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डॉ. विवेक कुमार सिंह
'जल-विज्ञान' पानी की वायुमण्डल के जरिए, भूमि-तल और भूमिगत क्रियाओं से संबंधित विज्ञान है। इसमें पृथ्वी की चट्टानों और खनिजों के साथ पानी की भौतिक, रासायनिक और जैविक अन्योन्यक्रियाओं के साथ-साथ सजीव शरीर-रचनाओं के साथ इसकी विवेचनात्मक पारस्परिक क्रियाएं सम्मिलित हैं। जल विज्ञान से जुड़ा व्यवसायी जल विज्ञानी कहलाता है जो कि पृथ्वी या पर्यावरणीय विज्ञान, भौतिक भूगोल या सिविल और पर्यावरणीय इंजीनियरिंग के क्षेत्रों में काम कर रहे होते हैं। जल विज्ञान के क्षेत्र मेंहाइड्रोमिटिरोलॉजी, भूतल, जल विज्ञान, हाइड्रोजिओलॉजी, ड्रेनेज बेसिन मैनेजमेंट और जल गुणवत्ता से संबंधित विषय आते हैं, जहां पानी की केंद्रीय भूमिका रहती है।
समुद्र-विज्ञान और मौसम विज्ञान को इसमें शामिल नहीं किया गया है क्योंकि इनमें पानी कई महत्वपूर्ण पहलुओं में से केवल एक है।
जल-विज्ञान अनुसंधान बहुत उपयोगी है क्योंकि इससे हमें विश्व को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है, जहां हम रहते हैं, और साथ ही पर्यावरणीय इंजीनियरिंग, नीति तथा नियोजन की भी पूरी जानकारी उपलब्ध् होती है। जल विज्ञान सहस्त्राब्दि से इंजीनियरी और खोज का विषय रहा है। उदाहरण के लिए करीब 4000 ईसा पूर्व बंजर भूमि की कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए नील पर बांध् बनाया गया था। ऊंची दीवारों के साथ बाढ़ से मेसोपोटेनियम कस्बों की सुरक्षा की गई। यूनानी और प्राचीन रोमन्स द्वारा जलसेतुओं का निर्माण किया गया, जबकि चीन का इतिहास दर्शाता है कि उन्होंने सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण से जुड़े निर्माण कार्य किए हैं। प्राचीन सिंहलियों ने श्रीलंका में जटिल सिंचाई निर्माण कार्यों में जल विज्ञान का इस्तेमाल किया। इन्हें वाल्व पिट के अन्वेषण के लिए भी जाना जाता है जिससे बड़े जलाशयों और नहरों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ जो आज भी काम कर रहे हैं।
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में मार्क्स वितरुवियस ने जल-वैज्ञानिक चक्र के दार्शनिक सिद्वांत की व्याख्या की जिसके अनुसार पहाड़ियों में होने वाले वृष्टिपात से पृथ्वी के तल में पानी का रिसाव हुआ और इससे निचलीभूमि में दरिया और झरना आदि बन गए। अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ लिओनार्डो द विन्सी और बर्नाड पॉलिस्सी स्वतंत्र रूप से जल-वैज्ञानिक चक्र के सही निरूपण तक पहुंचे। 17वीं शताब्दी तक ऐसा कुछ नहीं था कि जल-वैज्ञानिक परिवर्तनों का परिमाणन शुरू हो गया हो।
जल-विज्ञान के आधुनिक शास्त्र के पथ-प्रदर्शकों में पाइरी पेरॉल्ट, एडम मैरिएट और एडमंड हैले शामिल हैं।18वीं सदी में हुई प्रगति में डेनियल बर्मौली द्वारा तैयार बर्मौली पाइजोमीटर तथा बर्मौली समीकरण पायलट ट्यूब सम्मिलित हैं। 19वीं सदी में भूमिजल जल-विज्ञान के क्षेत्र में काफी विकास दिखाई दिया। 20वीं सदी में अनुभववाद का स्थान लेने के वास्ते उस समय बुद्विसंगत विश्लेषणों की शुरुआत हुई जब सरकारी एजेंसियों ने अपने स्वयं के जल-वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों की शुरुआत की। इनमें विशेष रूप से महत्वपूर्ण लेटॉप शेरमैन की इकाई हाइड्रोग्राफ, राबर्ट ई. हार्टन का अंतःस्राव का सिद्वांत और सी.वी. थिइस के एक्युफर परीक्षण/समीकरण था जिनके अनुरूप द्रव-इंजीनियरी की व्याख्या अच्छी तरह से की गई। 1950 के दशक से जल-विज्ञान के बारे में पूर्व की अपेक्षा अधिक सैद्वान्तिक आधार का दृष्टिकोण अपनाया गया और इसमें जल-विज्ञान प्रक्रियाओं की भौतिक समझ तथा कम्प्यूटरों की खोज तथा विशेष रूप से भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) में हुई प्रगति ने काफी योगदान किया।
पारिस्थितिकी जल विज्ञान जीवित वस्तुओं और जल-वैज्ञानिक चक्र के बीच पारस्परिक- क्रियाओं का अध्ययन।
हाइड्रोजियोलॉजी ऑक्विफर्स में पानी की मौजूदगी तथा चलन-क्रिया का अध्ययन।
हाइड्रोइन्फारमैटिक्स जल विज्ञान और जल संसाधन अनुप्रयोगों में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुकूलन।
हाइड्रो मिटियोरोलॉजी भूमि और जल भरनों तथा निचले वातावरण के बीच पानी और ऊर्जा के स्थानांतरण का अध्ययन। पानी के आइसोटोपिक सिग्नेचर्स का आइसोटोप हाइड्रोलॉजी अध्ययन।
भूतल जल-विज्ञान पृथ्वी के तल के निकट संचालित होने वाली जल विज्ञान प्रक्रियाओं का अध्ययन।
पानी के नमूने लेना तथा उनके रासायनिक विश्लेषण करना।
नदियों तथा झीलों की स्थितियों की निगरानी के लिए जीव-विज्ञानियों और पारिस्थितिकीविदों के साथ कार्य करना।
बर्फ, हिम तथा ग्लेशियरों का अध्ययन।
जल गुणवत्ता, तलछट के चलन और चैनल शेपों सहित नदी प्रवाह प्रक्रियाओं की मॉडलिंग।
मृदा और जल प्रभावों सहित जीवमण्डल में सभी स्तरों पर पानी की जांच करना।
सूखे और बाढ़ का अध्ययन, सूखे और बाढ़ जोखिमों के अध्ययन सहित।
जटिल जल संसाधन और जलापूर्ति प्रणालियों के लिए नियोजन और प्रचालन के लिए मॉडलिंग।
बाढ़ के कारणों और बाढ़ की समस्याओं के समाधन की जांच।
जल की गुणवत्ता और अन्य पर्यावरणीय प्रबंध् अध्ययनों से जुड़े कार्य करना;
जल प्रयोग का मूल्यांकन (अर्थात् कृषि तथा वानिकी आदि में)
जल संसाधनों तथा बाढ़-प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच करना;
भूमि प्रयोग में परिवर्तनों के परिणामों की जांच करना;
जल-वैज्ञानिकीय प्रक्रियाओं और प्रणालियों के मॉडल्स विकसित करना;
जलाशयों पर पर्यावरणीय प्रभाव तथा जल प्रबंधन (अर्थात् बांधों) के लिए इंजीनियरी कार्योंके प्रभाव पर विचार करना।
सरकार : पर्यावरण से संबंधित नीतियों को तैयार करना, नियमन तथा प्रबंधन;
अंतर्राष्ट्रीय संगठन : प्रौद्योगिकी स्थानांतरण, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा आपात राहत;
परामर्शी सेवाएं : सिविल इंजीनियरी, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध् कराना;
अकादमिक और अनुसंधान : नई विश्लेषणात्मक तकनीकों के जरिए शिक्षण और अनुसंधान कार्य करना।
यूटिलिटी कम्पनियां और सार्वजनिक प्राधिकरण : जलापूर्ति और सीवरेज सेवाएं प्रदान करना।
भारत में सीधे तौर पर जल विज्ञान का कोई प्रथम डिग्री पाठ्यक्रम नहीं है। लेकिन जल विज्ञान के संबंध् में सिविल इंजीनियरी, भूगोल, पर्यावरणीय विज्ञान तथा पर्यावरणीय प्रबंधन के कार्यक्रम के एक भाग के तौर पर अच्छी तरह अध्ययन कराया जाता है। यह भूविज्ञान, मृदा विज्ञान और पारिस्थितिकी डिग्रियों से भी जुड़ा विषय क्षेत्र है। एक जल-वैज्ञानिक बनने के वास्ते जलविज्ञान से संबंधित विषय में बैचलर डिग्री अपेक्षित होती है तथा मास्टर डिग्री को पूरी वरीयता दी जाती है। अध्ययन से संबंधित क्षेत्रों में भूविज्ञान, भूभौतिकी, सिविल इंजीनियरिंग, मृदा विज्ञान, वानिकी और कृषि इंजीनियरी शामिल है। जल-विज्ञानी के रूप में प्रशिक्षण के लिए अनिवार्य पाठ्यक्रमों में रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणन, जल गुणवत्ता, जल विज्ञान, द्रव-इंजीनियरी और मौसम विज्ञान शामिल हैं।
बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय जल-विज्ञान और जल-संसाधन विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। इनमें से ज्यादातर पाठ्यक्रम पूर्ण-कालिक हैं, लेकिन कुछेक में अंश-कालिक आधार पर मॉड्यूलर पाठ्यक्रम के रूप में प्रवेश लिया जा सकता है। जल-विज्ञान में कॅरिअर के लिए प्रथम डिग्री का विकल्प उतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यह विचार करना उचित होता है कि जिस विश्वविद्यालय या कॉलेज पाठ्यक्रम को आप चुनते हैं वह उस व्यावसायिक संस्थान से मान्य होना चाहिए जिसमें आप बाद में सदस्यता हेतु आवेदन करते हैं।
भारत में बड़ी संख्या में संगठन जल संसाधनों के क्षेत्र में नियोजन, विकास, प्रबंधन, अनुसंधान और शिक्षण से जुड़े हैं।
1.1 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की एम.टेक. (जल विज्ञान)रुड़की, उत्तराखण्ड, भारत-247667 जल विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमासंपर्क नं. + 91-1332-285311 विशेषज्ञता क्षेत्र :http://www.iitr.ac.in भूतल जल जल-विज्ञानभूजल जल-विज्ञानवाटरशैड मैनेजमेंट
2.2 अन्ना विश्वविद्यालय सिविल इंजीनियरी विभागसरदार पटेल रोड, ग्विंडी, चेन्नै एम.ई. जल विज्ञान एवं जल संसाधन इंजीनियरीतमिलनाडु-600025 एम.ई. सिंचाई जल प्रबंधन http://www.annauniv.edu/courses/जल संसाधन केंद्रएम.ई. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन
3.3 एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय इंजीनियरी और सिंचाई और जल प्रबंधन में बी.ईप्रौद्योगिकी संकाय, कलाभवन, वड़ोदरा-390001 एम.ई. (i) जल संसाधन इंजीनियरीhttp://www.msubaroda.ac.in (ii) सिंचाई जल प्रबंधन
4.4 इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय जल संसाधन में उन्नत डिप्लोमा (दूरस्थ मोड) इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी विद्यालय, सेवारत व्यक्तियों के लिए इंजीनियरी के साथइग्नू कैम्पस, मैदान गढ़ी, सिविल या कृषि इंजीनियरी में डिप्लोमानई दिल्ली-110068www.ignou.ac.in
5.5 श्री गुरू गोबिंद सिंह जी कॉलेज बी.ई. और एम.ई. जल प्रबंधन (सिविल)ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी पीबी नं. 72, विष्णुपुरी, नांदेड़-431603
6. क्षेत्रीय इंजीनियरी कॉलेज जल संसाधन इंजीनियरी और प्रबंधन में एम.ई.तिरुचिरापल्ली-15
7. आन्ध्र विश्वविद्यालय, बी.एससी. के उपरांत जल-विज्ञान में तीन वर्षीय एम.एससी (टेक.) विशाखापत्तनम-530003www.andhrauniversity.info
8. अन्नामलाई विश्वविद्यालय हाइड्रोजिऑलोजी में एम.एससी. उपरांत डिप्लोमापो. आ. अन्नामलाई नगर-608002
9. दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, सिविल इंजी. (द्रव-विज्ञान तथा बाढ़ नियंत्रण) में एम.ईबवाना रोड, दिल्ली- 110042
10. इंजीनियरी कॉलेज, रायपुर जल संसाधन विकास तथा सिंचाई इंजीनियरी में एम.ई. (छत्तीसगढ़)-492010
11.7 सिविल इंजीनियरी विभाग, आईआईटी मद्रास द्रव-विज्ञान और जल संसाधन इंजीनियरी में चेन्नै- 600036, तमिलनाडु, भारत एम.टेक फोन : +91-44-22574250http://www.civil.iitm.ac.in
12.8 जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकीय विश्वविद्यालय मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.टेक.) हैदराबाद (जेएनटीयू) हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश जल संसाधन प्रबंधन टेलीफोन : +91-40-23158661, 662, 663, 664/23156109www.jntu.ac.in
13.4 षणमुगा कला विज्ञान प्रौद्योगिकी और अनुसंधान जल विज्ञान और जल संसाधन अकादमी तंजावूर- 613402 इंजीनियरी में एम.ई,
14.6 भारत यूनिवर्सिटी (भारत उच्चतर शिक्षा और जल विज्ञान और जल संसाधन अनुसंधान संस्थान, 173, अग्रम रोड, इंजीनियरी में एम.ई सेलायुर, ताम्बरम, चेन्नै-600073
15.3 राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की संस्थान का मुख्यालय रुड़की (उत्तराखण्ड) में है, हरिद्वार-247667, उत्तराखण्ड, भारत तथा चार केंद्र बेलगाम जम्मू, काकिनाड़ा औरफोन : 91-1332-272106, सागर में हैं तथा दो केंद्र गुवाहाटी औरफैक्स : 91-1332-272123 पटना में हैं। इस संस्थान की स्थापनाईमेल : nihmail@nih.ernet.in रुड़की, भारत में 1978 में अनुसंधान http://www.nih.ernet.in/ संगठन के तौर पर की गई थी। ईमेल :इसकी शुरुआत से संस्थान ने जल विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों में अनुसंधान अध्ययन संचालित किए हैं तथा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संपर्क स्थापित किया है।सूची सांकेतिक है।
जल संसाधन विकास और प्रबंधन में कॅरिअर के लिए सहनशीलता, दृढ़ता, विस्तृत और अच्छे विश्लेषण कौशल के प्रति ध्यान की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यक्ति बहुत से विनियमों तथा जटिल प्रक्रियाओं में सुविज्ञ होना चाहिए। चूंकि आपको एक टीम के हिस्से के तौर पर काम करना होगा, अतः कार्य को संचालित करने में आपका सम्प्रेषण कौशल महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
(लेखक एक भूवैज्ञानिक हैं तथा झारखण्ड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, झारखण्ड सरकार में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। ई-मेल : vivekearth@
समुद्र-विज्ञान और मौसम विज्ञान को इसमें शामिल नहीं किया गया है क्योंकि इनमें पानी कई महत्वपूर्ण पहलुओं में से केवल एक है।
जल-विज्ञान अनुसंधान बहुत उपयोगी है क्योंकि इससे हमें विश्व को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है, जहां हम रहते हैं, और साथ ही पर्यावरणीय इंजीनियरिंग, नीति तथा नियोजन की भी पूरी जानकारी उपलब्ध् होती है। जल विज्ञान सहस्त्राब्दि से इंजीनियरी और खोज का विषय रहा है। उदाहरण के लिए करीब 4000 ईसा पूर्व बंजर भूमि की कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए नील पर बांध् बनाया गया था। ऊंची दीवारों के साथ बाढ़ से मेसोपोटेनियम कस्बों की सुरक्षा की गई। यूनानी और प्राचीन रोमन्स द्वारा जलसेतुओं का निर्माण किया गया, जबकि चीन का इतिहास दर्शाता है कि उन्होंने सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण से जुड़े निर्माण कार्य किए हैं। प्राचीन सिंहलियों ने श्रीलंका में जटिल सिंचाई निर्माण कार्यों में जल विज्ञान का इस्तेमाल किया। इन्हें वाल्व पिट के अन्वेषण के लिए भी जाना जाता है जिससे बड़े जलाशयों और नहरों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ जो आज भी काम कर रहे हैं।
ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में मार्क्स वितरुवियस ने जल-वैज्ञानिक चक्र के दार्शनिक सिद्वांत की व्याख्या की जिसके अनुसार पहाड़ियों में होने वाले वृष्टिपात से पृथ्वी के तल में पानी का रिसाव हुआ और इससे निचलीभूमि में दरिया और झरना आदि बन गए। अधिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ लिओनार्डो द विन्सी और बर्नाड पॉलिस्सी स्वतंत्र रूप से जल-वैज्ञानिक चक्र के सही निरूपण तक पहुंचे। 17वीं शताब्दी तक ऐसा कुछ नहीं था कि जल-वैज्ञानिक परिवर्तनों का परिमाणन शुरू हो गया हो।
जल-विज्ञान के आधुनिक शास्त्र के पथ-प्रदर्शकों में पाइरी पेरॉल्ट, एडम मैरिएट और एडमंड हैले शामिल हैं।18वीं सदी में हुई प्रगति में डेनियल बर्मौली द्वारा तैयार बर्मौली पाइजोमीटर तथा बर्मौली समीकरण पायलट ट्यूब सम्मिलित हैं। 19वीं सदी में भूमिजल जल-विज्ञान के क्षेत्र में काफी विकास दिखाई दिया। 20वीं सदी में अनुभववाद का स्थान लेने के वास्ते उस समय बुद्विसंगत विश्लेषणों की शुरुआत हुई जब सरकारी एजेंसियों ने अपने स्वयं के जल-वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों की शुरुआत की। इनमें विशेष रूप से महत्वपूर्ण लेटॉप शेरमैन की इकाई हाइड्रोग्राफ, राबर्ट ई. हार्टन का अंतःस्राव का सिद्वांत और सी.वी. थिइस के एक्युफर परीक्षण/समीकरण था जिनके अनुरूप द्रव-इंजीनियरी की व्याख्या अच्छी तरह से की गई। 1950 के दशक से जल-विज्ञान के बारे में पूर्व की अपेक्षा अधिक सैद्वान्तिक आधार का दृष्टिकोण अपनाया गया और इसमें जल-विज्ञान प्रक्रियाओं की भौतिक समझ तथा कम्प्यूटरों की खोज तथा विशेष रूप से भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) में हुई प्रगति ने काफी योगदान किया।
जल विज्ञान की शाखाएं
रासायनिक जल विज्ञान पानी के रासायनिक गुणों का अध्ययन।पारिस्थितिकी जल विज्ञान जीवित वस्तुओं और जल-वैज्ञानिक चक्र के बीच पारस्परिक- क्रियाओं का अध्ययन।
हाइड्रोजियोलॉजी ऑक्विफर्स में पानी की मौजूदगी तथा चलन-क्रिया का अध्ययन।
हाइड्रोइन्फारमैटिक्स जल विज्ञान और जल संसाधन अनुप्रयोगों में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुकूलन।
हाइड्रो मिटियोरोलॉजी भूमि और जल भरनों तथा निचले वातावरण के बीच पानी और ऊर्जा के स्थानांतरण का अध्ययन। पानी के आइसोटोपिक सिग्नेचर्स का आइसोटोप हाइड्रोलॉजी अध्ययन।
भूतल जल-विज्ञान पृथ्वी के तल के निकट संचालित होने वाली जल विज्ञान प्रक्रियाओं का अध्ययन।
जल-वैज्ञानिक क्या काम करते हैं?
जल-वैज्ञानिक जलीय पर्यावरण की सुरक्षा, निगरानी और प्रबंधन के लिए व्यापक गतिविधियां संचालित करते हैं। हाइड्रोमीट्रिक डाटा मिजरमेंट, संग्रहण और आर्काइविंग के बगैर बहुत से अध्ययन और गतिविधियां असंभव हैं। जल-विज्ञान के तहत अधिकतम काम में इस तरह के डाटा की व्याख्या तथा विश्लेषण संबंधी गतिविधियां शामिल हैं, और जल-वैज्ञानिक निरंतर उनके द्वारा जांच की जाने वाली भौतिक प्रक्रियाओं की अनुकरणात्मकता के लिए गणितीय मॉडल्स का विकास तथा प्रयोग करते हैं। एक जल-वैज्ञानिक की गतिविधियों में मुख्यतः शामिल हैं :-हाइड्रोमीट्रिक और जल गुणवत्ता मापन :
नदियों, झीलों और भूमिजल के जल स्तरों, नदियों के प्रवाह, वर्षा और जलवायु परिवर्तनों को दर्ज करने वाले निगरानी नेटवर्कों का रखरखाव;पानी के नमूने लेना तथा उनके रासायनिक विश्लेषण करना।
नदियों तथा झीलों की स्थितियों की निगरानी के लिए जीव-विज्ञानियों और पारिस्थितिकीविदों के साथ कार्य करना।
प्रक्रिया अध्ययन :
वर्षा की पद्वतियों तथा अन्य वृष्टिपातों के रूपों की जांच करना।बर्फ, हिम तथा ग्लेशियरों का अध्ययन।
जल गुणवत्ता, तलछट के चलन और चैनल शेपों सहित नदी प्रवाह प्रक्रियाओं की मॉडलिंग।
मृदा और जल प्रभावों सहित जीवमण्डल में सभी स्तरों पर पानी की जांच करना।
अनुप्रयोग :
सूखे और बाढ़ का अध्ययन, सूखे और बाढ़ जोखिमों के अध्ययन सहित।
जटिल जल संसाधन और जलापूर्ति प्रणालियों के लिए नियोजन और प्रचालन के लिए मॉडलिंग।
बाढ़ के कारणों और बाढ़ की समस्याओं के समाधन की जांच।
जल की गुणवत्ता और अन्य पर्यावरणीय प्रबंध् अध्ययनों से जुड़े कार्य करना;
जल प्रयोग का मूल्यांकन (अर्थात् कृषि तथा वानिकी आदि में)
जल संसाधनों तथा बाढ़-प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच करना;
भूमि प्रयोग में परिवर्तनों के परिणामों की जांच करना;
जल-वैज्ञानिकीय प्रक्रियाओं और प्रणालियों के मॉडल्स विकसित करना;
जलाशयों पर पर्यावरणीय प्रभाव तथा जल प्रबंधन (अर्थात् बांधों) के लिए इंजीनियरी कार्योंके प्रभाव पर विचार करना।
जल-वैज्ञानिक किसके लिए काम करते हैं?
जल वैज्ञानिक विभिन्न प्रकार के संगठनों के लिए काम करते हैं; इनमें ये पांच मुख्यतः हैं :-सरकार : पर्यावरण से संबंधित नीतियों को तैयार करना, नियमन तथा प्रबंधन;
अंतर्राष्ट्रीय संगठन : प्रौद्योगिकी स्थानांतरण, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा आपात राहत;
परामर्शी सेवाएं : सिविल इंजीनियरी, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध् कराना;
अकादमिक और अनुसंधान : नई विश्लेषणात्मक तकनीकों के जरिए शिक्षण और अनुसंधान कार्य करना।
यूटिलिटी कम्पनियां और सार्वजनिक प्राधिकरण : जलापूर्ति और सीवरेज सेवाएं प्रदान करना।
जल-वैज्ञानिक के रूप में कॅरिअर
भारत में सीधे तौर पर जल विज्ञान का कोई प्रथम डिग्री पाठ्यक्रम नहीं है। लेकिन जल विज्ञान के संबंध् में सिविल इंजीनियरी, भूगोल, पर्यावरणीय विज्ञान तथा पर्यावरणीय प्रबंधन के कार्यक्रम के एक भाग के तौर पर अच्छी तरह अध्ययन कराया जाता है। यह भूविज्ञान, मृदा विज्ञान और पारिस्थितिकी डिग्रियों से भी जुड़ा विषय क्षेत्र है। एक जल-वैज्ञानिक बनने के वास्ते जलविज्ञान से संबंधित विषय में बैचलर डिग्री अपेक्षित होती है तथा मास्टर डिग्री को पूरी वरीयता दी जाती है। अध्ययन से संबंधित क्षेत्रों में भूविज्ञान, भूभौतिकी, सिविल इंजीनियरिंग, मृदा विज्ञान, वानिकी और कृषि इंजीनियरी शामिल है। जल-विज्ञानी के रूप में प्रशिक्षण के लिए अनिवार्य पाठ्यक्रमों में रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणन, जल गुणवत्ता, जल विज्ञान, द्रव-इंजीनियरी और मौसम विज्ञान शामिल हैं।
बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय जल-विज्ञान और जल-संसाधन विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। इनमें से ज्यादातर पाठ्यक्रम पूर्ण-कालिक हैं, लेकिन कुछेक में अंश-कालिक आधार पर मॉड्यूलर पाठ्यक्रम के रूप में प्रवेश लिया जा सकता है। जल-विज्ञान में कॅरिअर के लिए प्रथम डिग्री का विकल्प उतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन यह विचार करना उचित होता है कि जिस विश्वविद्यालय या कॉलेज पाठ्यक्रम को आप चुनते हैं वह उस व्यावसायिक संस्थान से मान्य होना चाहिए जिसमें आप बाद में सदस्यता हेतु आवेदन करते हैं।
भारत में बड़ी संख्या में संगठन जल संसाधनों के क्षेत्र में नियोजन, विकास, प्रबंधन, अनुसंधान और शिक्षण से जुड़े हैं।
जल-विज्ञान के क्षेत्र में पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण संचालित करने वाले संस्थान
क्र. सं./ संस्थान का पता संचालित पाठ्यक्रम1.1 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की एम.टेक. (जल विज्ञान)रुड़की, उत्तराखण्ड, भारत-247667 जल विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमासंपर्क नं. + 91-1332-285311 विशेषज्ञता क्षेत्र :http://www.iitr.ac.in भूतल जल जल-विज्ञानभूजल जल-विज्ञानवाटरशैड मैनेजमेंट
2.2 अन्ना विश्वविद्यालय सिविल इंजीनियरी विभागसरदार पटेल रोड, ग्विंडी, चेन्नै एम.ई. जल विज्ञान एवं जल संसाधन इंजीनियरीतमिलनाडु-600025 एम.ई. सिंचाई जल प्रबंधन http://www.annauniv.edu/courses/जल संसाधन केंद्रएम.ई. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन
3.3 एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय इंजीनियरी और सिंचाई और जल प्रबंधन में बी.ईप्रौद्योगिकी संकाय, कलाभवन, वड़ोदरा-390001 एम.ई. (i) जल संसाधन इंजीनियरीhttp://www.msubaroda.ac.in (ii) सिंचाई जल प्रबंधन
4.4 इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय जल संसाधन में उन्नत डिप्लोमा (दूरस्थ मोड) इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी विद्यालय, सेवारत व्यक्तियों के लिए इंजीनियरी के साथइग्नू कैम्पस, मैदान गढ़ी, सिविल या कृषि इंजीनियरी में डिप्लोमानई दिल्ली-110068www.ignou.ac.in
5.5 श्री गुरू गोबिंद सिंह जी कॉलेज बी.ई. और एम.ई. जल प्रबंधन (सिविल)ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी पीबी नं. 72, विष्णुपुरी, नांदेड़-431603
6. क्षेत्रीय इंजीनियरी कॉलेज जल संसाधन इंजीनियरी और प्रबंधन में एम.ई.तिरुचिरापल्ली-15
7. आन्ध्र विश्वविद्यालय, बी.एससी. के उपरांत जल-विज्ञान में तीन वर्षीय एम.एससी (टेक.) विशाखापत्तनम-530003www.andhrauniversity.info
8. अन्नामलाई विश्वविद्यालय हाइड्रोजिऑलोजी में एम.एससी. उपरांत डिप्लोमापो. आ. अन्नामलाई नगर-608002
9. दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, सिविल इंजी. (द्रव-विज्ञान तथा बाढ़ नियंत्रण) में एम.ईबवाना रोड, दिल्ली- 110042
10. इंजीनियरी कॉलेज, रायपुर जल संसाधन विकास तथा सिंचाई इंजीनियरी में एम.ई. (छत्तीसगढ़)-492010
11.7 सिविल इंजीनियरी विभाग, आईआईटी मद्रास द्रव-विज्ञान और जल संसाधन इंजीनियरी में चेन्नै- 600036, तमिलनाडु, भारत एम.टेक फोन : +91-44-22574250http://www.civil.iitm.ac.in
12.8 जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकीय विश्वविद्यालय मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.टेक.) हैदराबाद (जेएनटीयू) हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश जल संसाधन प्रबंधन टेलीफोन : +91-40-23158661, 662, 663, 664/23156109www.jntu.ac.in
13.4 षणमुगा कला विज्ञान प्रौद्योगिकी और अनुसंधान जल विज्ञान और जल संसाधन अकादमी तंजावूर- 613402 इंजीनियरी में एम.ई,
14.6 भारत यूनिवर्सिटी (भारत उच्चतर शिक्षा और जल विज्ञान और जल संसाधन अनुसंधान संस्थान, 173, अग्रम रोड, इंजीनियरी में एम.ई सेलायुर, ताम्बरम, चेन्नै-600073
15.3 राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की संस्थान का मुख्यालय रुड़की (उत्तराखण्ड) में है, हरिद्वार-247667, उत्तराखण्ड, भारत तथा चार केंद्र बेलगाम जम्मू, काकिनाड़ा औरफोन : 91-1332-272106, सागर में हैं तथा दो केंद्र गुवाहाटी औरफैक्स : 91-1332-272123 पटना में हैं। इस संस्थान की स्थापनाईमेल : nihmail@nih.ernet.in रुड़की, भारत में 1978 में अनुसंधान http://www.nih.ernet.in/ संगठन के तौर पर की गई थी। ईमेल :इसकी शुरुआत से संस्थान ने जल विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों में अनुसंधान अध्ययन संचालित किए हैं तथा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से संपर्क स्थापित किया है।सूची सांकेतिक है।
जल संसाधन विकास और प्रबंधन में कॅरिअर के लिए सहनशीलता, दृढ़ता, विस्तृत और अच्छे विश्लेषण कौशल के प्रति ध्यान की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यक्ति बहुत से विनियमों तथा जटिल प्रक्रियाओं में सुविज्ञ होना चाहिए। चूंकि आपको एक टीम के हिस्से के तौर पर काम करना होगा, अतः कार्य को संचालित करने में आपका सम्प्रेषण कौशल महत्वपूर्ण कारक हो सकता है।
(लेखक एक भूवैज्ञानिक हैं तथा झारखण्ड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, झारखण्ड सरकार में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। ई-मेल : vivekearth@