गुजरात में, जिला-मेहसाना के अतर्गत ‘फतेपुरा´ गांव की कुल जनसंख्या 1200 और परिवार संख्या 214 है इस गांव के ग्राम प्रधान श्री जय सिंह भाई चौधरी हैं। इन्होंने इस गांव में धूसर जल (गांव का गंदा पानी) प्रबंधन का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
. मुख्य विशेषताएं
इस गांव के गहरे बोर का एक नलकूप है, जिसका व्यास 8’’ और गहराई 800 फीट है। 35 अश्वशक्ति वाले पम्प से पंप कर के जल को 40,000 लीटर क्षमता वाली उर्ध्वस्थ टंकी में ले जाया जाता है। यह कार्य दिन में चार बार किया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गांव में प्रतिदिन 1,60,000 लीटर जल का उपयोग किया जाता है। इसमें से 40,000 लीटर जल का उपयोग पशुओं के लिए हो जाता है। यद्दपि, वास्तव में धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की पैदा कितनी मात्रा में होता है, इसका स्पष्ट हिसाब नहीं लगाया गया है, फिर भी, यह अनुमान किया जाता है कि कुल प्राप्त जल का 80 प्रतिशत धूसर जल (गांव का गंदा पानी) के रुप में निकल आता है। इस प्रकार, गांव में धूसर जल सृजन की अनुमानित मात्रा करीब 96,000 लीटर प्रतिदिन होती है।
ग्राम पंचायत ने कृषि कार्य हेतु धूसर जल (गांव का गंदा पानी) के उपयोग के लिए एक मार्गदर्शी परियोजना का क्रियान्वयन किया है। इस परियोजना को तैयार करने और इसके क्रियान्वयन में सहायता करने के लिए रु0 15,000/- के भुगतान पर ग्राम पंचायत ने एक तकनीकी परामर्शी का सहयोग प्राप्त किया है। यह परियोजना 45 दिनों में पूर्ण की गयी। इस गांव के वाह्ययांचल (बाहरी क्षेत्र) में स्थित एक पोखर में गांव के धूसर जल (गांव का गंदा पानी) को नाली के द्वारा ले जाया जाता है। इसके लिए गांव के सात परिक्षेत्रों में 12’’-15’’-18’’ परिमाप के आरसीसी पाइप 2700 फीट की लंबाई में बिछाये गये हैं।
आर्थिक व्यवहार्यता
गांव का पोखर गांव की जमीन के स्तर से 7 फीट नीचे से है और पानी की गहराई 12 फीट बतायी गयी। पोखर का क्षेत्रफल तीन एकड़ बताया गया। यह परियोजना दो वर्ष पहले पूर्ण की गयी। इस परियोजना की प्राक्कलित राशि 15 लाख रु0 थी। इसके विरुद्ध कुल 12.76 लाख रु0 संसूचित खर्च था। कुल खर्च 12.76 लाख में 2.70 लाख रु0 ग्राम पंचायत की ओर से खर्च किया गया था तथा शेष राशि 11वें वित्त आयोग के अनुदान से खर्च की गयी। ग्राम पंचायत ने घरों से जोड़ने पर कुल खर्च एक लाख रु0 किए। इसमें 25,000/- रु0 30 मजदूरों के भुगतान पर और 70,000 /- रु0 सामग्री की खरीद पर खर्च किया गया। ग्राम पंचायत ने निम्न प्रकार से 4 लाख रु0 का इकट्ठा कियाः
• डेरी (दुग्धशाला) से 1 लाख रुपये
• पोखर की मिट्टी की बिक्री से 1 लाख रुपये
• नवरात्रि के अवसर पर जन सहयोग से 1 लाख रुपये
• रु0 500/- प्रति लाभान्वित परिवार से यानी 200 परिवारों से 1 लाख रुपये
उपर्युक्त संग्रहित 4 लाख रुपये की राशि निम्न रुप से खर्च की गयीः
• धूसर जल (गांव का गंदा पानी) प्रबंधन परियोजना के लिए ग्राम पंचायत का योगदान 2.5 लाख रुपये
• 11 वें वित्त आयोग से धन प्राप्त कर 4 लाख रुपये की लागत पर 0.5 लाख रुपये विद्यालय भवन निर्माण के लिए पंचायत का योगदान
• ग्राम पंचायत भवन के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत का 1.00 लाख रुपये योगदान (ताकि शेष राशि 11 वें वित्त आयोग से प्राप्त की जा सके) कुल 4 लाख रुपये
पोखर में आ जाने के बाद धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की बिक्री से ग्राम पंचायत को प्रति वर्ष 12,000/- रु0 की आय होती है। तीन वर्षों की अनुबंध-अवधि में (पोखर में धारण करने के बाद) धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की बिक्री से ग्राम पंचायत को 36,000/- रु0 की आय हो सकती है। पोखर से आपूर्ति किए जाने वाले धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की गुणवत्ता की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। इस ग्राम ने भारत सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से सन् 2006 में ‘‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’’ प्राप्त किया।
लाभ
गुजरात राज्य के जिला मेहसाना के अंतर्गत ग्राम ‘फतेपुरा’ के समुदाय ने यह सिद्ध कर दिया है कि ‘‘जहां चाह है वहीं राह है’’ और यहां के समुदाय ने समीपवर्ती गांवों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहां का ग्राम-समाज जागरुक हो गया है और इनमें समुदाय द्वारा परिचालित कार्य क्षेत्रों में स्वामित्व का बोध है। प्राच्छादित (ढकी हुई) नालियों (ड्रेन) का मुख्य लाभ यह है कि यह सतह पर स्थान नहीं घेरती है और इसमें प्रदूषित जल के जाने और दुर्गंध की समस्या काफी कम हो जाती है।
सीमाएं
इस विशेष परियोजना की सफलता ‘निर्णय-प्रक्रिया’ में पूरे समुदाय के सम्मिलित होने एवं परियोजना की क्रीयान्विति और बजट खर्च की पारदर्शिता पर निर्भर करती है। हां पर यह ध्यान रखें कि कोई भी विवाद ऐसी परियोजना को असफल बना सकता है। इसलिए यह आवश्यक है, कि इस संदर्भ में सरकारी योजनाओं के बारे में गांव-गांव में जनजागरण कार्यक्रम चलाए जाएं।
. मुख्य विशेषताएं
इस गांव के गहरे बोर का एक नलकूप है, जिसका व्यास 8’’ और गहराई 800 फीट है। 35 अश्वशक्ति वाले पम्प से पंप कर के जल को 40,000 लीटर क्षमता वाली उर्ध्वस्थ टंकी में ले जाया जाता है। यह कार्य दिन में चार बार किया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि गांव में प्रतिदिन 1,60,000 लीटर जल का उपयोग किया जाता है। इसमें से 40,000 लीटर जल का उपयोग पशुओं के लिए हो जाता है। यद्दपि, वास्तव में धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की पैदा कितनी मात्रा में होता है, इसका स्पष्ट हिसाब नहीं लगाया गया है, फिर भी, यह अनुमान किया जाता है कि कुल प्राप्त जल का 80 प्रतिशत धूसर जल (गांव का गंदा पानी) के रुप में निकल आता है। इस प्रकार, गांव में धूसर जल सृजन की अनुमानित मात्रा करीब 96,000 लीटर प्रतिदिन होती है।
ग्राम पंचायत ने कृषि कार्य हेतु धूसर जल (गांव का गंदा पानी) के उपयोग के लिए एक मार्गदर्शी परियोजना का क्रियान्वयन किया है। इस परियोजना को तैयार करने और इसके क्रियान्वयन में सहायता करने के लिए रु0 15,000/- के भुगतान पर ग्राम पंचायत ने एक तकनीकी परामर्शी का सहयोग प्राप्त किया है। यह परियोजना 45 दिनों में पूर्ण की गयी। इस गांव के वाह्ययांचल (बाहरी क्षेत्र) में स्थित एक पोखर में गांव के धूसर जल (गांव का गंदा पानी) को नाली के द्वारा ले जाया जाता है। इसके लिए गांव के सात परिक्षेत्रों में 12’’-15’’-18’’ परिमाप के आरसीसी पाइप 2700 फीट की लंबाई में बिछाये गये हैं।
आर्थिक व्यवहार्यता
गांव का पोखर गांव की जमीन के स्तर से 7 फीट नीचे से है और पानी की गहराई 12 फीट बतायी गयी। पोखर का क्षेत्रफल तीन एकड़ बताया गया। यह परियोजना दो वर्ष पहले पूर्ण की गयी। इस परियोजना की प्राक्कलित राशि 15 लाख रु0 थी। इसके विरुद्ध कुल 12.76 लाख रु0 संसूचित खर्च था। कुल खर्च 12.76 लाख में 2.70 लाख रु0 ग्राम पंचायत की ओर से खर्च किया गया था तथा शेष राशि 11वें वित्त आयोग के अनुदान से खर्च की गयी। ग्राम पंचायत ने घरों से जोड़ने पर कुल खर्च एक लाख रु0 किए। इसमें 25,000/- रु0 30 मजदूरों के भुगतान पर और 70,000 /- रु0 सामग्री की खरीद पर खर्च किया गया। ग्राम पंचायत ने निम्न प्रकार से 4 लाख रु0 का इकट्ठा कियाः
• डेरी (दुग्धशाला) से 1 लाख रुपये
• पोखर की मिट्टी की बिक्री से 1 लाख रुपये
• नवरात्रि के अवसर पर जन सहयोग से 1 लाख रुपये
• रु0 500/- प्रति लाभान्वित परिवार से यानी 200 परिवारों से 1 लाख रुपये
उपर्युक्त संग्रहित 4 लाख रुपये की राशि निम्न रुप से खर्च की गयीः
• धूसर जल (गांव का गंदा पानी) प्रबंधन परियोजना के लिए ग्राम पंचायत का योगदान 2.5 लाख रुपये
• 11 वें वित्त आयोग से धन प्राप्त कर 4 लाख रुपये की लागत पर 0.5 लाख रुपये विद्यालय भवन निर्माण के लिए पंचायत का योगदान
• ग्राम पंचायत भवन के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत का 1.00 लाख रुपये योगदान (ताकि शेष राशि 11 वें वित्त आयोग से प्राप्त की जा सके) कुल 4 लाख रुपये
पोखर में आ जाने के बाद धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की बिक्री से ग्राम पंचायत को प्रति वर्ष 12,000/- रु0 की आय होती है। तीन वर्षों की अनुबंध-अवधि में (पोखर में धारण करने के बाद) धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की बिक्री से ग्राम पंचायत को 36,000/- रु0 की आय हो सकती है। पोखर से आपूर्ति किए जाने वाले धूसर जल (गांव का गंदा पानी) की गुणवत्ता की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। इस ग्राम ने भारत सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से सन् 2006 में ‘‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’’ प्राप्त किया।
लाभ
गुजरात राज्य के जिला मेहसाना के अंतर्गत ग्राम ‘फतेपुरा’ के समुदाय ने यह सिद्ध कर दिया है कि ‘‘जहां चाह है वहीं राह है’’ और यहां के समुदाय ने समीपवर्ती गांवों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहां का ग्राम-समाज जागरुक हो गया है और इनमें समुदाय द्वारा परिचालित कार्य क्षेत्रों में स्वामित्व का बोध है। प्राच्छादित (ढकी हुई) नालियों (ड्रेन) का मुख्य लाभ यह है कि यह सतह पर स्थान नहीं घेरती है और इसमें प्रदूषित जल के जाने और दुर्गंध की समस्या काफी कम हो जाती है।
सीमाएं
इस विशेष परियोजना की सफलता ‘निर्णय-प्रक्रिया’ में पूरे समुदाय के सम्मिलित होने एवं परियोजना की क्रीयान्विति और बजट खर्च की पारदर्शिता पर निर्भर करती है। हां पर यह ध्यान रखें कि कोई भी विवाद ऐसी परियोजना को असफल बना सकता है। इसलिए यह आवश्यक है, कि इस संदर्भ में सरकारी योजनाओं के बारे में गांव-गांव में जनजागरण कार्यक्रम चलाए जाएं।