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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान
इस देश में सिंचाई प्रबंधन की दो भिन्न व्यवस्थाएं चालू हैं एक जो बहुत पहले कृषक समुदाय द्वारा सामूहिक प्रयास से विकसित की गई और पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत रुप से हस्तांतरित होती रही और दूसरी अपेक्षाकृत आधुनिक बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के लिए सरकारी तंत्र द्वारा निकाली गई।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में सिंचाई का अत्यंत महत्व है। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद से प्राथमिकता के आधार पर इस देश में सिंचाई क्षमता का विकास किया जाने लगा और लगभग दो दशकों में ही इसमें पर्याप्त वृद्धि हुई। फलस्वरूप हरित क्रांति आई, कृषि पैदावार बढ़ी, उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई और खाद्यान्न के मामले में देश आत्मनिर्भर हुआ। कुछ ही समय बाद यह पाया गया कि कुल सृजित सिंचाई क्षमता का कुशल उपयोग नहीं हो रहा और सृजन एवं उपयोग में अंतर है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। स्थिति में सुधार के लिए उचित प्रबंधन की ओर सरकार का ध्यान गया। अनुभव से पाया गया कि सिंचाई जल प्रबंधन में सफलता के लिए उपभोक्ता की भागीदारी आवश्यक है। यह प्रक्रिया स्थानापेक्षिक है और इसकी रणनीति एवं विधि स्थानीय प्रचलित परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए। वर्तमान उदाहरण भी यही इंगित करते हैं।इस देश में सिंचाई के लिए जल संसाधन का विकास एवं प्रबंधन जीवनमरण के प्रश्न जैसा महत्वपूर्ण है। फिलहाल देश में कुल व्यवहृत जल का लगभग 83 प्रतिशत सिंचाई के क्षेत्र में उपयोग होता है ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 में भी यह 79 प्रतिशत रहेगा। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि सिंचाई जल के कुशल प्रबंधन द्वारा क्षति एवं अपव्यय न्यूनतम किया जाय और जल की बचत हो। ऐसा आंकलन है कि यदि सिंचाई जल की 10 प्रतिशत बचत हो, तो उससे लम्बी अवधि में घरेलू एवं औद्योगिक क्षेत्रों के उपयोग के लिए लगभग 40 प्रतिशत जल की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
सिंचाई जल प्रबंधन एक जटिल एवं विस्तृत प्रक्रिया है। इशका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सही समय पर सही मात्रा में जल की आपूर्ति कराना है ताकि कृषि की उत्पादकता में अधिकतम वृद्धि हो सके। फसल के बीजारोपण से परिपक्वता तक जल की विश्वसनीय एवं समयोचित आपूर्ति परमावश्यक है। सिंचाई जल प्रबंधन की प्रक्रिया में केवल जल का अंतर्ग्रहण, परिवहन, विनियमन, वितरण, मापन एवं खेत में जलोपयोग की विधि ही नहीं, बल्कि समय पर कृषि भूमि से प्रभावशाली जल जलनिकासी तथा लागत में कभी भी शामिल है। सिंचाई एवं जलनिकासी के प्रबंधन की समस्या मुख्यतः सार्वजनिक क्षेद्ध की सिंचाई परियोजनाओं से संबंधित है और भौतिक सांस्थानिक आर्थिक एवं वित्तीय बाध्यताओं से प्रभावित है।
सिंचाई जल प्रबंधन एक स्थानापेक्षिक प्रक्रिया है। यह स्थानीय स्थलाकृति, जलवायु, जल की उपलब्धता, मृदाभिलक्षण, फसल किस्म, आर्थिक सामाजिक स्थिति, आदि पर निर्भर है। जो मॉडल एक क्षेत्र के लिए सफल सिद्ध हुआ है, वह दूसरे इलाके में भी खड़ा उतरे, यह आवश्यक नहीं। अतः अध्ययन, अनुसंधान एवं पूर्वानुभव के आधार पर स्थान के अनुकूल प्रक्रिया विकसित की जानी चाहिए जो समय की कसौटी पर सही उतरे।
इस देश में सिंचाई प्रबंधन की दो भिन्न व्यवस्थाएं चालू हैं एक जो बहुत पहले कृषक समुदाय द्वारा सामूहिक प्रयास से विकसित की गई और पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत रुप से हस्तांतरित होती रही और दूसरी अपेक्षाकृत आधुनिक बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के लिए सरकारी तंत्र द्वारा निकाली गई। पहली में कृषक की भागीदारी ही व्यवस्था का आधार है और दूसरी मूलतः कृत्रिम उपायों द्वारा संरक्षित है जिसमें किसानों की भागीदारी कुछ निश्चित फायदें उठाने तक ही सीमित है स्पष्टतः आज किसानों की पूरी और सही भागीदारी सुनिश्चित करना समय का तकाजा है। यह भागीदारी परियोजनाओं के नियोजन से लेकर संचालन तक होनी चाहिए।
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