प्रकृति ने जल से लेकर जंगल तक बिना किसी भेदभाव के अपनी सम्पदा मानव को दे दी थी और साथ ही अधिकार भी कि जो भी प्राकृतिक है वो तुम्हारा है। मनुष्य ने अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते प्राकृतिक जल के बँटवारे कर डाले और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोग बरसों से पानी-पानी करते जल का बँटवारा करते आ रहे हैं। महासागरों का बँटवारा हो सकता है तो हमारे देश की कावेरी नदी को बाँटना कोई बड़ी बात नहीं लगती।
16 फरवरी 2018 का दिन कावेरी के जल बँटवारे का खास दिन बन गया है। लगभग 120 सालों से भारत के तीन दक्षिणी प्रदेशों कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के बीच कावेरी जल बँटवारे को लेकर बने मतभेदों को किसी नतीजे पर पहुँचा दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अन्ततः अपना फैसला सुनाते हुए कावेरी से अपना-अपना पानी लेने के लिये चारों प्रदेशों को आदेश दे दिये हैं।
कावेरी जल विवाद पर आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार कावेरी नदी के 177.25 अरब क्यूबिक फीट पानी को तमिलनाडु, 284.75 अरब क्यूबिक फीट पानी को कर्नाटक, 30 अरब क्यूबिक फीट पानी को केरल और 7 अरब क्यूबिक फीट पानी को पुडुचेरी अपना पानी कहेगा।
पेयजल को सर्वाधिक महत्त्व देते हुए बंगलुरु के निवासियों की 4.75 अरब क्यूबिक फीट पेयजल एवं 10 अरब क्यूबिक फीट भूजल आवश्यकताओं के आधार पर कर्नाटक के लिये कावेरी जल का 14.75 अरब क्यूबिक फीट आवंटन बढ़ाया गया है। जबकि तमिलनाडु को न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 2007 में निर्धारित जल से 14.75 अरब क्यूबिक फीट पानी कम दिया जाएगा। कावेरी जल आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आगामी 15 वर्षों तक लागू रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया है कि वह तुरन्त अपने अन्तरराज्यीय बिलीगुंडलु बाँध से कावेरी नदी का निर्धारित जल तमिलनाडु के लिये छोड़े। इस तरह कावेरी का अपना-अपना पानी चारों प्रदेशों को मिल गया। अच्छा है विवाद सुलझ गया।
पिछले एक सौ बीस सालों से भारत के पश्चिमी घाट में स्थित कर्नाटक के तालकावेरी कोडगु से उद्भवित कावेरी पहाड़ी क्षेत्र से उतरकर केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी राज्यों के प्रमुख शहरों जैसे कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई से गुजरती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती थी, तो बरसों की अपने-अपने पानी की झिकझिक उसे उन्मुक्त कलकल ध्वनि भी नहीं करने देती थी। इतना मेरा पानी, इतना तुम्हारा पानी की रोज-रोज की किल्लत कावेरी के जल में खटास भरती गई।
लोगों ने कोवेरी को तमिलनाडु के 44000 वर्ग किलोमीटर और कर्नाटक के 32000 वर्ग किलोमीटर तटीय क्षेत्रों में कब का बाँट दिया था और उसके पानी पर अपना हक जताने के लिये व्यर्थ के विवादों में शतकीय समय बर्बाद कर दिया। कावेरी का पानी मुझे ज्यादा मिले के चक्करों में तमिलनाडु और कर्नाटक एक दूसरे के दुश्मन बन गए तथा केरल और पुडुचेरी भी इस दुश्मनी में शामिल हो गए।
इतिहास में बहुत कुछ ऐसा घटित हो जाता है, जो भविष्य के लिये नासूर बन जाता है। कावेरी का जल नासूर हो जाएगा शायद ही इसकी आशंका कभी दसवीं सदी में तमिलनाडु के उन चोल राजाओं को रही होगी, जिन्होंने सिंचाई के लिये कावेरी नदी पर चेक डैम और रिजर्वायर बनवा दिया था। तब से सिंचाई के लिये पूरी तरह से कावेरी नदी के पानी पर निर्भर तमिलनाडु की करीब 30 लाख एकड़ कृषि भूमि कावेरी के उतने पानी को अपना-अपना कहती रही है। इसके बाद जब इतिहास में 1934 में मैसूर रियासत ने पहली बार कृष्ण राज सागर नाम का पहला रिजर्वायर कावेरी पर बनवा दिया, तो तब से आज के कर्नाटक वाले कावेरी के उतने पानी को अपना-अपना मानने लगे।
ऐसे देखा जाये तो इतिहास कहता है कि तमिलनाडु और कर्नाटक का यह कावेरी नाटक लगभग 150 सालों से चला आ रहा है। अंग्रेजों ने भारत में भाषा से लेकर पानी तक ऐसा कोई विषय नहीं छोड़ा, जो आज भी हम भारतीयों को लड़वाता रहता है। समझौते यानि तथाकथित समझौते करना ब्रिटिश शासकों से ही भारत ने सीखा. कागज पर और, हकीकत में कुछ और। कावेरी के अपने-अपने पानी कहने के पीछे भी ब्रिटिश शासकों द्वारा 1892 में करावाया गया मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच कावेरी नदी के पानी के बँटवारे का समझौता अपनेआप में लड़ाई की जड़ ही था।
ब्रिटिश 1947 में भले ही चले गए, पर बहुत से ऐसे मसले छोड़ गए कि भारतीय अलग-अलग मामलों में प्रादेशिक स्तर पर आज भी झगड़ते रहते हैं और तत्कालीन ब्रिटिश शासकों की आत्माएँ तृप्त होती रहती हैं। ये अलग बात है कि स्वतंत्र भारत में जब संविधान का निर्माण हुआ, तो पानी जैसे विषय को भी संवैधानिक धाराओं में बाँधा गया था, जिससे भारतीय नागरिक, प्रशासन और सरकारें प्रदेश और देश के स्तर पर जल के अन्य स्रोतों के साथ-साथ नदियों के पानी को अपना कहने के पहले संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करें। देश की नदियाँ दो परिभाषाओं में बँट गईं एक ही राज्य के भीतर बहने वाली नदी अन्तराराज्यीय और दो या अधिक राज्यों से होकर बहने वाली नदी अन्तरराज्यीय कही जाने लगी। इस दृष्टि से कावेरी भारत की अन्तरराज्यीय नदी हुई।
भारतीय संविधान में इन अन्तरराज्यीय नदियों के पानी को लेकर कोई लड़ाई झगड़ा न हो या कि कोई विवाद न हो, इस बात की आशंका को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट शब्दों में देश के वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित समस्त प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने, उसे बेहतर बनाने और जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखने को मौलिक अधिकार का रूप प्रदान कर दिया। इसके बावजूद भी यदि कोई विवाद उत्पन्न हो जाता है तो उसको सुलझाने के लिये केन्द्र सरकार को अधिकार दिये गए हैं।
साथ ही संविधान में राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में जलस्रोतों जैसे उनके ही राज्य के भीतर बहने वाली किसी नदी से सम्बन्धित अपने कानून बनाने के अधिकार भी दिये गए हैं। किन्तु एक से अधिक राज्यों में बहने वाली अन्तरराज्यीय नदियों के लिये वैधानिक प्रावधान अलग हैं, क्योंकि इनसे सम्बन्धित कानून बनाने का अधिकार केन्द्र सरकार को दिया गया है।
इन परिस्थितियों में राज्य सरकारें ऐसी नदियों के पानी को अपना समझकर उपयोग करने के लिये संसद द्वारा तय की गई सीमाओं में बँधी होती हैं। कावेरी भी तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी राज्यों से लेकर केन्द्र सरकार और भारतीय संविधान के प्रावधानों में बँध गई थी। इस सबके बीच 1960 में कर्नाटक सरकार ने कावेरी की सहायक नदियों पर चार बड़े रिजर्वायरों का निर्माण करवाया तो तमिलनाडु के इस पर कड़े विरोध जताने के कारण कावेरी के जल को लेकर विवाद बढ़ने लगा। दोनों राज्यों में नदियों को लेकर बनाए गए कानूनों की खोजपटक शुरू हो गई।
भारत में नदियों को लेकर और भी कई नियम कानून हैं, जिनमें नदी बोर्ड अधिनियम-1956, अन्तरराज्यीय जल विवाद अधिनियम-1956, जल न्यायाधिकरण, पंचायती राज कानून की धारा 92 के अन्तर्गत ग्राम पंचायत को जल समितियाँ बनाने के अधिकार शामिल हैं। इन्हीं प्रावधानों के अन्तर्गत जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अन्तरराज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत इस मामले को सुलझाने के लिये आधिकारिक तौर पर केन्द्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किये जाने का निवेदन किया था।
हालांकि तत्कालीन केन्द्र सरकार आपसी बातचीत के माध्यम से इस विवाद को सुलझाना चाहती थी। लेकिन तमिलनाडु के किसानों की याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को इस मामले में न्यायाधिकरण गठित करने का निर्देश देना पड़ा था। अतः सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानते हुए केन्द्र सरकार ने 2 जून 1990 को ‘द कावेरी वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल’ नामक न्यायाधिकरण का गठन किया था। इसके बाद 1991 में न्यायाधिकरण ने एक अन्तरिम आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा।
हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा, यह भी तय किया गया लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ। इस बीच तमिलनाडु इस अन्तरिम आदेश को लागू करने के लिये जोर देने लगा। इस आदेश को लागू करने के लिये एक याचिका भी उसने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। इस तरह कावेरी का पानी अपने-अपने राज्यीय अधिकारों को पाने के लिये कानूनों के मन्दिरों में बहने लगा।
‘द कावेरी वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल’ ने 16 साल की सुदीर्घ सुनवाई के बाद 2007 में विवाद निपटाने के लिये कावेरी के पानी के अपने-अपने कहलाने वाले दावों को सुलझाने के लिये एक निर्णय दिया कि प्रतिवर्ष तमिलनाडु कावेरी के 419 अरब क्यूबिक फीट पानी को अपना कहेगा और कर्नाटक 270 अरब क्यूबिक फीट पानी को अपना कहेगा। वहीं केरल और पुडुचेरी क्रमशः 30 अरब क्यूबिक फीट और 7 अरब क्यूबिक फीट पानी को अपना-अपना कहेंगे। कावेरी बेसिन में 740 अरब क्यूबिक फीट पानी मानते हुए ट्रिब्यूनल’ ने यह फैसला दिया था।
लेकिन विडम्बना यह हुई कि कर्नाटक के मंड्या और मैसूर जिले एवं तमिलनाडु के तंजावुर, तिरुवरुर, नागपट्टनम और इरोड जिलों में कावेरी के पानी का फसलों की सिंचाई में सर्वाधिक उपयोग करने वाले लोगों से लेकर अन्य कावेरी प्रेमियों तक की प्यासें इन अपने-अपने मिलने पानी से बुझना नहीं चाहती थीं और अहंकार आड़े आये।
कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में विशेष समीक्षा याचिका दायर हो गई। अपने पानी की लगभग 95 प्रतिशत मात्रा उपयोग करवाने वाली देश की एकमात्र 802 किलोमीटर लम्बी कावेरी, दक्षिण भारत की सिंचाई का प्रमुख साधन कावेरी, मानसून पर निर्भर कावेरी एक बार फिर इंसाफ की चाह में कराहने लगी।
पाँच साल बाद सन 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले कावेरी नदी प्राधिकरण ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वो रोज तमिलनाडु को नौ हजार क्यूसेक पानी दे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्नाटक को फटकार लगाते हुए कहा कि वो इस फैसले पर अमल नहीं कर रहा है। कर्नाटक सरकार ने इसके लिये माफी माँगी और पानी जारी करने की पेशकश की। लेकिन इसे लेकर वहाँ हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।
कावेरी के पानी में अब हिंसा का सैलाब भी मिलने लगा था, विवाद सुलझने के बजाय उलझने लगा था। कावेरी अपने-अपने पानी के झगड़े के साथ एक बार फिर कर्नाटक के पानी रोक देने की बात को लेकर तमिलनाडु की तरफ से अगस्त में सुप्रीम कोर्ट पहुँचा दी गई। तमिलनाडु का कहना था कि ट्रिब्यूनल के निर्देशों के अनुसार उसे पानी दिया जाये। तब पुनः अदालत ने कर्नाटक सरकार से कहा अगले 10 दिन तक तमिलनाडु को 12 हजार क्यूसेक पानी देने का आदेश दिया। लेकिन इससे कर्नाटक में लोग फिर सड़कों पर उतर आये। कावेरी सड़कों पर आ गई थी और आदेश परिहास की सीमाओं में।
5 सितम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने फिर एक आदेश जारी करते हुए कर्नाटक को निर्देश दिया कि वह लगातार 10 दिन तक तमिलनाडु को 15 हजार क्यूसेक पानी की आपूर्ति करें। इस पर कर्नाटक सरकार ने कावेरी ट्रिब्यूनल के आदेश में रद्दोबदल के लिये सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए तमिलनाडु को 20 सितम्बर 2016 तक हर दिन 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश पारित कर दिया। लेकिन कर्नाटक ने अपनी जरूरतों और पानी की किल्लत का हवाला देते हुए तमिलनाडु को पानी देने से मना कर दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 2016 को अपने अगले आदेश तक कर्नाटक सरकार से तमिलनाडु के लिये हर दिन 2 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया।
अब कावेरी अपने पानी को लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और राज्य सरकारों की अवमाननाओं के बीच बहने लगी। तभी 9 जनवरी 2017 को एक नया मोड़ आया जब तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पहुँचकर आरोप लगाया कि कर्नाटक सरकार ने उसे पानी नहीं दिया इसलिये उसे 2480 करोड़ रुपए का हर्जाना मिलना चाहिए। कावेरी का पानी सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में लगभग आठ माहों तक बहते-बहते सूखने को था कि तभी 20 सितम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
आज 16 फरवरी, 2018 को कावेरी को इंसाफ मिला है, ऐसा कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि नदी पर किसी का अधिकार नहीं होता। कोर्ट ने अपने हिसाब से राज्यों को उनका अपना-अपना पानी फिर से बाँट दिया है। पर राज्यों की प्यासें मिटेंगी या नहीं भविष्य की घटनाएँ बताएँगी। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल फिर चारों प्रदेशों को कावेरी का अपना-अपना पानी देना चाहा है। जबकि यह कितना बड़ा सच है कि कावेरी ने कभी अपने पानी में किसी को नहीं बाँटना चाहा।
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