लेखक
तारीख : 19-29 दिसंबर, 2014
स्थान : गांधी तीर्थ, गांधी रिसर्च फाउंडेशन, जैन हिल्स, जलगांव, महाराष्ट्र
जल सुरक्षा के बगैर न जन सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और न ही अन्न सुरक्षा की; बावजूद इस सत्य के। क्या यह सत्य नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से हम भारतीय इस तरह व्यवहार करने लगे हैं कि मानों पानी कभी खत्म न होने वाली संपदा हो? हमने पानी का उपभोग बढ़ा लिया है। पानी को संजोने की जहमत उठाने की बजाय, हमने ऐसी मशीनों का उपयोग उचित मान लिया है, जो कि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक पानी निकाल सके। सरकारों और वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही विकल्प हमारे सामने रखे।खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा : ये दोनों ही विषय केन्द्र की वर्तमान एवं पूर्व सरकार के एजेंडे में हिस्सा रहे हैं। संप्रग सरकार ने खाद्य सुरक्षा को लेकर कानूनी पहल के काफी चर्चा में रही। वर्तमान सरकार के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 22 नवंबर को दिल्ली में जल मंथन के दौरान जल सुरक्षा पर गैर सरकारी संगठनों की राय जानने के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया।
यह सच है कि जल सुरक्षा के बगैर न जन सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और न ही अन्न सुरक्षा की; बावजूद इस सत्य के। क्या यह सत्य नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से हम भारतीय इस तरह व्यवहार करने लगे हैं कि मानों पानी कभी खत्म न होने वाली संपदा हो? हमने पानी का उपभोग बढ़ा लिया है। पानी को संजोने की जहमत उठाने की बजाय, हमने ऐसी मशीनों का उपयोग उचित मान लिया है, जो कि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक पानी निकाल सके। सरकारों और वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही विकल्प हमारे सामने रखे।
सार्वजनिक के प्रति हम अपनी कोई व्यक्तिगत जवाबदेही नहीं मानते। सरकारों की नीतियों और नीयत ने लोगों को उनके दायित्व से और दूर ही किया। बाजार ने इसे एक मौका माना और पानी व खाद्य पदार्थों को कारोबारी मुनाफे की पारस मणि मान लिया। बड़ी-बड़ी कंपनियां पानी और साग-भाजी बेचने के कारोबार में उतर आईं। खेती करने के काम में भी आज लगभग साढ़े तीन सौ कंपनियां भारत में कार्यरत हैं। लिहाजा, जल और खाद्य पदार्थ जीवन देने का विषय न होकर, व्यावसायिक विषय हो गये हैं। कभी अकाल पङ़ने पर जल और खाद्य सुरक्षा पर संकट आता था। आज संकट के नए कारण, पारंपरिक से ज्यादा व्यावसायिक हैं।
इन तमाम बिंदुओं को चिंता का विषय हुए ख्यातिनाम जल पुरुष राजेंद्र सिंह तथा पद्मभूषण से सम्मानित प्रख्यात गांधीवादी न्यायमूर्ति श्री चद्रशेखर धर्माधिकारी ने इस बाबत देश भर के खेती-पानी कार्यकर्ताओं से आह्वान का मन बनाया है। वे मानते हैं कि जरूरी है कि प्राकृतिक संसाधनों के रखरखाव, सुरक्षा व समृद्धि के लिए लोग सरकारों की ओर ताकना छोड़कर, वापस अपने दायित्व की पूर्ति में जुटें। नई चुनौतियों पर चिंतन करें और रणनीतिक पहल का दायित्व निभाएं।
इस बाबत तरुण भारत संघ, राजस्थान, जल बिरादरी और गांधी रिसर्च फाउंडेशन, महाराष्ट्र ने आगाज कर दिया है। विषय पर गहन चिंतन तथा आगामी रणनीति तय करने हेतु आगामी 19-20 नवंबर, 2014 को महाराष्ट्र के जलगांव में एक सम्मेलन होगा। जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड और भंवरलाल एवं कांताबाई जैन मल्टीपरपज फाउंडेशन के आर्थिक सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में सहयोगी के रूप में कई संगठन ने सीधे जुड़ गये हैं।
इनमें मानव लोक, वनराई, दिलासा, एक्शन फॉर एग्रीकल्चरल रिनुवल इन महाराष्ट्र, इंस्टीट्युट फॉर इंटीग्रेटिड रूरल डेवलपमेंट, भारतीय जल संस्कृति मंडल, महाराष्ट्र सिंचाई सहयोग, गंगा जल बिरादरी, परमार्थ सेवा संस्थान- उ.प्र., ग्रामीण विकास नवयुवक मंडल-राजस्थान, घोघरदिया प्रखण्ड स्वराज्य विकास संघ- बिहार, बिहार प्रदेश किसान संगठन, राष्ट्रीय नदी पुनर्जीवन अभियान, एस पी डब्ल्यू डी-झारखण्ड और ग्रामीण विकास मंडल-जालना प्रमुख हैं।
कार्यक्रम के दौरान खासतौर पर जल सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के जुड़ाव बिंदुओं तथा चुनौतियों पर चर्चा होगी। यह समझने की कोशिश की जाएगी कि समाधानों को व्यवहार में कैसे उतारा जाए। उपलब्ध तकनीकों के व्यावहारिक पहलुओं, वर्तमान कानूनी ढांचें में जलाधिकार की स्थिति, सुधार की जरूरतें, सरकार, कारपोरेट जगत और गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर पहल की संभावनाओं के साथ लागत संबंधी आकलन भी होगा। छोटे-से-छोटे स्तर पर जल प्रबंधन की आवश्कताओं तथा भिन्न पहलुओं के अंतर्संबंधों की स्थिति को जांचने व समझने का प्रयास भी आयोजन का एक उद्देश्य है। तय किया गया है कि कार्यक्रम खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा पर भागीदारों की सहमति निष्कर्षों के साथ ही आगे की रणनीति तय करेगा।
कार्यक्रम की तैयारी के लिए 25 नवंबर को दिल्ली में एक तैयारी बैठक का भी आयोजन किया गया है। अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित से संपर्क कर सकते हैं :
श्री विनोद रापतवार- 09423774326
ईमेल : rapatvar.vinod@jains.com,
श्री मौलिक सिसोदिया- 09414019456
ईमेल : mauliksisodia@gmail.com,
डा. सन्तोष के देशमुख - 09403080103
ईमेल : deshmukh.santosh@gmail.com
श्री संजय सिंह - 094140666756
ईमेल : deshmukh.santosh@gmail.com
स्थान : गांधी तीर्थ, गांधी रिसर्च फाउंडेशन, जैन हिल्स, जलगांव, महाराष्ट्र
जल सुरक्षा के बगैर न जन सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और न ही अन्न सुरक्षा की; बावजूद इस सत्य के। क्या यह सत्य नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से हम भारतीय इस तरह व्यवहार करने लगे हैं कि मानों पानी कभी खत्म न होने वाली संपदा हो? हमने पानी का उपभोग बढ़ा लिया है। पानी को संजोने की जहमत उठाने की बजाय, हमने ऐसी मशीनों का उपयोग उचित मान लिया है, जो कि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक पानी निकाल सके। सरकारों और वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही विकल्प हमारे सामने रखे।खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा : ये दोनों ही विषय केन्द्र की वर्तमान एवं पूर्व सरकार के एजेंडे में हिस्सा रहे हैं। संप्रग सरकार ने खाद्य सुरक्षा को लेकर कानूनी पहल के काफी चर्चा में रही। वर्तमान सरकार के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 22 नवंबर को दिल्ली में जल मंथन के दौरान जल सुरक्षा पर गैर सरकारी संगठनों की राय जानने के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया।
यह सच है कि जल सुरक्षा के बगैर न जन सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और न ही अन्न सुरक्षा की; बावजूद इस सत्य के। क्या यह सत्य नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से हम भारतीय इस तरह व्यवहार करने लगे हैं कि मानों पानी कभी खत्म न होने वाली संपदा हो? हमने पानी का उपभोग बढ़ा लिया है। पानी को संजोने की जहमत उठाने की बजाय, हमने ऐसी मशीनों का उपयोग उचित मान लिया है, जो कि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक पानी निकाल सके। सरकारों और वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही विकल्प हमारे सामने रखे।
सार्वजनिक के प्रति हम अपनी कोई व्यक्तिगत जवाबदेही नहीं मानते। सरकारों की नीतियों और नीयत ने लोगों को उनके दायित्व से और दूर ही किया। बाजार ने इसे एक मौका माना और पानी व खाद्य पदार्थों को कारोबारी मुनाफे की पारस मणि मान लिया। बड़ी-बड़ी कंपनियां पानी और साग-भाजी बेचने के कारोबार में उतर आईं। खेती करने के काम में भी आज लगभग साढ़े तीन सौ कंपनियां भारत में कार्यरत हैं। लिहाजा, जल और खाद्य पदार्थ जीवन देने का विषय न होकर, व्यावसायिक विषय हो गये हैं। कभी अकाल पङ़ने पर जल और खाद्य सुरक्षा पर संकट आता था। आज संकट के नए कारण, पारंपरिक से ज्यादा व्यावसायिक हैं।
इन तमाम बिंदुओं को चिंता का विषय हुए ख्यातिनाम जल पुरुष राजेंद्र सिंह तथा पद्मभूषण से सम्मानित प्रख्यात गांधीवादी न्यायमूर्ति श्री चद्रशेखर धर्माधिकारी ने इस बाबत देश भर के खेती-पानी कार्यकर्ताओं से आह्वान का मन बनाया है। वे मानते हैं कि जरूरी है कि प्राकृतिक संसाधनों के रखरखाव, सुरक्षा व समृद्धि के लिए लोग सरकारों की ओर ताकना छोड़कर, वापस अपने दायित्व की पूर्ति में जुटें। नई चुनौतियों पर चिंतन करें और रणनीतिक पहल का दायित्व निभाएं।
इस बाबत तरुण भारत संघ, राजस्थान, जल बिरादरी और गांधी रिसर्च फाउंडेशन, महाराष्ट्र ने आगाज कर दिया है। विषय पर गहन चिंतन तथा आगामी रणनीति तय करने हेतु आगामी 19-20 नवंबर, 2014 को महाराष्ट्र के जलगांव में एक सम्मेलन होगा। जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड और भंवरलाल एवं कांताबाई जैन मल्टीपरपज फाउंडेशन के आर्थिक सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में सहयोगी के रूप में कई संगठन ने सीधे जुड़ गये हैं।
इनमें मानव लोक, वनराई, दिलासा, एक्शन फॉर एग्रीकल्चरल रिनुवल इन महाराष्ट्र, इंस्टीट्युट फॉर इंटीग्रेटिड रूरल डेवलपमेंट, भारतीय जल संस्कृति मंडल, महाराष्ट्र सिंचाई सहयोग, गंगा जल बिरादरी, परमार्थ सेवा संस्थान- उ.प्र., ग्रामीण विकास नवयुवक मंडल-राजस्थान, घोघरदिया प्रखण्ड स्वराज्य विकास संघ- बिहार, बिहार प्रदेश किसान संगठन, राष्ट्रीय नदी पुनर्जीवन अभियान, एस पी डब्ल्यू डी-झारखण्ड और ग्रामीण विकास मंडल-जालना प्रमुख हैं।
कार्यक्रम के दौरान खासतौर पर जल सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के जुड़ाव बिंदुओं तथा चुनौतियों पर चर्चा होगी। यह समझने की कोशिश की जाएगी कि समाधानों को व्यवहार में कैसे उतारा जाए। उपलब्ध तकनीकों के व्यावहारिक पहलुओं, वर्तमान कानूनी ढांचें में जलाधिकार की स्थिति, सुधार की जरूरतें, सरकार, कारपोरेट जगत और गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर पहल की संभावनाओं के साथ लागत संबंधी आकलन भी होगा। छोटे-से-छोटे स्तर पर जल प्रबंधन की आवश्कताओं तथा भिन्न पहलुओं के अंतर्संबंधों की स्थिति को जांचने व समझने का प्रयास भी आयोजन का एक उद्देश्य है। तय किया गया है कि कार्यक्रम खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा पर भागीदारों की सहमति निष्कर्षों के साथ ही आगे की रणनीति तय करेगा।
कार्यक्रम की तैयारी के लिए 25 नवंबर को दिल्ली में एक तैयारी बैठक का भी आयोजन किया गया है। अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित से संपर्क कर सकते हैं :
श्री विनोद रापतवार- 09423774326
ईमेल : rapatvar.vinod@jains.com,
श्री मौलिक सिसोदिया- 09414019456
ईमेल : mauliksisodia@gmail.com,
डा. सन्तोष के देशमुख - 09403080103
ईमेल : deshmukh.santosh@gmail.com
श्री संजय सिंह - 094140666756
ईमेल : deshmukh.santosh@gmail.com