मध्य पश्चिमी हिमालय उत्तराखण्ड के जलस्रोतों में जल उपलब्धता (Spring water availability of mid western Himalaya, Uttarakhand)

Submitted by Hindi on Thu, 09/15/2016 - 14:22
Source
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012

सारांश:


मध्य पश्चिमी हिमालय के निवासियों, पशु तथा वनस्पतियों के लिये उपलब्ध जल संसाधन प्राकृतिक जलस्रोत हैं। ये जल के स्रोत बहुत छोटे संसाधन हो सकते हैं, लेकिन हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जीवन इन्हीं पर निर्भर रहता है। पश्चिमी हिमालय देवप्रयाग उत्तराखण्ड के जलग्रहण क्षेत्र, प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, और इस क्षेत्र के जीवन के अस्तित्व के लिये मौलिक आधार प्रदान करते हैं। साथ ही साथ अपने बारहमासी नदी प्रणाली के माध्यम से धारा क्षेत्र से नीचे के लाखों लोगों के लिये भी जल उपलब्ध कराते हैं। इन पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की उपलबधता में स्थान और समय में असमान वर्षा वितरण के कारण कभी-कभी जल की भारी कमी हो जाती है। विशेष रूप से गर्मी और कम प्रवाह या कम वर्षा वाले वर्षों के दौरान, लोगों को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। इसलिये मौजूदा पानी की उपलब्धता, उपयोग और जल ग्रहण क्षेत्र के जलविज्ञानीय प्रभावों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है। अध्ययन क्षेत्र डांडा मध्य पश्चिमी हिमालय के कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र देवप्रयाग, उत्तराखण्ड में लगभग 3 वर्ग किमी. में फैला है। स्वचालित तकनीकी द्वारा जल मौसम आँकड़े एकत्रित किये गये तथा क्षेत्र के सभी जलस्रोतों जो वहाँ के निवासी प्रयोग में लाते हैं, सभी का जलप्रवाह प्रतिदिन मापा गया। जल ग्रहण क्षेत्र के जलस्रोतों का संक्षिप्त विवरण देते हुए इनके प्रवाह का अध्ययन किया गया है। जलस्रोतों का वार्षिक संचयी जलप्रवाह वार्षिक संचयी वर्षा से प्रतिक्रिया का स्पष्ट संकेत देता है। जलस्रोतों का दस दिन प्रवाह वक्र का ढलान कम औसत प्रवाह के दौरान अधिक तेजी से बढ़ जाता हैं। जलस्रोत प्रवाह के उच्चतम तथा न्यूनतम प्रवाह के बीच का उच्च अंतर यह दर्शाता है कि जलस्रोत शीघ्र प्रतिक्रिया वाले हैं तथा इनके प्रवाह का स्तर न्यूनतम की तरफ तेज प्रतिक्रिया कर रहा है।

Abstract


The springs of mid western Himalayan watersheds provide basis for the existence of life at mountain. These springs could be too small but the life depends on it in high Himalaya. Western Himalayan watersheds are rich in natural resource and provide the basic for the life in this area. It also provides water to millions at downstream through its perennial river system. Even then sometimes the availability of natural resources at hills goes to acute shortage due to its uneven distribution in space and time. Especially, during summer and low flow years, the people face acute shortage of water. It is, therefore, important to study the existing water availability uses and its impacts on watershed hydrology. Study area Danda lies in ‘Mid Western Himalaya’ agro-ecological region of Devprayag, Uttarakhand with area around 3 Km2. Automated hydro meteorological data were collected Regular (daily) spring flow measurement were taken on almost all springs that are used by the habitat of the area. Spring flow availability is evaluated along with the average low flow duration curve for the springs of the watershed. The spring flow variability is related with spring rainfall lag. Relationship between total rainfall and total spring flow are also developed.

प्रस्तावना


छोटे जल ग्रहण क्षेत्रों पर शोध, जलस्रोतों से पानी की मात्रा को प्रभावित करने वाली भौतिक प्रक्रियाओं की समझ पैदा करने में महत्त्वपूर्ण है। अध्ययन क्षेत्र डांडा, पश्चिमी हिमालय कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र गढ़वाल में स्थित है। इस अध्ययन क्षेत्र की चट्टानों की रचना मुख्य रूप से फिलेट्स (phyllites) और चांदपुर गठन की चट्टानों को (sychist) चट्टानें (छोटे हिमालय) हैं। चांदपुर गठन की चट्टानों को जैतूनी हरा और भूरे फिलेट्स कहा जाता है जो अंतरपरत (inter-bedded) के साथ-साथ अंतरसंबंधी (inter-banded) हैं और मेटा ज्वालामुखीय हैं। चट्टानों की भूमिगत संरचना एक नाली या विसरित नाली (Diffused) या दोनों के संयोजन के रूप में जलस्रोतों के लिये भूजल रास्तों को नियंत्रित करती है जो फिल्टर के रूप में कार्य करती है तथा स्रोतों को जल प्रदान करती है।

सामग्री एवं विधि


अध्ययन क्षेत्र: डांडा जलग्रहण क्षेत्र 1.34 वर्ग किलोमीटर के आस-पास है। यह भौगोलिक रूप में N300 14’ से N300 16’ और देशांतर E780 37’ से E780 39’ पर 780 मीटर से 1800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, उप आर्द्र क्षेत्र है। इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 900 मिमी. है। अध्ययन क्षेत्र स्थानीय स्तर पर खासपट्टी के रूप में जाना जाता है और टिहरी गढवाल जिले के हिन्डोलाखाल ब्लॉक (देवप्रयाग तहसील) में स्थित है। यह क्षेत्र पीने के पानी की कमी के लिये जाना जाता है तथा इस जल ग्रहण क्षेत्र की मुख्य विशेषताएँ सारणी 1 में दी गई हैं। इस क्षेत्र में पानी के जलस्रोत उनके जलग्रहण क्षेत्र और स्थलाकृतिक जानकारी चित्र 1 में दिखाई गई है।

जलस्रोत की प्रवाह प्रतिक्रिया: डांडा जल ग्रहण क्षेत्र की एक विशेष अधिकतम जल उपलब्ध करने वाले जलस्रोत का मासिक औसत डिस्चार्ज जलग्रहण की वर्षा के साथ चित्र 2 में दिखाया गया है। जलस्रोतों पर वर्षा की त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है कि जलस्रोत का भंडारण क्षेत्र (recharge area) जलस्रोत के पास के इलाके में ही है। डांडा जल ग्रहण के किन्ही पाँच चयनित जलस्रोतों के लिये संचयी जलस्रोत प्रवाह और संचयी वर्षा को चित्र 3 में दिखाया गया है। कुल मिलाकर जलस्रोत के संचयी डिस्चार्ज, जून से मई तक की अवधि के लिये संचयी वर्षा के घातीय/शक्ति या दूसरे क्रम के बहुपद प्रतिक्रिया का संकेत दिखाती है। सर्दियों की बारिश का प्रभाव आगामी गर्मियों के लिये स्रोत के प्रवाह को बनाए रखने में सहयोग प्रदान करता है।

Fig-1 दस दिन अवधि प्रवाह वक्र (चित्र 4) की ढलान उच्च दस दैनिक औसत डिस्चार्ज में वृद्धि के लिये लगभग सपाट है, लेकिन 100 कम दैनिक औसत डिस्चार्ज के नीचे यह ढलान बढ़ जाती है यह व्यवहार जलस्रोतों के लिये उपलब्ध आधार प्रवाह की सीमाओं को इंगित करता है प्रवाह अवधि वक्र की अचानक गिरावट, सक्रिय जलस्रोतों में योगदान करने के लिये आधार तथा प्रवाह को बढाने के लिये जलग्रहण क्षेत्र के पुनः भंडारण का एक स्पष्ट संकेत देता है।

 

सारणी 1- जल ग्रहण क्षेत्र डांडा की मुख्य विशेषताएँ

जनसंख्या वर्ष 1991 में

मानव: 1732, पशु: 839

जनसंख्या वर्ष 2009 में

मानव: 1276, पशुः 367

क्षेत्र की प्रमुख फसलें

चावल, गेहूँ, कोड़ा, राजमा, अरहर, मसूर, सोयाबीन, सरसों, उड़द, गेंत

क्षेत्र की वन उपज

इमारती लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, घास, चारा पत्ते, राल, शहद, मोम

क्षेत्र की वर्षा

मानसून: 575 मिमी, गैर मानसून: 325 मिमी

औसत समुद्र तल से ऊँचाई

780-1800 मीटर

हवा का तापमान 0C

अधिकतम 35 न्यूनतम: 4

सापेक्ष आर्द्रता%

अधिकतम 92 न्यूनतम: 40

वाष्पीकरण, मिमी/दिन

अधिकतम 6 न्यूनतम: 1.4

 

Fig-2Fig-3Fig-4Fig-5जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल की विशेषताएँ: दैनिक और परिवर्तित मासिक आँकड़ों के आधार पर जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल का अध्ययन किया गया। डांडा जल ग्रहण क्षेत्र के विभिन्न जलस्रोतों ने 1 से 25 दिनों और 0 से 2 महीने (सारणी 2) के अन्तराल का संकेत दिया। जलस्रोत प्रवाह-वर्षा (spring-rainfall) के अन्तराल के निम्न मान से पता चलता है कि रिचार्ज क्षेत्र पास के इलाके में ही स्थित है। जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल सहसंबंध अनुपात (न्यूनतम से अधिकतम) जलस्रोत प्रवाह की परिवर्तनशीलता को परिभाषित करता है (चित्र 5) और यह सहसंबंध अनुपात जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल (दिनों में) से संबंधित है। यह संबंध घातीय क्षय समीकरण द्वारा दर्शाया गया है यह अनुपात समय अन्तराल में वृद्धि के साथ कम हो जाता है (चित्र 5) यानी समय अन्तराल जितना ज्यादा होगा स्रोत प्रवाह की परिवर्तनशीलता उतनी ही कम होगी तथा जलस्रोत में पूरे साल जल उपलब्ध रहेगा। घातीय क्षय समीकरण (exponential decay function) निम्न प्रकार से पाया गया तथा निम्नानुसार है:

Y=0.7314e-0.0432x
(r2=0.51)

उपरोक्त समीकरण में, Y अधिकतम जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल सहसंबंध अनुपात है और X दिनों में अन्तराल है। यह सहसंबंध अनुपात जल ग्रहण के जलस्रोत के सुधार की पहचान के लिये एक संकेत की तरह प्रयोग किया जा सकता है। और भविष्य में अन्य जलस्रोतों के लिये भी निकाला जा सकता है।

अधिकतम और न्यूनतम मासिक औसत प्रवाह जानकारी दैनिक प्रवाह आँकड़ों से सभी जलस्रोतों के लिये अलग-अलग निकाली गई है (सारणी 3)। डांडा जलस्रोतों से अधिकतम जलस्रोत प्रवाह 3 M3/day से 372 M3/day और न्यूनतम शून्य से 27 M3/day है। जलस्रोतों का प्रवाह अत्यधिक परिवर्तनशील तथा औसत अधिकतम और औसत न्यूनतम प्रवाह 67 M3/day और 6 M3/day है। अधिकतम और न्यूनतम प्रवाह के बीच उच्च भिन्नता (high variation) दर्शाती है तथा क्षेत्र के लगभग सभी जलस्रोत एक न्यूनतम प्रवाह स्तर की ओर पलायन और तेज प्रतिक्रिया कर रहे हैं।

 

सारणी 2- डांडा जलस्रोत के लिये जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल

क्रं.सं

जलस्रोत की क्र.सं.

आँकड़ों की लम्बाई

अन्तराल दिन में

अन्तराल महीने में

1

1

जुलाई 99 से जून 11

22

2

2

2

जुलाई 99 से जून 11

12

2

3

3

जुलाई 99 से जून 11

3

0 से 1

4

4I

जुलाई 99 से जून 11

24

1

5

4B

अप्रैल 05 से जून 11

22

0

6

5

जनवरी 03 से जून 11

9

1 से 2

7

6

जुलाई 99 से जून 11

12

1 से 2

8

7

जुलाई 99 से जून 11

10

1 से 2

9

8

जनवरी 03 से जून 11

6

0

10

9

जुलाई 99 से जून 11

18

1

11

11

जून 00 से जून 11

29

3

12

13

नवम्बर 00 से जून 11

5

1

13

15

नवम्बर 00 से जून 11

1

0

14

16

जुलाई 02 से जून 11

17

0 से 1

15

17

नवम्बर 00 से जून 08

25

1

16

20

नवम्बर 00 से जून 11

25

1

17

28

जुलाई 01 से जून 11

25

1

 

कुल वार्षिक जलस्रोत प्रवाह-वर्षा का संबंध: जल ग्रहण के सभी जलस्रोतों से वार्षिक जलस्रोत प्रवाह चित्र 6 में दिखाया गया है। वार्षिक वर्षा और कुल वार्षिक जलस्रोत प्रवाह के बीच का संबंध दूसरे क्रम बहुपद के रूप में इस प्रकार है।

TSp=0.0072*TRa2-3.352*TRa-3967 (r2=0.83)

जिसमें TSp पानी के जलस्रोत का वार्षिक प्रवाह (m3) और TRa वार्षिक वर्षा (मि.मी.) है। संबंध इंगित करता है कि कुल जलस्रोत प्रवाह, वर्षा की कुल राशि के साथ बढ़ जाती है। सैद्धांतिक संबंध समर्थन करता है कि जलस्रोत प्रवाह औसत से कम वर्षा के लिये न्यूनतम है, औसत वर्षा के लिये जलस्रोत प्रवाह औसत होता है और औसत वर्षा से अधिक के लिये जलस्रोत प्रवाह अधिकतम होता है। बहुपदीय समीकरण से पता चलता है कि डांडा जल ग्रहण के लिये जलस्रोत का प्रवाह 1000 मि.मी. वर्षा तक संतृप्ति स्तर तक नहीं पहुँच पाता है जबकी इस क्षेत्र की औसत वर्षा लगभग 793 मि.मि. है। अतः इस क्षेत्र में जलस्रोत प्रवाह को बढ़ाने की संभावनाओं तथा जरूरत को नकारा नहीं जा सकता और इस तरह कार्य करने की आवश्यकता है।

Fig-6Sarni-3

परिणाम एवं विवेचना


उत्तराखण्ड (डांडा) जल ग्रहण क्षेत्र के जलस्रोत वर्षा के साथ त्वरित प्रतिक्रिया करते हैं। त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है कि जलस्रोत का भण्डारण क्षेत्र (recharge area) जलस्रोत के पास के इलाके में ही है। जलस्रोत के संचयी डिस्चार्ज, जून से मई तक की अवधि के लिये संचयी वर्षा के घातीय/शक्ति या दूसरे क्रम के बहुपद प्रतिक्रिया का संकेत दिखाती है। सर्दियों की बारिश का प्रभाव आगामी गर्मियों के लिये स्रोत के प्रवाह को बनाए रखने में सहयोग प्रदान करता है। कम दैनिक औसत डिस्चार्ज के लिये दस दिन अवधि प्रवाह वक्र की अचानक गिरावट, सक्रिय जलस्रोतों में योगदान करने के लिये आधार तथा प्रवाह को बढाने के लिये जलग्रहण क्षेत्र के पुनः भण्डारण का संकेत है। जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल सहसंबंध अनुपात (न्यूनतम से अधिकतम) जलस्रोत प्रवाह की परिवर्तनशीलता को परिभाषित करता है। यह संबंध घातीय क्षय समीकरण (exponential decay function) द्वारा दर्शाया जा सकता है। जलस्रोत प्रवाह की परिवर्तनशीलता, जलस्रोत प्रवाह-वर्षा अन्तराल के साथ कम होता जाता है। जलस्रोतों का वार्षिक जल प्रवाह (m3) कुल वार्षिक वर्षा (मिमी.) के साथ बढ़ जाता है।

सुझाव


उपलब्ध जल के कुशल उपयोग एवं समस्या पर काबू पाने के लिये जल संसाधनों में वृद्धि करने के लिये निम्नलिखित सुझावों को अपनाया जा सकता है।

1. जलस्रोतों के जल ग्रहण क्षेत्र में अन्तः स्पंदन (infilteration) में वृद्धि के लिये जल ग्रहण संरचनाओं का निर्माण करना चाहिए। इस विधि द्वारा स्रोतों के प्रवाह को बढ़ाने के लिये मानसून के महीनों में वर्षा जल की अंतः स्पंदन में वृद्धि कर सकते हैं।

2. अनिवार्य रूप से, गैर उपयोग की अवधि के दौरान जलस्रोत का प्रवाह भंडारण करने के लिये छोटी-छोटी जल ग्रहण संरचनाओं का होना आवश्यक है। इस संग्रहित पानी को आवश्यकता के दौरान इस्तेमाल किया जा सकता है। सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए विशेष योजना और प्रबंधन द्वारा जलस्रोत के पानी को स्टोर करने के लिये और गुरुत्वाकर्षण प्रवाह के माध्यम से अधिक कमी वाले क्षेत्रों को पानी के हस्तांतरण की आवश्यकता है। जल ग्रहण क्षेत्र में पानी के समुचित उपयोग के लिये निर्णय प्रणाली आवश्यक है। यह निर्णय प्रणाली जल ग्रहण क्षेत्र (डांडा) के जलस्रोतों के अतिरिक्त पानी के हस्तांतरण के लिये तैयार की गई है।

3. बागवानी फसलों के साथ कुशल ड्रिप सिंचाई की पद्धति की सिफारिश की जाती है। इससे सीमित जलस्रोत के जल संसाधनों की क्षमता का अधिकतम उपयोग होगा।

आभार


लेखक विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), परियोजना ES/11/741/2003 और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के एक आंतरिक अध्ययन को डेटा के लिये आभार मानता है।

संदर्भ


1. वलदिया जियोलॉजी ऑफ द कुमायूं लेसर हिमालय, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून, (1980) 291.

2. वाल्थम ए सी, केविंग इन हिमालय, द हिमालयन जर्नल (1972) 31.

3. तांबे संदीप, केरल धनशामा, अरावादी एम एल, हिमांशु कुलकर्णी कुस्टुबा महमूनी एवं जनेरीवाला अनिल के, रिवाईविंग डाइंग स्पीरिंगः क्लाइमेट चेंज एडोप्टेशन एक्सपेरीमेंट्स फ्रॉम द सिक्किम हिमालय, माउन्टेन रिसर्च डवलपमेंट, 32 (1) (2012) 62-72.

सम्पर्क


अविनाश अग्रवाल, ए आर सेन्थिल कुमार एवं राजेश कुमार नीमा, Avinash Aggarwal, A R Senthil Kumar & Rajesh Kumar Neema
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की 247 667 (उत्तराखण्ड), National Institute of Hydrology, Roorkee 247667 (Uttarakhand)