आखिर पानी ही एक ऐसा अनमोल प्राकृतिक संसाधन है, जो मानव जाति के विकास में अहम् भूमिका निभाता है। पानी न केवल जिंदा रहने के लिए जरूरी है, बल्कि इससे खाद्यान्न सुरक्षा, पर्यावरणीय सुरक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लक्ष्य को हांसिल करने में भी मदद मिलती है। इस प्रकार पानी की किसी भी तरह की कमी से समुदाय का विकास अवरुद्ध होता है। यह कहानी एक सूखाग्रस्त क्षेत्र की है, जहां उपलब्ध संसाधनों के संरक्षण के लिए एजेंसी और समुदाय द्वारा किए गए प्रयासों से यहां के लोगों के जीवन में एक चमत्कारी परिवर्तन हुआ।
कोल्हाल और शिराल चिचौंदी ऐसे ही दो गांव हैं, जो महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले में स्थित हैं। यहां की जमीन सूखी, बंजर, अर्द्ध-शुष्क और पहाड़ी है। यहां 669 मिली मीटर की वर्षा होती है और अनियमित रूप से होती है। यहां की मिट्टी हल्की और रेतीली है, जिसमें कार्बनिक तत्त्वों का काफी अभाव है।
इन दो गांवो में कुल 653 परिवार हैं, जिनकी कुल आबादी 5,007 है। यहां कुल 176 कुएं हैं, जिनमें 94 कुएं मानसून में ही काम करते थे और बाकी 82 कुएं सूख चुके थे। गर्मियों में भूजल का औसत स्तर 17 मीटर नीचे सरक जाता था। भूजल भंडारण के अपर्याप्त पुनर्भरण और पानी के अत्यधिक उपयोग के कारण इसका पानी काफी घट गया था। गर्मियों में फरवरी महीने से ही टैंकरों से पानी की आपूर्ति होने लगती थी। कृषि मजदूरों को काम की तलाश में पलायन कर जाना पड़ता था और गांव की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन नहीं हो पाता था। इसके अलावा इन गांवों में स्वास्थ्य एवं परिवहन सुविधाओं की समस्या थी।
सन् 1995 तक, जब तक यहां लघु जलपंढाल कार्यक्रम नहीं शुरु हुआ था, ऐसी ही दुखद स्थिति बनी हुई थी। सरकारी एजेंसियों ने समुदाय के सक्रिय सहयोग और यूनिसेफ के साथ मिलकर एक विस्तृत जल पंढाल विकास कार्यक्रम शुरु किया।
फील्ड के स्तर पर इस परियोजना का प्रबंधन ग्राम जल पंढाल समिति के हाथ में है,जो कि गांववालों द्वारा सर्वसम्मति से मनोनीत एक निकाय है। इसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के सदस्य हैं, जो विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अहमदाबाद स्थित डीआरडीए ने सभी प्रशासनिक और विकासीय सुविधाएं प्राप्त करने के लिए गांवों को सरकारी नेटवर्क के साथ जोड़ा। कृषि विभाग ने बागवानी विकास के साथ-साथ मिट्टी और जल संरक्षण का काम किया। मृदा संरक्षण विभाग ने एक बंधा का निर्माण किया और तीन नाला बंधाओं की मरम्मत की। रिसाव टैंक की निचली जलधारा में स्थित कुओं में सीमेन्ट की चिनाई से कोल्हार गांव के पेयजल स्रोत में सुधार हुआ। इससे जल प्रवाह में भी काफी तेजी आई। नवम्बर 1996 तक भूजल का स्तर 12 मीटर की गहराई पर था, लेकिन फरवरी 1999 तक आते- आते यही पानी 3 मीटर की गहराई पर प्राप्त होने लगा। इस प्रयास से निम्नलिखित उपलब्धियां हांसिल हुई है :
• ये गांव वाले पीने के पानी के लिए अब टैकरों पर निर्भर नहीं हैं। • 50 हेक्टेयर की जमीन में 50,000 पौधे लगाए गए हैं, जिनमें 80 प्रतिशत पौधे भीषण गर्मी में भी बचे रहे। • कृषि मजदूरों का पलायन थम गया है। इस जल पंढाल कार्यक्रम से इन दो गांवों में समूचे रूप से सुधार आया है और इससे गांव वालों के जीवन में खुशहाली लौट आई है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें रेनू गेरा, प्रोजेक्ट आफीसर, यूनिसेफ19, पारसी पंचायत रोड, अंधेरी पूर्व, मुम्बई- 400069
कोल्हाल और शिराल चिचौंदी ऐसे ही दो गांव हैं, जो महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले में स्थित हैं। यहां की जमीन सूखी, बंजर, अर्द्ध-शुष्क और पहाड़ी है। यहां 669 मिली मीटर की वर्षा होती है और अनियमित रूप से होती है। यहां की मिट्टी हल्की और रेतीली है, जिसमें कार्बनिक तत्त्वों का काफी अभाव है।
इन दो गांवो में कुल 653 परिवार हैं, जिनकी कुल आबादी 5,007 है। यहां कुल 176 कुएं हैं, जिनमें 94 कुएं मानसून में ही काम करते थे और बाकी 82 कुएं सूख चुके थे। गर्मियों में भूजल का औसत स्तर 17 मीटर नीचे सरक जाता था। भूजल भंडारण के अपर्याप्त पुनर्भरण और पानी के अत्यधिक उपयोग के कारण इसका पानी काफी घट गया था। गर्मियों में फरवरी महीने से ही टैंकरों से पानी की आपूर्ति होने लगती थी। कृषि मजदूरों को काम की तलाश में पलायन कर जाना पड़ता था और गांव की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन नहीं हो पाता था। इसके अलावा इन गांवों में स्वास्थ्य एवं परिवहन सुविधाओं की समस्या थी।
सन् 1995 तक, जब तक यहां लघु जलपंढाल कार्यक्रम नहीं शुरु हुआ था, ऐसी ही दुखद स्थिति बनी हुई थी। सरकारी एजेंसियों ने समुदाय के सक्रिय सहयोग और यूनिसेफ के साथ मिलकर एक विस्तृत जल पंढाल विकास कार्यक्रम शुरु किया।
फील्ड के स्तर पर इस परियोजना का प्रबंधन ग्राम जल पंढाल समिति के हाथ में है,जो कि गांववालों द्वारा सर्वसम्मति से मनोनीत एक निकाय है। इसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के सदस्य हैं, जो विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अहमदाबाद स्थित डीआरडीए ने सभी प्रशासनिक और विकासीय सुविधाएं प्राप्त करने के लिए गांवों को सरकारी नेटवर्क के साथ जोड़ा। कृषि विभाग ने बागवानी विकास के साथ-साथ मिट्टी और जल संरक्षण का काम किया। मृदा संरक्षण विभाग ने एक बंधा का निर्माण किया और तीन नाला बंधाओं की मरम्मत की। रिसाव टैंक की निचली जलधारा में स्थित कुओं में सीमेन्ट की चिनाई से कोल्हार गांव के पेयजल स्रोत में सुधार हुआ। इससे जल प्रवाह में भी काफी तेजी आई। नवम्बर 1996 तक भूजल का स्तर 12 मीटर की गहराई पर था, लेकिन फरवरी 1999 तक आते- आते यही पानी 3 मीटर की गहराई पर प्राप्त होने लगा। इस प्रयास से निम्नलिखित उपलब्धियां हांसिल हुई है :
• ये गांव वाले पीने के पानी के लिए अब टैकरों पर निर्भर नहीं हैं। • 50 हेक्टेयर की जमीन में 50,000 पौधे लगाए गए हैं, जिनमें 80 प्रतिशत पौधे भीषण गर्मी में भी बचे रहे। • कृषि मजदूरों का पलायन थम गया है। इस जल पंढाल कार्यक्रम से इन दो गांवों में समूचे रूप से सुधार आया है और इससे गांव वालों के जीवन में खुशहाली लौट आई है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें रेनू गेरा, प्रोजेक्ट आफीसर, यूनिसेफ19, पारसी पंचायत रोड, अंधेरी पूर्व, मुम्बई- 400069