करोड़ों का सरकारी खर्च, आदिवासी बच्चे प्यासे

Submitted by RuralWater on Fri, 01/13/2017 - 15:36

बच्चों को पीने के पानी के लिये पूरे साल भटकना पड़ता है। यहाँ सड़क के पार गाँव में जाकर बच्चों को पानी पीना पड़ता है। कई बार बच्चे तेज रफ्तार वाहनों से दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाते हैं। बिलिडोज के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में दो बार हैण्डपम्प के लिये खुदाई हो चुकी है, लेकिन बच्चों की किस्मत में यहाँ भी पानी नहीं है। एक में पानी नहीं निकला तो दूसरे पर अब तक उपकरण ही नहीं लग सका है। इसी तरह हक्कू फलिया कुंडला के प्राथमिक विद्यालय में भी अब तक बच्चे उपकरण के इन्तजार में हैं।

मध्य प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों की प्यास बुझाने के लिये प्रदेश की सरकार ने स्कूल परिसर में ही जगह-जगह हैण्डपम्प खनन करवाए हैं। लेकिन आदिवासी इलाके के स्कूल परिसरों में से कई जगह इन हैण्डपम्पों का लाभ यहाँ के स्थानीय आदिवासी बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। बच्चों को मध्यान्ह भोजन के बाद पानी पीने के लिये आधे से एक किमी तक यहाँ-वहाँ भटकना पड़ रहा है। सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी आदिवासी बच्चे प्यासे ही हैं।

गुजरात की सीमा से सटे झाबुआ जिले के राणापुर इलाके में कुछ गाँवों से गुजरते हुए भरी दोपहरी में कुछ बच्चों को यहाँ-वहाँ भटकते देखा तो यह सवाल लाजमी ही था कि वे स्कूल चलने के समय में इस तरह कहाँ भटक रहे हैं। लेकिन उनके जवाब ने हमें ही मुश्किल में डाल दिया। उन्होंने बताया कि वे अध्यापक की अनुमति से पानी की तलाश में आधा किमी दूर पहाड़ी पर स्थित हैण्डपम्प पर पानी पीने जा रहे हैं। हम लोग उनकी इस बात की तस्दीक करने स्कूल पहुँचे तो हकीकत सामने आ गई।

बच्चों की बात शत-प्रतिशत सही थी कि वे पानी की तलाश में ही पहाड़ी की ओर जा रहे थे। शिक्षकों ने बताया कि सरकार ने बाकायदा हर स्कूल परिसर में बच्चों को पानी उपलब्ध कराने के लिये हैण्डपम्प खुदवाए हैं। इस पर करोड़ों रुपए का खर्च भी हुआ है, लेकिन कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से स्थिति यह है कि बच्चों को पानी के लिये अपने स्कूल से दूर तक जाना पड़ता है।

झाबुआ जिले में यह किसी एक स्कूल की परेशानी नहीं है, बल्कि जिले के अधिकांश स्कूलों की कमोबेश यही स्थिति है। कहीं बच्चे पानी के लिये दूसरे फलियों तक जाने को मजबूर हैं तो कहीं दूर पहाड़ियों पर जाना पड़ रहा है। कहीं सड़क पार कर पानी के लिये जाना पड़ता है तो कहीं गाँव में जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कई बार बच्चे हादसे का शिकार भी हो जाते हैं। अब तक आधा दर्जन से ज्यादा हादसे जिले के ग्रामीण क्षेत्र में हो चुके हैं, जिनमें पानी लेने जा रहे बच्चे दुर्घटनाग्रस्त भी हुए हैं, लेकिन आदिवासी इनकी शिकायत तक नहीं कर सके हैं।

जिले के हाईस्कूल कालापीपल में बीते कई महीनों से हैण्डपम्प बन्द पड़ा है। इस वजह से यहाँ के विद्यार्थियों को पीने के पानी के लिये यहाँ से करीब एक किमी दूर नीचे पहाड़ियों के बीच लगाए गए हैण्डपम्प तक जाना पड़ता है। गर्मियों के दिनों में तो यह हैण्डपम्प भी बन्द हो जाया करता है। ऐसे में गर्मी की छुट्टी लगने के आसपास दो-तीन महीने (फरवरी, मार्च और जून के महीने) इन विद्यार्थियों को पानी के लिये दूर-दूर भटकना पड़ता है। एक तरफ सरकार स्कूलों में हर सम्भव सुविधाएँ जुटाने के लिये जतन करती नहीं थकती, वहीं कुछ अधिकारियों के लालच की वजह से यहाँ आदिवासी बच्चों को पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधा से भी महरूम होना पड़ रहा है।

इसी तरह अमली फलिया गाँव के माता फलिया स्थित प्राथमिक विद्यालय के सामने लगा हैण्डपम्प लम्बे समय से बन्द पड़ा है। इतना ही नहीं इसका सीमेंट से बना प्लेटफार्म भी पूरी तरह से उखड़ चुका है। कुछ बड़े बच्चे तो गाँव में जाकर पानी पी लेते हैं लेकिन प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले ज्यादातर विद्यार्थी इतने छोटे होते हैं कि उन्हें अपने पानी का इन्तजाम करने के लिये शिक्षक कहीं भेज भी नहीं सकते। ऐसी परिस्थिति में शिक्षकों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इसी के पास एक गाँव है-बडलीपाड़ा। इस गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय के ठीक सामने हैण्डपम्प का प्लेटफार्म तो नजर आता है लेकिन बीते कई महीनों से यहाँ हैण्डपम्प का उपकरण ही नदारद है। ग्रामीणों से बात की तो पता लगा कि पानी नहीं आने से ग्रामीणों ने इसकी शिकायत अधिकारियों से की थी। इसके बाद कुछ लोग इसे सुधारने आये और कुछ घंटों में इसका उपकरण लेकर यह कहते हुए चले गए कि पाइप बढ़ाकर इसे चालू करेंगे। तब से अब तक न तो वे लौटे और न ही यहाँ हैण्डपम्प के उपकरण को लगाया गया। यहाँ के बच्चों को पीने के पानी के लिये पूरे साल भटकना पड़ता है। यहाँ सड़क के पार गाँव में जाकर बच्चों को पानी पीना पड़ता है। कई बार बच्चे तेज रफ्तार वाहनों से दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाते हैं।

बिलिडोज के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में दो बार हैण्डपम्प के लिये खुदाई हो चुकी है, लेकिन बच्चों की किस्मत में यहाँ भी पानी नहीं है। एक में पानी नहीं निकला तो दूसरे पर अब तक उपकरण ही नहीं लग सका है। इसी तरह हक्कू फलिया कुंडला के प्राथमिक विद्यालय में भी अब तक बच्चे उपकरण के इन्तजार में हैं।

शिक्षकों से बात की तो उनका कहना है कि जिले में सरकारी पैसों से स्कूल परिसरों में हैण्डपम्प खोदे जाने के लिये जिस निजी कम्पनी फर्म वाले लोग आये थे, उन्होंने हमसे इस बारे में कभी कोई बात नहीं की और न ही इस बारे में कोई राय गाँव वालों से ली गई। ज्यादातर मशीनें रात के अन्धेरे में आई और अपनी मनमर्जी से जहाँ चाहा और जितना चाहा, खोदकर चली गई, इसके बाद जब इन पर पाइप लगाने की बारी आई तब भी कुछ ही पाइप लगाकर कर्तव्यों की इति श्री कर दी गई।

यही कारण है कि बारिश के चन्द महीनों के बाद ही ये हैण्डपम्प दम तोड़ देते हैं। कुछ जगह तो हैण्डपम्प में पाइप ही नहीं हैं तो कहीं पूरी तरह बन्द पड़े हैं। इस मामले में पंचायत के सरपंच–सचिव भी यही बात दोहराते हैं कि बीते साल रातों रात हैण्डपम्प खोदे गए और इस बारे में उनसे भी कोई सलाह–मशविरा नहीं किया गया।

इलाके में काम कर रहे एक जन संगठन के कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि इसमें बड़ा घोटाला हुआ है। यह पूरा करोड़ों रुपए और उसके कमीशन का खेल है। इसमें कुछ अधिकारियों ने अपने चहेते लोगों को उपकृत करने के लिये मनमानी करने की छूट दे दी। इसी वजह से जहाँ जैसा चाहा, वहाँ वैसा करके पूरी राशि को कागजों पर तो खर्च कर दी गई लेकिन हकीकत में जमीन पर बहुत ही कम दाम में सब कुछ हो गया। अब जहाँ के हैण्डपम्प नहीं चलते, अधिकारी इसके लिये जल स्तर कम ही जाने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। जबकि बात दूसरी है और वे भी यह बात जानते हैं पर... यहाँ स्कूलों में ज्यादातर सामान निजी सप्लायर के जरिए आता है। हैण्डपम्प के मामले में भी ऐसा ही है।

जिले के अधिकारियों से जब इस सम्बन्ध में बात की तो उन्होंने कहा कि हमें इसकी जानकारी ही नहीं है, आपने बताया है तो हम इसकी जाँच करा लेते हैं कि कहाँ-कहाँ स्कूली बच्चों को पानी नहीं मिल पा रहा है।