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काव्य संचय- (कविता नदी)
चट्टानों से चूर-चूर होने का नाटक
चट्टानों को बहलाने के लिए नहीं है
पाला पड़ा
जनम लेते ही
चट्टानों से
पानी की चट्टानें भी
चट्टाने ही हैं
फिर आते गिरि-गह्वर, समतल
और विषम भी
आएगी फिर कोख
कंदरा-मग्न कपिल भी
फिर आएँगे सगर-पुत्र
फिर पछताएगी
पूरी वंशावली...और फिर
दुहराएगी वही कथा
फिर?
फिर क्या होगा?
मत पूछो यह
कहा
नदी ने।
चट्टानों को बहलाने के लिए नहीं है
पाला पड़ा
जनम लेते ही
चट्टानों से
पानी की चट्टानें भी
चट्टाने ही हैं
फिर आते गिरि-गह्वर, समतल
और विषम भी
आएगी फिर कोख
कंदरा-मग्न कपिल भी
फिर आएँगे सगर-पुत्र
फिर पछताएगी
पूरी वंशावली...और फिर
दुहराएगी वही कथा
फिर?
फिर क्या होगा?
मत पूछो यह
कहा
नदी ने।