Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
समस्याएं तो विकट हैं और नुकसान भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। इन स्थितियों से निपटने हेतु स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप तकनीक विकसित की गई है। जिनका प्रसार एक सीमित क्षेत्र तक ही होता है। इसे बड़े पैमाने पर प्रसारित करने की आवश्यकता के मद्देनज़र यह संकलन है।
मौसम बदलाव से उत्पन्न समस्याओं के चलते कृषि, कृषि पद्धति, जैव विविधता, स्वास्थ्य व जीवन-यापन पर प्रतिकूल प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ रहे हैं। उत्पादकता और जान-माल की क्षति लगातार बढ़ रही है। इन स्थितियों से निपटने की दिशा में सरकारी विकास संस्थाओं द्वारा भी प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु सामान्यतः यह प्रयास कुछ राहत पैकेज आधारित व अल्पकालीन होते हैं। लिहाजा इन अल्पकालिक समाधान की प्रक्रियाओं के कारण समुदाय की समस्याओं का कोई दीर्घकालिक हल नहीं हो पाया है और न ही इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में कोई सकारात्मक प्रभाव ही दिखा है। वर्तमान में भी भारत के अधिकांश विकास कार्यक्रमों और योजनाओं की क्रियान्वयन रणनीतियों में मौसम के बदलते मिज़ाज और अनिश्चितता के आधार पर कोई ठोस रणनीति का समावेश नहीं है और इसीलिए समुदाय की नाजुकता और बढ़ी है।
अब यदि हम समुदाय की बात करें तो यह भी देखने को मिला है कि सदियों से स्थानीय निवासियों द्वारा सूखा की स्थितियों से निपटने के लिए उनके पास अपने स्वयं के ज्ञान कौशल और तकनीकें विद्यमान हैं, जो उनके जीवन-यापन को सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाती है। बिना किसी बाहरी निर्भरता के स्थानीय लोगों ने पारंपरिक रूप से आपदाओं से निपटने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किए हैं जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप होते हैं और उनके द्वारा विकसित तकनीकों व विधियों में आवश्यकतानुसार वैज्ञानिकता का भी समावेश होता है।
सूखे की स्थितियों से निपटने अथवा उसके प्रभाव को कम करने में स्थानीय समुदाय अनुकूलन क्षमता अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तविकता यह है कि स्थानीय स्तर पर विकसित पारंपरिक तकनीकों के अपनाए जाने से लोगों की अनुकूलन क्षमता में वृद्धि होती है और वे जोखिम को कुछ हद तक कम करने में सक्षम हो पाते हैं, परंतु ऐसी पारंपरिक विधियों व तकनीकों की जानकारी का प्रयोग काफी हद तक स्थानीय क्षेत्र तक ही सीमित रह जाता है और इसका लाभ अन्य लोग नहीं ले पाते।
सूखा के क्षेत्रों में निर्धनतम लोगों के विकास हेतु कार्य कर रही स्वैच्छिक संस्थाओं ने यह प्रयास किया है कि स्थानीय स्तर पर ऐसी पारंपरिक व अपनाई गई तकनीकों व विधियों का एक संकलन तैयार किया जाए और इस ज्ञान की साझेदारी हेतु प्रयास किए जाएं। यह प्रयास समुदाय के निर्धन लोगों की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने में सहायक होगा, जिससे वे सूखा जैसी आपदाओं से निपटने में बेहतर ढंग से सक्षम हो सकेंगे।
इन तकनीकों व विधियों को लिखित रूप से संकलित कर, प्रस्तुत मैनुअल के रूप में तैयार किया गया है।
मौसम बदलाव से उत्पन्न समस्याओं के चलते कृषि, कृषि पद्धति, जैव विविधता, स्वास्थ्य व जीवन-यापन पर प्रतिकूल प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पड़ रहे हैं। उत्पादकता और जान-माल की क्षति लगातार बढ़ रही है। इन स्थितियों से निपटने की दिशा में सरकारी विकास संस्थाओं द्वारा भी प्रयास किए जा रहे हैं, परंतु सामान्यतः यह प्रयास कुछ राहत पैकेज आधारित व अल्पकालीन होते हैं। लिहाजा इन अल्पकालिक समाधान की प्रक्रियाओं के कारण समुदाय की समस्याओं का कोई दीर्घकालिक हल नहीं हो पाया है और न ही इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में कोई सकारात्मक प्रभाव ही दिखा है। वर्तमान में भी भारत के अधिकांश विकास कार्यक्रमों और योजनाओं की क्रियान्वयन रणनीतियों में मौसम के बदलते मिज़ाज और अनिश्चितता के आधार पर कोई ठोस रणनीति का समावेश नहीं है और इसीलिए समुदाय की नाजुकता और बढ़ी है।
अब यदि हम समुदाय की बात करें तो यह भी देखने को मिला है कि सदियों से स्थानीय निवासियों द्वारा सूखा की स्थितियों से निपटने के लिए उनके पास अपने स्वयं के ज्ञान कौशल और तकनीकें विद्यमान हैं, जो उनके जीवन-यापन को सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाती है। बिना किसी बाहरी निर्भरता के स्थानीय लोगों ने पारंपरिक रूप से आपदाओं से निपटने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किए हैं जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप होते हैं और उनके द्वारा विकसित तकनीकों व विधियों में आवश्यकतानुसार वैज्ञानिकता का भी समावेश होता है।
सूखे की स्थितियों से निपटने अथवा उसके प्रभाव को कम करने में स्थानीय समुदाय अनुकूलन क्षमता अत्यंत महत्वपूर्ण है। वास्तविकता यह है कि स्थानीय स्तर पर विकसित पारंपरिक तकनीकों के अपनाए जाने से लोगों की अनुकूलन क्षमता में वृद्धि होती है और वे जोखिम को कुछ हद तक कम करने में सक्षम हो पाते हैं, परंतु ऐसी पारंपरिक विधियों व तकनीकों की जानकारी का प्रयोग काफी हद तक स्थानीय क्षेत्र तक ही सीमित रह जाता है और इसका लाभ अन्य लोग नहीं ले पाते।
सूखा के क्षेत्रों में निर्धनतम लोगों के विकास हेतु कार्य कर रही स्वैच्छिक संस्थाओं ने यह प्रयास किया है कि स्थानीय स्तर पर ऐसी पारंपरिक व अपनाई गई तकनीकों व विधियों का एक संकलन तैयार किया जाए और इस ज्ञान की साझेदारी हेतु प्रयास किए जाएं। यह प्रयास समुदाय के निर्धन लोगों की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने में सहायक होगा, जिससे वे सूखा जैसी आपदाओं से निपटने में बेहतर ढंग से सक्षम हो सकेंगे।
इन तकनीकों व विधियों को लिखित रूप से संकलित कर, प्रस्तुत मैनुअल के रूप में तैयार किया गया है।