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पंचायतनामा, 04-10 अगस्त 2014, पटना
अंधराठाढ़ी से झंझारपुर फोरलेन की ओर जानेवाली सड़क के किनारे ताजपुर गांव है। गांव में 240 घर अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) के हैं। गांव के अंदर की सड़क पर साफ-सफाई दिखती है। गांव में गाड़ी घुसते ही लोगों की उत्सुकता बढ़ जाती है। आस-पास लोग इकट्ठा हो जाते हैं। गांव के कायापलट की कहानी सुनाने को ये लोग बेताब दिखते हैं। ननौर पंचायत में पड़ने वाले इस गांव की मुखिया मीरा देवी हैं। केंद्र से लेकर राज्य सरकार की ओर से पहले शौचालय, फिर देवालय की बात कही जा रही है। लेकिन यहां के हर घर में शौचालय बन चुका है। गांव का कोई भी व्यक्ति खुले में शौच करने नहीं जाता है। गांव के लोगों में ये जागरूकता नहीं थी। गांव में आने वाली सड़क पर गंदा पानी बहता रहता था। चारों ओर कूड़े का ढेर रहता था, लेकिन तीन साल पहले सखी संस्था चलाने वाली सुमन सिंह की ओर से साफ-सफाई की पहल की गई। इसके बाद से स्थिति बदलने लगी। सुमन सिंह कहती हैं, गांव के लोगों को समझाना आसान नहीं था। मुखिया भी हिचकिचा रही थी, लेकिन जब काम शुरू हुआ, तो गांव के लोगों का मन बदलने लगा।
ग्रामीणों को जब इस बात की जानकारी मिली कि खुले में शौच जाने से एक सौ से ज्यादा तरह की बीमारियां हो सकती हैं, तो उन्होंने अपने घरों में शौचालय बनाने की ठान ली। सुमन कहती हैं, हम लोगों ने खुले में शौच जाने के नुकसान के बारे में लोगों को बताया। शौच के दौरान महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं से भी जोड़ा, तो बात लोगों की समझ में आ गई। इसके बाद गांव के लोगों ने खर्च की परवाह किए बगैर शौचालय बनवाने की दिशा में काम शुरू कर दिया। ताजपुर गांव की जो बनावट है और जिस तरह से गांव के लोगों का रहन-सहन है। उससे साफ लगता है, यहां के लोगों की आय ज्यादा नहीं है।
मुखिया व अन्य लोग भी कहते हैं, ज्यादातर लोग खुद का रोजगार व मजदूरी करके ही अपने परिवारों को पालते हैं। ताजपुर गांव इलाके में मॉडल बन चुका है, जहां के हर घर में शौचालय बना है। इसे देखने के लिए देश के साथ विदेशों तक से स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग आते हैं।
सुमन सिंह कहती हैं, अब तक दर्जन भर दल गांव का दौरा कर चुके हैं। इस वजह से गांव के लोगों में आने वाले लोगों को लेकर उत्सुकता रहती है। ये उत्सुकता हम लोगों को भी दिखी, जब गांव के रास्ते से गुजरते समय कई महिलाएं सामने आ गई और कहने लगीं, हम लोगों ने भी अपने घरों में शौचालय बनवाया है।
जिस संस्था सखी की वजह से ताजपुर गांव में जागरूकता आई है, उसके बारे में सुमन सिंह कहती हैं, हम लोग इलाके में 1999 से काम कर रहे हैं। पहले हम मछली पालन के क्षेत्र में काम करते थे, लेकिन इलाके की स्थिति को देख कर हमने 2009 में स्वच्छता के क्षेत्र में काम करना शुरू किया।
अब इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। प्रशासन की ओर से भी सहयोग मिल रहा है। हम लोग स्वच्छता को लेकर जल्दी है मधुबनी जिले में मैराथन का आयोजन करने जा रहे हैं, जिसमें स्कूली बच्चों के साथ युवा, जन प्रतिनिधियों व महिलाओं की भागीदारी होगी। इसके जरिए स्वच्छता को आंदोलन का रूप देने की कोशिश होगी।
सखी संस्था की ओर से अंधराठाढ़ी व झंझारपुर प्रखंड में वाटर सेनीटेशन एंड हाइजीन पर काम किया जा रहा है। संस्था की संचालिका सुमन सिंह कहती हैं, हम लोगों को आपेक्षिक सफलता मिली है। अभी तक दोनों प्रखंडों के लगभग चालीस फीसदी घरों में शौचालय बन गए हैं। तेजी से काम हो रहा है।
हम लोगों का लक्ष्य 2015 में दोनों प्रखंडों के हर घर में शौचालय बनवा देना है। अगर ऐसा होता है, तो ये प्रखंड बिहार के लिए मॉडल बन जाएंगे।
ताजपुर में मरियम खातून के घर में बने शौचालय की चर्चा होती है। इस पर मरियम ने पचास हजार रुपए खर्च किए हैं। शौचालय के साथ स्नानघर भी बनवाया है। साथ ही कुछ दूर में फर्श भी बनवा दी है, ताकि घर के लोगों को तकलीफ का सामना नहीं करना पड़े। मरियम कहती हैं, जब शौचालय का काम शुरू हुआ, तो हम लोगों ने सोचा ये बार-बार थोड़े बनेगा, जब बन रहा है, तो एक बार ही ठीक से बनवा दिया जाए।
शारीरिक रूप से अक्षम हसीरुन खातून ने शौचालय बनवाने के लिए अपनी दस धूर जमीन बेच दी। 18 साल की हसीरुन के माता-पिता नहीं हैं। उसे गांव में खुले में शौच जाने में परेशानी होती थी, जब उसे गांव में शौचालय बनने की बात पता चली, तो उसने अपने घर में भी शौचालय बनाने की ठानी। अब उसे शौच जाने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। सखी की सुमन सिंह कहती हैं, स्वच्छता के मामले में हसीरुन का नाम इलाके में लिया जाता है।
मॉडल बन चुके हैं गांव
ग्रामीणों को जब इस बात की जानकारी मिली कि खुले में शौच जाने से एक सौ से ज्यादा तरह की बीमारियां हो सकती हैं, तो उन्होंने अपने घरों में शौचालय बनाने की ठान ली। सुमन कहती हैं, हम लोगों ने खुले में शौच जाने के नुकसान के बारे में लोगों को बताया। शौच के दौरान महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं से भी जोड़ा, तो बात लोगों की समझ में आ गई। इसके बाद गांव के लोगों ने खर्च की परवाह किए बगैर शौचालय बनवाने की दिशा में काम शुरू कर दिया। ताजपुर गांव की जो बनावट है और जिस तरह से गांव के लोगों का रहन-सहन है। उससे साफ लगता है, यहां के लोगों की आय ज्यादा नहीं है।
मुखिया व अन्य लोग भी कहते हैं, ज्यादातर लोग खुद का रोजगार व मजदूरी करके ही अपने परिवारों को पालते हैं। ताजपुर गांव इलाके में मॉडल बन चुका है, जहां के हर घर में शौचालय बना है। इसे देखने के लिए देश के साथ विदेशों तक से स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोग आते हैं।
सुमन सिंह कहती हैं, अब तक दर्जन भर दल गांव का दौरा कर चुके हैं। इस वजह से गांव के लोगों में आने वाले लोगों को लेकर उत्सुकता रहती है। ये उत्सुकता हम लोगों को भी दिखी, जब गांव के रास्ते से गुजरते समय कई महिलाएं सामने आ गई और कहने लगीं, हम लोगों ने भी अपने घरों में शौचालय बनवाया है।
जिस संस्था सखी की वजह से ताजपुर गांव में जागरूकता आई है, उसके बारे में सुमन सिंह कहती हैं, हम लोग इलाके में 1999 से काम कर रहे हैं। पहले हम मछली पालन के क्षेत्र में काम करते थे, लेकिन इलाके की स्थिति को देख कर हमने 2009 में स्वच्छता के क्षेत्र में काम करना शुरू किया।
अब इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। प्रशासन की ओर से भी सहयोग मिल रहा है। हम लोग स्वच्छता को लेकर जल्दी है मधुबनी जिले में मैराथन का आयोजन करने जा रहे हैं, जिसमें स्कूली बच्चों के साथ युवा, जन प्रतिनिधियों व महिलाओं की भागीदारी होगी। इसके जरिए स्वच्छता को आंदोलन का रूप देने की कोशिश होगी।
2015 में सभी घरों में शौचालय
सखी संस्था की ओर से अंधराठाढ़ी व झंझारपुर प्रखंड में वाटर सेनीटेशन एंड हाइजीन पर काम किया जा रहा है। संस्था की संचालिका सुमन सिंह कहती हैं, हम लोगों को आपेक्षिक सफलता मिली है। अभी तक दोनों प्रखंडों के लगभग चालीस फीसदी घरों में शौचालय बन गए हैं। तेजी से काम हो रहा है।
हम लोगों का लक्ष्य 2015 में दोनों प्रखंडों के हर घर में शौचालय बनवा देना है। अगर ऐसा होता है, तो ये प्रखंड बिहार के लिए मॉडल बन जाएंगे।
बनवाया पचास हजार का शौचालय
ताजपुर में मरियम खातून के घर में बने शौचालय की चर्चा होती है। इस पर मरियम ने पचास हजार रुपए खर्च किए हैं। शौचालय के साथ स्नानघर भी बनवाया है। साथ ही कुछ दूर में फर्श भी बनवा दी है, ताकि घर के लोगों को तकलीफ का सामना नहीं करना पड़े। मरियम कहती हैं, जब शौचालय का काम शुरू हुआ, तो हम लोगों ने सोचा ये बार-बार थोड़े बनेगा, जब बन रहा है, तो एक बार ही ठीक से बनवा दिया जाए।
बेच दी दस धूर जमीन
शारीरिक रूप से अक्षम हसीरुन खातून ने शौचालय बनवाने के लिए अपनी दस धूर जमीन बेच दी। 18 साल की हसीरुन के माता-पिता नहीं हैं। उसे गांव में खुले में शौच जाने में परेशानी होती थी, जब उसे गांव में शौचालय बनने की बात पता चली, तो उसने अपने घर में भी शौचालय बनाने की ठानी। अब उसे शौच जाने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। सखी की सुमन सिंह कहती हैं, स्वच्छता के मामले में हसीरुन का नाम इलाके में लिया जाता है।