19 दिसम्बर 2014, जलगाँव
दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है। शिक्षा व्यवस्था में अन्य विषयों की तरह जल को भी अहम् स्थान दिया जाए ताकि जल के प्रति समझ, संवेदना और सदुपयोग बचपन से ही कायम हो जाए। आज जल की समस्या ऐसे मुहाने पर खड़ी हो गई है जिसका समाधान अकेले समाज के बस की बात नहीं है इसके लिए समाज के साथ सरकार और निजी क्षेत्र के लोगों को भी साथ लेना होगा। ‘देश की जल सम्पदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत है। पुराने कानून कोई काम के नहीं हैं। सरकारें कारगर कानून बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और राजनेताओं को सत्ता पाने के अलावा और किसी चीज से कोई सरोकार नहीं रह गया है। संविधान में भी जल को कोई खास अहमियत नहीं दी गई है।
यह बात ‘जल-जन-अन्न’ सुरक्षा के मुद्दे पर आज जलगाँव स्थित गाँधी तीर्थ के विशाल सभागार में शुरू हुए दो दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कही। सर्वधर्म प्रार्थना के साथ शुरू हुए इस सम्मेलन में देश भर से सैंकड़ों की संख्या में समाजसेवी, जलयोद्धा, योजनाकार, वैज्ञानिक और उद्योगपतियों के साथ युवा शिरकत कर रहे हैं। सम्मेलन के समापन पर प्रतिभागियों द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर ‘जलगाँव जल घोषणा’ जारी की जाएगी जिसे लागू करने के लिए सरकार तथा जल और अन्न सुरक्षा से जुड़े संगठनों को प्रेरित किया जाएगा।
जल संरक्षण सम्बन्धी कारगर कानून बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए राजेन्द्र सिंह ने कहा ‘मौजूदा दौर में पीने का पानी और खाने के लिये अन्न का संकट भयावह होता जा रहा है इससे देश और दुनिया के लोगों को तभी मुक्ति दिला सकेंगे जब हम इस दिशा में कुछ बेहतर करने के लिए तैयार होंगे।’ उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक दूसरे को कोसने के बजाय आम लोगों के साथ मिलकर ऐसी कार्यनीति बनाएँ जो जल संरक्षण के लिये जरूरी हो।
गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा सुश्री राधा भट्ट ने बहुत तेजी से बड़े पैमाने पर जल के दोहन और दुरुपयोग पर गहरी चिन्ता जताते हुए कहा कि हमने धरती के ऊपर और उसके अन्दर उपलब्ध जल को अपनी नादानी से खत्म कर दिया है। हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन केवल अधिक-से-अधिक मुनाफे के लिए इस कदर कर रहे हैं कि आने वाले संकट में चाहकर भी इससे मुक्त नहीं हो पाएँगे। उनने गाँधी जी के दिखाए रास्ते पर चलकर निदान खोजने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा।
नदियों को जोड़ने के प्रयासों को नकारते हुए राधा भट्ट ने कहा कि यह प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ होगा उनने कहा कि हर नदी का अपना व्यक्तित्व है और उसका परिवेश है। हम जिस तरह अपना धड़ किसी दूसरे के शरीर में जोड़ नहीं सकते उसी तरह एक नदी को दूसरी नदी को जोड़ नहीं सकते। उनने कहा कि प्रकृति में पहले से जो समन्वय और सन्तुलन बरकरार है उसे नदी जोड़ने के नाम पर खत्म नहीं किया जाना चाहिए।
अपने बीज वक्तव्य में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय के पूर्व सचिव माधव राव चितले ने वैश्विक स्तर पर जल की समस्या की चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है। उनने जल संरक्षण और समान जल वितरण के लिए विभिन्न सुझावों की चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा व्यवस्था में अन्य विषयों की तरह जल को भी अहम् स्थान दिया जाए ताकि जल के प्रति समझ, संवेदना और सदुपयोग बचपन से ही कायम हो जाए। उनने कहा कि आज जल की समस्या ऐसे मुहाने पर खड़ी हो गई है जिसका समाधान अकेले समाज के बस की बात नहीं है इसके लिए समाज के साथ सरकार और निजी क्षेत्र के लोगों को भी साथ लेना होगा। उनने चेतावनी दी कि आज हमारा देश दुग्ध उत्पादन में भले सबसे आगे है लेकिन हम जल की समस्या का समाधान जल्द-से-जल्द नहीं करेंगे तो दुग्ध उत्पादन भी बहुत घट जाएगा और साथ ही भारी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएँगे।
अपनी तरह के अनूठे और जरूरी समझे जा रहे इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए जेआईएसएल और गाँधी तीर्थ के संस्थापक भँवर लाल जैन ने प्राकृतिक संसाधनों खासकर जल के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कम-से-कम जल में अपना जीवन जीने की आदत हम छोड़ चुके हैं जबकि आज से पचास साल पहले लोग कम-से-कम जल में जीवन जी लेते थे। हम पानी के उपयोग का नियोजन नहीं करते इस कारण जल संकट गहराता जा रहा है। उनने कहा कि हम गंगा को साफ करने के लिए करोड़ों-अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं लेकिन गंगा को गन्दा होने से बचाने की दिशा में कोई भी कारगर पहल नहीं कर पा रहे हैं। उनने कहा कि हरेक समस्या का समाधान सम्भव है अगर हम उसका समाधान खोजने का प्रयास करेंगे। उनने कहा कि आज जो भी समस्याएँ हमारे सामने मँह बाए खड़ी हैं उसके निर्माता हम ही हैं उसलिए उसके समाधान के लिए प्रयास हमें ही करने पड़ेंगे। उनने जल समस्या के समाधान के लिए शाकाहारी होने की जरूरत को तार्किक तरीके से समझाया।
वरिष्ठ गाँधीवादी एस एन सुब्बाराव ने राष्ट्र की समस्याओं के समाधान में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चा करते हुए कहा कि आज सरकार गंगा और यमुना को साफ करने के लिए अरबों रुपए खर्च कर रही है अगर उसका एक फीसदी अंश युवाओं द्वारा इन नदियों को साफ करने की योजना पर खर्च किया जाए तो हम राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित कर पाएँगे।
कार्यक्रम के आरम्भ में स्वागत करते हुए जैन इरिगेशन सिस्टम्स लिमिटेड (जेआईएसएल) के प्रबन्ध निदेशक अनिल जैन ने न केवल जल संरक्षण बल्कि स्वच्छ जल की उपलब्धता के लिए काम करने की जरूरत बताई। उनने जल को दवा बताते हुए कहा कि जल बचेगा तो हम बचेंगे।
सम्मेलन में डी एस लोहिया, अनुपम सर्राफ, वी एम रानाडे, जल कानून विशेषज्ञ श्री पुरन्दर, डॉ नारायणमूर्ति, विनोद रापतवार और अन्य अनेक जल विशेषज्ञों ने भागीदारी कीl
दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है। शिक्षा व्यवस्था में अन्य विषयों की तरह जल को भी अहम् स्थान दिया जाए ताकि जल के प्रति समझ, संवेदना और सदुपयोग बचपन से ही कायम हो जाए। आज जल की समस्या ऐसे मुहाने पर खड़ी हो गई है जिसका समाधान अकेले समाज के बस की बात नहीं है इसके लिए समाज के साथ सरकार और निजी क्षेत्र के लोगों को भी साथ लेना होगा। ‘देश की जल सम्पदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत है। पुराने कानून कोई काम के नहीं हैं। सरकारें कारगर कानून बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और राजनेताओं को सत्ता पाने के अलावा और किसी चीज से कोई सरोकार नहीं रह गया है। संविधान में भी जल को कोई खास अहमियत नहीं दी गई है।
यह बात ‘जल-जन-अन्न’ सुरक्षा के मुद्दे पर आज जलगाँव स्थित गाँधी तीर्थ के विशाल सभागार में शुरू हुए दो दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कही। सर्वधर्म प्रार्थना के साथ शुरू हुए इस सम्मेलन में देश भर से सैंकड़ों की संख्या में समाजसेवी, जलयोद्धा, योजनाकार, वैज्ञानिक और उद्योगपतियों के साथ युवा शिरकत कर रहे हैं। सम्मेलन के समापन पर प्रतिभागियों द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर ‘जलगाँव जल घोषणा’ जारी की जाएगी जिसे लागू करने के लिए सरकार तथा जल और अन्न सुरक्षा से जुड़े संगठनों को प्रेरित किया जाएगा।
जल संरक्षण सम्बन्धी कारगर कानून बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए राजेन्द्र सिंह ने कहा ‘मौजूदा दौर में पीने का पानी और खाने के लिये अन्न का संकट भयावह होता जा रहा है इससे देश और दुनिया के लोगों को तभी मुक्ति दिला सकेंगे जब हम इस दिशा में कुछ बेहतर करने के लिए तैयार होंगे।’ उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक दूसरे को कोसने के बजाय आम लोगों के साथ मिलकर ऐसी कार्यनीति बनाएँ जो जल संरक्षण के लिये जरूरी हो।
गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा सुश्री राधा भट्ट ने बहुत तेजी से बड़े पैमाने पर जल के दोहन और दुरुपयोग पर गहरी चिन्ता जताते हुए कहा कि हमने धरती के ऊपर और उसके अन्दर उपलब्ध जल को अपनी नादानी से खत्म कर दिया है। हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन केवल अधिक-से-अधिक मुनाफे के लिए इस कदर कर रहे हैं कि आने वाले संकट में चाहकर भी इससे मुक्त नहीं हो पाएँगे। उनने गाँधी जी के दिखाए रास्ते पर चलकर निदान खोजने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा।
नदियों को जोड़ने के प्रयासों को नकारते हुए राधा भट्ट ने कहा कि यह प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ होगा उनने कहा कि हर नदी का अपना व्यक्तित्व है और उसका परिवेश है। हम जिस तरह अपना धड़ किसी दूसरे के शरीर में जोड़ नहीं सकते उसी तरह एक नदी को दूसरी नदी को जोड़ नहीं सकते। उनने कहा कि प्रकृति में पहले से जो समन्वय और सन्तुलन बरकरार है उसे नदी जोड़ने के नाम पर खत्म नहीं किया जाना चाहिए।
अपने बीज वक्तव्य में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय के पूर्व सचिव माधव राव चितले ने वैश्विक स्तर पर जल की समस्या की चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है। उनने जल संरक्षण और समान जल वितरण के लिए विभिन्न सुझावों की चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा व्यवस्था में अन्य विषयों की तरह जल को भी अहम् स्थान दिया जाए ताकि जल के प्रति समझ, संवेदना और सदुपयोग बचपन से ही कायम हो जाए। उनने कहा कि आज जल की समस्या ऐसे मुहाने पर खड़ी हो गई है जिसका समाधान अकेले समाज के बस की बात नहीं है इसके लिए समाज के साथ सरकार और निजी क्षेत्र के लोगों को भी साथ लेना होगा। उनने चेतावनी दी कि आज हमारा देश दुग्ध उत्पादन में भले सबसे आगे है लेकिन हम जल की समस्या का समाधान जल्द-से-जल्द नहीं करेंगे तो दुग्ध उत्पादन भी बहुत घट जाएगा और साथ ही भारी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएँगे।
अपनी तरह के अनूठे और जरूरी समझे जा रहे इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए जेआईएसएल और गाँधी तीर्थ के संस्थापक भँवर लाल जैन ने प्राकृतिक संसाधनों खासकर जल के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कम-से-कम जल में अपना जीवन जीने की आदत हम छोड़ चुके हैं जबकि आज से पचास साल पहले लोग कम-से-कम जल में जीवन जी लेते थे। हम पानी के उपयोग का नियोजन नहीं करते इस कारण जल संकट गहराता जा रहा है। उनने कहा कि हम गंगा को साफ करने के लिए करोड़ों-अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं लेकिन गंगा को गन्दा होने से बचाने की दिशा में कोई भी कारगर पहल नहीं कर पा रहे हैं। उनने कहा कि हरेक समस्या का समाधान सम्भव है अगर हम उसका समाधान खोजने का प्रयास करेंगे। उनने कहा कि आज जो भी समस्याएँ हमारे सामने मँह बाए खड़ी हैं उसके निर्माता हम ही हैं उसलिए उसके समाधान के लिए प्रयास हमें ही करने पड़ेंगे। उनने जल समस्या के समाधान के लिए शाकाहारी होने की जरूरत को तार्किक तरीके से समझाया।
वरिष्ठ गाँधीवादी एस एन सुब्बाराव ने राष्ट्र की समस्याओं के समाधान में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चा करते हुए कहा कि आज सरकार गंगा और यमुना को साफ करने के लिए अरबों रुपए खर्च कर रही है अगर उसका एक फीसदी अंश युवाओं द्वारा इन नदियों को साफ करने की योजना पर खर्च किया जाए तो हम राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित कर पाएँगे।
कार्यक्रम के आरम्भ में स्वागत करते हुए जैन इरिगेशन सिस्टम्स लिमिटेड (जेआईएसएल) के प्रबन्ध निदेशक अनिल जैन ने न केवल जल संरक्षण बल्कि स्वच्छ जल की उपलब्धता के लिए काम करने की जरूरत बताई। उनने जल को दवा बताते हुए कहा कि जल बचेगा तो हम बचेंगे।
सम्मेलन में डी एस लोहिया, अनुपम सर्राफ, वी एम रानाडे, जल कानून विशेषज्ञ श्री पुरन्दर, डॉ नारायणमूर्ति, विनोद रापतवार और अन्य अनेक जल विशेषज्ञों ने भागीदारी कीl