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भूमनेश्वर यानि भूमि से निकला हुआ जलधारा और मूर्ति। पवनेश्वर यानि हवा के जैसे उड़कर दूसरी जगह पर स्थापित होना और वहाँ भी जलधारे व मूर्ति के रूप में प्रकट होना। ऐसे नामों से दो जलधारे हैं उत्तरकाशी के मोल्डा और पौंटी गाँव में।
मोल्डा गाँव का भूमनेश्वर जलधारा व पौंटी गाँव का पवनेश्वर जलधारा वर्तमान में संकट से गुजर रहे हैं। कई मर्तबा ग्रामीणों ने इन जलधारों का सौन्दर्यीकरण सीमेंट से पोतकर किया है। ग्रामीणों का कहना है कि जब से इन जलधारों पर सीमेंट पोता गया और जलधारों के नजदीक गन्दगी का अम्बार होने लग गया, तब से जलधारे सूखने की कगार पर आ गए हैं। एक सवाल के जबाव में ग्रामीणों ने बताया कि वे अब पेयजल के लिये पाइप लाइन पर ही निर्भर हो चुके हैं। समाज ने ही ‘जल की संस्कृति’ कायम की है, चाहे उन्हें तीर्थाटन के रूप में हो या ‘जलस्रोतों’ को देवतुल्य मानते हुए पूजनीय माना हो। परन्तु वर्तमान की हालातों पर गौर करें तो लोक समाज में मौजूद जल संरक्षण की लोक संस्कृति पीछे छूटती जा रही है।
यही वजह है कि अब गाँव, कस्बों व बसासतों में आये दिन ‘जल संकट’ उभरकर आ रहा है। हालात इस कदर है कि लोग पाइप लाइन पर ही निर्भरता बढ़ा रहे हैं, और तो और ‘जल संरक्षण’ के पुरातन आयामों को बजट के रूप में देखा जा रहा है। कारण इसके इस बजट से पानी की महत्ता कम ही होती जा रही है और जलभण्डारण यानि भूजल घटता ही जा रहा है।
ज्ञात हो कि जल संकट के और कई कारण हो सकते हैं। यहाँ हम ऐसे जलधारे की बात कर रहे हैं जिसका जब ऐतिहासिक महत्त्व था तब उसमें पानी की धारा अविरल बहती थी, मगर जब से लोगों ने इस जलधारे की आध्यात्मिक महत्ता को एक बजट के अनुरूप सौन्दर्यीकरण के नाम पर बाँध दिया तब से यह जलधारा सूख ही गया है।
यह जलधारा है उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के सुदूर गाँव मोल्डा में। आज इस जलधारे में पानी की बूँद तक नहीं दिखाई देती। मगर इसकी नक्काशी बताती है कि कभी यह भूमनेश्वर नाम का जलधारा मोल्डा गाँव की शोभा ही नहीं बढ़ाता होगा बल्कि जलधारे के पानी से गाँव की खुशहाली भी झलकती होगी।
मोल्डा गाँव यमुना नदी के दाहिने छोर पर लगभग 8000 फीट की ऊँचाई पर बसा हुआ है। अभी कुछ वर्ष पहले गाँव तक मोटर मार्ग पहुँच चुका है। गाँव में पहुँचने पर सूखे हुए भूमनेश्वर जलधारे से पहला परिचय होता है। जो भी आगन्तुक इस सूखे हुए जलधारे को देखता है वे एक बारगी कह देता है कि वाह! इस धारे पर पत्थर से की गई नक्काशी तो बहुत सुन्दर है, परन्तु पानी इसमें बहता क्यों नही? ऐसा सवाल अमुक आगन्तुक के मन में कौतुहल का विषय बन जाता है। बता दें कि इस क्षेत्र में इस भूमनेश्वर जलधारे के बारे में एक दन्त कथा विद्यमान है।
बताया जाता है कि सहस्त्रबाहु राजा की स्थली बड़कोट नामक स्थान पर हुआ करती थी। जो जगह यमुना नदी की बाईं ओर एक रमणीक स्थल है। तत्काल राजा की गायें मोल्डा नामक स्थान पर चुगने जाती थीं। इन गायों में सबसे अच्छी नस्ल व दुधारू जो थी, वह कुछ समय से घर पर दूध देना कम कर रही थी। राजा ने ग्वालों से भी जानने की कोशिश की, परन्तु कुछ पता नहीं चल पाया। सहस्त्रबाहु राजा ने अन्य चौकीदारों को ग्वालों के साथ उक्त स्थान पर जाँच-पड़ताल हेतु भेजा।
इस दौरान ग्वालों ने देखा कि उक्त गाय तो मोल्डा नामक गाँव में एक देवदार के वृक्ष के समीप अपने थन से दूध छोड़ देती है। राजा को यह सब उन ग्वालों के साथ भेजे गए दूतों से मालूम हुआ। तत्काल राजा ने उक्त स्थान को नष्ट करने के आदेश दे दिये। राजा के कर्मचारी मोल्डा नामक स्थान पर पहुँचकर नष्ट करने के लिये जमीन पर कुदाल और पास के देवदार के पेड़ पर कुल्हाड़ी चलानी आरम्भ कर दी।
बताते हैं कि तुरन्त उस जमीन से दो साँप निकले जो धरती पर आकर मूर्ति के रूप में प्रकट हुए साथ ही एक पानी की जलधारा भी फूट पड़ी। तब से इस जलधारा को ‘नाग देवता का पानी’ कहते हैं और भूमनेश्वर इसलिये कहते हैं कि भूमि से यह मूर्तियाँ व जलधारा उत्पन्न हुई हैं। इस प्रकार राजा ने उक्त स्थान को ‘देव स्थान’ के रूप में पूजना आरम्भ किया।
इस दन्त कथा के अनुसार इन दो मूर्तियों में से एक मूर्ति पास के चार किमी के फासले पर पाैंटी गाँव में उड़कर गई, जिसे वहाँ पवनेश्वर जलधारा कहते है। पौंटी गाँव में भी पत्थर पर की गई नक्काशीदार पानी का जलधारा है। जिसकी नक्काशी भी नाग के जैसी ही है। मोल्डा गाँव में भी इस धारा की नक्काशी नाग जैसी ही है। भले इस जलधारा में वर्तमान समय में पानी नहीं आ रहा है, परन्तु बगल में जहाँ पत्थरों के बीच में पाइप लगा रखा है, वहाँ यह पानी बारहमास एक रूप में बहता है।
मोल्डा गाँव में ग्राम देवता के जेष्ठ पुजारी बुद्धिराम बहुगुणा ने बताया कि बगल का पानी नाग देवता के जलधारे से ही परिवर्तित किया गया था, ताकि देवता का पानी स्वच्छ व साफ रहे, किन्तु धारे (नौले) की अस्वच्छता के कारण पानी भी सूख गया है। दूसरे पुजारी देवी प्रसाद बहुगुणा मानते हैं कि इस जलधारे का शुद्धिकरण करना पड़ेगा, तत्पश्चात ही नाग देवता के जलधारे की पहले की रौनक वापस लौट पाएगी।
मोल्डा गाँव का भूमनेश्वर जलधारा व पौंटी गाँव का पवनेश्वर जलधारा वर्तमान में संकट से गुजर रहे हैं। कई मर्तबा ग्रामीणों ने इन जलधारों का सौन्दर्यीकरण सीमेंट से पोतकर किया है। ग्रामीणों का कहना है कि जब से इन जलधारों पर सीमेंट पोता गया और जलधारों के नजदीक गन्दगी का अम्बार होने लग गया, तब से जलधारे सूखने की कगार पर आ गए हैं। एक सवाल के जबाव में ग्रामीणों ने बताया कि वे अब पेयजल के लिये पाइप लाइन पर ही निर्भर हो चुके हैं।
पाइप लाइन में भी गर्मियों में पानी नहीं आता है। अर्थात जल संकट तो बढ़ता ही जा रहा है। पौंटी गाँव के राघवानन्द बहुगुणा, जगवीर भण्डारी, जयप्रकाश बहुगुणा बताते हैं कि उन्होंने कभी भी भूमनेश्वर और पवनेश्वर जलधारे को सूखते हुए नहीं देखा। वनिस्बत इसके कि जल संरक्षण के नाम से जब योजनाएँ गाँव-गाँव आने लगी, तब से पानी के ये प्राकृतिक जलस्रोत सूखने के कगार पर आ गए हैं। बताते हैं कि वे इन जलधारों की माह की प्रत्येक संक्रात को पूजा भी करते थे और साफ-सफाई भी ग्रामीण सामूहिक रूप से करते थे। पर अब तो ग्रामीण भी जल संरक्षण की परवाह न करते हुए बजट पर ही निर्भर हो गए हैं।
कुल मिलाकर सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के मोल्डा और पौंटी गाँव के भूमनेश्वर व पवनेश्वर जलधारे सूखने की कगार पर आ चुके हैं। इन जलधारों के संरक्षण के लिये गाँव में बजट भी आ रहा है। जल संरक्षण के काम भी हो रहे हैं। पर पानी की मात्रा तो अब सूख ही गई है। फिर से इन ऐतिहासिक जलधारों में पानी आएगा कि नहीं यह हालात ग्रामीणों और सम्बन्धित विभाग के लिये सवाल खड़ा कर रहा है।