कमजोर इमारतें कहीं ज्यादा प्राणघाती (Weak buildings more deadly)

Submitted by Hindi on Sun, 05/03/2015 - 15:24
Source
हस्तक्षेप राष्ट्रीय सहारा, 02 मई 2015
उस पर भारत में पसरी है भवन निर्माण सम्बन्धी तमाम विसंगतियाँ
आपादा पर उत्तराखंड की आवाज भारतीय संदर्भ में भूकम्प के मद्देनजर भवन निर्माण सम्बन्धी स्थितियाँ बेहद खराब और चिन्तनीय हैं। दिल्ली में ही करीब 80 प्रतिशत भवनों का निर्माण नियमों की अनदेखी करके किया गया है। कहना है कि सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वॉयरन्मेंट) का। सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी, जो इस संस्था की ‘ग्रीन बिल्डिंग’ कार्यक्रम की प्रमुख भी हैं, कहती हैं कि निर्माण सम्बन्धि विनियमनों की कमी और मौजूदा विनियमनों की निगरानी के अभाव में राष्ट्रीय राजधानी में इमारतों का खासा बड़ा हिस्सा सुरक्षित नहीं है। दिल्ली स्थित स्वैच्छिक संगठन सीएसई ने असुरक्षित भवनों का निर्माण और भूकम्पीय मुद्दों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।

अनुमिता रायचौधरी कहती हैं, ‘नेपाल और भारत में हालिया भूकम्प के कारण बड़ी संख्या में मौतें होने के मद्देनजर हमें अपनी इमारतों की दशा पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। विचारना चाहिए कि ये मामूली से उच्च क्षमता के भूकम्प झेलने में कितनी सक्षम हैं।’

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि बीते 25 वर्षों के दौरान भूकम्पों के कारण इमारतों के गिरने से 25 हजार से ज्यादा लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। सीएसई के वरिष्ठ रिसर्च एसोसिएट अविकल सोमवंशी कहते हैं, ‘भूकम्प को झेल लेने के लिहाज से भारतीय इमारतों और अन्य निर्माणों की गुणवत्ता की हालत बेहद खराब है। सच तो यह है कि रिइन्फोर्स्ड कंक्रीट (आरसीसी) से बने भवन तक भूकम्पीय झटकों को झेलने की दृष्टि से कोई ज्यादा उम्मीद नहीं बंधाते।’ सोमवंशी बताते हैं कि 2001 में भूज में आए भूकम्प के दौरान आरसीसी बिल्डिंग्स रिक्टर पैमाने पर 6 क्षमता वाले भूकम्प तक को नहीं झेल पाईं और भरभरा कर डह गई जबकि अच्छे से निर्मित किसी आरसी बिल्डिंग को रिक्टर पैमाने पर 7.5 क्षमता के भूकम्प को भी सहज ही झेल जाने में सक्षम होना चाहिए। भारत में इन इमारतों के गिरने की घटनाएँ अन्य देशों में इसी प्रकार के भूकम्पन से भवनों के भरभरा कर गिरने की घटनाओं से कहीं ज्यादा है। इसलिए जरूरी है कि देश में आवासन क्षेत्र के समक्ष दरपेश जोखिम को कम से कम किया जाए ताकि भविष्य में भूकम्पों से जान-माल को हो सकने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सके।

भूकम्प नियमन


मिट्टी-गारे या मामूली राजमिस्त्री द्वारा बनाई गईं इमारतों से लेकर अत्याधुनिक तौर-तरीकों से निर्मित भावनों तक के लिए भारत में तमाम भूकम्पीय नियम-कायदे हैं। सोमवंशी कहते हैं, ‘भूकम्प से सुरक्षा के लिए जरूरी है कि हमारे पास नियमन सम्बन्धी निगरानी तन्त्र मजबूत हो। नियम-कायदों को सख्ती से लागू कराया जाना जरूरी है। तमाम निर्माण कार्यों में डिजाइन सम्बन्धी संहिता के प्रावधानों को अच्छे से लागू कराया जाना चाहिए। लेकिन हम देखते हैं कि अपने यहाँ इमारतों के भूकम्प न आने की सूरत में भी जब-तब भरभरा कर गिरने की घटनाओं का सिलसिला जारी रहता है। इससे पता चलता है कि किस लचर तरीके से नियम-कायदों को लागू कराया जा रहा है।’

नई व्यवस्थाएँ


नई भवन संहिता को नए भवनों के लिए ही लागू किया जा सकता है, इसलिए जरूरी है कि पहले से बनीं मौजूदा इमारतों को भी भूकम्पीय दृष्टि से सुरक्षित करने के लिए नई व्यवस्थाएं बनाई और लागू की जाएं। दिल्ली में एसी पुरानी इमारतों की संख्या कोई 25 लाख है। हालाँकि इनके लिए नई व्यवस्थाएं और प्रावधान हैं, लेकिन बड़े स्तर पर उन्हें लागू करने की गरज से न तो कोई सर्वेक्षण किया गया है और न इस प्रकार का कोई प्रयास ही किया गया है। सोमवंशी कहते हैं, ‘दिल्ली में भवनों के 90 प्रतिशत डिजाइन या तो राजमिस्त्री तैयार करते हैं या ठेकेदार। बहुत कम होता है कि नए भवनों के लिए नेशनल बिल्डिंग कोड- 2005, दिल्ली के मास्टर प्लान- 2021, वल्नरेबिलिटी एटलस-2006, भवन निर्माण सम्बन्धी उपनियमों या आवास निर्माण, आयोजना, विकास एवं नियामक प्राधिकरणों द्वारा निर्दिष्ट तरीकों के तहत किये जाते हों।’

सीएसई ने ध्यान दिलाया है कि दिल्ली मे अवैध निर्माण और जमीन के दुरुपयोग के विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के लिए 2006 में गठित तेजेंद्र खन्ना कमेटी का निष्कर्ष था कि करीब 80 प्रतिशत निर्माणों में भवन एवं विकास नियन्त्रण सम्बन्धी विनियमनों की अनदेखी की गई कमेटी का कहना था कि भवन निर्माण के लिए आयोजना की मंजूरी या निर्माण कार्य पूरा हो चुकने पर प्राप्त किए जाने वाले प्रमाण पत्र को हासिल करने में इतना समय लगता है कि भवन निर्माण कराने वाले इन्हें हासिल कर सकने में ही खैर समझते हैं।

अप्रैल 2011 में दिल्ली सरकार ने सभी बिल्डरों के लिए अनिवार्य कर दिया था कि नये भवनों के लिए निर्माण सम्बन्धी सुरक्षा प्रमाण पत्र के साथ ही अनुमत भवन के योजना सम्बन्धी कागजात जमा करें। इतने भर से ही सम्पत्ति का पंजीकरण कराने वाले आवेदकों की संख्या में खासी कमी हो गई। दस दिन पश्चात दिल्ली नगर निगम ने सरकार को सूचित किया कि उसके पास इंजीनियरों की संख्या इतनी नहीं है कि इस बाबत प्रमाणपत्र निर्गत कर सके। सो, इस आदेश को वापस ले लिया गया।

स्वीकृतियाँ


जब स्वीकृति या मंजूरी लेने की बात आती है, तो देखा गया है कि ज्यादातर बिल्डर केवल भूतल के लिए ही स्वीकृति हासिल करते हैं। डाउन टू अर्थ को एक ठेकेदार ने बताया, भूतल के लिए कंप्लीशन और ऑक्यूपेंसी प्रमाण पत्र हासिल कर लेने के बाद चार से पाँच तलों का निर्माण कराया जाता है। उसने बेलाग बताया, ‘ आयोजन सम्बन्धी नियमों, उपनियमों और सुरक्षा मानकों का पालन करें तो बेशकीमती फ्लोर स्पेस का ही नुकसान हो जाएगा। इन छोटी से मध्यम स्तर की परियोजनाओं में वित्तीय दृष्टि से खासा जोखिम रहता है, इसलिए बिक सकने वाले फ्लोर एरिया को तैयार करना पड़ता है’।

मानवशक्ति का अभाव


स्थानीय निकायों के लिए अनिवार्य है कि कम्पलीशन और ऑक्यूपेंसी प्रमाणपत्र जारी करने से पूर्व स्वीकृत नक्सों के अनुसार निर्माण हो चुकने की पुष्टि करें नेशनल बिल्डिंग कोड 2005 में प्रावधान है कि अनुमत नक्शों के अनुसार निर्माण न किए जाने कि स्थिति में निर्माण कार्य को स्थगित किया जा सकता है।अवैध तरीके निर्माण को ढहाने के बाद जरूरी बदलाव कर देने के पश्चात ही प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर गौर किया जा सकता है। शहरी स्थानीय निकायों का दावा है कि इस बाबत निरीक्षण आमतौर पर नहीं हो पाता क्योंकि उनके पास स्टाफ की खासी कमी रहती है।

(सीएसई की रिपोर्ट)