कूच बिहार में ओडीएफ वॉररूम की जीत की रणनीति

Submitted by Hindi on Sat, 06/10/2017 - 13:45
Source
कुरूक्षेत्र, मई, 2017

. जैसाकि नाम से ही पता चलता है, कूच बिहार में ओडीएफ वॉर रूम वह स्थान है, जहाँ राज्य प्रशासन खुले में शौच के विरुद्ध अपने अभियान की योजना बनाता है और रणनीतियाँ तैयार करता है। प्रत्येक ब्लाॅक तथा जिला मुख्यालय में प्रतिदिन शाम 4 बजे से 5:30 बजे तक खुलने वाली इकाई में कई कर्मचारी होते हैं, जो नियमित अपडेट एवं प्रतिक्रिया हासिल करने के लिये क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों के संपर्क में रहते हैं। बदले में वे स्वाभाविक नेतृत्वकर्ताओं तथा कार्यकर्ताओं को प्रेरित करते हैं।

जिलाधिकारी पी उलगानाथन ने बताया, “वरिष्ठ नोडल अधिकारी की अगुआई में ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) वॉर रूम स्वच्छ भारत मिशन पर विशेष ध्यान एवं जोर देता है और सुनिश्चित करता है कि हम अपनी योजनाओं को युद्ध स्तर पर लागू करें।” उन्होंने कहा, “ओडीएफ वॉर रूम में बिताया जाने वाला समय ‘निर्मल घंटा’ कहलाता है और जो हो रहा है, वह वास्तव में आश्चर्यजनक है।” उन्होंने बताया कि दल प्रत्येक प्रधान, सभापति, कार्यकर्ता, सामुदायिक सहायक से बात करता है ताकि उनके काम की निगरानी की जा सके और प्रतिक्रिया प्राप्त की जा सके। जब भी कोई चुनौती आती है तो उससे निपटने के लिये हस्तक्षेप किया जाता है। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश की सबसे लंबी सीमा पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने वाले इस महत्त्वपूर्ण जिले में ही पड़ती है। इस सुदूर क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या पिछड़ी हुई और गरीबी की रेखा के नीचे है।

9 दिसंबर को निर्मल प्रभात आयोजित किया गया। इसमें सुबह 5 बजे से गाँधीगिरी (सौहार्द एवं शांति भरे तरीके से सच बताना) आरंभ की गई, जिसमें जिला प्रशासन के अधिकारी, पंचायत अधिकारी, स्वाभाविक नेता, स्वंयसेवक, युवा, स्वंयसहायता समूहों, गैर-सरकारी संगठनों, आशा के सदस्य जिले भर के घरों में गए और 3,09,080 परिवारों से मिलकर लोगों को स्वच्छता से जुड़ी अच्छी आदतें अपनाने के लिये मानवाने का प्रयास किया। इस प्रक्रिया में उन्होंने 20,000 से अधिक फोटोग्राफ लिये और 2.5 लाख हस्ताक्षर लिये, जिससे पता चलता है कि लोग इस अभियान के प्रति कितने संकल्पबद्ध हैं। धार्मिक संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों तथा युवाओं की सहभागिता वाले इस कार्यक्रम की योजना 10 दिन पहले ही बना ली गई थी। गाँवों का दौरा करते समय खुले में शौच के मामूली से भी निशानों को उन्होंने मिट्टी से ढक दिया। यह अंतर-वैयक्तिक संचार का विशाल अभियान था, जिसमें लोगों को अपने शौचालयों को प्रयोग करने का कड़ा संदेश दिया गया। संदेश एकदम सरल था- यदि सभी लोग अपने शौचालयों का प्रयोग करेंगे तो उनका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और वे सुखी रहेंगे। इससे महिलाओं की गरिमा भी बची रहेगी, जिन पर खुले में शौच जाते समय अक्सर हमलों को खतरा रहता है।

निर्मल भारत के समन्वय और उसे पूरा करने का काम वॉर रूम ने किया, जिसने आवाजाही, हस्ताक्षर अभियान की योजना पहले ही बना ली थी और हस्तक्षेप का काम जिलाधिकारी द्वारा पूरा किया गया। कूच बिहार में दल ने निर्मल चाय का नाम की नई पहल भी की। इसके अंतर्गत स्वच्छ भारत अभियान के अधिकारी यथासंभव अधिक घरों में जाते हैं और उसके बाद बाजार में चाय की किसी दुकान पर बैठ जाते हैं। जब लोग आस-पास इकट्ठे हो जाते हैं तो नेतृत्व करने वाला इस बात की चर्चा छेड़ देता है कि पानी की गुणवत्ता कैसी है और खुले में शौच करने से किस तरह लोगों को चाय के साथ गंदगी पीनी पड़ सकती है।

अब तक मिली प्रतिक्रियाओं के अनुसार निर्मल चाय बातचीत आरंभ करने का एकदम सही अवसर उपलब्ध कराती है। समुदाय जनसभा की भी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। इसमें स्वंयसहायता समूहों, आंगनवाड़ियों और आशा से लगभग 3000 से 4000 महिलाएँ जूटती हैं, जिनका जिलाधिकारी से नियमित अंतराल पर संवाद होता रहता है। 2 घंटे तक चलने वाली जनसभा में प्रश्न पूछे जाते हैं और बड़े पैमाने पर परिवर्तन दिखता है। उलगानाथन ने कहा, “जब महिलाएँ अपने घर और मुहल्लों में लौटती हैं तथा स्वच्छता का संदेश फैलाती हैं तो उसका तेज असर होता है।”

जिलाधिकारी के अनुसार अक्टूबर 2014 में जब पहली बार सैनिटरी मार्ट के नमूने के साथ स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी तब ढेर सारे शौचालय बने थे, लेकिन लोगों को उनका प्रयोग करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती थी। इसके लिये सीएलटीएस का तरीका अपनाया गया, जहाँ पूरे समुदाय को प्रभावित किया जाता था। उन्होंने कहा, “हम स्वंय गाँव जाते और स्वाभाविक नेता की पहचान करते।” इस अभियान ने इतनी गति पकड़ ली है कि अब स्वंयसेवक कार्यकर्ताओं का विशाल समूह स्वंय ही सभाएं आयोजित कर लेता है और निर्माण कार्य पर नजर रखता है। 2012 के एक सर्वेक्षण के अनुसार कूच बिहार में 58 प्रतिशत परिवारों में शौचालय थे और उसे 2.7 लाख शौचालयों का आवश्यकता थी।