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भगीरथ - जुलाई-सितम्बर 2012, केन्द्रीय जल आयोग, भारत
मृदा और जल के संरक्षण और भूजल स्तर के पुनर्भरण के लिये गहरी सतत कंटूर ट्रेंच अत्यधिक प्रभावशाली है। इसके अतिरिक्त, कंटूर ट्रेचिंग के कारण वर्धित आर्द्रता की उपलब्धता पर्वत के ढलान पर वनस्पति कवर की स्थापना हेतु सहायता करती है। इन तथ्यों पर विचार करते हुए गहरी कंटूर ट्रेंच करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में उपयोगी थी। वर्ष 1999-2000 के लिये वर्षा-ऋतु आँकड़ों के पता चला कि अधिकांश वर्षों के दौरान कम वर्षा, औसत से कम वर्षा हुई थी।
वर्ष 2009-10 के दौरान, महाराष्ट्र राज्य में करवाड़ी नंदापुर जलसम्भर (वाटरशेड) पर जलसम्भर विकास कार्यक्रम लागू किया गया। इसके परिणाम काफी प्रोत्साहनपूर्ण रहे, जैसा कि भूजल-स्तर में वृद्धि, मृदा-हानि में कमी, वर्धित फसल उत्पादकता, कृषकों की आय में वृद्धि इत्यादि से स्पष्ट होता है।करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर (19 डिग्री 35’50” उत्तर अक्षांश और 77 डिग्री 14’33” पूर्व देशान्तर तथा समुद्रतल एम.एस.एल. से 481 मीटर ऊपर) महाराष्ट्र राज्य में ग्राम नंदापुर, तहसील कलामनुरी, जिला हिंगोली के बहुत निकट स्थित है। यह कयाधू नदी का एक लघु जल-सम्भर है और पी.पी.जी. -08/01/13 लघु जल-सम्भर का उप-जल सम्भर है। यह जल सम्भर अर्ध-शुष्क उष्ण कटिबन्ध में आता है। कलामनुरी सेशन, जो इस जल सम्भर से लगभग 20 किलोमीटर दूर है, की औसत वार्षिक वर्षा 650-700 मिलीमीटर है। दक्षिण-पश्चिम मानसून जून से सितम्बर के दौरान, वर्षा का प्रमुख स्रोत है।
इस जलसम्भर में अधिकांश मृदा अपनी प्रकृति में अत्यधिक छिछली से लेकर गहरी और काली होती है। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में प्रमुख समस्या जल के उपलब्ध न होने की है। तथापि, पहाड़ों के निचले स्तर पर मृदा अत्यन्त हल्की होती है। वर्ष 2009 और 2010 के दौरान, जनवरी के बाद से अधिकतर वेल और ओपन वेल जून तक शुष्क रहे हैं। भूजल-स्तर कम हो गया, जिसके कारण पेयजल तथा फसलों की सिंचाई की समस्याओं को सुलझाना सम्भव नहीं था। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के किसान खरीफ की ऋतु में केवल एक फसल ही उगाने में समर्थ हो पाये थे।
रबी की फसल के अन्तर्गत क्षेत्र बहुत कम था और करवाड़ी-नंदापुर में ग्रीष्म ऋतु के दौरान कोई फसल नहीं उगाई गई। करवाड़ी-नंदापुर में वर्ष 2009-10 के दौरान ‘महाराष्ट्र के हिंगोली और नांदेड़ जिलों में समेकित दृष्टिकोण के माध्यम से स्थायी ग्रामीण जीविका सुरक्षा’ शीर्षक से एन.ए.आई.पी. उप-परियोजना के अन्तर्गत मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ परभणी द्वारा करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर विकास कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया गया।
करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर का भौगोलिक क्षेत्र 750 हेक्टेयर है, जिसमें से करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर का कुल भौगोलिक क्षेत्र 750 हेक्टेयर है, जिसमें से 480 हेक्टेयर में विभिन्न फसलों को बोया जाता है और शेष 270 हेक्टेयर पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण कृषि जन्य फसलों को बोने के लिये उपयुक्त नहीं है। जलसम्भर में बोई गई भूमि का सामान्य ढलान 1 से 3 प्रतिशत है तथापि, कुछ स्थानों पर 4 प्रतिशत का अधिकतम ढलान भी विद्यमान है। पर्वतीय और उत्थापित विकृत भूमि से युक्त बोए नहीं गए क्षेत्रों में 10 से 20 प्रतिशत का अधिकतम ढाल देखा गया।
एन.ए.आई.पी. परियोजना के अन्तर्गत कार्यान्वित प्रमुख मृदा और जल संरक्षण उपाय।
गहरी कंटूर ट्रेंच
मृदा और जल के संरक्षण और भूजल स्तर के पुनर्भरण के लिये गहरी सतत कंटूर ट्रेंच अत्यधिक प्रभावशाली है। इसके अतिरिक्त, कंटूर ट्रेचिंग के कारण वर्धित आर्द्रता की उपलब्धता पर्वत के ढलान पर वनस्पति कवर की स्थापना हेतु सहायता करती है। इन तथ्यों पर विचार करते हुए गहरी कंटूर ट्रेंच करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में उपयोगी थी। वर्ष 1999-2000 के लिये वर्षा-ऋतु आँकड़ों के पता चला कि अधिकांश वर्षों के दौरान कम वर्षा, औसत से कम वर्षा हुई थी। फरवरी 2010 माह के दौरान करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के पर्वतीय क्षेत्र में गहरी सतत कंटूर ट्रेचिंग कार्य किया गया। 8-20 प्रतिशत ढलान से युक्त जल सम्भर के 150 हेक्टेयर पर्वतीय क्षेत्र पर 10 मीटर के अन्तराल पर पोक्लेन मशीन की सहायता से गहरी कंटूर ट्रेंच खोदी गई।
वनराई बन्धारा
भूजल स्तर के पुनर्भरण के लिये झरनों के माध्यम से जल प्रवाह को संचय करने के लिये माह अक्टूबर 2010 में सीमेंट बैग, बालू और मिट्टी का उपयोग करते हुए जलसम्भर क्षेत्र में झरनों में तेरह वनराई बन्धारों का निर्माण किया गया। वनराई बन्धारा झरने की ढलान को काटते हैं और प्रवाह के वेग को कम करते हैं। यह मृदा क्षरण को भी कम करता है और गाद इसके पीछे जमा होता है। मानसून के बाद के अपवाह और आधार प्रवाह को रोकने के लिये अक्टूबर 2011 माह के दौरान पन्द्रह वनराई बन्धारों का भी निर्माण किया गया।
लूज बॉर्डर स्ट्रक्चर
किसानों की सहभागिता के माध्यम से करवाड़ी-नंदापुर के ऊपरी खंड में पाँच लूज बोल्डर ढाँचों का निर्माण किया गया।
भूजल के जलसम्भर कार्यक्रम संवर्धन का प्रभाव
फरवरी माह से जून 2010 तक करीब-करीब सभी खुले कुएँ सूख गए। वर्ष 2010-11 के दौरान, कुल 1293 मि.मी. वर्षा हुई थी। कंटूर ट्रेंचों और अन्य मृदा और जल संरक्षण संरचनाओं में वर्षाजल संचित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में भूजल स्तर में वृद्धि हो गई। पिछले वर्ष 2009-10 की तुलना में 2010-11 के दौरान भूजल स्तर में 4.69 की वृद्धि हुई। यद्यपि प्राप्त वर्षा केवल 635 मि.मी. थी, जो वर्ष 2010 के दौरान प्राप्त वर्षा की आधी है।
मृदा और अपवाह हानि में कमी
विविध मृदा और जल संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन के कारण जल सम्भर से अपवाह तथा मृदा हानि में कमी आई। कंटूर ट्रेंचों तथा अन्य संरचनाओं में 4868.95 टन मृदा का जमा होना रिकॉर्ड किया गया, जो अन्यथा जमा नहीं हो पाती। जलसंकट से अपवाह में कमी भी देखी गई। उक्त अपवाह, वर्ष 2010-11 के दौरान प्राप्त कुल वर्षा का केवल 36.14 प्रतिशत था।
करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में मृदा आर्द्रता में वृद्धि
करवाड़ी, जनजातीय गाँव, करवाड़ी-नंदापुर जल-सम्भर के पर्वतीय क्षेत्र के निचले भाग पर स्थित है। जनजातीय किसानों से सम्बन्ध रखने वाली मृदा किस्म बहुत हल्की (मुरूम मृदा) है और उसकी जल प्रतिधारण क्षमता अत्यधिक कम है। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के विकास के पूर्व, ऐसी मृदा परिस्थिति में सात से आठ दिनों के सूखी अवधि ने फसल की पैदावार पर विपरीत प्रभाव डालने वाली जल प्रतिबल परिस्थिति को जन्म दिया। फसल की उत्पादकता अत्यन्त कम थी और किसान केवल खरीफ ऋतु में ही कृषि कर सके। करवाड़ी-नंदापुर जल सम्भर के पर्वतीय क्षेत्रों पर कंटूर ट्रेंचों के निर्माण के कारण कम गुणवत्ता वाली कृषक भूमि रखने वाले करवाड़ी-गाँव के जनजातीय किसानों को काफी लाभ पहुँचा है।
इस समय उनकी फसलों जैसे कपास, अरहर और हल्दी की उपज बहुत ही सशक्त और उत्तम है। कंटूर ट्रेंचों में संचित जल डाउनस्ट्रीम दिशा की ओर रिस रहा है, जिसके कारण खेतों में सतत और पर्याप्त मृदा नमी उपलब्ध है। कृषकों का विचार था कि वे वर्ष 2011 में अच्छी फसल उगाएँगे, जो उनकी सकल कृषि जन्य आय में वृद्धि करेगी। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में 2011 की खरीफ फसल के दौरान, किसानों ने सोयाबीन की फसल की 10 क्विंटल प्रति एकड़ औसत उपज रिकार्ड की है।
फसल उत्पादकता और फसल सघनता में वृद्धि
मृदा और जल संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन और करवाड़ी-नंदापुर जल संकट के कृषि समुदाय को उपलब्ध कराई गई मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ की फसल उत्पादन प्रौद्योगिकियों के कारण वर्ष 2009-10 की तुलना में 2010-11 के दौरान खरीफ, रबी और ग्रीष्म ऋतु में उगाई जाने वाली विविध फसलों की फसल उत्पादकता में वृद्धि हुई।
मुख्य खरीफ फसलों जैसे सोयाबीन, कपास, अरहर के अन्तर्गत क्षेत्र, पूर्व-विकास स्तर की तुलना में 25, 38.89 और 6.67 प्रतिशत बढ़ी। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में मृदा और जल संरक्षण उपायों के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप मुख्यतया वर्षाजल के संरक्षण के कारण वर्धित भूजल के उपलब्ध होने से रबी की फसल के अन्तर्गत क्षेत्र में वृद्धि हुई है। इस जलसम्भर के विकास के पूर्व ग्रीष्म ऋतु के दौरान कोई फसल नहीं उगाई गई थी। तथापि, भूजल उपलब्धता में वृद्धि होने के कारण 12.29 हेक्टेयर क्षेत्र को मूँगफली की खेती और 10.14 को चारे की खेती के अन्तर्गत लाना सम्भव था। भूजल स्तर में वृद्धि के कारण जलसम्भर क्षेत्र में फसल सघनता 29 प्रतिशत तक बढ़ी।
सिंचाई क्षमता में वृद्धि
पूर्व विकास के दौरान 22 खुले कुओं में से केवल 16 चालू थे, तथापि विकासोपरान्त सभी खुले कुएँ पूरे वर्ष चालू हैं। इसी प्रकार से 75 बोरवेलों में से वर्ष 2009-10 के दौरान 60 बोरवेल प्रचालन में थे, जबकि वर्ष 2010-11 में, सभी बोरवेल चालू थे, विकासोपरान्त स्तर में बोरवेलों की संख्या 75 से बढ़कर 84 हो गई, जिसका कारण था बढ़ी हुई भूजल क्षमता।
सिंचाई के अधीन क्षेत्र भी 55 हेक्टेयर से 150 हेक्टेयर हो गया। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में छिड़काव और टपक सिंचाई का उपयोग भी बढ़ा। कोई भी एकल कृषक पूर्व-विकास स्तर में टपक सिंचाई का उपयोग नहीं कर रहा था, तथापि, विकासोत्तर स्तर के दौरान तीन किसानों ने कपास, मौसमी, केले इत्यादि के लिये टपक सिंचाई का उपयोग करना आरम्भ कर दिया है।
चारे के कारण अतिरिक्त आय में वृद्धि
चारे की कुल मात्रा, जिसे पूर्व-विकास स्तर के दौरान 253 रिकॉर्ड किया गया था, विकासोत्तर स्तर के दौरान 418 तक हो गई है। चारे की उपलब्धता में वृद्धि, विकासोत्तर स्तर के दौरान पशु-धन की जनसंख्या में वृद्धि का एक कारक हो सकता था। विकासोत्तर काल के दौरान करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में दैनिक दुग्ध उत्पाद 550 से 1070 लीटर/प्रतिदिन रिकॉर्ड किया गया, जो विकास के पूर्व केवल 80 से 100 लीटर प्रतिदिन था।
किसानों की पहल से नंदापुर में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा 08 मार्च 2010 को दुग्ध संग्रह केन्द्र की स्थापना की गई। विकास के पश्चात डेयरी, मुर्गी पालन और एक्यूफार्मिंग ने जलसम्भर समुदाय के लिये रोजागर उत्पन्न किये। करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में मासिक दुग्ध संग्रह 15054.12-32083 लीटर के मध्य था। इस जल सम्भर में मार्च 2010 से मई 2011 तक संग्रह किया गया कुल दूध 323129.5 लीटर था और इससे करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर समुदाय को 7042460.61 रुपए की अतिरिक्त आय हुई।
पारिस्थितिकीय सन्तुलन
जलसम्भर के परिस्थिति विज्ञान पर करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर कार्यक्रम के कार्यान्वयन ने महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है। जलसम्भर के विकास के पूर्व, करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के पर्वतीय क्षेत्र पर वनस्पति बहुत कम थी, तथापि, जल सम्भर के जोरदार विकास के पश्चात् सागौन की लकड़ी और उच्च सघनता की स्थानीय वनस्पति और पौधों की जोरदार वृद्धि देखी गई। इस प्रकार जल सम्भर विकास कार्यक्रम ने जलसम्भर क्षेत्र का पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाए रखा।
राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर में मृदा और जल संरक्षण का उत्कृष्ट कार्य किया गया है, जिसका प्रभाव लम्बी अवधि तक विद्यमान रहेगा। भूजल में वृद्धि के कारण बोरवेल और खुले कुओं में भूजल की पर्याप्त से अधिक क्षमता उपलब्ध है। भूमि का स्वामित्व रखने वाले लाभार्थियों के पास अब सिंचाई के लिये जल होगा और भूमिहीनों के पास पीने और घरेलू उपयोग के लिये पर्याप्त जल उपलब्ध होगा। इस कार्य के होने से करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के सभी किसानों को लाभ प्राप्त हुआ है। इस परियोजना पर कुछ किसानों की प्रतिक्रिया इस प्रकार रही।
डॉ. वसन्तराव देशमुख, कृषक, नंदापुर: कंटूर ट्रेंचिंग कार्य के परिणामस्वरूप पिछले वर्ष के दौरान, गेहूँ, अरहर, कुसुम्भ, मूँगफली और चारे की फसल के लिये पर्याप्त भूजल के उपलब्ध होने से काफी लाभ हुआ। यद्यपि इस वर्ष काफी कम वर्षा हुई है, फिर भी सभी बोरवेल और खुले कुओं में पर्याप्त से अधिक जल मौजूद है।
श्री बाबूराव चव्हाण, कृषक, नंदापुर: राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत, किसानों ने छिड़काव सेट (स्प्रिंकलर सेट) का उपयोग किया है, जिसके कारण जल की हानि कम हो गई और इस प्रकार जल की बचत हुई। अरहर तथा गेहूँ की उपज में काफी वृद्धि देखी गई। एन.ए.आई.पी. के अन्तर्गत उपलब्ध कराए गए पॉवर स्प्रेयरों के सामूहिक उपयोग के कारण छिड़काव पर होने वाले व्यय में काफी बचत हुई।
श्री सुरेश देशमुख, सरपंच और प्रगतिशील किसान, नंदापुर: करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के पर्वतीय क्षेत्र में कंटूर ट्रेंचों में वर्षाजल का संचयन किया जा रहा है। जल, मिट्टी में रिस गया। जल, कंटूर ट्रेंचों के कारण बाधित होता है, लेकिन इसने लाभ पहुँचाया है। इस वर्ष यद्यपि कम वर्षा हुई थी, तथापि कुएँ जल से परिपूर्ण हैं। ग्रीष्म ऋतु के दौरान जल की कमी की समस्या का सामना नहीं करेंगे। हमें कंटूर ट्रेंचिंग कार्य से लाभ पहुँचा है।
श्री गुणाजी कारहाले, जनजातीय किसान, करवाड़ी: राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत, करवाड़ी-नंदापुर जलसम्भर के पर्वतीय क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कंटूर ट्रेंचिंग का कार्य किया जाता है। अपवाह जल का संचयन किया जा रहा है। यह मिट्टी में जाकर रिस जाता है। यद्यपि इस वर्ष के दौरान वर्षा कम हुई है, कुओं में जल का स्तर भूस्तर तक बढ़ गया है। इस योजना के अन्तर्गत टपक सिंचाई सेट उपलब्ध कराया जाता है। टपक सिंचाई से कपास की फसल की उपज काफी उत्तम है।
श्री पांडुरंग कारहाले, जनजातीय कृषिक, करवाड़ी: राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत कंटूर ट्रेचिंग कार्य किया गया है। जो वर्षा जल जमा हो गया था वह भूमि में रिस गया। अब हमारे बोरवेलों में पर्याप्त से अधिक जल उपलब्ध है। कंटूर ट्रेंचों में जल के रिसने तथा पाश्वर्शीय गति के कारण अत्यधिक हल्की मुरमुर मृदा से युक्त हमारे खेतों में पर्याप्त आर्द्रता मौजूद है। परिणामस्वरूप फसल की उपज अच्छी है। हमारे कृषिजन्य आय में वृद्धि हुई है।
श्री सम्भाजी कारहाले, जनजातीय कृषक, करवाड़ी: राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ के वैज्ञानिकों ने खरीफ और रबी की फसलों के सम्बन्ध में मार्गदर्शन किया। सोयाबीन और गेहूँ की फसल की उपज क्रमशः 8-10 क्विंटल/एकड़ और 15 क्विंटल/एकड़ रिकॉर्ड की गई। मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभणी के प्रयासों से किसानों को आर्थिक रूप से काफी लाभ पहुँचा।
श्री भास्कर धाले, सरपंच, हरवाड: राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के अन्तर्गत डॉ. ए.एस. कडाळे ने व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन किया है। मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ द्वारा उत्पादित सोयाबीन और गेहूँ के बीज हमें एन.ए.आई.पी. के अन्तर्गत खाद और हस्त उपकरण भी उपलब्ध कराए गए। जिससे सोयाबीन, कपास, हल्दी और गेहूँ जैसी फसलों की पैदावार में वृद्धि हुई है।
श्री सम्भाराव शिन्दे, हरवाड़ी: डॉ. बंगाली बाबू, राष्ट्रीय निदेशक, राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना और डॉ. ए.पी. श्रीवास्तव, राष्ट्रीय समन्वयक, आई.सी.ए.आर., लेखकों तथा मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभणी के प्रशासन, संकाय और कर्मचारियों को करवाड़ी-नंदापुर जल सम्भर सम्बन्धी परियोजना के कार्यान्वयन हेतु तकनीकी व वित्तीय सहायता प्रदान करने तथा उनके मार्गदर्शन और विपुल सहयोग के लिये आभार।
’एसोशिएट डीन एवं प्रधानाचार्यकृषि अभियांत्रिकी कॉलेजमराठवाड़ा कृषि विद्यालयपरभणी-431402 (महाराष्ट्र)
विभागाध्यक्षमृदा एवं जल संरक्षण अभियांत्रिकीमराठवाड़ा कृषि विद्यालयपरभणी 431402 (महाराष्ट्र)