डॉ. पॉल इस अजिंक्यतारा जल संरक्षण अभियान के अघोषित अगुवा हो गए। इधर धीरे-धीरे उनकी आबादी भी बढ़ती रही और व्यापारी, तकनीशियन, साफ्टवेयर इंजीनियर और एक राजनीतिज्ञ भी उनके इस अभियान का हिस्सा हो चुके थे। कारवाँ आगे बढ़ा तो किले से नीचे उतरकर लोगोंं के बीच जाने का भी फैसला हुआ कि अगर गाँव वालों को यह बात समझाई जाये कि अगर जमीन पर पानी को संरक्षित किया जाये तो जमीन के नीचे भी पानी का स्तर ऊपर आएगा और सूखे से मुक्ति पाने में यह छोटा सा उपाय बड़ी मदद करेगा। सकाल मराठी का बड़ा अखबार है। 10 जनवरी 2013 को उसने एक छोटा सा विज्ञापन प्रकाशित किया। विज्ञापन भी क्या था एक अपील थी लोगों से कि सतारा के लोग अजिंक्यतारा पर आएँ और उसकी साफ-सफाई में सहयोग दें। जब यह अपील की गई तो भारत में किसी स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भी नहीं हुई थी इसलिये अपील का ज्यादा असर न हुआ। कुछ मुट्ठी भर लोग ही सतारा की शान अजिंक्यतारा पहुँच पाये। पहले दिन तो कुछ लोग आये भी लेकिन दूसरे दिन सिर्फ तीन लोग बचे जो अजिंक्यतारा की साफ-सफाई में स्वैच्छिक रुचि रखते थे। इसमें एक डॉ. अविनाश पॉल भी थे।
अजिंक्यतारा का मतलब है जिसे कोई जीत न सके। 3000 फुट की ऊँचाई पर बने इस किले को जीतना हमेशा ही दुर्गम और असम्भव रहा है। 1708 में छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते शाहू जी महाराज ने अजिंक्यतारा को अपने अधिपत्य में कर लिया था। मराठा साम्राज्य पर नजर रखने के लिये उनको ऐसा करना जरूरी था। अजिंक्यतारा ही वह जगह थी जहाँ से साम्राज्य पर दूर-दूर तक नजर रखी जा सकती थी।
लेकिन समय बीतने के साथ अजिंक्यतारा ऐसा उपेक्षित हुआ कि उस पर ही नजर रखने वाला कोई न रहा। लेकिन खंडहर में परिवर्तित हो चुके अजिंक्यतारा की साफ-सफाई करके अपने गौरवशाली इतिहास को संजोने का जो जन प्रयास सकाल ने शुरू किया, वह तीसरे ही दिन तीन लोगों पर आकर सिमट गया। मतलब, सतारा को ही अजिंक्यतारा से कोई खास मतलब न रहा अब। लेकिन तीन लोग थे जिनको मतलब था। एक डॉ. पॉल पेशे से दाँतों के डॉक्टर, दूसरे महेन्द्र जाधव पेशे से बिल्डर और तीसरे भगवान महिपाल जो पेशे से पम्पसेट के डीलर थे।
लेकिन इन तीनों ने तय किया कि कोई आये या न आये वो आएँगे और स्वैच्छिक रूप से प्रतिदिन साफ-सफाई का काम जारी रखेंगे। वो लोग नियमित आने लगे और सुबह 6.30 से 8.30 बजे तक दो घंटे वहाँ साफ-सफाई के लिये श्रमदान करने लगे। एक सप्ताह बाद इनकी संख्या चार हो गई और डॉ. शरद जगताप भी इस टोली के सदस्य हो गए। इस तरह एक के बाद एक लोग जुड़ते गए और कुछ ही हफ्तों में अब अजिंक्यतारा पहले से ज्यादा साफ-सुथरा और कूड़ा-करकट से मुक्त हो गया था।
तभी एक दिन डॉ. पॉल ने सभी साथियोंं के सामने एक प्रस्ताव रखा कि साफ-सफाई के साथ क्यों न हम अजिंक्यतारा के जलस्तर को सुधारने के लिये भी काम करें। उनका तर्क था कि अजिंक्यतारा सबसे ऊँचाई पर स्थित है। अगर यहाँ 100 एकड़ में पानी का जलस्तर सुधरता है तो इसका फायदा पूरे सतारा शहर को होगा और वहाँ भी जलस्तर ऊपर उठेगा। सूखे की मार झेलते सतारा के लिये यह किसी वरदान से कम नहीं होगा। सुझाव सबको अच्छा लगा और सारे लोग झट से इस काम के लिये तैयार हो गए।
अब डॉ. पॉल इस अजिंक्यतारा जल संरक्षण अभियान के अघोषित अगुवा हो गए। इधर धीरे-धीरे उनकी आबादी भी बढ़ती रही और व्यापारी, तकनीशियन, साफ्टवेयर इंजीनियर और एक राजनीतिज्ञ भी उनके इस अभियान का हिस्सा हो चुके थे। कारवाँ आगे बढ़ा तो किले से नीचे उतरकर लोगोंं के बीच जाने का भी फैसला हुआ कि अगर गाँव वालों को यह बात समझाई जाये कि अगर जमीन पर पानी को संरक्षित किया जाये तो जमीन के नीचे भी पानी का स्तर ऊपर आएगा और सूखे से मुक्ति पाने में यह छोटा सा उपाय बड़ी मदद करेगा। इसके लिये छोटे-छोटे जल संचय के उपाय कैसे किया जाये और सरकार से इस बारे में मदद कैसे ली जाये यह जागृति भी लोगों में पैदा करने का निश्चय किया गया।
बस फिर क्या था। स्वच्छता से शुरू हुआ अभियान पानी बचाने के अभियान में परिवर्तित हो गया। आसपास के रहमतपुर, जलगाँव, वेलू, बिचुकाले जैसे अनेकों गाँवों में ये स्वयंसेवक पहुँचने लगे और उन्हें समझाने लगे कि कैसे पानी बचाने से पानी पैदा होता है। गाँव वालों ने भी धीरे-धीरे पानी बचाने के उपाय शुरू कर दिये जिसमें चेकडैम से लेकर छोटी-छोटी खाइयाँ, बावड़ी और बाँध बनाने का काम शुरू कर दिया गया। इन जलस्रोतोंं के आसपास हजारों पौधे भी लगाए गए। लोग भी उमड़कर जुड़ने लगे। ड्रोन फोटोग्राफी करने वाले शैलेष चौहान बताते हैं कि हम इस अभियान में इसलिये शामिल हो गए क्योंकि यह हमारे भविष्य से जुड़ा हुआ था। भविष्य से ही नहीं यह सतारा के वर्तमान से भी जुड़ा हुआ था। भविष्य से ज्यादा वर्तमान की हालत बदलने के लिये पानी बचाने का यह उपाय करना जरूरी हो गया था। जहाँ इस समूह ने सबसे पहले श्रमदान करना शुरू किया वहाँ बोरवेल का जलस्तर 200 फुट के नीचे चला गया था। कुओं में भी 50-60 फुट के पहले पानी मिलना मुश्किल हो गया था।
डॉ. पॉल की पहल बहुत जल्द कामयाब हुई और आमिर खान द्वारा निर्मित पानी फाउंडेशन सतारा में जल संरक्षण की मदद के लिये आगे आया। पानी फाउंडेशन ने एक प्रतियोगिता शुरू की सत्यमेव जयते वाटर कप और विजेता को पचास लाख रुपए पुरस्कार देने का ऐलान किया। पहला पुरस्कार वेलू गाँव को मिला और साथ में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से 20 लाख रुपए की आर्थिक मदद भी मिली। पुरस्कार के जरिए पानी बचाने की यह पहल इतनी कामयाब हुई कि अगले साल कई गाँव इस प्रतियोगिता में शामिल हुए। इस तरह से लोगों की भागीदारी देखकर पानी फाउंडेशन को इसके नियम कानून सख्त करने पड़े।
इसी तरह नाना पाटेकर का नाम फाउंडेशन भी पानी बचाने में लोगों की मदद के लिये आगे आया। यह फाउंडेशन डॉ. पॉल के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि भविष्य में फिर से महाराष्ट्र को किसी प्रकार के अकाल का सामना न करना पड़े।
डॉ. पॉल बताते हैं कि महाराष्ट्र में पानी का भीषण संकट है। महाराष्ट्र में सिंचाई युक्त जमीन सिर्फ 16 प्रतिशत है इसलिये गाँवों से शहर की ओर तेजी से पलायन होता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि लोग इस परिस्थिति को बदलना भी चाहते हैं। इसलिये जैसे ही हमने श्रमदान का एक विचार सामने रखा तत्काल लोगों ने उसे अपना लिया और यह विचार तेजी से लोगों के बीच फैलने लगा। एक गाँव में काम शुरू हुआ तो दूसरे गाँव ने भी उसे देखकर अपने यहाँ श्रमदान से पानी बचाने का उपाय शुरू कर दिया। मुझे किसी प्रकार के प्रचार की जरूरत नहीं है। मैं लोगों से कहता हूँ तुम खुद लोगों को बताओ। मेरा मानना है कि जल संरक्षण का यह काम जो शुरू हुआ है अगर वैज्ञानिक ढंग से कर दिया जाये तो 300 से 400 मिलीलीटर वर्षा हमारी जरूरत के लिये पर्याप्त होगी और यहाँ कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।
डॉ. पॉल अब सतारा के कुछ सबसे ज्यादा अकालग्रस्त गाँवों में काम कर रहे हैं। उनके काम करने का तरीका बहुत सीधा है। जैसे ही उन्हें सूचना मिलती है कि किसी गाँव में पानी का संकट है वो वहाँ जाते हैं और इस तरह लोगों को बताते हैं कि उन्हें किसी प्रकार की मदद की जरूरत नहीं है। वो अपने ही प्रयासों से अपना जल संकट दूर कर सकते हैं। वेलू गाँव जिसे जल संरक्षण का वाटर कप मिला उसकी भी कहानी कुछ ऐसी ही है।
एक दिन एक बिल्डर शरद भोसले ने उन्हें सूचना दी कि वेलू गाँव में पानी का घोर संकट है और वहाँ जल संरक्षण का काम तत्काल शुरू करने की जरूरत है। अगले ही हफ्ते डॉ. पॉल स्थानीय उप जिलाधिकारी के साथ वेलू गाँव गए और वहाँ का जायजा लिया। वहाँ उन्होंने गाँव वालों से कहा, “अगर आप लोग श्रमदान करने के लिये तैयार हैं तो आपकी समस्याओं का समाधान हो सकता है।” उन्होंने बातचीत में गाँव वालों को यह समझाया कि उन्हें कैसे और किस प्रकार से पानी और मिट्टी के संरक्षण के उपाय करने हैं। इसके बाद गाँव के दो स्वयंसेवकोंं के साथ काम शुरू हुआ। इसके बाद कुछ और लोग भी श्रमदान करने के लिये आगे आये और जब काम आगे बढ़ा तो डॉ. पॉल ने गाँव को पानी फाउंडेशन और सरकारी योजनाओं से जुड़ने में उनकी मदद की।
डॉ. पॉल कहते हैं कि अगर आज आप वेलू गाँव जाएँगे तो पाएँगे कि चारों तरफ जल संरक्षण के लिये छोटे बड़े बंध, तटबंध और तालाब बने हुए हैं। इन सारे निर्माण का एक ही मकसद है गाँव में गिरने वाली हर एक बूँद को सहेजकर रख लेना। इस निर्माण के बाद जब वेलू में बारिश की पहली बूँद गिरी तो केवल 4 सेंटीमीटर बारिश हुई। लेकिन गाँव वाले खुशी से झूम उठे क्योंकि जो भी पानी गाँव में गिरा वह बहकर बाहर नहीं गया। एक-एक बूँद को सहेज लिया गया था। हल्की-से-हल्की बारिश का पानी भी तालाबों, बावड़ियों, खाइयों में इकट्ठा हो जाता था। डॉ. पॉल कहते हैं कि अगर आप जल प्रबन्धन करना जानते हैं और आपके पास जल संरक्षण की तकनीकी मौजूद है तो 4 सेंटीमीटर की बारिश भी आपके लिये पर्याप्त है।
तीन सालों से सूखे की मार झेल रहे वेलू में पहली बार ऐसा हुआ जब उनकी प्यास बुझाने के लिये भेजे गए पानी के टैंकर वापस कर दिये गए। गाँव वालो को टैंकर का इन्तजार करने की जरूरत नहीं थी। अब वो पानी की पाइप, ड्रिप इरिगेशन के उपकरण और आलू, अदरक के बीज खरीदने में व्यस्त थे। प्रवीण भोसले जो पिछले छह साल से खेती नहीं कर पा रहे थे उन्होंने एक ट्रक आलू खरीदा ताकि अपने बीस एकड़ खेत में इस बार आलू की बुआई कर सकें। भोंसले का आत्मविश्वास ऐसा है कि वो कहते हैं कि अब अगर 200 से 300 मिलीमीटर बारिश भी हुई तो भी वो अच्छी फसल ले सकते हैं। इस इलाके में सामान्य बरसात 500 से 600 मिलीलीटर होती है लेकिन जब से सूखे का दौर शुरू हुआ तबसे बारिश घटकर 200 से 300 मिलीलीटर ही रह गई थी। जितनी बारिश होने पर वेलू गाँव के लोग सूखाग्रस्त घोषित हो जाते थे उतनी ही बारिश में अब वो पूरी फसल लेने का आत्मविश्वास रखते हैं। यह उनके अपने जल संरक्षण से उपजा आत्मविश्वास है।
नानावरे अब अदरक के खेती की तैयारी कर रहे हैं। नानावरे ने एक टैंक बनाया है जिस पर उन्होंंने 6.65 लाख रुपया खर्च किया है। इसके अलावा उन्होंने छोटे बाँध और नाला बाँध भी बनाया है। उनकी जमीन के निचले हिस्से में एक कुआँ भी है। पहले सूखा पड़ता था तो यह कुआँ सूखा रहता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जल संरक्षण के उपायों ने कुएँ को पानी से भर दिया है।
वेलू गाँव के सरपंच प्रणीव भोसले कहते हैं कि मैं अपने गाँव का सरपंच था लेकिन पता नहीं था कि सूखे की इस समस्या से कैसे निपटना है। मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था कि कभी मैं इस तरह से परिवर्तन का हिस्सा बनूँगा। अगर डॉक्टर पॉल मेरे गाँव में नहीं आते तो हम उसी तरह सूखे से जूझते रहते। डॉक्टर साहब हमारे लिये भगवान बनकर आये हैं। डॉ. पॉल कहते हैं “जितने भी गाँवों में मैंने अब तक काम किया है उसमें वेलू गाँव में सबसे तेजी से काम हुआ है। सिर्फ नौ महीने में हम योजना को पूरा करने में सफल रहे। हालांकि अभी भी बहुत सारे काम किये जाने बाकी हैं लेकिन वेलू में जितना काम हो चुका है उससे अब यह गाँव सूखे का सामना कर लेगा। वेलू में अब कभी सूखा नहीं पड़ेगा।”
जाखन गाँव की भी अपनी साहसिक कहानी है जो डॉ पॉल की अगुवाई में सूखे से लड़ाई लड़कर विजेता बना है। जाखन गाँव के लोगों ने अपने चेकडैम का डिजाइन खुद तैयार किया है और एक दशक से चले आ रहे जल संकट को समाप्त कर दिया है। गाँव की कुल आबादी 3000 है और गाँव में खेती के लायक 1500 हेक्टेयर जमीन है। लेकिन सूखे का ऐसा भीषण प्रभाव पड़ा कि गाँव के हर घर से आज कोई-न-कोई मुम्बई में मजदूरी करता है। गाँव में आय का कोई जरिया नहीं है और जो जानवर भी थे उन्हें गाँव से बाहर कर दिया गया। या तो जानवरों को बेच दिया या फिर वहाँ पहुँचा दिया जहाँ पानी था। चार साल पहले 2013 में गाँव में सिर्फ 30 लोग बचे रह गए थे और 1500 हेक्टेयर जमीन में सिर्फ 25 हेक्टेयर जमीन पर खेती हो रही थी।
गाँव में एक छोटी नदी बहती है और उस नदी पर छोटा सा बाँध भी बना है लेकिन नदी में गाद भरी थी और बाँध के फाटक भी काम नहीं करते थे। डॉ. पॉल ने जब यहाँ का दौरा किया तो उन्होंंने महसूस किया कि अगर नदी से गाद को कम कर दिया जाये तो यहाँ पानी की समस्या को भी कम किया जा सकेगा। इसके बाद पुणे के पद्माकर भिड़े से सम्पर्क किया गया और उन्होंने छोटी नदी को देखते हुए छोटी ऊँचाई के चेकडैम का डिजाइन तैयार किया। इसी डिजाइन के आधार पर जाखन गाँव में छोटे बड़े कुल 38 चेकडैम तैयार किये गए। इसका परिणाम यह हुआ कि गाँव में पानी का जलस्तर ऊपर उठने लगा और पीने के पानी से लेकर खेतों में पानी का संकट खत्म हो गया। 133 एकड़ के इलाके में जल संरक्षण के लिये छोटी खाइयों का निर्माण किया गया जिसमें वर्षाजल का संचय किया जा सके।
इन उपायों का परिणाम ये हुआ कि न सिर्फ जाखन गांव में पानी आया बल्कि जो जाखन गांव कभी सूखाग्रस्त था लेकिन आज उसके पास दूसरे गाँवों में पानी की समस्या को खत्म करने के लिये जाखन गाँव मॉडल है। गाँव में किसानों ने आपसी भागीदारी से समूह में मिर्ची की खेती करना शुरू कर दिया है। मिर्ची उत्पादन के साथ-साथ गाँव में दुग्ध उत्पादन का कारोबार फिर से शुरू हो गया है। गाँव में अब प्रतिदिन एक हजार लीटर दूध का उत्पादन होता है जिन्हें इकट्ठा करके तीन कलेक्शन सेंटर पर भेज दिया जाता है।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर गाँव की एक जैसी ही कहानी है। कहीं पानी तो है लेकिन पानी तक गाँव वालों की पहुँच नहीं है। वो सदियों से वहाँ रह रहे हैं लेकिन पानी के साथ अपना छोटा सा रिश्ता भी नहीं जोड़ पाये हैं ताकि वो अपनी समृद्धि सुनिश्चित कर सकें। अलवाडी गाँव की कहानी कुछ ऐसी ही है। अलवाडी सतारा में एक दूर-दराज का गाँव हैं जहाँ आधुनिक दुनिया से सम्पर्क के नाम पर तीन साल पहले एक बस सेवा शुरू हुई है। अलवाड़ी 600 लोगों का गाँव है। गाँव में कुल 95 परिवार है और हर परिवार छोटा जमींदार है।
घाटी में बसा अलवाडी गाँव के एक किनारे पर एक झरना गिरता है लेकिन गाँव के लोग उस झरने से आने वाले पानी का उपयोग नहीं कर पाते हैं। झरने का जो पानी गिरता है वह गाँव वालों की पहुँच से दूर चला जाता है। एक बार डॉ. पॉल वहाँ पहुँचे और स्थिति को करीब से समझने के लिये वो उस पहाड़ी पर चढ़ गए जहाँ से झरना गिरता था। उन्होंने महसूस किया कि अगर एक पाइपलाइन के सहारे झरने का पानी गाँव तक पहुँचा दिया जाये तो गाँव के पानी की समस्या का समाधान हो सकता है। लेकिन एक समस्या थी। समस्या ये थी कि यह घने जंगल का इलाका था और कोई भी निर्माण कार्य करने से पहले वन विभाग से अनुमति लेना जरूरी था।
डॉ. पॉल ने जिला प्रशासन से सम्पर्क किया और वहाँ की स्थिति से अवगत करवाया। पानी व्यक्ति के लिये जीवन का अधिकार है और इसमें किसी प्रकार की रुकावट नहीं आनी चाहिए। जिला प्रशासन ने भी सहयोग किया और पाइप लाइन बिछाने की अनुमति दे दी। इस तरह एक छोटे से उपाय ने अलवाड़ी तक पानी पहुँचा दिया।
डॉ. पॉल ऐसे ही छोटे-छोटे उपायों के जरिए महाराष्ट्र में सूखे से निपट रहे हैं। अजिंक्यतारा से शुरू हुई उनकी जलयात्रा अनवरत जारी है।
अनुवाद - संजय तिवारी
Source
द वाटर कैचर्स, निम्बी बुक्स प्रकाशन, 2017