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डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 2 अक्टूबर 2014
समाज को स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाने के लिए जिन संगठित प्रयासों की आवश्यकता थी, वे कभी भी ईमानदारी के साथ प्रारंभ ही नहीं हुए। शायद यह पहला अवसर होगा कि जब देशवासियों से सरकार ने 2 अक्टूबर को दफ्तरों में अनिवार्य रूप से उपस्थिति दर्ज कराने की अपेक्षा की। प्रधानमंत्री यह चाहते हैं कि इस दिन वे दफ्तरों में केवल स्वच्छता पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित करें तो निसंदेह यह एक स्वागतेय पहल है और इसे एक सतत् प्रक्रिया का रूप प्रदान करने के लिए सरकार कृत संकल्प दिखाई दे रही है तो जल्द ही इसके सुखद परिणाम भी सामने आने की संभावना भी बलवती हो चुकी है...स्वच्छ भारत अभियान की औपचारिक शुरुआत गांधी जयंती 2 अक्टूबर को प्रधानमंत्री स्वयं हाथ में झाड़ू लेकर करेंगे। उस दिन देश भर में सार्वजनिक स्थलों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों पर तथा अन्य स्थानों पर ऐसी अनूठी सफाई का दृश्य संभवत: आजादी के बाद पहली बार देखने को मिलेगा। इस अभियान में सक्रिय भागीदारी के लिए देशवासी जो उत्साह दिखा रहे हैं, उससे यह उम्मीद तो बंधती ही है कि आजादी के 67 वर्षों बाद स्वच्छता अब एक उपेक्षित मुद्दा नहीं बना रहेगा। अगर स्वच्छता को एक सतत प्रक्रिया बनाकर उसके लिए हमने समर्पित भाव से प्रयास किए होते तो दफ्तरों और सार्वजनिक स्थलों पर फैली गंदगी हमें घृणा से मुंह बिचकाने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। परंतु दरअसल जब तक कोई समस्या विकराल रूप धारण न कर ले तब तक उसके निराकरण के लिए ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत हमें महसूस नहीं होती और अगर हमने जोश में आकर प्रयास शुरू भी कर दिए तो हमारा उत्साह कुछ दिनों में ही ठंडा पड़ जाता है और फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होने लगती है।
इस बार यह उम्मीद की जानी चाहिए की स्वच्छ भारत के प्रति सरकार और जनता का उत्साह मात्र एक पखवाड़े तक ही नहीं बल्कि पूरे पांच वर्षों तक बना रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो कार्यशैली है उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि इस अभियान को परिणिति तक पहुंचाने के लिए सरकार ने 2019 तक का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे अर्जित करने में वह सफल होगी। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को महत्व देने का जो संकल्प लालकिले की प्राचीर से अपने प्रथम स्वतंत्रता दिवस संबोधन में व्यक्त किया था, उसको मूर्तरूप प्रदान करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक जन आंदोलन बनाने की जो प्रतिबंद्धता प्रदर्शित की है वह निसंदेह स्वागतेय है।
एक कहावत है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है, परंतु अगर हमारे आसपास का परिवेश प्रदूषण से मुक्त न हो तो क्या हम अपने शरीर की स्वच्छता को कायम रख पाएंगे और जब शरीर की स्वच्छता बनाए रखना हमारे लिए संभव नहीं होगा तो मन पर उसका दुष्प्रभाव पड़ने से कैसे इंकार किया जा सकता है? सफाई का सीधा संबंध स्वास्थ्य से होता है और स्वच्छ भारत के स्वस्थ भारत में रूपांतरण की सुंदर कल्पना कठिन नहीं है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संदेश में देश की समस्त शालाओं में एक वर्ष के अंदर शौचालय बनवाने का जब संकल्प व्यक्त किया था तभी उन्होंने यह संकेत दे दिया था कि सरकार स्वच्छता को एक जनांदोलन बनाने के लिए योजनाबद्ध अभिायन शुरू करने का मन बना चुकी है और इसकी शुरुआत के लिए महात्मा गांधी की जन्म तिथि से बेहतर और कोई अवसर नहीं हो सकता था। राष्ट्रपिता बापू ने अपने दैनंदिन जीवन में स्वच्छता को जो महत्व दिया वैसे ही आवश्यकता जब तक हम अपने व्यक्तिगत जीवन में भी महसूस नहीं करेंगे तब तक इस अभियान की सफलता के प्रति निश्चिंतता का भाव हमारे अंदर पैदा नहीं हो सकता।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों को जिस तरह हमारे समाज में विस्मृत किया जा रहा है उसका एक परिणाम यह भी हुआ है कि उनकी पावन जन्मतिथि पर होने वाले राष्ट्रीय आयोजन भी धीरे-धीरे अब मात्र रस्म अदायगी का रूप लेते जा रहे हैं और यह तो स्वाभाविक ही है कि जो आयोजन मात्र रस्म अदायगी के लिए किए जाते हैं उनसे किसी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। दरअसल समाज को स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाने के लिए जिन संगठित प्रयासों की आवश्यकता थी, वे कभी भी ईमानदारी के साथ प्रारंभ ही नहीं हुए। शायद यह पहला अवसर होगा कि जब देशवासियों से सरकार ने 2 अक्टूबर को दफ्तरों में अनिवार्य रूप से उपस्थिति दर्ज कराने की अपेक्षा की।
प्रधानमंत्री का यह कथन बिल्कुल सही है कि अगर देशवासी सप्ताह में मात्र दो घंटे अर्थात वर्ष में मात्र 100 घंटे का समय अपने आसपास सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लें तो देश की तस्वीर बदल जाएगी। प्रधानमंत्री यह चाहते हैं कि इस दिन वे दफ्तरों में केवल स्वच्छता पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित करें तो निसंदेह यह एक स्वागतेय पहल है और इसे एक सतत प्रक्रिया का रूप प्रदान करने के लिए सरकार कृत संकल्प दिखाई दे रही है तो जल्द ही इसके सुखद परिणाम भी सामने आने की संभावना भी बलवती हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अनेक मंत्रियों ने तो 2 अक्टूबर की नियत तारीख के पूर्व ही सड़कों में साफ सफाई के लिए पहल करना प्रारंभ कर दिया है। अब देखना यह है कि मंत्रियों की यह सक्रियता एक सतत अभियान का रूप लेने में कितनी सफल होती है।
केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालते ही नरेंद्र मोदी ने अनेक ऐसे अभियानों की शुरुआत की है जो उनके लीक से हटकर चलने की अनूठी प्रवृत्ति के परिचायक हैं और इन अभियानों की शुरुआत के पीछे किसी राजनीतिक हित की मंशा भी नहीं देखी जा सकती। देश की तस्वीर को सुंदर रंगों से सजाने के लिए सरकार के इन सारे अभियानों से राष्ट्र और समाज को जो लाभ होगा, उसकी कल्पना असंभव नहीं है। एक कहावत है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है, परंतु अगर हमारे आसपास का परिवेश प्रदूषण से मुक्त न हो तो क्या हम अपने शरीर की स्वच्छता को कायम रख पाएंगे और जब शरीर की स्वच्छता बनाए रखना हमारे लिए संभव नहीं होगा तो मन पर उसका दुष्प्रभाव पड़ने से कैसे इंकार किया जा सकता है?
इस बार 2 अक्टूबर को सारा राष्ट्र स्वच्छता अभियान में भागीदारी कर सच्चे अर्थों में राष्ट्रपिता बापू को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कृत संकल्प हो चुका है। शहरी और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस मिशन पर अगले पांच साल में दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने का फैसला कर चुका है।प्रधानमंत्री का यह कथन बिल्कुल सही है कि अगर देशवासी सप्ताह में मात्र दो घंटे अर्थात वर्ष में मात्र 100 घंटे का समय अपने आसपास सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लें तो देश की तस्वीर बदल जाएगी। उन्होंने स्वच्छता के सतत अभियान का रूप प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देते हुए समाज के सभी वर्गों से जुड़ने की जो अपील की है उसकी शुरुआत में ही उनकी सरकार के मंत्रियों ने जो उत्साह दिखाया है उसके बाद इस अभियान से जनता का भावनात्मक जुड़ाव होने में कोई संशय की गुंजाइश नहीं रह जाती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस बार 2 अक्टूबर को सारा राष्ट्र स्वच्छता अभियान में भागीदारी कर सच्चे अर्थों में राष्ट्रपिता बापू को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कृत संकल्प हो चुका है। शहरी और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस मिशन पर अगले पांच साल में दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने का फैसला कर चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी की दिली इच्छा है कि 2019 में जब सारा राष्ट्र महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाए तब तक स्वच्छता अभियान के माध्यम से भारत एक साफ सुंदर राष्ट्र के रूप में विकसित हो जाए, जिसे महात्मा गांधी के सपनों का भारत बताकर हम उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त कर सकें।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
इस बार यह उम्मीद की जानी चाहिए की स्वच्छ भारत के प्रति सरकार और जनता का उत्साह मात्र एक पखवाड़े तक ही नहीं बल्कि पूरे पांच वर्षों तक बना रहेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो कार्यशैली है उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि इस अभियान को परिणिति तक पहुंचाने के लिए सरकार ने 2019 तक का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे अर्जित करने में वह सफल होगी। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को महत्व देने का जो संकल्प लालकिले की प्राचीर से अपने प्रथम स्वतंत्रता दिवस संबोधन में व्यक्त किया था, उसको मूर्तरूप प्रदान करने के लिए उन्होंने बाकायदा एक जन आंदोलन बनाने की जो प्रतिबंद्धता प्रदर्शित की है वह निसंदेह स्वागतेय है।
एक कहावत है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है, परंतु अगर हमारे आसपास का परिवेश प्रदूषण से मुक्त न हो तो क्या हम अपने शरीर की स्वच्छता को कायम रख पाएंगे और जब शरीर की स्वच्छता बनाए रखना हमारे लिए संभव नहीं होगा तो मन पर उसका दुष्प्रभाव पड़ने से कैसे इंकार किया जा सकता है? सफाई का सीधा संबंध स्वास्थ्य से होता है और स्वच्छ भारत के स्वस्थ भारत में रूपांतरण की सुंदर कल्पना कठिन नहीं है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस संदेश में देश की समस्त शालाओं में एक वर्ष के अंदर शौचालय बनवाने का जब संकल्प व्यक्त किया था तभी उन्होंने यह संकेत दे दिया था कि सरकार स्वच्छता को एक जनांदोलन बनाने के लिए योजनाबद्ध अभिायन शुरू करने का मन बना चुकी है और इसकी शुरुआत के लिए महात्मा गांधी की जन्म तिथि से बेहतर और कोई अवसर नहीं हो सकता था। राष्ट्रपिता बापू ने अपने दैनंदिन जीवन में स्वच्छता को जो महत्व दिया वैसे ही आवश्यकता जब तक हम अपने व्यक्तिगत जीवन में भी महसूस नहीं करेंगे तब तक इस अभियान की सफलता के प्रति निश्चिंतता का भाव हमारे अंदर पैदा नहीं हो सकता।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों को जिस तरह हमारे समाज में विस्मृत किया जा रहा है उसका एक परिणाम यह भी हुआ है कि उनकी पावन जन्मतिथि पर होने वाले राष्ट्रीय आयोजन भी धीरे-धीरे अब मात्र रस्म अदायगी का रूप लेते जा रहे हैं और यह तो स्वाभाविक ही है कि जो आयोजन मात्र रस्म अदायगी के लिए किए जाते हैं उनसे किसी उद्देश्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। दरअसल समाज को स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाने के लिए जिन संगठित प्रयासों की आवश्यकता थी, वे कभी भी ईमानदारी के साथ प्रारंभ ही नहीं हुए। शायद यह पहला अवसर होगा कि जब देशवासियों से सरकार ने 2 अक्टूबर को दफ्तरों में अनिवार्य रूप से उपस्थिति दर्ज कराने की अपेक्षा की।
प्रधानमंत्री का यह कथन बिल्कुल सही है कि अगर देशवासी सप्ताह में मात्र दो घंटे अर्थात वर्ष में मात्र 100 घंटे का समय अपने आसपास सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लें तो देश की तस्वीर बदल जाएगी। प्रधानमंत्री यह चाहते हैं कि इस दिन वे दफ्तरों में केवल स्वच्छता पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित करें तो निसंदेह यह एक स्वागतेय पहल है और इसे एक सतत प्रक्रिया का रूप प्रदान करने के लिए सरकार कृत संकल्प दिखाई दे रही है तो जल्द ही इसके सुखद परिणाम भी सामने आने की संभावना भी बलवती हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अनेक मंत्रियों ने तो 2 अक्टूबर की नियत तारीख के पूर्व ही सड़कों में साफ सफाई के लिए पहल करना प्रारंभ कर दिया है। अब देखना यह है कि मंत्रियों की यह सक्रियता एक सतत अभियान का रूप लेने में कितनी सफल होती है।
केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालते ही नरेंद्र मोदी ने अनेक ऐसे अभियानों की शुरुआत की है जो उनके लीक से हटकर चलने की अनूठी प्रवृत्ति के परिचायक हैं और इन अभियानों की शुरुआत के पीछे किसी राजनीतिक हित की मंशा भी नहीं देखी जा सकती। देश की तस्वीर को सुंदर रंगों से सजाने के लिए सरकार के इन सारे अभियानों से राष्ट्र और समाज को जो लाभ होगा, उसकी कल्पना असंभव नहीं है। एक कहावत है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है, परंतु अगर हमारे आसपास का परिवेश प्रदूषण से मुक्त न हो तो क्या हम अपने शरीर की स्वच्छता को कायम रख पाएंगे और जब शरीर की स्वच्छता बनाए रखना हमारे लिए संभव नहीं होगा तो मन पर उसका दुष्प्रभाव पड़ने से कैसे इंकार किया जा सकता है?
इस बार 2 अक्टूबर को सारा राष्ट्र स्वच्छता अभियान में भागीदारी कर सच्चे अर्थों में राष्ट्रपिता बापू को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कृत संकल्प हो चुका है। शहरी और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस मिशन पर अगले पांच साल में दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने का फैसला कर चुका है।प्रधानमंत्री का यह कथन बिल्कुल सही है कि अगर देशवासी सप्ताह में मात्र दो घंटे अर्थात वर्ष में मात्र 100 घंटे का समय अपने आसपास सफाई व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए समर्पित करने का निश्चय कर लें तो देश की तस्वीर बदल जाएगी। उन्होंने स्वच्छता के सतत अभियान का रूप प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देते हुए समाज के सभी वर्गों से जुड़ने की जो अपील की है उसकी शुरुआत में ही उनकी सरकार के मंत्रियों ने जो उत्साह दिखाया है उसके बाद इस अभियान से जनता का भावनात्मक जुड़ाव होने में कोई संशय की गुंजाइश नहीं रह जाती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस बार 2 अक्टूबर को सारा राष्ट्र स्वच्छता अभियान में भागीदारी कर सच्चे अर्थों में राष्ट्रपिता बापू को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कृत संकल्प हो चुका है। शहरी और ग्रामीण विकास मंत्रालय इस मिशन पर अगले पांच साल में दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने का फैसला कर चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी की दिली इच्छा है कि 2019 में जब सारा राष्ट्र महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाए तब तक स्वच्छता अभियान के माध्यम से भारत एक साफ सुंदर राष्ट्र के रूप में विकसित हो जाए, जिसे महात्मा गांधी के सपनों का भारत बताकर हम उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त कर सकें।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)