विकास के साथ सभी को जीवनयापन का आधार का संकल्प
कम से कम जल में अपना जीवन जीने की आदत हम छोड़ चुके हैं जबकि आज से पचास साल पहले लोग कम-से-कम जल में जीवन जी लेते थे। हम पानी के उपयोग का नियोजन नहीं करते इस कारण जल संकट गहराता जा रहा है। गंगा को साफ करने के लिए करोड़ों अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं लेकिन गंगा को गन्दा होने से बचाने की दिशा में कोई भी कारगर पहल नहीं कर पा रहे हैं। हरेक समस्या का समाधान सम्भव है अगर हम उसका समाधान खोजने का प्रयास करेंगे। समस्याएँ हमारे सामने मुँह बाए खड़ी हैं उसके निर्माता हम ही हैं उसलिए उसके समाधान के लिए प्रयास हमें ही करने पड़ेंगे। यह सच है कि जल सुरक्षा के बगैर न जन सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है और न ही अन्न सुरक्षा की। बावजूद इसके क्या यह सत्य नहीं है कि पिछले कुछ दशकों से हम भारतीय इस तरह व्यवहार करने लगे हैं कि मानों पानी कभी खत्म न होने वाली सम्पदा हो? पानी का उपभोग बढ़ा लिया है। पानी को संजोने की जहमत् उठाने की बजाय, हमने ऐसी मशीनों का उपयोग उचित मान लिया है, जो कि कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक पानी निकाल सके। सरकारों और वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही विकल्प हमारे सामने रखे।
सार्वजनिक तौर पर कोई व्यक्तिगत जवाबदेही नहीं मानते। सरकारों की नीतियों और नीयत ने लोगों को उनके दायित्व से और दूर ही किया। बाजार ने इसे एक मौका माना और पानी व खाद्य पदार्थों को कारोबारी मुनाफे की पारस मणि मान लिया। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ पानी और साग-भाजी बेचने के कारोबार में उतर आईं। खेती करने के काम में भी आज लगभग साढ़े तीन सौ कम्पनियाँ भारत में कार्यरत हैं।
लिहाजा, जल और खाद्य पदार्थ जीवन देने का विषय न होकर, व्यावसायिक विषय हो गए हैं। कभी अकाल पड़ने पर जल और खाद्य सुरक्षा पर संकट आता था। आज संकट के नए कारण, पारम्परिक से ज्यादा व्यावसायिक हैं।
इस बाबत तरुण भारत संघ, राजस्थान, जल बिरादरी और गाँधी रिसर्च फाउंडेशन, महाराष्ट्र ने आगाज कर दिया है।
विषय पर गहन चिन्तन तथा रणनीति तय करने हेतु महाराष्ट्र के जलगाँव में सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड और भँवरलाल एवं कान्ताबाई जैन मल्टीपरपज फाउंडेशन मानव लोक, वनराई, दिलासा, एक्शन फॉर एग्रीकल्चरल रिनुवल इन महाराष्ट्र, इंस्टीट्युट फॉर इंटीग्रेटिड रूरल डेवलपमेंट, भारतीय जल संस्कृति मण्डल, महाराष्ट्र सिंचाई सहयोग, गंगा जल बिरादरी, परमार्थ सेवा संस्थान- उ.प्र., ग्रामीण विकास नवयुवक मण्डल-राजस्थान, घोघरदिया प्रखण्ड स्वराज्य विकास संघ- बिहार, बिहार प्रदेश किसान संगठन, राष्ट्रीय नदी पुनर्जीवन अभियान, एस पी डब्ल्यू डी-झारखण्ड और ग्रामीण विकास की भागीदारी रही।
‘जल -जन-अन्न’ सुरक्षा के मुद्दे के पर जलगाँव स्थित गाँधी तीर्थ के विशाल सभागार में शुरू हुए दो दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते ख्यातिनाम जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि देश की जल सम्पदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत है। पुराने कानून कोई काम के नहीं हैं। सरकारें कारगर कानून बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और राजनेताओं को सत्ता पाने के अलावा और किसी चीज से कोई सरोकार नहीं रह गया है। संविधान में भी जल को कोई खास अहमियत नहीं दी गई है।
सर्वधर्म प्रार्थना के साथ शुरू हुए इस सम्मेलन में देश भर से सैंकड़ों की संख्या में समाजसेवी, जलयोद्धा, योजनाकार, वैज्ञानिक और उद्योगपतियों के साथ युवा शिरकत किया। कर रहे हैं।
जल संरक्षण सम्बन्धी कारगर कानून बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए राजेन्द्र सिंह ने कहा मौजूदा दौर में पीने का पानी और खाने के लिये अन्न का संकट भयावह होता जा रहा है इससे देश और दुनिया के लोगों को तभी मुक्ति दिला सकेंगे जब हम इस दिशा में कुछ बेहतर करने के लिए तैयार होंगे। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक दूसरे को कोसने के बजाय आम लोगों के साथ मिलकर ऐसी कार्यनीति बनाएँ जो जल संरक्षण के लिये जरूरी हो।
गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा सुश्री राधा भट्ट ने बहुत तेजी से बड़े पैमाने पर जल के दोहन और दुरुपयोग पर गहरी चिन्ता जताते हुए कहा कि हमने धरती के ऊपर और उसके अन्दर उपलब्ध जल को अपनी नादानी से खत्म कर दिया है।
हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन केवल अधिक-से-अधिक मुनाफे के लिए इस कदर कर रहे हैं कि आने वाले संकट में चाहकर भी इससे मुक्त नहीं हो पाएँगे। उनने गाँधी जी के दिखाए रास्ते पर चलकर निदान खोजने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा।
नदियों को जोड़ने के प्रयासों को नकारते हुए राधा भट्ट ने कहा कि यह प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ होगा उनने कहा कि हर नदी का अपना व्यक्तित्व है और उसका परिवेश है। हम जिस तरह अपना धड़ किसी दूसरे के शरीर में जोड़ नहीं सकते उसी तरह एक नदी को दूसरी नदी को जोड़ नहीं सकते। उनने कहा कि प्रकृति में पहले से जो समन्वय और सन्तुलन बरकरार है उसे नदी जोड़ने के नाम पर खत्म नहीं किया जाना चाहिए।
अपने बीज वक्तव्य में केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय के पूर्व सचिव माधव राव चितले ने वैश्विक स्तर पर जल की समस्या की चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है। उनने जल संरक्षण और समान जल वितरण के लिए विभिन्न सुझावों की चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा व्यवस्था में अन्य विषयों की तरह जल को भी अहम् स्थान दिया जाए ताकि जल के प्रति समझ, संवेदना और सदुपयोग बचपन से ही कायम हो जाए। उनने कहा कि आज जल की समस्या ऐसे मुहाने पर खड़ी हो गई है जिसका समाधान अकेले समाज के बस की बात नहीं है इसके लिए समाज के साथ सरकार और निजी क्षेत्र के लोगों को भी साथ लेना होगा। उनने चेतावनी दी कि आज हमारा देश दुग्ध उत्पादन में भले सबसे आगे है लेकिन हम जल की समस्या का समाधान जल्द से जल्द नहीं करेंगें तो दुग्ध उत्पादन भी बहुत घट जाएगा और साथ ही भारी संख्या मे लोग बेरोजगार हो जाएँगे।
अपनी तरह के अनूठे और जरूरी समझे जा रहे इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए जेआईएसएल और गाँधी तीर्थ के संस्थापक भँवरलाल जैन ने प्राकृतिक संसाधनों खासकर जल के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कम से कम जल में अपना जीवन जीने की आदत हम छोड़ चुके हैं जबकि आज से पचास साल पहले लोग कम-से-कम जल में जीवन जी लेते थे। हम पानी के उपयोग का नियोजन नहीं करते इस कारण जल संकट गहराता जा रहा है। उनने कहा कि हम गंगा को साफ करने के लिए करोड़ों अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं लेकिन गंगा को गन्दा होने से बचाने की दिशा में कोई भी कारगर पहल नहीं कर पा रहे हैं। उनने कहा कि हरेक समस्या का समाधान सम्भव है अगर हम उसका समाधान खोजने का प्रयास करेंगे। उनने कहा कि आज जो भी समस्याएँ हमारे सामने मुँह बाए खड़ी हैं उसके निर्माता हम ही हैं उसलिए उसके समाधान के लिए प्रयास हमें ही करने पड़ेंगे। उनने जल समस्या के समाधान के लिए शाकाहारी होने की जरूरत को तार्किक तरीके से समझाया।
वरिष्ठ गाँधीवादी एस एन सुब्बाराव ने राष्ट्र की समस्याओं के समाधान में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चा करते हुए कहा कि आज सरकार गंगा और यमुना को साफ करने के लिए अरबों रुपए खर्च कर रही है अगर उसका एक फीसदी अंश युवाओं द्वारा इन नदियों को साफ करने की योजना पर खर्च किया जाए तो हम राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित कर पाएँगे।
जैन इरिगेशन सिस्टम्स लिमिटेड (जेआईएसएल) के प्रबन्ध निदेशक अनिल जैन ने न केवल जल संरक्षण बल्कि स्वच्छ जल की उपलब्धता के लिए काम करने की जरूरत बताई। उनने जल को दवा बताते हुए कहा कि जल बचेगा तो हम बचेंगे। सम्मेलन में डी एस लोहिया, अनुपम सर्राफ, वी एम रानाडे, जल कानून विशेषज्ञ श्री पुरन्दर, डॉ नारायणमूर्ति, विनोद रापतवार और अन्य अनेक जल विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए। भागीदारी की।
कार्यक्रम के दौरान खासतौर पर जल सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के जुड़ाव बिन्दुओं तथा चुनौतियों पर चर्चा की गई। यह समझने की कोशिश की गई कि समाधानों को व्यवहार में कैसे उतारा जाए। उपलब्ध तकनीकों के व्यावहारिक पहलुओं, वर्तमान कानूनी ढाँचे में जलाधिकार की स्थिति, सुधार की जरूरतें, सरकार, कारपोरेट जगत और गैर सरकारी संगठनों के स्तर पर पहल की सम्भावनाओं के साथ लागत सम्बन्धी आकलन भी किया गया। दरअसल में इस सम्मेलन का मकसद जल प्रबन्धन की आवश्कताओं तथा भिन्न पहलुओं के अन्तर्सम्बन्धों की स्थिति को जाँचने व समझने का प्रयास भी था।
सम्मेलन के प्रतिभागी संजय सिंह बताते हैं कि आधुनिक भारत के निर्माण में इस सम्मेलन की अहम् भूमिका होगी। राजस्थान के कृषि वैज्ञानिक जे.एस. सिंह, हरियाणा के इब्राहिम भाई, राजेन्द्र अन्नाबड़े, महाबीर त्यागी, त्रिपुरा की लैला राय, नरेन्द्र, विनोद बोंधकर, अमिजीत जोशी, डीएम मोरे, अशोक, विश्वास राव भाउ आदि ने जल और खाद्य सुरक्षा के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए।
सम्मेलन में रामबिहारी सिंह, रमेश भाई, रामधीरज, हेमचन्द पाटिल, ब्रजेश बिजयवर्गीय, रमेश कुमार, प्रेमजी भाई पटेल, जे.के दमादार, एस़. के सिंह, राजेन्द्र पोद्दार सहित कई जलयोद्धाओं को सम्मानित किया गया।
सम्मेलन के समापन पर प्रतिभागियों द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर जलगाँव जल घोषणा जारी किया गया। इसके तहत् नदियों तथा जलाशयों के संरक्षण से सम्बन्धित राष्ट्रीय नदी नीति एवं नदी कानून से सम्बन्धित धारा बनाने के लिये मंच बनाने की बात हुई।
सामूदायिक जलाशयों को चिन्हित एवं अधिसूचित कर राज्य सरकार को जनता को जल कानून के बारे में बताने का सुझाव दिया गया। परीक्षणात्मक तौर यह बताने की आवश्यकता बताई गई कि जलाशय मेरा है और मैं उसका न्यासी हूँ।
घोषणा पत्र में जल सुरक्षा पाने के लिये जन सहभागिता कार्यक्रम तय किए गए। इसके तहत रचनात्मक प्रक्रिया तथा जन सहभागिता के आधार पर छोटे— छोटे जल संग्रहण का निमार्ण करने, जल की गुणवत्ता की जाँच करने सामुदायिक आधार पर जाँच— पड़ताल तन्त्र की स्थापना करने, सभी जलाशयों की पहचान, चिन्हित तथा अधिसूचित करने और युवा जन के लिये जल से सम्बन्धित विषयों पर केन्द्रित कार्यक्रम की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
घोषणा में इस बात पर भी जोर दिया गया कि हर गाँव स्वत: जल के लिये आत्मनिर्भर हो, इसके लिये सुक्ष्म स्तर पर छोटे— छोटे जलाशयों का निर्माण करने के साथ—साथ आधुनिक संसाधन से युक्त टपक सिंचाई प्रणाली के उपयोग की बात की गई। बड़ी सिंचाई योजनाओं, नदियों को जोड़ने की प्रक्रिया के सन्दर्भ में सम्मेेलन में स्पष्ट किया गया कि इस विषय का पूर्व अध्ययन पर्यावरणीय प्रभावों तथा जनसहभागिता के आधार पर किया जाना चाहिए। नदियों को जोड़ने की प्रकिया का वैज्ञानिक आंकलन पहले किया जाना चाहिए और इस सन्दर्भ में विस्तृत दस्तावेजों को पारदर्शितापूर्ण लोगों को दिखाया जाना चाहिए तथा विस्थापन एवं पुर्नवास के विषयों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
कंक्रीट खुली नहरों के स्थान पर पाईप प्रणाली के उपयोग को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने की माँग की गई। साथ ही फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता तथा उपलब्ध संसाधनों के यथासम्भव अनुकूल परिणाम पाने के लिये जहाँ टपक सिंचाई प्रणाली के प्रोत्साहन की बात की गई तो दूसरी ओर चावल की खेती वाली क्षेत्रों में बदल—बदल कर फसल लगाने की प्रक्रिया पर शोध की बात कही गई। इसके अतिरिक्त एकीकृत सिंचाई परियोजनाओ के प्रोत्साहन के लिये धन राशि प्रदान करने और हर जिला में कम-से-कम पाँच से दस हजार हेक्टेयर खेती का प्रावधान करने की बात की गई।
बिजली के लिये वैकल्पिक तौर पर सौर उर्जा, उत्पादों के लिये बाजार, कृषकों के क्षमता विकास के लिये प्रशिक्षण की बात की गई। वहीं गंगा के पुर्नजीवन कार्यक्रम को प्रयोगात्मक तौर लागू करने की बात कही गई। साथ ही दूषित जल गंगा में गिराने की बजाय उसका पुर्नचक्रण की प्रक्रिया के बाद सिंचाई प्रणाली में उपयोग की बात कही गई।
साथ ही इस संकल्प को भी दोहराया गया कि भारत में 140 करोड़ हेक्टेयर पर 12 लाख से अधिक किसान खेती करते हैं। उन्हे अन्न जल की सुरक्षा प्रदान करने के उपाय किये जाएँ। कृषि, पर्यावरण, विकास अभिन्न अंग है और इसमें अन्न— जल एवं जन की सहभागिता जुड़ी हुई है। इस संकल्प को भी दोहराया गया कि विकास और प्रगति के पथ पर चलते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिये जल की सुरक्षा एवं नदियों की संरचना कर पर्यावरण के ....विकास के साथ सभी को जीवनयापन का आधार दे सकें।
दो दिनों के सम्मेलन के सन्दर्भ में मदद फांउडेशन की सचिव वंदना झा का कहना है इस सम्मेलन की घोषणा पर अमल कर अन्न एवं जल की सुरक्षा कर सकते हैं और जल सुरक्षा के बिना खाद्य सुरक्षा का कोई मायने नहीं है।
जल, जन और अन्न सुरक्षा कार्यक्रम से जुड़े फोटोग्राफ्स यहाँ देख सकते हैं।
कुमार कृष्णन
सम्पर्क— कुमार कृष्णन, स्वतन्त्र पत्रकार
दशभूजी स्थान रोड, मोगलबाजार मुंगेर,
बिहार - 811201
मोबाइल— 09304706646