिन्न माध्यमों पर दबाव बढ़ा है। ऐस में लोगों को भी खुद सुनिश्चित करना होगा कि कैसे कम पानी का उपयोग करते हुए स्वच्छता अपनाई जाए, ताकि पानी की किल्लत न हो।
जल जीवन मिशन पर लाॅकडाउन का क्या प्रभाव पड़ेगा ?
सबसे पहले तो योजना को पूरा करने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसके प्रभावित होने की संभावना है। जल संरक्षण या जल संग्रहण के कार्य प्रभावित होंगे। साथ ही योजना के अंतर्गत जल संरक्षण के प्रति लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए कई कार्यक्रम कराए जा रहे थे, कई आगे कराए भी जाने हैं, इन कार्यों में भी अब देरी होगी। कोरोना का प्रभाव रहने तक इन कार्यों को कर पाना काफी मुश्किल है। लोगों को खुद के स्तर पर बदलाव लाने का प्रयास करना होगा।
जल जीवन मिशन के सामने भविष्य में क्या चुनौतिया हैं ?
स्प्रिंगशेड और जल संरक्षण करने के लिए जल जीवन मिशन की गाइडलाइन में पर्याप्त जानकारी है, लेकिन फिर भी जेजेएम के सामने कई चुनौतियां हैं। एक तो समय पर कार्य को पूरा करना चुनौतीभरा रहेगा। दूसरा जल संसाधनों पर मुख्य रूप से ध्यान देना होगा, क्योंकि लोगों के घरों तक नल तो लगा दिया जाएगा, लेकिन विभिन्न जल संसाधनों के लगातार सिमटने के कारण पानी की पर्याप्त सप्लाई चुनौतीपूर्ण रहेगी। जिस प्रकार जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है, ऐसे में साफ पानी उपलब्ध कराना भी बड़ा चैलेंज है। इसके लिए पहले जल का संरक्षण और उसकी स्वच्छता पर जोर देना ज्यादा लाभकारी रहेगा।
पर्वतीय इलाकों में लोग पानी लेने के लिए घरों से दूर प्राकृति स्रोतों तक जाते हैं। क्या लाॅकडाउन के दौरान वहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे हो रहा है ? हिम्मोत्थान इसमें क्या भूमिका निभा रहा है ?
कई इलाकों में ये चुनौतीभरा कार्य है, लेकिन जिन क्षेत्रों में हिम्मोत्थान कार्य कर रहा है, वहां इस संदर्भ में पहले से ही जागरुकता फैलाई गई है। ग्रामीण समितियों से वार्ता कर उन्हें भी जागरुक किया है। इन समितियों के माध्यम से लोगों को पानी लाने के लिए समय बदलने के लिए कहा है, जिसमें एक समय पर जाने के बजाए, लोग अलग अलग समय पर पानी लेने जाएं। इसका अनुपालन भी हो रहा है, जो संक्रमण को रोकने के लिए काफी हद तक कारगर भी है।
स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित करने के लिए हिम्मोत्थान क्या और किस प्रकार कार्य कर रहा है ?
हिमालय इलाकों में स्प्रिंग्स पानी के प्राथमिक स्रोत है। लोग अपनी पानी संबंधी आवश्यकताओं के लिए इन्हीं स्रोतों पर निर्भर हैं। उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय इलाके पानी के लिए स्प्रिंग्स पर ही निर्भर हैं, जिस कारण स्प्रिंगशेड का कार्य महत्वपूर्ण है। जल जीवन मिशन के तहत हिम्मोत्थान उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान आधारित स्प्रिंग्स प्रबंधन पर काम करने के लिए योजना बना रहे हैं। हिम्मोत्थान का कार्य विज्ञान आधारित नियोजन, डिजाइनिंग, कार्यान्वयन के साथ साथ निगरानी और मूल्यांकन करना है। टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा ब्लॉक का चुरिहर, स्प्रिंग्सशेड प्रबंधन का एक आदर्श गाँव है। जिन स्थानों पर कार्य किए गए थे, वहां स्प्रिंग्स के डिस्चार्ज में 5 गुना तक की वृद्धि देखी गई है। प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम के माध्यम से 125 गांवों में पैरा-हाइड्रोजोलॉजिस्ट का एक कैडर बनाया जा रहा है।
स्प्रिंगशेड और एक्यूफर का पता लगाने के लिए हिम्मोत्थन किस प्रक्रिया को अपनाता है ?
सटीक चयन और पुनर्भरण या स्प्रिंगशेड की पहचान और रिचार्च संरचनाओं की व्यस्थित डिजाइनिंग स्प्रिंग-फेड सिस्टम को प्रबंधित करने का एक प्रभावी तरीका है। स्प्रिंग्स की जियोटैगिंग, स्प्रिंग इन्वेंट्री डेवलपमेंट, हाइड्रोजियोलॉजिकल सर्वे, हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग, वसंत का वर्गीकरण आदि के माध्यम से जलविद्युत तकनीकी रिर्पोट तैयार की जाती है, लेकिन ये सब कार्य माध्यमिक डेटा संग्रह और विवेचना करने के बाद किया जाता है। इसके बाद स्थानीय भूविज्ञान और संरचना के आधार पर पुनर्भरण क्षेत्र की पहचान की जाती है। भूमि उपयोग और ढलान जैसे पहलुओं पर विचार किया जाता है और हम 50o से अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में काम करने से बचते हैं क्योंकि ये अस्थिर होते हैं और भूस्खलन का खतरा होता है।
जल संकट से निपटने का क्या समाधान है ?
सबसे पहले तो पानी को बर्बाद बिल्कुल नहीं करना होगा। सतत विकास के माॅडलों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। जल संरक्षण और वर्षा जल संग्रहण पर जोर देना होगा। एक तरह जल को बचाने के जो भी संभव कार्य हैं, उन्हें करना होगा। हर व्यक्ति को अपने स्तर पर जल संग्रहण करने की जरूरत है। पौधारोपण वृहद स्तर पर करने की भी जरूरत है। हम भी अपने स्तर पर जल के उचित उपयोग के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए प्रयासरत हैं।
हिमांशु भट्ट (8057170025)