Source
पर्यावरण चेतना
दुनिया भर के पर्यावरणविद् बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक, अंटार्कटिका की ध्रुवीय बर्फ और पहाड़ी हिम ग्लेशियरों के पिघलने पर लगातार चिंता जताते रहे हैं। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह जारी रहा, तो वर्ष 2040 तक उत्तर ध्रुवीय इलाकों में बर्फ के दर्शन दुर्लभ हो सकते हैं और तब यह बन जाएगा एक खुला समुद्र। पिघलती बर्फ के कारण और गैसों के गर्म होकर फैलने से मेरे जल स्तर में वृद्धि हो रही है। तकरीबन साढ़े चार अरब से ज्यादा वर्ष हो गए हैं, जब पृथ्वी का निर्माण हुआ। मेरा जन्म कैसे हुआ? इस बारे में जानना काफी दिलचस्प है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी कई प्रकार की गैसों और धूलकणों के मिश्रण से बनी है। इनमें जो हल्की गैसें थीं, मसलन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन, वे पृथ्वी की भीतरी परतों में समा गई थीं। ज्वालामुखी फटने से ये गैसें द्रवित हो गईं और पृथ्वी के ऊपरी हिस्से में वाष्प के रूप में फैल गई। धीरे-धीरे संघनन प्रक्रिया से बारिश हुई और यह पानी पूरी पृथ्वी पर फैल गया। यह पृथ्वी के उन हिस्सों में जमा हो गया, जो निचले या गड्ढे वाले इलाके थे। बहरहाल, इस तरह से हुआ हमारा जन्म, पर इस बारे में विशेषज्ञों के अलग-अलग मत है।
पृथ्वी तकरीबन 71 प्रतिशत हिस्से में फैला हूं मैं। इसे यदि किलोमीटर में आंके, तो यह होगा 36 करोड़ 10 लाख वर्ग किलोमीटर। मैं इतना गहरा हूं, जितनी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई। दोस्तों, मेरी सबसे अधिक गहराई पश्चिमी प्रशांत महासागर के मेरियाना ट्रैंच में पाई जाती है। वैसे, मेरी औसत गहराई होती है 12 हजार दो सौ तीस फीट यानी 3 हजार सात सौ तीस मीटर 1 पैसिफिक या प्रशांत, अटलांटिक, इंडियन और आर्कटिक-इन चार भागों में मुझे विभाजित किया गया है। मुझे महासागर भी का जाता है। हालांकि हम सभी महासागर आपस में जुड़े होते हैं। पैसिफिक, जिसे प्रशांत महासागर भी कहते हैं, सबसे विशाल और सबसे गहरा महासागर है।
वायुमंडल में गैसों के प्राकृतिक संतुलन, मौसम के संचालन और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में अहम् भूमिका निभाता हूं मैं। मेरी धाराओं की स्वाभाविक गति समुद्री तल से पोषक तत्व ऊपरी सतह पर लाती रहती हैं। ये पोषक तत्व मेरे ऊपरी स्तरों व सतह पर पाए जाने वाले जीवों, जैसे-सूक्ष्म समुद्री पौधों (फाइटोप्लेंक्टोन) के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। फाइटोप्लेंक्टोन दो तरह से बहुत अहम् हैं। एक तो यह हमारे अंदर खाद्य श्रृंखला का आधार है। (सारा समुद्री जीवन इन पर निर्भर है) और दूसरा ये समुद्री पौधे बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके व ऑक्सीजन छोड़कर वायुमंडल में प्राकृतिक गैस का संतुलन सुचारू रूप से नहीं निभा पाएंगे, तो न केवल मेरा जीवन लड़खड़ा जाएगा, बल्कि प्राकृतिक गैसों का संतुलन बिगड़ने से धरती पर मानव का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। मेरे अंदर होने वाली अस्वाभाविक हलचल विभिन्न देशों की जलवायु व मानसून के तौर-तरीकों में भी अस्वाभाविक परितवर्तन ला सकती है। मैं जिस देश का हिस्सा हूं, उस देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ी भूमिका निभाता हूं। कुल मिलाकर, मैं यही कहना चाहता हूं कि मेरी उपयोगिता अनंत है।
मेरे महत्व को लोग नहीं समझ रहे हैं। औद्योगिक क्रांति और बढ़ते शहरीकगण ने मेरी दुनिया में तबाही मचा दी है। मेरी अटल गहराइयों में अशांति आ गई है। मेरे साथ रहने वाले जीव-जंतु खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यह सब हो रहा है तमाम तरह का कूड़ा-कचरा मुझ में फेंकने से। पेयजल संकट के कारण मेरे पानी को शुद्ध कर पीने योग्य बनाया जाएगा। लेकिन यह सब होगा मेरी तबाही की कीमत पर। हां, शुद्धीकरण प्लांट लगाने से मेरा पानी अम्लीय हो जाएगा। मछलियां मरने लगेंगी। मत्स्य उद्योग पर निर्भर रहने वाले शहर और लोगों की जीविका पर संकट आ जाएगा। ज्यादा क्या कहूं, बस एक ही निवेदन कर रहा हूं-बचा लो मुझे।
दुनिया भर के पर्यावरणविद् बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक, अंटार्कटिका की ध्रुवीय बर्फ और पहाड़ी हिम ग्लेशियरों के पिघलने पर लगातार चिंता जताते रहे हैं। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह जारी रहा, तो वर्ष 2040 तक उत्तर ध्रुवीय इलाकों में बर्फ के दर्शन दुर्लभ हो सकते हैं और तब यह बन जाएगा एक खुला समुद्र। पिघलती बर्फ के कारण और गैसों के गर्म होकर फैलने से मेरे जल स्तर में वृद्धि हो रही है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि मेरा जल स्तर पिछले सौ सालों से प्रतिवर्ष 1.8 मिलीमीटर के रफ्तार से बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया समुद्रतटीय क्षेत्रों, प्रायद्वीपीय देशों के अस्तित्व पर मंडराते गंभीर खतरे का सूचक है। ये सारी बातें सही हैं। मैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सचमुच बहुत परेशान हूं और हां, गुस्से में भी हूं, बढ़ते खतरे की वजह से यहां हजारों की संख्या में लोगों के बेघर या विस्थापित होने की स्थिति पैदा हो रही है। तुम समझदार हो, जानते हो कि तुम्हें क्या करना है?
मैं हूं कितना विशाल
पृथ्वी तकरीबन 71 प्रतिशत हिस्से में फैला हूं मैं। इसे यदि किलोमीटर में आंके, तो यह होगा 36 करोड़ 10 लाख वर्ग किलोमीटर। मैं इतना गहरा हूं, जितनी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई। दोस्तों, मेरी सबसे अधिक गहराई पश्चिमी प्रशांत महासागर के मेरियाना ट्रैंच में पाई जाती है। वैसे, मेरी औसत गहराई होती है 12 हजार दो सौ तीस फीट यानी 3 हजार सात सौ तीस मीटर 1 पैसिफिक या प्रशांत, अटलांटिक, इंडियन और आर्कटिक-इन चार भागों में मुझे विभाजित किया गया है। मुझे महासागर भी का जाता है। हालांकि हम सभी महासागर आपस में जुड़े होते हैं। पैसिफिक, जिसे प्रशांत महासागर भी कहते हैं, सबसे विशाल और सबसे गहरा महासागर है।
बेहद खास हूं
वायुमंडल में गैसों के प्राकृतिक संतुलन, मौसम के संचालन और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में अहम् भूमिका निभाता हूं मैं। मेरी धाराओं की स्वाभाविक गति समुद्री तल से पोषक तत्व ऊपरी सतह पर लाती रहती हैं। ये पोषक तत्व मेरे ऊपरी स्तरों व सतह पर पाए जाने वाले जीवों, जैसे-सूक्ष्म समुद्री पौधों (फाइटोप्लेंक्टोन) के अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। फाइटोप्लेंक्टोन दो तरह से बहुत अहम् हैं। एक तो यह हमारे अंदर खाद्य श्रृंखला का आधार है। (सारा समुद्री जीवन इन पर निर्भर है) और दूसरा ये समुद्री पौधे बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके व ऑक्सीजन छोड़कर वायुमंडल में प्राकृतिक गैस का संतुलन सुचारू रूप से नहीं निभा पाएंगे, तो न केवल मेरा जीवन लड़खड़ा जाएगा, बल्कि प्राकृतिक गैसों का संतुलन बिगड़ने से धरती पर मानव का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। मेरे अंदर होने वाली अस्वाभाविक हलचल विभिन्न देशों की जलवायु व मानसून के तौर-तरीकों में भी अस्वाभाविक परितवर्तन ला सकती है। मैं जिस देश का हिस्सा हूं, उस देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ी भूमिका निभाता हूं। कुल मिलाकर, मैं यही कहना चाहता हूं कि मेरी उपयोगिता अनंत है।
बचा लो मुझे
मेरे महत्व को लोग नहीं समझ रहे हैं। औद्योगिक क्रांति और बढ़ते शहरीकगण ने मेरी दुनिया में तबाही मचा दी है। मेरी अटल गहराइयों में अशांति आ गई है। मेरे साथ रहने वाले जीव-जंतु खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यह सब हो रहा है तमाम तरह का कूड़ा-कचरा मुझ में फेंकने से। पेयजल संकट के कारण मेरे पानी को शुद्ध कर पीने योग्य बनाया जाएगा। लेकिन यह सब होगा मेरी तबाही की कीमत पर। हां, शुद्धीकरण प्लांट लगाने से मेरा पानी अम्लीय हो जाएगा। मछलियां मरने लगेंगी। मत्स्य उद्योग पर निर्भर रहने वाले शहर और लोगों की जीविका पर संकट आ जाएगा। ज्यादा क्या कहूं, बस एक ही निवेदन कर रहा हूं-बचा लो मुझे।
डूब जाएंगे शहर?
दुनिया भर के पर्यावरणविद् बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक, अंटार्कटिका की ध्रुवीय बर्फ और पहाड़ी हिम ग्लेशियरों के पिघलने पर लगातार चिंता जताते रहे हैं। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह जारी रहा, तो वर्ष 2040 तक उत्तर ध्रुवीय इलाकों में बर्फ के दर्शन दुर्लभ हो सकते हैं और तब यह बन जाएगा एक खुला समुद्र। पिघलती बर्फ के कारण और गैसों के गर्म होकर फैलने से मेरे जल स्तर में वृद्धि हो रही है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि मेरा जल स्तर पिछले सौ सालों से प्रतिवर्ष 1.8 मिलीमीटर के रफ्तार से बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया समुद्रतटीय क्षेत्रों, प्रायद्वीपीय देशों के अस्तित्व पर मंडराते गंभीर खतरे का सूचक है। ये सारी बातें सही हैं। मैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सचमुच बहुत परेशान हूं और हां, गुस्से में भी हूं, बढ़ते खतरे की वजह से यहां हजारों की संख्या में लोगों के बेघर या विस्थापित होने की स्थिति पैदा हो रही है। तुम समझदार हो, जानते हो कि तुम्हें क्या करना है?