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प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों पर रोक से लेकर बैटरी चलित वोट तक यहीं फार्मेट काम करता रहा है। यह दीगर है कि सरकार ने आज तक एक भी प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरी को बन्द नहीं किया है यह तब है जब सुप्रीम कोर्ट के अलावा इलाहाबाद और नैनीताल हाईकोर्ट लगातार दिये जा रहे अपने निर्देशों से सरकार को काम करने की खुली छूट दे रहे हैं। नैनीताल हाईकोर्ट ने 180 उद्योगों को बन्द करने को कहा है उन आश्रमों और धर्मशालाओं पर भी कार्रवाई करने का आदेश दिया है जो गंगा में लगातार सीवेज फैलाते हैं। पिछले साल बोहरा समुदाय के शीर्ष धार्मिक नेता प्रधानमंत्री से मिले, बातचीत में प्रधानमंत्री ने उनसे गंगा सफाई में सहयोग के लिये अनुरोध किया। इसके दूसरे ही दिन बोहरा समुदाय के कुछ नेताओं ने गंगा मंत्री उमा भारती से मुलाकात की और गंगा किनारे हजारों की संख्या में शौचालय निर्माण के लिये मदद की पेशकश की।
पैसे की कोई कमी थी नहीं और गेंद मंत्रालय के पाले में थी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। यह वाकया नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के सन्दर्भ में याद आ गया जिसमें सरकार को कहा गया है कि वो कम-से-कम हरिद्वार, ऋषिकेश में शौचालय बनवाए। लोकतंत्र में जब सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से भागती हैं तो न्यायालय उन्हें रास्ता दिखाता है। यह प्रक्रिया अगले चुनाव तक जारी रहती है तब मतदाता यह तय करता है कि सरकार अपने दावों और वादों पर कितना खरा उतरी।
गंगा मंत्रालय को लगातार दिया जाने वाला आदेश कोर्ट की बौखलाहट और मंत्रालय की निष्क्रियता जाहिर करता है। इसी साल जून में केन्द्रीय मंत्री ने संसद में बयान दिया था कि गंगा पर जारी परियोजनाओं का ऑडिट सीएजी से कराया जाएगा लेकिन उनकी तमाम घोषणाओं की तरह इस पर भी आगे कुछ नहीं हुआ तो कोर्ट को आदेश जारी करना पड़ा।
पिछले ढाई सालों में मंत्रालय का कामकाज एक तय लकीर पर चलता रहा है। सबसे पहले नेतृत्व गंगा को लेकर एक घोषणा करता है फिर कुछ माह बीत जाने पर उसे संकल्प रूप में दोहराया जाता है, इस प्रण के कुछ समय बाद उसे प्रतीक रूप में किसी एक जगह (ज्यादातर बनारस का असी घाट) लागू किया जाता है फिर पूरे देश में नारे लगाए जाते हैं कि गंगा पर काम तेजी से चल रहा है।
प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों पर रोक से लेकर बैटरी चलित वोट तक यहीं फार्मेट काम करता रहा है। यह दीगर है कि सरकार ने आज तक एक भी प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरी को बन्द नहीं किया है यह तब है जब सुप्रीम कोर्ट के अलावा इलाहाबाद और नैनीताल हाईकोर्ट लगातार दिये जा रहे अपने निर्देशों से सरकार को काम करने की खुली छूट दे रहे हैं।
नैनीताल हाईकोर्ट ने 180 उद्योगों को बन्द करने को कहा है उन आश्रमों और धर्मशालाओं पर भी कार्रवाई करने का आदेश दिया है जो गंगा में लगातार सीवेज फैलाते हैं। कोर्ट का फैसला सरकारी सूची पर ही आधारित है यानी ‘इन उद्योगों को हटना ही होगा’ जैसे बयान नेतृत्व की ओर से दिये जाते रहे हैं।
मंत्रालय के अधिकारी समाधान पर ध्यान देने के बजाय दो सालों तक यह तय करने में लगे रहे कि किस राज्य को गंगा सफाई के लिये मॉडल राज्य के तौर पर सामने रखा जाये। गंगा पाँच राज्यों में बहती है इनमें से चार राज्यों यानी उत्तराखण्ड, यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में गैर बीजेपी सरकारें हैं और झारखण्ड, जहाँ बीजेपी सत्ता में है वहां गंगा राज्य को छूती हुई निकल जाती है।
दो सालों में गंगा सफाई के परिणाम दिखना तो दूर वह और भी ज्यादा प्रदूषित होकर बह रही थी इसलिये मॉडल राज्य के लिये एक सहयोगात्मक सरकार चाहिए थी और केन्द्रीय मंत्री ने झारखण्ड को ही मॉडल राज्य के तौर पर विकसित करने की घोषणा कर दी वास्तव में इस घोषणा से यह भी साफ हो गया कि सरकार गंगा को लेकर कितनी गम्भीर है।
हालात यह है कि गंगा किनारे पोलीबैग पर प्रतिबन्ध और शौच ना करने जैसे आदेश भी कोर्ट द्वारा जारी किये जा रहे हैं। हालांकि वास्तविकता यह है कि अब सरकारों को अब कोर्ट के आदेशों को टालना भी आ गया है वे अपनी सुविधा से ही उसे लागू करने में तत्परता दिखाती हैं। भारती अक्सर कहतीं है कि हम नदी जोड़ो परियोजना पर इसलिये आगे बढ़ रहे है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है।