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सिरी फोर्ट के उस कमरे में गंगा समग्र की नेता उमा भारती, पर्यावरणविद अनुपम मिश्र और इन पंक्तियों के लेखक के अलावा कुछ लोग और भी मौजूद थे। उमा भारती ने अनुपम जी से कहा कि कार्यक्रम के अन्तिम सत्र में मुझे जनता के सामने एक संकल्प रखना है जिसके आधार पर गंगा सफाई की रूपरेखा तैयार की जाएगी, आप सुझाव दें कि मैं क्या संकल्प लूँ।
अनुपम जी ने कहा कि आप अच्छा काम कर रही है और ऐसे ही करते रहिए कोई संकल्प मत लीजिए क्योंकि कल को आपका कोई नेता आएगा और कहेगा कि मैं तो विकास पुरुष हूँ, आस्था और पर्यावरण के नाम पर विकास नहीं रोका जा सकता इसलिये बाँध बनना जरूरी है, उस समय आप उसका विरोध नहीं कर पाएँगी और पार्टी लाइन के नाम पर आपको गंगा की बर्बादी का समर्थन करना होगा।
यह बातचीत जून 2013 में उमा भारती के गंगा यात्रा समापन कार्यक्रम के दौरान हो रही थी और एक दिन पहले ही केदारनाथ हादसा हो चुका था। बहरहाल एक साल बाद देश में नई सरकार बनी और अनुपम जी का कहा अक्षरशः सच हो गया।
केदारनाथ हादसे में सिर्फ मुख्य मन्दिर बचे रहने की बात सुनकर वे नाराज हुए लेकिन हमेशा की तरह सन्तुलित लहजे में बोले, मन्दिर के अलावा कुछ होटल, धर्मशालाएँ भी बची हैं क्यों ना सभी की पूजा की जाये। गंगा एक नदी है वो हमारे मन्दिरों को नहीं पहचानती कि आपने हरिद्वार में धारा के बीचों बीच एक शंकर जी मूर्ति लगा दी तो वह उन्हें बचाती हुई निकल जाएगी, प्रकृति का अपना कैलेंडर है जो हजारों सालों में अपना एक पन्ना पलटता है।
सरकार बनने के बाद अनुपम जी कभी भी गंगा और जल केन्द्रित सरकारी कार्यक्रम में नहीं गए। हर बार उन्हें बुलाया जाता और वे विनम्रता से कहते आप अपना काम करें मैं अपना कर रहा हूँ। नदी जोड़ो परियोजना और बाँध निर्माण को लेकर सरकारी हड़बड़ी से वे रोष में थे, कहते थे, “आसमान से देखिए तो गंगा और यमुना के उद्गम बिंदु पास–पास नजर आते हैं, लेकिन प्रकृति ने उन्हें एक हजार किलोमीटर अलग–अलग बहाव देने के बाद इलाहाबाद में मिलाया, यह प्रकृति तय करती है कि नदियों को कहाँ जोड़ना है, हमारा काम है उन्हें सहेजना और जरूरत भर का ले लेना।”
उन्होंने केन-बेतवा लिंक के गम्भीर परिणाम की चेतावनी भी दी है। लेकिन सरकार के कानों में जू नहीं रेंगी। उमा भारती कहतीं है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि नदी जोड़ों पर आगे बढ़ा जाये। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ऐसे कितने ही आदेश होगे जिन पर सरकारें तत्परता दिखाती हैं, खुद इलाहाबाद और नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा को लेकर इतने आदेश जारी किये हैं कि यदि उनके दस फीसदी पर भी अमल हो जाये तो गंगा साफ-सुथरी नजर आने लगेगी।
अनुपम जी उस दौर में पर्यावरण की बातें किया करते थे जब पर्यावरण की चिन्ता करना फैशन नहीं बना था। राजस्थान के लिये वे सदाबहार बहती नदी थे, पानी सहेजने की परम्पराए इतनी सहजता से वे सामने रखते लगता हम आज ही से यह काम क्यों नहीं कर सकते। पानी की कमी मानवीय लापरवाही सर्वाधिक घातक परिणाम है। वे नदी किनारे तालाबों के निर्माण पर जोर देते ताकि ये तालाब गर्मियों में नदी को रिचार्ज कर सके लेकिन आजाद भारत के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि किसी भी सरकार ने नदी किनारे तालाब को आकार दिया हो।
उनकी बातें नदी की लहरों की तरह कानों से टकरातीं हैं, “अच्छे-अच्छे काम करते जाना”