झारखण्ड विधानसभा में उठा फ्लोराइड, आर्सेनिक का मामला

Submitted by RuralWater on Tue, 03/10/2015 - 11:02
मन्त्री ने कबूल किया कि अधिक मात्रा में है फलोराइड और आर्सेनिक

झारखण्ड के तकरीबन सभी जिले के भूगर्म जल दूषित हैं। गोड्डा, बोकारो, गिरिडीह, पलामू, गुमला, रामगढ़ और राँची जिले में फ्लोराइड की मात्रा अनुमान्य सीमा 1.5 पीपीएम से अधिक है, वहीं गोड्डा, पाकुड़, चतरा, गढ़वा, गुमला, लोहरदगा, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, राँची और साहिबगंज में 45 मिग्रा/ली से ज्यादा नाइट्रेट पाई गई है। इसी तरह देवघर, चतरा, पूर्वी सिंहभूम, गिरिडीह, राँची और पश्चिमी सिंहभूम जिले में ज़मीनी पानी में 1.0 मिग्रा/ली से ज़्यादा आयरन की मात्रा है। राँची। झारखण्ड के पेयजल एवं स्वच्छता मन्त्री चन्द्रप्रकाश चौधरी ने विधानसभा में विधायक राधाकृष्ण किशोर के अल्पसूचित प्रश्न के उत्तर में स्वीकार किया कि विभिन्न जल स्रोतों की जाँच के क्रम में गढ़वा, पलामू में फ्लोराइड की मात्रा अनुमान्य सीमा 1.5 पी.पी.एम से अधिक ​कतिपय स्रोतों में पाई गई है। जबकि साहिबगंज में आर्सेनिक की मात्रा कतिपय स्रोत पर अनुमान्य सीमा 0.01 पीपीएम से अधिक पाई गई है।

सदन में उन्होंने आशिंक रूप से स्वीकार किया कि बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमावर्ती जिलों में कई लोग फ्लोराइड एवं आर्सेनिक युक्त पानी पीने से विभिन्न प्रकार की गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हैं। इन जिलों में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता के सन्दर्भ में सदन को जवाब देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार की सीमा पर स्थित गढ़वा जिले में स्थित 126,पलामू में 170 पेयजल स्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा अनुमान्य सीमा 1.5 पीपीएम से अधिक पाई गई है। वहीं साहिबगंज जिले में मुख्य रूप से आर्सेनिक की मात्रा 125 पेयजल स्रोतों में अनुमान्य सीमा 0.01 पीपीएम से अधिक पाई गई है।

लघु अवधि के उपायों के तहत पलामू एवं गढ़वा में 119 स्थलों पर फ्लोराइड रिमुवल प्लांट लगाकर पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इसी प्रकार साहिबगंज जिले में 26 आर्सेनिक रिमुवल प्लांट लगाए गए हैं। पलामू तथा गढ़वा में 200 इलेक्ट्रॉनिक डिफ्लोराडेशन प्लांट तथा साहिबगंज जिले 125 आर्सेनिक रिमुवल प्लांट का अधिष्ठापन 2015-16 तक किया जाना है। ऐसे प्लांट के अधिष्ठापन के बाद 10 पैसे लीटर की लागत पर प्रति व्यक्ति 10 लीटर पेयजल की आपूर्ति ग्राम जल स्वच्छता समिति द्वारा किया जाएगा।

मन्त्री ने यह भी बताया कि गढ़वा जिले के प्रतापपुर में कोयल नदी से प्रतापपुर ग्रामीण जलापूर्ति के माध्यम से प्रतापपुर, दरनी, पतसा गाँवों में पेयजलापूर्ति की जा रही है। सतही कूप स्रोत द्वारा खूरी, हतनावाटोला, रामपुर टोला, रणपुरा, जाहरीकरण टोला, मसरा आदि गाँवों में जलापूर्ति सोलर पावर द्वारा की जा रही है।

पलामू जिले में शुद्ध पेयजलापूर्ति उपलब्ध कराने हेतु फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों में चैनपुर ग्रामीण जलापूर्ति योजना तथा कांकरी जलापूर्ति योजना चालू है जिससे 12 हजार की आबादी में पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। बारालोटा, चुकरू, विश्रामपुर, रेहला, आदि योजनाओं का क्रियान्वयन अगले दो-तीन वर्षों में पूरा किए जाने की सम्भावना है।

साहिबगंज जिले में आर्सेनिक की मात्रा गंगा के तट पर 125 अनुमान्य सीमा 0.01 पीपीएम से अधिक पाया गया है। वहाँ पर मेगापावर स्कीम का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस योजना से साहिबगंज, राजमहल, उधवा तथा बरहेह प्रखण्ड के 58 गाँवों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा सकेगा। यह योजना 2016 तक चालू होने की सम्भावना है।

झारखण्ड के तकरीबन सभी जिले के भूगर्म जल दूषित हैं। गोड्डा, बोकारो, गिरिडीह, पलामू, गुमला, रामगढ़ और राँची जिले में फ्लोराइड की मात्रा अनुमान्य सीमा 1.5 पीपीएम से अधिक है, वहीं गोड्डा, पाकुड़, चतरा, गढ़वा, गुमला, लोहरदगा, पलामू, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, राँची और साहिबगंज में 45 मिग्रा/ली से ज्यादा नाइट्रेट पाई गई है। इसी तरह देवघर, चतरा, पूर्वी सिंहभूम, गिरिडीह, राँची और पश्चिमी सिंहभूम जिले में ज़मीनी पानी में 1.0 मिग्रा/ली से ज़्यादा आयरन की मात्रा है।

गौरतलब है कि प्रतापपुर, चतरा में 2.42 पीपीएम, टण्डवा, चतरा 1.2 पीपीएम, चास, बोकारो में 2.14 पीपीएम, धरमपुर, पाकुड़ 1.21 पी.पी.एम, मोहना-हार, गढ़वा में 7.66 पीपीएम, सनकारपुर, चतरा में 2.17 पी.पी.एम,टोला प्र., गढ़वा में 5.23 पीपीएम, आई-टीडीपी, गढ़वा में 1.22 पीपीएम, जी-टोला, प्रतापपुर में 5.25 पीपीएम, दसानी, भण्डरिया में 1.59 पीपीएम फ्लोराइड की मात्रा है।

भूजल में खतरनाक रसायनों का प्रतिशत बढ़ रहा है। जिसकी वजह से पीने के पानी के साथ-साथ कृषि उत्पादों में भी जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक समेत अन्य रसायनों की मात्रा खतरनाक स्तर को भी पार कर चुकी है। इन रसायनों से हड्डी व मांसपेशियों के साथ-साथ स्नायुतन्त्र को भी नुकसान होता है।

झारखण्ड विधानसभा में फ्लोराइड और आर्सेनिक मुद्दे पर हुई बहस को पढ़ने के लिये अटैचमेंट देखें