Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, पाँचवी राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 19-20 नवम्बर, 2015
सारांश
भूजल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जिसका लगातार पंजाब सहित सम्पूर्ण भारत में पीने के पानी, कृषि और उद्योग के लिये एक लम्बे समय से दोहन हो रहा है। यह दोहन पंजाब में उथले जलभृतों में कम पानी होने के कारण गहरे जलभृतों से ज्यादा किया जा रहा है जिससे भूजल तालिका में गिरावट पायी गयी है जिससे इसकी मात्रा और गुणों का क्षय हो रहा है। इसीलिए वर्तमान अध्ययन बिष्ट-दोआब जलग्रह, पंजाब, उत्तर-पश्चिमी भारत में सिंचाई के लिये निरन्तर अमूर्त भूजल संसाधनों की प्रतिक्रिया और पूर्वानुमान की सम्भावना एवं भविष्य प्रक्षेप पथ को समझने के उद्देश्य से किया गया। भूजल नमूने 19 साइटों से गहरे और उथले जलभृत से लिये गए। जाँच में पाया गया की नाइट्रेट की उथले जलभृत से उस गहराई तक पहुँचने की सम्भावना है जिस में, यदि उथले और गहरे जलभृतों से भूमिगत जल की निकासी वर्तमान दर से जारी रही, भविष्य में वृद्धि हो सकती है। स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले संदूषण-आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा सभी साइटों में डब्लूएचओ (WHO) द्वारा पीने के पानी के लिये जारी दिशा-निर्देश में तय सीमा से कम पायी गयी। यह अध्ययन भविष्य में पीने के पानी के गहरे स्रोतों में पाये जाने वाले अन्य मानवजनित संदूषणों जैसे की कीटनाशकों के लिये निहितार्थ है।
Abstract
The present study was undertaken with an aim to understand the response of groundwater resources in Bist-Doab catchment of Punjab in Northwest India to sustained abstraction for irrigation and forecast likely future trajectories. The groundwater samples were taken randomly from 19 sites for deeper and shallow aquifers and the nitrate may have breakthrough from the shallow groundwater to depth which is likely to be enhanced in the future if the current increases in pumping from the shallow and deep aquifers continue. The naturally occurring contaminants arsenic and fluoride were present at concentrations below WHO guideline drinking water limits for all sites and median concentrations were below 10 µg/L and 1.5 mg/L respectively. This has implications for future contamination of deep sources of drinking water from other anthropogenic contaminants such as pesticides.
परिचय
भूजल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जिसका पीने के पानी, कृषि और उद्योग के लिये पंजाब सहित भारत में लगातार एक लम्बे समय से अधिक मात्रा मे दोहन हो रहा है (लापवर्थ एट.अल, 2014 अ; कृष्ण एट.अल, 2014 ब)। यह दोहन पंजाब में उथले जलभृतों में कम पानी होने के कारण गहरे जलभृतों से ज्यादा किया जा रहा है (स्टैटिस्टिकल एब्सट्रैक्ट ऑफ पंजाब, 2013) जिससे भूजल तालिका में गिरावट पायी गयी है जिससे इसकी मात्रा और गुणों का क्षय हो रहा है (चोपड़ा, 2014 अ, ब; कृष्ण एंड चोपड़ा, 2015; कृष्ण एट. अल, 2015; लोहानी एंड कृष्ण, 2015; लोहानी एट.अल, 2015)। बिष्ट-दोआब क्षेत्र सतलुज और व्यास नदी के मध्य स्थित है। इस क्षेत्र में कृषि के लिये सिंचाई का मुख्य साधन भूजल है। सिंचाई में प्रयुक्त होने वाले भूजल को उथले जलभृतों एंव गहरे जलभृतों को अनियन्त्रित ढंग से दोहन किया जा रहा है जिस कारण भूजल भंडार पर भारी दबाव पड़ा है (कृष्ण एट.अल, 2014 अ-ब; 2013 अ,ब; लापवर्थ एट.अल, 2014अ, ब; मैकडोनाल्ड एट.अल, 2013, 2014; राव एट.अल, 2014; शर्मा एट.अल, 2014)। इसीलिए वर्तमान अध्ययन बिष्ट-दोआब जलग्रह, पंजाब, उत्तर-पश्चिमी भारत में सिंचाई के लिये निरन्तर अमूर्त भूजल संसाधनों की प्रतिक्रिया और पूर्वानुमान की सम्भावना एवं भविष्य प्रक्षेप पथ को समझने के उद्देश्य से किया गया। इस अध्ययन में वर्तमान व भविष्य में भूजल की गुणवत्ता एंव उपलब्धता की सम्भावना एवं भण्डारन पर विस्तृत विवेचना की गयी है एवं भूजल नमूने 19 साइटों से गहरे और उथले जलभृत से लिये गए।
अध्ययन क्षेत्र
विष्ट-दोआब जल ग्रहण का क्षेत्रफल 9060 वर्ग कि.मी. है तथा इसमें भारत के पंजाब राज्य के नवांशहर, होशियारपुर, कपूरथला और जालन्धर जिले शामिल है। इसकी स्थलाकृति उत्तर-पूर्व में शिवालिक पर्वत श्रेणियों, उत्तर एवं पश्चिम दिशा में व्यास नदी व पूर्व-दक्षिण में सतलूज नदी से घिरा है। यह क्षेत्र 30°51’ - 30°04’ नार्थ एवं 74°57’ से 76°40’ ईस्ट के मध्य स्थित है (चित्र -1)। अध्ययन क्षेत्र भारत के गंगा जलोढ़ कछार जलमृत के मध्य स्थित है। जलनिकासी घनत्व शिवालिक पहाड़ियों से सटे पूर्वोत्तर पट्टी में अधिक है लेकिन शेष क्षेत्र में सामान्य है। जलग्रहण क्षेत्र का समतल क्षेत्र का ढाल बहुत कम है तथा इसका क्षेत्रीय ढाल 0.4 मीटर/किलोमीटर दक्षिणी-पूर्व की ओर है।
विधि एंव उपकरण
भूजल नमूनों को सन 2013 में उथले जलभृत (50 मीटर से कम गहरे-अजनेहा को छोड़कर) व गहरे जलभृत (100 मीटर से अधिक गहरे, दूसरे एवं तीसरे जलभृत) से (100 मीटर से अधिक गहरे, दूसरे व तीसरे जलभृत) से लिया गया (चित्र 1, तालिका-1)। नमूना स्थलों का नक्शे पर मापन ‘गार्मिन ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम’ से किया गया है। भूजल नमूनों को एकत्र करने से पूर्व बोर होल में 15 मिनट के पम्प करने के पश्चात, ताजा जल नमूने को एकत्र किया गया है। भूजल का रासायनिक विश्लेषण सुनिश्चित करने के लिये प्रवाह माध्यम का प्रयोग कर विद्युत चालकता (EC) व पी एच (pH) के मान की गणना प्रेक्षण स्थल पर सावधानी पूर्वक की गयी। बिना अम्लीकृत भूजल नमूनों में फ्लोराइड (F) एवं नाइट्रेट (NO3) का विश्लेषण करने के लिये डायोनेक्स आयन क्रोमॅटोग्राफ (आईसीएस-5000) का प्रयोग राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान की प्रयोगशाला में किया गया है। आर्सेनिक (As) का विश्लेषण आई सी पी-एम एस में ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे, यूनाइटेड किंगडम की प्रयोगशाला में किया गया है।
परिणाम एंव विवेचना
परिणामों का विश्लेषण पी.एच मान, विद्युत चालकता नाइट्रेट व फ्लोराइड का मान तालिका-2 में दर्शाया गया है। पी.एच का मान उथले जल दायी जलभृतों में 6.5-8.1 के मध्य पाया गया जिसका औसत 7.1 है। गहरे जलभृतों में पी.एच का मान 7.0-8.2 के मध्य पाया गया है जिसका औसत 7.4 है। उथले जलदायी जलभृतों में विद्युतचालकता 209 माइक्रोग्राम/लीटर -1816 माइक्रोग्राम/लीटर के मध्य है जिसका औसत 939 माइक्रोग्राम/लीटर है। गहरे जलभृतों में विद्युतचालकता का मान 201 माइक्रोग्राम/लीटर-1123 माइक्रोग्राम/लीटर है जिसका औसत मान 583 माइक्रोग्राम/लीटर है। परिणाम में पी.एच मान के क्षारियता के मान में वृद्धि क्षेत्र में बाईकार्बोनेट आयन के कारण भूजल मे पायी गयी है जो मृदा में वर्षाजल रिसने के कारण हुई है (कृष्ण एट.अल, 2014अ)।
उथले जलभृतों में औसत नाइट्रेट 28.1 मिलीग्राम/लीटर और अधिकतम मान 72.8 मिलीग्राम/लीटर पाया गया है। गहरे जलभृतों में नाइट्रेट सान्द्रता का उच्चतम मान 56.9 मिलीग्राम/लीटर जिसका औसत 8.8 मिलीग्राम/लीटर है नाइट्रेट की सान्द्रता उथले जलग्राही जलभृतों में तीन गुणा अधिक पायी गयी है। कुछ गहरे जलभृतों में नाइट्रेट की सान्द्रता 10 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है जो दर्शाती है कि नाइट्रेट उथले जलभृतों से गहरे जलभृतों में प्रवेश कर गयी है। दो उथली जलदायी जलभृतों व एक गहरी जलभृत में नाइट्रेट का मान 50 मिलीग्राम/लीटर से अधिक पाया गया है जो WHO निर्धारित जलगुणवत्ता मानकों से अधिक है। अध्ययन क्षेत्र में गहरे भूजल जलभृतों के EC की लगातार घटने की प्रवृत्ति एंव नाइट्रेट की कम सान्द्रता यह दर्शाती है कि कुछ स्थानों पर गहराई तक मानव जनित प्रदूषण स्रोत के हस्तक्षेप के कारण उपजी है जो एक ज्वलंत समस्या है।
सामान्य तौर पर यह देखा गया है कि भूजल में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक है जो भूजल में भूगर्भिक स्थिति के कारण सम्भव है जबकि सतही जल में फ्लोराइड की मात्रा कम है (रविंदर एट.अल, 2003)। इसके अतिरिक्त सामान्य तौर पर जलोढ मैदानी क्षेत्र में फ्लोराइड की मात्रा उथले जलग्राही जलभृतों में अधिक होती है परन्तु वर्तमान अध्ययन में अधिकतर नमूनों में फ्लोराइड की मात्रा उथले जलग्राही जलभृतों में गहरे जलग्राही जलभृतों की अपेक्षा अधिक है जबकि औसत मात्रा बराबर है। इसका मुख्य कारण जलभृत में भूगर्भिक रासायनिक परिवर्तन हो सकता है। दन्त स्वास्थता के लिये फ्लोराइड की मात्रा पीने के पानी में आमतौर पर 0.5-1.0 मिलीग्राम/लीटर के मध्य निर्धारित है WHO के मानक के अनुरूप फ्लोराइड का मान भूजल में 1.5 मिलीग्राम/लीटर है। विश्लेषण के बाद उथले जलदायी जलभृतों में 0.2-1.1 मिलीग्राम/लीटर व गहरे जलभृतों में 0.10-1.20 जलभृत है। परिणाम स्वरूप किसी भी नमूने में फ्लोराइड की मात्रा अनुज्ञेय सीमा से अधिक नहीं है। आर्सेनिक की सान्द्रता, सभी नमूनों में WHO के मानक अनुसार 10 माइक्रोग्राम/लीटर की पानी की गुणवत्ता सीमा से कम है। उथले जलग्राही जलभृतों व गहरे जलभृतों दोनों की साइट पर यह 1.4 मिलीग्राम/लीटर के भीतर है। परन्तु होशियारपुर की साइट पर आर्सेनिक की सान्द्रता 9.66 माइक्रोग्राम/लीटर है। औसत आर्सेनिक सान्द्रता विघटन प्रक्रियाओं के कारण उथले साइटों की तुलना में गहरी जलभृत साइटों में उच्च स्तर पर है। इसलिये भूजल निकाय समय को दूसरे रूप में प्रयोग किया जा सकता है (एडमंड्स एट.अल, 2003)।
निष्कर्ष
उथले एवं गहरे जलदायी जलभृतों में पम्प करने की यही दर रही तो भविष्य में नाइट्रेट की सान्द्रता उथले जलभृतों से गहरे जलभृतों में बढ़ जाने का अनुमान है। स्वाभाविक रूप से पाये जाने वाले दूषित पदार्थ आर्सेनिक व फ्लोराइड अध्ययन क्षेत्र में सभी साइटों पर WHO द्वारा निर्धारित सीमा के अंदर पाये गए हैं और औसत मात्रा क्रमशः 10 माइक्रोग्राम/लीटर एवं 1.5 मिलीग्राम/लीटर के नीचे है।
आभार
यह कार्य BGS-DFID परियोजना के तहत किया गया है और प्राप्त वित्त पोषण विधिवत स्वीकार किया है। लेखक निदेशक, एनआईएच को उनके निरन्तर समर्थन और प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद करते हैं।
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